आप सबकी शुभेच्छाओं, आशीर्वाद और मार्गदर्शन के सहारे मेरे जीवन के संध्याकाल का भी एक वर्ष हँसी खुशी बीत गया। भारतीय विद्यालय इण्टर कालेज में राजीव शुक्ला, दिलीप शुक्ला, संजीव सारस्वत, सुरेश गर्ग, रजनीकान्त, गंगा प्रसाद जैसे स्कूली दोस्तों के साथ तत्कालिक राजनैतिक विषयों पर वाद विवाद के दौरान नित्यप्रति होती नोक झोंक, छात्र संघ चुनाव का प्रचार अभियान, आपातकाल का जेल जीवन, मजदूर के रूप में कैरियर की शुरुआत और फिर मिल बन्दी के वाद कचहरी में भविष्य तलाशतें प्रयास जब भी याद आते है, तो लगता है कि जैसे सब कुछ कल की ही बात हो। इनकी मधुर स्मृतियाँ सदैव उत्साहित बनाये रखती है।
मैं एक मजदूर परिवार के पैदा हुआ था। कक्षा 12 की पढ़ाई के दौरान पिता जी की फैक्ट्री बन्द हो गयी, पढ़ाई में अवरोध पैदा हुआ। मेरे निकटतम मित्रों ने उन्हीं दिनांे पत्रकारिता में अपना कैरियर शुरु किया और मुझे एक मिल मजदूर के रूप में अपना कैरियर शुरु करना पड़ा लेकिन आप सबकी शभेच्छाओं ने उन दिनों भी अन्य किसी की तुलना में अपने आपको कमतर होने का अहसास नहीं होने दिया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने नौकरी के साथ पढ़ाई जारी करने का माहौल दिया, उत्साह बढ़ाया, सपने देखने और उन्हें साकार करने का अवसर दिया। टेªड यूनियन गतिविधियों में सक्रियता ने मेरी सम्भावनाओं को सीमित किया, उन दिनांे स्थिरता का अहसास होने लगा था लेकिन इसी बीच केवल कुछ दिनों के लिए प्रदेश में विधि मन्त्री हो गये श्री शिव प्रताप शुक्ल ने मेरी ज्ञात-अज्ञात अकुशलताओं को सहर्ष अनदेखा करके मुझे शासकीय अधिवक्ता बनाकर मेरे लिए नई सम्भावनाओं के द्वार खोल दिये और उसके तत्काल बाद श्री राजीव शुक्ला सांसद हो गये और उन्होंने भारत सरकार की तरफ से भारत सरकार के लिए वकालत करने का अवसर दिलाया। इन अवसरों ने मुझे एक नया आकाश और उसमें उड़ने के लिए ऊर्जा दी, मेरे मजदूर होने की पहचान मिटा दी।
नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेन्सी (एन.आई.ए.) ने सम्पूर्ण देश में आतंकवादी अपराधों से सम्बन्धित विशेष न्यायालयों के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए 33 स्पेशल पब्लिक प्रासीक्यूटर्स का चयन किया है, अपने संध्याकाल में उसमें चुने जाने का सौभाग्य मुझे भी मिला है। मंै नहीं जानता कि कल क्या होगा? लेकिन आज के दिन मेरे पास शर्मिन्दगी, पाश्चाताप या असंतुष्टि का कोई कारण नहीं है आर्थिक समृद्धि मकान, दुकान, मँहगी कार कभी मेरे एजेण्डे में नहीं रही। एक भले मानुष के रूप में अपनी पहचान बनाये रखना मेरा सपना रहा जो साकार हुआ है। बिना किसी प्रयास और किसी से कुछ माँगे बिना मुझे भरपूर मान, सम्मान, यश कीर्ति मिली है। जीवन मे कोई कमी नहीं, बेटा आशुतोष इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत करता है, बेटी अपराजिता इण्डिया टुडे ग्रुप की मैगजीन बिजनेस टुडे में सीनियर सब एडिटर के पद पर कार्यरत है, दोनों की अपनी स्वतन्त्र पहचान है और कई बार उनके पिता के नाते जाने पहचाने का सुख भी मिलता है। मैं अपने आप में पूरी तरह चुस्त दुरुस्त और संतुष्ट 61 वर्षीय युवा होने का अहसास करता रहता हूँ। इससे ज्यादा मुझे क्या चाहिए? मझे विश्वास है कि आप सबका आशीर्वाद और शुभकामनायें मेरे साथ है और सदा रहेंगी।