वर्ष 1975-1976 में इन्दिरा गाँधी द्वारा देश पर थोपे गए आपातकाल और प्रेस सेंसरशिप के विरोध में ”इन्दिरा तेरी जेल अदालत देखी है और देखेंगे“, ”दम है कितना दमन में तेरे देख लिया और देखेंगे “,”खोलो खोलो जेल के ताले ये दिवाने आये है“ का उद्घोष करते हुए हम लोग जेल गये थे। प्रेस सेंसरशिप के विरोध में 26 जून 1975 को कानपुर के दैनिक जागरण ने अपने सम्पादकीय काॅलम में कुछ भी लिखे बिना प्रश्नचिन्ह लगाया था और उसके कारण उनके तत्कालीन सम्पादक स्वर्गीय पूर्णचन्द्र गुप्त और उनके पुत्र स्वर्गीय नरेन्द्र मोहन गुप्त को जेल में डाल दिया गया था। इस परिपे्रक्ष्य में देखने पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि एन.डी.टी.वी. हिन्दी चैनल के विरुद्ध प्रस्तावित एक दिवसीय प्रतिबन्ध शुरुआत से ही आपत्तिजनक है, अलोकतान्त्रिक है। अपने देश में किसी भी सरकार व्यक्ति या संगठन को अपने द्वारा खुद की गई शिकायत पर खुद निर्णय सुनाने का अधिकार प्राप्त नही है। वास्तव में यदि एन.डी.टी.वी. हिन्दी चैनल ने कोई अपराध किया है तो विद्यमान न्यायिक प्रक्रिया के तहत उसके विरुद्ध कार्यवाही की जानी चाहिए। अपना देश आपातकाल का दंश अभी भूला नहीं है। दुर्भाग्यवश सभी सरकारें राज्य और राष्ट्र के बीच के अन्तर को अपनी सुविधा के लिए भुला देतीं है और उनके मुखिया अपने आपको राष्ट्र मानने लगते है। मैंने आपातकाल के दौरान अपने विरुद्ध विचारण के दौरान न्यायालय को बताया था कि मैंने इन्दिरा गाँधी और उनकी सरकार द्वारा थोपे गए आपातकाल का विरोध करते हुए सत्याग्रह करके अपनी गिरफ्तारी दी है। इन्दिरा गाँधी और उनकी सरकार राष्ट्र नहीं है इसलिए मेरे विरुद्ध राष्ट्रविरोधी होने का आरोप शुरुआत से अनर्गल है परन्तु उस समय न्यायालय ने मेरी इस दलील को स्वीकार नहीं किया और मुझे पाँच माह के सश्रम कारावास की सजा सुना दी। न्यायालय के समक्ष अपनी इस स्वीकारोक्ति और उसके कारण पाँच माह की सजा भुगतने पर मुझे आज भी गर्व है और मैं आज भी मानता हूँ कि किसी भी सत्ताधारी को अपने आपको राष्ट्र मान लेने की भूल नहीं करनी चाहिए। राज्य का विरोध भारतीयों का संवैधानिक अधिकार है और अपने इस अधिकार का प्रयोग करने के कारण किसी को भी राष्ट्रविरोधी बता देना आज एक फैशन हो गया है जो लोकतन्त्र के लिए हितकर नहीं है। मेरा निवेदन है कि एन.डी.टी.वी. हिन्दी चैनल के विरुद्ध प्रस्तावित कार्यवाही को तत्काल प्रभाव से अपास्त किया जाना चाहिए। मैं यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि यदि कार्यवाही अपास्त नहीं की गई तो मेरे जैेसे बहुत से लोग एकबार फिर ”खोलो खोलो जेल के ताले ये दिवाने आये है“ का उद्घोष करेंगे और इसके द्वारा सारे देश को बतायेंगे कि कोई सरकार व्यक्ति या संगठन राष्ट्र का पर्याय नहीं हो सकता।