Sunday, 23 August 2015

प्राथमिक स्तर पर एक समान शिक्षा अदालती आदेश कारगर नही

 डाक्टर राम मनोहर लोहिया कहा करते थे कि लोग मेरी बात सुनेंगे, शायद मेरे मरने के बाद। उनकी इस बात को एक समान शिक्षा के सवाल पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के हालिया फैसले ने चरितार्थ किया है। वे मानते थे कि संसदीय लोकतन्त्र की सफलता और उसके स्थायित्व के लिए आवश्यक है कि देश के सभी बच्चों के लिए एक जैसी शिक्षा अनिवार्य की जाये। 1974 के जे.पी. मूवमेन्ट के दौरान भी दोहरी शिक्षा व्यवस्था एक महत्वपूर्ण मुद्दा था लेकिन इस आन्दोलन की लहर पर सवार होकर सत्ता सुख पाने वाले तत्कालीन छात्र नेताओं ने राजनेता बनने के सफर के दौरान इस मुद्दे को भुला दिया और दोहरी शिक्षा के जंजाल को पहले से ज्यादा मजबूत करने का काम तेजी से किया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति श्री सुधीर अग्रवाल ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि मन्त्रियों, नेताओं, आई.ए.एस. अफसरों, जजो और सरकारी कर्मचारियों निगम अर्धसरकारी संस्थानों या जो कोई भी राज्य के खजाने से वेतन ले रहा है उनके बच्चों को सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाना अनिवार्य किया जाये। उन्होनंे अपने इस निर्णय के अनुपालन के लिए मुख्य सचिव से अन्य अधिकारियों के साथ विचार विमर्श करके नीति बनाने और अगले शैक्षिक सत्र से इसे लागू करने का निर्देश दिया है।
संविधान के नीति निदेशक तत्व में भी कहा गया है कि राज्य छः वर्ष तक की आयु के छोटे बच्चों की देखभाल करने और उन्हंे शिक्षा देने का प्रयास करे। 42 वे संविधान संशोधन अधिनियम 1976 में अनुच्छेद 39(च) के माध्यम से नीति निदेशक तत्वों मंे बच्चों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावारण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधायें दिये जाने का प्रावधान किया गया है। और इसी को दृष्टिगत      रखकर मनमोहन सिंह सरकार ने निःशुल्क एवं अनिवार्य बात शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू किया जो उत्तर प्रदेश में दिनांक 27 जुलाई 2011 से प्रभावी है परन्तु धरातल पर यह अधिनियम केवल और केवल कानूनी विशेषज्ञों के बीच चर्चा तक सीमित है। अपने नौनिहालों को उनके उज्जवल भविष्य के लिए एक समान शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना राज्य का दायित्व है परन्तु उनको अपने इस दायित्व की सुध नही है इसीलिए न्यायपालिका को हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। विधायिका के मामलो में न्यायपालिका का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप संविधान सम्मत नहीं है परन्तु अपने कर्तव्यों के प्रति राज्य सरकारों की उदासीनता के कारण आम आदमी न्यायपालिका के हस्तक्षेप को उचित मानता है।
आजादी के तत्काल बाद से प्रारम्भिक शिक्षा में सुधार और उसे अनिवार्य बनाने की चर्चा की जा रही है परन्तु उसे सुधारने या उसे अनिवार्य बनाने के लिए कभी किसी सरकार ने ईमानदार प्रयास नहीं किये है और उसी कारण सरकारी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों को आजादी के अड़सठ साल बाद  भी अनिवार्य बुनियाादी सुविधाओं के लिए तरसना पड़ता है।
