Sunday, 6 July 2014

गिरफ्तारी के पहले अब विश्वसनीय साक्ष्य का संकलन जरुरी.......

पुलिस अधिकारी अब किसी को केवल प्रथम सूचना रिपोर्ट में नामजद होने के कारण गिरफ्तार नही कर सकेगे। गिरफ्तारी के पहले  विश्वसनीय साक्ष्य संकलित करना उनके लिये आवश्यक बना दिया है। ऐसा न करने वालेे पुलिस अधिकारियों को विभागीय कार्यवाही के साथ -साथ न्यायालय की अवमानना का भी दोषी माना जायेगा। समुचित कारण अभिलिखित किये बिना अभिरक्षा का आदेश पारित करने वाले न्यायिक अधिकारियांे के विरुद्ध भी विभागीय कार्यवाही का आदेशात्मक दिशा निर्देश जारी हुआ है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री चन्द्रमौलि कुमार प्रसाद एवं श्री पिनाकी चन्द्र घोष की खण्ड पीठ ने दिनांक 02जुलाई2014 को पारित अपने आदेशात्मक दिशा निर्देशों मे कहा है कि पुलिस अधिकारी किसी को भी गिरफ्तार करने से पूर्व अपने आप से पँूछे कि गिरफ्तारी क्यों ? क्या इसकी वास्तव में जरुरत है? इससे किस उद्देश्य की पूर्ति  होगी? प्राप्त क्या होगा? इन प्रश्नों का सकारात्मक उत्तर मिलने और दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-41 में निर्धारित शर्तो का अनुपालन हो जाने के बाद ही किसी को गिरफ्तार करे। पहले गिरफ्तारी और बाद में साक्ष्य संकलन की प्रवृति न्यायोचित नही है। गिरफ्तारी से व्यक्ति का उत्पीडन और उसकी स्वतन्त्रता का हनन होता है। आजादी के छः दशको के बाद भी पुलिस की सामंती प्रवृति में कोई परिवर्तन नही आ सका। पुलिस आज भी आम लोगों के उत्पीडन का कारण बनी हुयी है। किसी भी दशा में जनता की मित्र नही है । लोगों को गिरफ्तार करनें के पुलिसिया अधिकारों को न्यायपूर्ण आधार पर सीमित करने के लिये सभी स्तरों पर अनेकानेक प््रायास किये गये है परन्तु अपेक्षित परिणाम प्राप्त नही हो सके है।
विधि आयोग, पुलिस  आयोग और सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अपने स्तरो पर इस समस्या के विभिन्न पहुलुओ पर कई बार विचार किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अनेकानेक निर्णयों के द्वारा गिरफ्तारी के अधिकारों का प्रयोग किये जाते समय आम लोगों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और सामाजिक व्यवस्था के माध्य सांमजस्य बनाये रखने पर जोर दिया है। गिरफ्तारी का अधिकार अपने में निहित होने के कारण पुलिस अधिकारियों की अहमन्यता में कोई कमी नही आयी है पुलिस अधिकारी नामजद अभियुक्तो को पहले गिरफ्तार करने और उसके बाद विवेचना प्रारम्भ करने में विश्वास करते है जबकि अब उन्हे इस आशय का कोई विधिपूर्ण अधिकार प्राप्त नही है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि गैर जमानती और संज्ञेय अपराध होने के बावजूद केवल नामजद होने के कारण किसी को गिरफ्तार नही किया जाना चाहिये। गिरफ्तारी का अधिकार अपनी जगह है परन्तु इस अधिकार के प्रयोग का न्यायोचित होना एकदम अलग बात है। गिरफ्तारी का अधिकार होने के बावजूद न्यायोचित कारणों के आधार पर गिरफ्तारी सर्वथा विधि विरुद्ध है। पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तारी की सुसंगता सिद्ध करने के लिये समुचित कारण बताने होगें। उसके लिये आरोपों की सत्यता बाबत संुसंगत संतुष्टि आवश्यक है। इस आशय कि स्पष्ट विधि होने के बावजूद रुटीन गिरफ्तारियों की संख्या में कोई कमी नही आयी है। पुलिस अधिकारियों के इस उत्पीडक रवैये के कारण आम लोगोें की स्वन्त्रता का हनन होता है और उन्हे अनेकानेक कठिनाईयों का शिकार होना पडता है।
आम लोगों को पुलिसिया उत्पीडन से निजात दिलानें के लिये विधि आयोग की 177वी रिपोर्ट की अनुसंसाओं को स्वीकार करकेे केन्द्र सरकार ने दण्ड प्रक्रिया की धारा 41 में संशोधन करके सात वर्ष तक की सजा वाले अपराधो में केवल नामजद होने के कारण अभियुक्तों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। दण्ड प्रक्रिया की धारा 41ए के संशोधित प्रावधानों के अनुसार सात वर्ष तक की सजा वाले अपराधों मे नामजद व्यक्ति को गिरफ्तार करने के पूर्व पुलिस अधिकारी के लिये आवश्यक हो गया है कि वे नामजद व्यक्ति को अपने समक्ष उपस्थित होने के लिये नोटिस जारी करें। धारा 41-क निम्नवत हैः- 41-क. पुलिस अधिकारी के समक्ष उपसंजाति की सूचना-
1. पुलिस अधिकारी उन सभी मामालों में, जहां धारा 41 की अपधारा (1)के प्रावधान के आधीन व्यक्ति की गिरफ्तारी अपेक्षित नही है उस व्यक्ति, जिसके विरुद्ध युक्तियुक्त परिवाद किया गया है या विश्वसनीय सूचना प्राप्त की गयी है, या युक्तियुक्त सन्देह विद्यमान है कि उसने संज्ञेय अपराध किया है को अपने समक्ष या ऐसे अन्य स्थान पर जैसा नोटिस ममें  विनिदिष्ट किया जाये, उपसंजात होने का निर्देश देते हुये नोटिस जारी करेगा।
