हम हड़ताल करें न करें लेकिन अधिकार त्यागेंगे नही
हम अधिवक्ता कभी हॅसी खुशी हड़ताल नही करते लेकिन अपना माननीय सर्वोच्च न्यायालय इसे समझने को तैयार नही है ।क्रिमिनल अपील संख्या 470 सन 2018 कृष्णनाकांत टमनाकर बनाम स्टेट आफ मध्य प्रदेश मे पारित अपने निर्णय दिनांकित 28 मार्च 2018 के द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सभी बार एसोसिएशन , बार काउंसिल को हड़ताल , कार्य बहिष्कार , न्यायालय से अनुपस्थित रहने का आवाह्न करने से प्रतिबन्धित कर दिया है जो सरासर हम अधिवक्ताओं के मौलिक अधिकार पर खुला आक्रमण है । अधिवक्ता हड़ताल या कार्य बहिष्कार का निर्णय अन्तिम विकल्प के रूप मे लेता है किसी भी दल की सरकार हो , सभी ने हम सबकी रोजमर्रा की जमीनी समस्याओं के प्रति उपेक्षा का भाव अपनाये रखा है । " सबका साथ सबका विकाश " की बात करने वाली सरकारो ने हम अधिवक्ताओं की सामाजिक सुरक्षा का कोई बन्दोबस्त नही किया है । मॅहगे इलाज का ब्यय वहन न कर पाने के कारण कई अपने साथी असमय मृत्यु का शिकार हो चुके है । नागरिक अधिकारों के प्रति हमारी सजगता और सक्रियता राजनेताओं और सरमायदारों को अखरती है । हम जानते है , वकालत ब्यवसाय नही है , एक मिशन है , तपस्या का जीवन है इसलिये जाडा , गर्मी, बरसात हम खुले आसमान के नीचे बैठकर शोषण के विरुद्ध शोषितों का स्वर बनने से कभी नही हिचकते ।बार काउंसिल ऑफइण्डिया ने सर्वोच्चन्यायालय के इस निर्णय के विरूद्घ राष्ट्रव्यापी विरोध का निर्णय लिया है और इसके लिए दिनांक 17 सितम्बर 2018 को सम्पूर्ण भारत की प्रत्येक बार एसोसिएशन को अपने सदस्यो के बीच इस निर्णय के दुष्परिणामो के प्रति जागरूकता अभियान चलाने का निर्देश जारी किया है । इस निर्णय के द्वारा सरकारो को हम अधिवक्ताओं के मौलिकअधिकारों के हनन की छूट मिल जायेगी । हर जोर जुल्म के टक्कर मे संघर्ष हमारा नारा भी है और अधिकार भी । हम हड़ताल करें या न करें लेकिन हम हड़ताल करने के अपने अधिकार को अवमानना के भय से त्यागने के लिए तैयार नही है इसलिये हम लड़ेंगे और जीतेंगे ।दम है कितनादमन मे तेरे ,देखा है औरदेखेंगे।
हम अधिवक्ता कभी हॅसी खुशी हड़ताल नही करते लेकिन अपना माननीय सर्वोच्च न्यायालय इसे समझने को तैयार नही है ।क्रिमिनल अपील संख्या 470 सन 2018 कृष्णनाकांत टमनाकर बनाम स्टेट आफ मध्य प्रदेश मे पारित अपने निर्णय दिनांकित 28 मार्च 2018 के द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सभी बार एसोसिएशन , बार काउंसिल को हड़ताल , कार्य बहिष्कार , न्यायालय से अनुपस्थित रहने का आवाह्न करने से प्रतिबन्धित कर दिया है जो सरासर हम अधिवक्ताओं के मौलिक अधिकार पर खुला आक्रमण है । अधिवक्ता हड़ताल या कार्य बहिष्कार का निर्णय अन्तिम विकल्प के रूप मे लेता है किसी भी दल की सरकार हो , सभी ने हम सबकी रोजमर्रा की जमीनी समस्याओं के प्रति उपेक्षा का भाव अपनाये रखा है । " सबका साथ सबका विकाश " की बात करने वाली सरकारो ने हम अधिवक्ताओं की सामाजिक सुरक्षा का कोई बन्दोबस्त नही किया है । मॅहगे इलाज का ब्यय वहन न कर पाने के कारण कई अपने साथी असमय मृत्यु का शिकार हो चुके है । नागरिक अधिकारों के प्रति हमारी सजगता और सक्रियता राजनेताओं और सरमायदारों को अखरती है । हम जानते है , वकालत ब्यवसाय नही है , एक मिशन है , तपस्या का जीवन है इसलिये जाडा , गर्मी, बरसात हम खुले आसमान के नीचे बैठकर शोषण के विरुद्ध शोषितों का स्वर बनने से कभी नही हिचकते ।बार काउंसिल ऑफइण्डिया ने सर्वोच्चन्यायालय के इस निर्णय के विरूद्घ राष्ट्रव्यापी विरोध का निर्णय लिया है और इसके लिए दिनांक 17 सितम्बर 2018 को सम्पूर्ण भारत की प्रत्येक बार एसोसिएशन को अपने सदस्यो के बीच इस निर्णय के दुष्परिणामो के प्रति जागरूकता अभियान चलाने का निर्देश जारी किया है । इस निर्णय के द्वारा सरकारो को हम अधिवक्ताओं के मौलिकअधिकारों के हनन की छूट मिल जायेगी । हर जोर जुल्म के टक्कर मे संघर्ष हमारा नारा भी है और अधिकार भी । हम हड़ताल करें या न करें लेकिन हम हड़ताल करने के अपने अधिकार को अवमानना के भय से त्यागने के लिए तैयार नही है इसलिये हम लड़ेंगे और जीतेंगे ।दम है कितनादमन मे तेरे ,देखा है औरदेखेंगे।