शिक्षा के निजीकरण ने दोहरी शिक्षा व्यवस्था को और ज्यादा मजबूत किया है। निजी क्षेत्र के स्कूलों की आँधी ने सरकारी शिक्षा व्यवस्था की जड़े हिला दी है। सरकारी स्कूलों के अध्यापक भी अब अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाना चाहते है। आज से पचास साल पहले डाक्टर, वकील, इंजीनियर और अधिकारियों के बच्चे अपने घर के पास सरकारी स्कूल में ही पढ़ते थे और वहीं के विद्यार्थियों में से कई आई.ए.एस. ,पी.सी.एस. हुए है जबकि उस समय प्राथमिक विद्यालायों में हाईस्कूल पास और माध्यमिक विद्यालयों में सामान्य स्नातक अध्यापन करते थे। अब तो प्राथमिक विद्यालयों में भी प्रथम श्रेणी के परास्नातकांे की नियुिक्त की जा रही है और उन्हें शासकीय कर्मचारियों की तरह आकर्षक वेतन, भत्ते और सुविधायें दी जा रही है। लेकिन इनके विद्यार्थी शुद्ध हिन्दी लिखने में भी निपुण नहीं हो पा रहे है सच कहा जाये तो उन्हे निपुण करने का प्रयास भी नहीं किया जाता। अधिकांश नव नियुक्त आध्यापक केवल हाजिरी लगाने के लिए विद्यालय जाते हैं। विद्यार्थियों को पढ़ाने से उनका कोई वास्ता नहीं है।
मुलायम सिंह, कल्याण सिंह और मायावती के अन्धभक्त और कट्टर अनुयायी        आर्थिक विपन्नता के कारण बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों या कारपोरेट स्कूलों में पढ़ा पाने में अपने आपको असमर्थ पाते है। स्थानीय सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना उनकी मजबूरी है। उनके पास अन्य कोई विकल्प नहीं है परन्तु इन लोगों ने अपने मुख्य मन्त्रित्व काल में स्थानीय सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधायें उपलब्ध करा कर उनकी शैक्षिक गुणवत्ता को सुधारने का कोई प्रयास नहीं किया। अपने विद्यार्थी जीवन में इन लोगों ने दोहरी शिक्षा व्यवस्था के लिए काँग्रेसी सरकारों को जमकर कोसा है और उसके विरूद्ध आन्दोलन किये है। कल्याण सिंह ने अपने कार्यकाल में प्राथमिक स्कूलों में उच्च शिक्षित अध्यापको की नियुक्ति की थी और उसके बाद कमोबेश सभी सरकारों ने अध्यापको की नियुक्ति में शैक्षिक मापदण्डों के साथ समझौता नहीं किया परन्तु स्कूलों में अध्ययन अध्यापन लायक गरिमामय रचनात्मक माहौल बनाने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया। सैकड़ो स्कूलों में केवल एक अध्यापक कक्षा एक से पाँच तक के विद्यार्थियों को पढ़ा रहे है। भारी कमी के बावजूद अध्यापकों से गैर शैक्षणिक कार्य लिया जाना आम बात हो गयी है। प्राथमिक स्कूलों में दो और उच्च प्राथमिक स्कूलों में विज्ञान गणित और भाषा के कम से कम तीन अध्यापकों की नियुक्ति का प्रावधान है। अखिलेश सरकार को स्वयं संज्ञान लेकर न्यायपालिका के हस्तक्षेप की प्रतीक्षा किये बिना आर्थिक दृष्टि से विपन्न परिवारों के नौनिहालों के उज्जवल भविष्य के लिए सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में बुनियादी शैक्षिक सुविधाये उपलब्ध करानी चाहिए।