2. जहां ऐसी नोटिस किसी व्यक्तिको जारी की जाती है तब उस व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह नोटिस के निबन्धनों का अनुपालन करे ।
3. जहां ऐसा व्यक्ति नोटिस का अनुपालन करता है या अनुपालन निरन्तर करता है तब उसे नोटिस में निर्दिष्ट अपराध के सम्बन्ध में तब तक गिरफ्तार नही किया जायेगा जब तक लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों से पुलिस अधिकारी की यह राय हो कि उसे गिरफ्तार किया जाना चाहिये ।
4. जहां ऐसा व्यक्ति,किसी समय नोटिस के निबन्धनों का अनुपालन करने में असफल रहता है या स्वयं की शिनाख्त करने के लिये अनिच्छुक है,पुलिस अधिकारी,ऐसे आदेशों के अध्यधीन,जैसा कि इस निमित सक्षम न्यायालय द्वारा पारित किया जायें,नोटिस में वर्णित अपराध के लिए उसे गिरफ्तार कर सकेगा।
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के तहत अब पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को केवल उसी स्थिति में गिरफ्तार कर सकेगे,जब उनका समाधान हो जाता है कि ऐसे व्यक्ति को कोई अग्रेतर अपराध करने से रोकने,अपराध का उचित अन्वेषण करने,अपराध के साक्ष्य को  मिटाने या साक्ष्य के साथ किसी प्रकार की छेडछाड करने से प्रतिवारित करने,मामलें के तथ्यो से परिचित किसी व्यक्ति को उत्पीडित करने,धमकी देने,या वचन देने से प्रतिवारित करने,और न्यायालय के समक्ष उसकी उपस्थिति सुनिश्चित कराने के लिये गिरफ्तारी जरुरी है। पुलिस अधिकारी को ऐसी गिरफ्तारी के पूर्व केस डायरी में गिरफ्तारी के कारणों को  अभिलिखित करना होगा। पुलिस अधिकारी के लिये यह भी आवश्यक है कि वे उन सभी मामलों में, जहाँ व्यक्ति की गिरफ्तारी इस उपधारा के प्रावधानांे के अपेक्षित नही है, गिरफ्तारी न करने के कारणोे को भी अभिलिखित करे।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय के द्वारा न्यायिक अधिकारियों के लिये भी आवश्यक बना दिया है कि वे अपने समक्ष गिरफ्तार करके उपस्थित किये गये व्यक्तियों की अभिरक्षा का आदेश पारित करने के पूर्व सुनिश्चित करे कि गिरफ्तारी के समय पुलिस अधिकारियों ने विधिक प्रक्रिया का अनुपालन किया है और यदि पुलिस अधिकारी ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 में निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप गिरफ्तारी नही की है तोे गिरफ्तार करके लाये गये व्यक्ति को तत्काल रिहा करना न्यायिक अधिकारी की पदीय प्रतिबद्धता है। अभिरक्षा के आदेश में न्यायिक अधिकारी को अभिरक्षा के कारणों और उस पर अपनी संतुष्टि के कारणों को अभिलिखित करना होगा । न्यायिक अधिकारी की संतुष्टि उसके आदेश में परिलक्षित होनी चाहिये। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेशात्मक दिशा निर्देशों में कहा है कि यदि कोई  न्यायिक अधिकारी सुसंगत कारण अभिलिखित किये बिना अभिरक्षा का आदेश पारित करेगे तो उनकेे विरुद्ध विभागीय कार्यवाही सुनिश्चित करायी जायेगी।
न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा है कि पुलिस अधिकारी के लिये आवश्यक है कि किसी को भी गिरफ्तार करने के पूर्व उसे नोटिस जारी करेगा और उसमे उपस्थित होने के लिये नियत तिथि,स्थान और समय का उल्लेख करेगा । विधि के तहत ऐसे व्यक्ति के लिये नोटिस पाने के बाद पुलिस अधिकारी के समक्ष उपस्थित होना भी आवश्यक है। नोटिस पाने के बाद यदि वह व्यक्ति पुलिस अधिकारी के समक्ष उपस्थित होकर नोटिस की शर्तो का पालन करता है तो उसे गिरफ्तार नही किया जायेगा। पुलिस अधिकारी को ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी यदि आवश्यक प्रतीत होती है तो वह अपनी संतुष्टि के कारणों को तथ्यो सहित अभिलिखित करेगा और सम्बन्धित न्यायिक अधिकारी के समक्ष उसे प्रस्तुत करेगा। कोई पुलिस अधिकारी अब निर्धारित प्रक्रिया और सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा जारी दिशा निर्देशों के प्रतिकूल किसी को गिरफ्तार करेगे तो उनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही की जायेगी और उन्हे न्यायालय की अवमानना का भी दोषी माना जायेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यान्त्रिक तरीके से गिरफ्तारी के कारणों को केस डायरी मेे अभिलिखित करने की प्रवृत्ति को हत्तोसाहित करके उस पर पूर्ण विराम लगा देना चाहिये। पुलिस अधिकारी अब किसी की भी अनावश्यक गिरफ्तारी नही करेगे और न्यायिक अधिकारी यान्त्रिक तरीके से अभिरक्षा का  आदेश पारित करने की औपचारिकता नही निभायेगे

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