Tuesday, 15 March 2016

आरक्षण आरक्षण आरक्षण


आज आरक्षण का विरोध और उसको आर्थिक आधार पर दिये जाने की वकालत करना फैशन हो गया है। कोई मानने को तैयार नहीं है कि आरक्षण गरीबी उन्मूलन की व्यवस्था नही है। हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने सदियों से शोषित पीडि़त समाज को समानता का अहसास कराने और समाज में उनको समुचित प्रतिनिधित्व देने के लिए संविधान के द्वारा आरक्षण की व्यवस्था की थी। कुछ मुठ्ठी भर लोगों को छोड़ दिया जाये तो आरक्षण की परिधि में आने वाले समाज का अधिसंख्य आज भी शोषित पीडि़त है और उसे उसके विधिपूर्ण अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। उसे बराबरी का स्थान देने को कोई तैयार नहीं है जबकि उसके द्वारा दी जा रही सेवाओं का कोई विकल्प नहीं है और उन सेवाओं के अभाव मंे जन जीवन अस्त व्यस्त हो सकता है। ऐसी ही सेवायें देने वाले लोगों के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने बहुत पहले कहा था कि मैनहोलो की सफाई के दौरान मरने वाले सफाई कर्मचारियों के परिजनों को 10 लाख रूपया मुआवजा दिया जाये परन्तु केन्द्र सरकार या विभिन्न दलों की किसी राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का अनुपालन नहीं किया और आज भी केवल 60 हजार रूपये मुआवजा दिया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि समुचित सुरक्षा प्रबन्धों के अभाव में किसी कर्मचारी को सीवर की सफाई के लिए मैनहोल में उतारना अपराध घोषित किया जायंे परन्तु आज तक इस दिशा में कोई कार्यवाही नही की गयी है। कोई राजनैतिक दल या आरक्षण विरोधी इसकी चर्चा भी नहीं करता। स्वच्छता अभियान के नाम पर टाइल्स लगी फर्शो पर झाड़ू लगाने का स्वाँग रचकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेने वाले राजनेताओं ने मैनहोल की सफाई करने वाले कर्मचारियों के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कानून बनाने की दिशा में आज तक कोई सकारात्मक पहल नहीं की हैै अगर कभी सफाई कर्मचारियों ने आरक्षण छोड़ देने के साथ साथ यह भी मन बना लिया कि अब हम सीवर की सफाई के लिए मैनहोल में नहीं उतरेेंगे तो क्या होगा ? कभी सोचा है ? और यदि आज तक नहीं सोचा है तो आर्थिक आधार पर आरक्षण की मुहिम चलाने के पहले एक बार इस बात पर जरूर विचार कर लें। सोचते ही रोंगटे खड़े हो गये होंगे।