पचास साठ के दशक में जिला पंचायत, नगर पालिकाओं, रेलवे आदि के प्राथमिक विद्यालय हुआ करते थे और वहां अच्छी पढ़ाई भी होती थी समय के साथ इन स्कूलों के भवनों का व्यवसायिक महत्व बढ़ गया इसलिए इन स्कूलों की जमीनों को बेचने के लिए जानबूझकर प्रचार किया गया कि अब कोई अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना ही नही चाहता जबकि सच इसके प्रतिकूल है। आज भी जिन सरकारी स्कूलों का शैक्षिक स्तर ठीक है, वहां आम लोगो के बच्चों को प्रवेश नहीं मिल पाता। सार्वजनिक धन से स्थापित दिल्ली का संस्कृति स्कूल इसका जीता जागता उदाहरण है। इस स्कूल में आला नौकरशाहों और उच्च स्तरीय राजनेताओं के बच्चों को प्रवेश मिल पाता हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत इस स्कूल में एक भी निर्धन विद्यार्थी को प्रवेश नहीं मिल पाता। केन्द्र सरकार की नाक के नीचे उसके व्यय पर चल रहे इस स्कूल में शिक्षा के अधिकार अधिनियम को लागू करने की चिन्ता किसी को नहीं है। प्राथमिक स्तर पर एक समान शिक्षा नीति लागू करने के लिए अदालती आदेश कारगर नहीं है परन्तु यह भी सच है कि यदि न्यायमूर्ति श्री सुधीर अग्रवाल द्वारा पारित आदेश का अनुपालन प्रदेश सरकार सुनिश्चित कराये और सरकारी, अर्द्धसरकारी कर्मचारियों, जनप्रतिनिधियों, न्यायाधीशों आदि सरकारी खजाने से वेतन या पारिश्रमिक पाने वाले विशिष्ट लोगों के बच्चे जब सरकारी स्कूलोें में पढ़ने लगेंगे तो निश्चित रूप से दोहरी शिक्षा व्यवस्था के अभिशाप से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा।

Sunday, 9 August 2015

vuisf{kr pquko ifj.kke dpgjh ds fy, ubZ bckjr

dkuiqj ckj ,lksfl;s'ku ds pquko esa bl ckj fo}ku vf/koDrkvksa us vf/koDrk o`fRr djds viuk thou ;kiu djus okys izR;kf'k;ksa dks ftrkdj Hkfo"; ds fy, ,d ubZ bckjr fy[kh gSaA bl bckjr dks vius tsgu esa mrkjdj cnys ekgkSy dks cjdjkj j[kus dh pqukSrh u;s inkf/kdkfj;ksa ds lkeus gSA pquko  ifj.kke crkrs gS fd ernkrkvksa us ernku LFky ij viuk fu.kZ; LorU= foosd ls lksp le>dj fy;k gSA e¡gxs fx¶Vks tkfroknh xksycUnh lkoZtfud Hkkstksa dh fcfj;kuh vkSj 'kjkc dk mu ij dksbZ izzHkko ugha iM+kA ernkrkvksa us fdlh dkss Hkh oksV nsus ds igys mlds fiNys vkpj.k ij xEHkhjrk ls fopkj fd;k gSA  bl pquko us chl iPphl yk[k :i;s [kpZ djds e¡gxs izpkj ls ernkrkvksa dks fj>k ysus dk liuk ikys izR;kf'k;ksa dks mudh gSfl;r dk vglkl djk fn;k gSA ;gh vius yksdrU= dh fo'ks"krk gS tks iSls vkSj ilhus dh yM+kbZ esa ilhus dks ojh;rk nsrk gSA
     ckj ,lksfl;s'ku ds pquko esa ckgjh rRoksa dk izHkko rsth ls c<+k gSA mudh #fp vkSj lfØ;rk fpUrk dk fo"k; gSA bl izdkj fufgr LokFkhZ rRoksa dk dsoy vkSj dsoy vius LokFkZ ls eryc gksrk gS vkSj vius fgr lk/ku ds fy, ,slss yksx viuh gh rjg ds izR;kf'k;ksa dks [kkstdj mudh vkfFkZd enn djds Hkfo"; ds fy, iw¡th fuos'k djrs gS vkSj bUgha ckgjh rRoksa us dkuiqj ckj ,lksfl;s'ku dh xfrfof/k;ksa esa vius vizR;{k izHkko dks c<+kus ds fy, Fkksd lnL;rk vfHk;ku dk Jh x.ks'k fd;k vkSj vc lkoZtfud Hkkstksa dh fuyZTt ijEijk 'kq: djk nh gSA
lkSHkkX; ls fuokZfpr inkf/kdkjh is'ksoj vf/koDrk gS vkSj mUgaas izkiVhZ Mhyjks ds izHkko esa vf/koDrk o`fRr ds lkeus mRiUu ladV dk vuqHkotfur Kku gSA lHkh tkurs gS fd pquko izpkj esa fdlh izkiVhZ Mhyj ;k mlds }kjk lefiZr fdlh izR;k'kh ds lkFk pqukoh nkSM+ esa lkekU; is'ksoj vf/koDrk dk fiNM+ tkuk ykfteh gSA blfy, u;s inkf/kdkfj;ksa dks vf/koDrko`fRr djds viuk thou ;kiu djus okyksa vkSj fooknLin izkiVhZ [kjhnus cspus okyksa ds chp ,d foHkktu js[kk [khpuh gksaxhA lkoZtfud :i ls crkuk gksxk fd fooknLin izkiVhZ ls [kjhnuk cspuk vf/koDrk o`fRr ¼odkyr½ ugha gSA bl ckj lQsn iSUV 'kVZ igus ,sls dbZ yksx pquko izpkj esa lfØ; Fks tks gR;k vigj.k MdSrh tSls t?kU; vijk/kkas ds vfHk;qDr gS ;k jgs gSA ckn ,lksfl;s'ku ds fy, ,sls rRoksa dh lfØ;rk fpUrk dk fo"k; gS vkSj blhfy, iSrhl o"kZ ls iSlB o"kZ dk yEck odkyrh thou thus okys 516 ofj"B vf/koDrkvksa esa ls 390 us rirh nqigfj;k vkSj Hkh"k.k me"k ds chp dpgjh ls Mh0 ,0 oh0 ykW dkyst rd iSny vkdj vius erkf/kdkj dk iz;ksx fd;k gSA blds igys bl vk;q oxZ ds ofj"B vf/koDrk vius erkf/kdkj dk iz;ksx ugha djrs FksA bu ofj"B vf/koDrkvksa ds dkj.k is'ksoj izR;kf'k;ksa dh vk'kkvksa ij rq"kkjkikr gqvk gSA
lHkh tkurs gS fd csyxke pqukoh [kpksZ ds dkj.k vkt rd dksbZ efgyk vf/koDrk v/;{k ;k egkea=h ds in ij fuokZfpr ugha gks ldha tcfd viuh la[;k vkSj O;olkf;d dq'kyrk dh n`f"V ls mudh mYys[kuh; lk>snkjh gS vkSj os ,dtqV gksdj pquko ifj.kkeksa dks vius rjhds ls izHkkfor djus esa l{ke gSA u;s inkf/kdkfj;ksa dks bl fn'kk esa igy djuh pkfg,A pquko [kpZ dh lhek fu/kkZfjr dh tk;s vkSj lqlaxr [kpksZa dks ,d lwph cuk;h tk;sA dpgjh ds vUnj fdlh Hkh lkbt ds cSuj iksLVj ij jksd yxkdj dpgjh ds ckgj fdlh Hkh izdkj ls pquko izpkj dh vuqefr u nh tk;sA izpkj ds nkSjku lk;adkyhu Hkkstksa ij Li"V :i ls izfrcU/k yxk;k tk;sA bl izdkj dh O;oLFkk,a ykxw gksus ls lq[kn ifj.kke lkeusa vk;sxk vkSj fQj efgyk vf/koDrkvkasa ds fy, Hkh v/;{k ,oe egkea=h pqus tkus dk ekxZ iz'kLr gksxkA

ckj ,lksfl;s'ku dk xkSjoe;h bfrgkl gSA inkf/kdkjh pqus tkus ds ckn cSfjLVj ujsUnz thr flag] ,u- ds- uk;j] ;qf/kf"Bj rkyokM+] vksadkj ukFk esB xksih';ke fuxe] xksiky —".k voLFkh] vjfoUn cktisbZ vkSj lR;sUnz f}osnh us vius lEiw.kZ dk;Zdky ds nkSjku fu"ks/kkKk ;k tekur ds fdlh ekeys esa viuk odkyrukek nkf[ky ugha fd;k vkSj u vnkyr ds le; mifLFkr gq, gSA viuh 'kkyhurk vkSj O;olkf;d dq'kyrk ds cy ij os iz'kklfud ,oe U;kf;d vf/kdkfj;ksa ij viuk ncko cukrs jgs gSA O;olkf;d ijUrq vc fLFkfr;kW cny xbZ gSA pquko thrrs gh inkf/kdkfj;ksa ds ikl t?kU; vijk/kksa vkSj fooknLin ekeykssa esa fu"ks/kkKk oknksa dh ck<+ vk tkrh gSA lQsn iks'k vijk/kh inkf/kdkfj;ksa ds vkl&ikl eWMjkus yxrk gSA fiNys dk;Zdky ds v/;{k th lR;sUnz f}osnh us vius vkl&ikl ,sls yksxksa dks QVdus ugha fn;kA tekur fu"ks/kkKk ds fdlh ekeys esa os vnkyr ds le{k mifLFkr ugha gq,A lHkh yksx bl fcUnq ij mudk vuq'kj.k djs] ,slh vis{kk U;k;laxr ugha gSa ijUrq ;g Hkh lp gS fd ;fn fdlh inkf/kdkjh us fuokZfpr gksus ds igys gR;k vigj.k tSls t?kU; vijk/kksa esa tekur ds fy, vnkyr ds le{k viuh mifLFkfr ntZ ugha djk;h Fkh vkSj vc fuokZfpr gks tkus ds ckn ;fn ,sls ekeyksa esa mudh fu;fer mifLFkfr c<+ tkrh gSa rks blls dpgjh ;k lekt esa vPNk lUns'k ugha tkrkA ckj vkSj csUp dh feyhHkxr ds vjksi gok esa rSjus yxrs gSA lHkh vjksi lgh ugha gksrs ijUrq tks fn[kus yxrk gS mls Hkh lgh ugha fd;k tk ldrk gSA u;s inkf/kdkfj;ksa dks bl fcUnq ij lathnxh ds lkFk fopkj djuk gksxk vkSj ubZ ih<+h ds lkeus vkn'kZ mifLFkr djus ds fy, rkRdkfyd ykHkksa ls Åij mBdj dqN R;kx djus dh ekufldrk cukuh gksxhA

Monday, 3 August 2015

lkoZtfud Hkkstksa us fcxkM+k
dpgjh ds yksdrU= dk Lokn

dkuiqj ckj ,lksfl;s'ku ds inkf/kdkfj;ksa ds pquko izpkj esa fo}ku vf/koDrk ernkrkvksa dks vius izfr yqHkkus ds fy, izR;f'k;ksa }kjk fn;s tk jgs lkoZtfud Hkkstksa us ekMy ckbykt ikjEifjd xfjek vkSj dpgjh ds yksdrU= dk Lokn fcxkM+ fn;k gSA iksLVj cSuj dV&vkmV vkSj VsEiksa gkbZ gS ds mn~?kks"kksa  ij jksd yx tkus ds ckn izR;kf'k;ksa ds chp vc ernkrkvksa dks Hkkstu djkus dh gksM+ eph gqbZ gSA gykafd U;k;ky; ds dk;Z fnolksa esa dpgjh ifjlj ds vUnj Hkkst vk;ksftr djus okys dqN izR;kf'k;ksa dks ,YMj desVh ¼pquko izcU/ku lfefr½ us dkj.k crkvks uksfVl Hkh tkjh fd;k gS ijUrq dksbZ loZekU; vkpkj lafgrk] lkoZtfud thou ds e;kZfnr vkpj.k vkSj pquko O;; ij fu;U=.k dh dksbZ laLFkkxr O;oLFkk u gksus ds dkj.k fdlh izR;k'kh ij dksbZ vlj ugha gqvk gSA ,d izR;k'kh us rks tkfr ds vk/kkj ij fnu fuf'pr ckrsa izR;sd tkfr ds vf/koDrkvkas ds fy, vyx&vyx Hkkst vk;ksftr djds tkfroknh xksycUnh dh ,d ubZ ijEijk dh fuyZTt 'kq:vkr dh gSA
     dkuiqj ckj ,lksfl;s'ku vius xBu ds le; ls ,d l'kDr vkUnksyu jgh gSA dHkh VªsM ;wfu;u ugha jgh gSA 'kks"k.k vU;k; vR;kpkj vkSj vlekurk ds fo:) tu la?k"kksZ esa mldh lgHkkfxrk vke yksxks ds fy, izsj.kkLin jgh gSA vktknh dh yM+kbZ esa mlds laLFkkid lnL;ksa if.Mr i`FohukFk pd] eksrhyky usg:] dSyk'k ukFk dkVtw dh lfØ; lgHkkfxrk bfrgkl dk xkSjo'kkyh v/;k; gSA vktknh ds ckn ns'k ds izFke fof/kea=h vkSj e/; izns'k ds izFke eq[;ea=h ds in dks 'kq'kksfHkr djds dSyk'k ukFk dkVtw us dkuiqj ckj ,lksfl;s'ku dh lnL;rk dks xkSjokfUor fd;k gSA
     vius xBu dh 'kq:vkr ls gh dkuiqj ckn ,lksfl;s'ku tkfr] /keZ] lEiznk; vkSj {ks= dh ladh.kZ Hkkoukvksa ls Åij jgh gSA lnL;ksa ds O;fDrxr ,oe jktuSfrd erHksn ,lksfl;s'ku ds iVy ij dHkh izHkko'kkyh ugha jgsA lHkh ,lksfl;s'ku dh xfjek vkSj mlds izksVksdky dks loksZifj ekurs jgs gS vkSj bUgha ijEijkvksa ds dkj.k bfUnjk xk¡/kh dh rkuk'kkgh ds nkSj esa iz[;kr lkE;oknh fopkjd lqYrku fu;kth dks vius /kqj fojks/kh jk"Vªh; Lo;a lsod la?k ds rRdkyhu izkUr la?kpkyd cSfjLVj ujUsnz thr flag dk leFkZu djus esa dksbZ f>>d eglwl ugha gqbZA mUgkasus leFkZu nsrs le; dgk Fkk fd muds e/; jktuSfrd erHksn tx tkfgj gS ijUrq ckj ,lksfl;s'ku ds fy, os loZJs"B izR;k'kh gSA bl izdkj dh vusdksa Js"B ijEijkvksa dks vius esa lesVs bl ,lksfl;s'ku dks u tkus fdldh utj yx xbZ gS ftlds dkj.k lekt ds lokZaxh.k fodkl dk chM+k mBk;s mlds lnL;ksa dks vc dsoy ckjg eghus ds fy, inkf/kdkjh pqus tkus gsrq tkfr] /keZ] lEiznk;] {ks= ds vk/kkj ij oksV ek¡xus ds fy, etcwj gksuk iM+ jgk gSSA O;fDrxr xq.kksa vkSj tu la?k"kksZ esa viuh lgHkkfxrk ds vk/kkj ij oksV ek¡xuk vkSj nsuk oftZr lk gks x;k gSA
     ckj ,lksfl;s'ku dk dksbZ in ykHk dk in ugha gSA inkf/kdkfj;ksa dks dksbZ osru ;k HkRrk izkIr ugha gksrkA dsoy ;'k dhfrZ ds fy, pquko yM+k tkrk gS blfy, iUnzg chl yk[k :i;s dk O;; le> ls ijs gSA bruh cM+h /kujkf'k dk izcU/k lk/kkj.k ckr ugha gSA vfu;af=r [kpksZa ds dkj.k dsoy vkSj dsoy odkyr djds viuk thou ;kiu djus okys vf/koDrkvksa ds fy, pquko yM+uk vlEHko lk gks x;k gSA ifj.kke Lo:i vf/koDrko`fRr dks fe'ku vkSj bl fe'ku ds fy, ckj ,lksfl;s'ku dks l'kDr ek/;e ekuus okys vf/koDrkvkaas dks vfu;af=r [kpksaZ us pqukoh n`f"V ls vizklkafxd cuk fn;k gSA

     Nk= la?kksa ds pquko ls ysdj laln rd ds pqukoksa esa izR;sd izR;k'kh ds ikl vius ernkrkvksa dks fj>kus ds fy, dksbZ u dksbZ tufgr dk eqn~nk vkSj nqjxkeh dk;ZØe gksrk gSA bUgha eqn~nks vkSj dk;ZØeksa ds vk/kkj ij izR;k'kh ernkrkvksa dks viuh vksj vk—"V djrs gS ijUrq fo}ku vf/koDrkvkas ds pquko esa eqn~ns 'kq: ls unkjr gSA fdlh ds Hkh ikl LFkkuh; U;kf;d ifjokj dks u;k Dysoj nsus vkSj dpgjh esa jpukRed ekgkSy cuk;s j[kus dk dksbZ dk;ZØe ugha gSA dsoy T;knk ls T;knk yksxksa dks Hkkstu vkSj tkfroknh xksycUnh djds lHkh viuh pquko oSrj.kh ikj djuk pkgrs gSA oksV ysus ds fy, Hkkstu djkus vkSj oksV nsus ds fy, Hkkstu djus esa fdlh dks dksbZ f>>d ugha gks jgh gSA le> esa ugha vkrk fd ge lc fdl fn'kk esa tk jgs gS\ vkSj ubZ ih<+h ds lkeus dkSu lk vkn'kZ izLrqr djsaxsA izfro"kZ fQlyu dk dksbZ u dksbZ u;k mnkgj.k lkeus vkrk gSA vc Hkh ;fn dqN yksxksa us vkxs c<+dj bl fQlyu dks jksdus ds fy,  oSpkfjd [kwBk ugha xkM+k rks ;g fQlyu gesa jlkry dh vksj ys tk;sxhA vkSj bfrgkl gesa {kek ugha djsxkA