Saturday, 27 October 2018

कन्या दान बिटिया के स्वतन्त्र अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह


कन्या दान बिटिया के स्वतंत्र अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न
कितना अपमानजनक है
एक स्त्री का दान करना
आदरणीया उर्वशी जी की कविता के उक्त संदेश के साथ मेरी सहमति कुछ विद्वान मित्रो को अच्छी नही लगी । मै खुद मानता हूँ कि पाणिग्रहण संस्कार के अवसर पर कन्या दान का कोई औचित्य नहीं है। बिटिया वस्तु नही होती । उसका अपना एक स्वतंत्र गरिमामय अस्तित्व होता है और दान से उसका अपना अस्तित्व खत्म हो जाता है और वह अकारण पराधीन बन जाती है । " दाम्पत्य सूत्र बन्धन " से बिटिया को उसके पति के संरक्षण मे देने की अवधारणा प्रगट नही होती । इसमे समता और समानता का भाव निहित है । दोनो मे से कोई किसी के अधीनस्थ नही है । सदियों पहले बिटिया को दितीय श्रेणी के पारिवारिक सदस्य के रूप मे पाला पोसा जाता था । बचपन से विवाह तक पिता और भाई , विवाह के बाद पति के संरक्षण मे रहना उसकी बाध्यता थी । आज हर माता पिता अपनी बिटिया को बेटे की तरह पालता परोसता है । उसे खुले आसमान मे उड़ने के लिए हर प्रकार की सुविधा और संस्कार देता है ।बेटियों ने भी मेहनत और लगन से अपनी सक्षमता साबित की है और ऐसी कोई योग्यता नही जो वे खुद अर्जित न कर सकती हो ।इन स्थितियों मे विवाह के समय केवल बिटिया होने के कारण उनको दान करने का धार्मिक या सामाजिक औचित्य मुझे समझ मे नही आता । हमारी कई परम्पराएं बेटियों को बेटों से कमतर बताती है । एक समय था जब बाल विवाह , सती प्रथा को धार्मिक या सामाजिक मान्यता थी । विधवा विवाह की कल्पना भी भयावह थी लेकिन सामाजिक जागरूकता और शिक्षा के प्रचार-प्रसार के कारण इन परम्पराओं को कुरीति मान लिया गया है । समय आ गया है , " कन्या दान" की अपमानजनक परम्परा को " कुरीति " के रूप मे मान्यता दिलाने का माहौल बनाया जाये । आदरणीया उर्वशी जी ने अपनी कविता के द्वारा संदेश देकर हम सबके लिए कुछ करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है ।
टिप्पणियाँ
  • Anil Khetan Bahut khub
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  • Prerna Singh Aaj apki post ne meri soch ko samarthan Diya🙏🙏🙏
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  • Shrikant Dubey आदरणीय भाई साहब हम आपके विचारों से पूरी तरह से सहमत हूँ
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  • Deepak Sootha Uchit uttam aur naari samman ko samarpit vichaar.
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  • Mohan Tiwari कौशल जी,,,मैं,,, आपके इन विचारों,,से सहमत नहीं,,, हिन्दू अवधारणा में,,,,हमारे ऊपर,,,कर्ज होता है,,, पित्र,,, मात्र,,,प्रकृति,,,सबका,,,,कन्या दान,,,जरा हिन्दू धर्म ग्रन्थों को भी पढ़िये,,,,धीरज और जिज्ञाशा के साथ,,,सब कानून की किताबों,,, में नहीं मिलता,,,, गुस्ताख़ी माफ़,,,,
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    • Kaushal Sharma कन्यादान के औचित्य पर गम्भीरता से विचार की जरूरत है । आप भी मानते है कि बिटिया वस्तु नही है । दान वस्तु का होता है ।
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    • Mohan Tiwari कौशल भईया,,,, आप योरोपीय सोंच से बिटिया को वस्तु,,,समझ रहे,,,हिन्दू माइथोलोजी में,,,ये भावना से जुड़ा दान है,,,, ये समझने के लिए,,,समय निकालिये,,,,हिंदू धर्मग्रंथों का अध्ययन करिये,,,,,
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    • Vishnu Shukla Mohan Tiwari बेसिरपैर की बात
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    • Mohan Tiwari Vishnu Shukla jee,,,,आप जैसे लोगों ने ही,,,,हिन्दू धर्म को,,,समझे,,,अध्यन किये बगैर,,,,ये हालात की है,,,,, मुझे तो आश्चर्य होता है,,, क्या आप सचमुच ब्राह्मण हैं,,, अगर हैं,,,,, तो कहाँ के हैं,,,,
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    • Kaushal Sharma मोहन भाई 
      आप आदरणीय विष्णु जी की बात का तर्क संगत प्रतिवाद करें , नाराज न हो । गम्भीर विषय है , सबकी सुने और कन्या दान के औचित्य पर तर्क संगत तरीके से बात करें ।
    • Vishnu Shukla मैं आप से या किसी से ज्यादा ज्ञानी होने का सौभाग्य तो नहीं रखता, पर मैंने भी चार्वाक, सांख्य ,योग,शंकर, बोद्ध, इस्लाम, बाइबल वेद आदि पर ग्रंथों पर विभिन्न मनीषियों जैसे मैक्समूलर डॉ राधा कृष्णन रजनीश(ओशो),बाल गंगाधर तिलक की टीकाओं/आख्यानों का अध्ययन किया है और अभी भी कर लेता हूँ।मैं दकियानूसी कर्मकांडी बिल्कुल नहीं हूँ।आप मुझे ब्राह्मण न माने मुझे कतई बुरा नहीं लगेगा क्योंकि मैं ब्रह्मवेत्ता नहीं हूँ।वास्तव में अध्ययन/स्वाध्याय, ध्यान से विचलित हो कर पूजा पाठ, व्यर्थ केकर्मकांड पोथी पत्रा बांच कर आजीविका चलाने वालों का, खुद की पहचान स्थापित करने वालों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत खोने का काम किया है और बड़े पैमाने पर आज भी हो रहा है।आप के बारे में मैं कोई टिप्पणी करने की क्षमता नहीं रखता, पर आपसे अपने लिए किसी प्रमाण पत्र की अपेक्षा भी नहीं रखता। मैं तो अपने समाज से स्वाध्यायऔर वैज्ञानिक/तार्किक होने की अपेक्षा रखता हूँ न कि दकियानूसी पिछलग्गू भांड़ होने की।कूप मण्डूकहोना घातक है समाज के लिए भी और देश के लिए भी।मैं इसी देश का हूँ और देश व उन देश वासियों का कर्जदार जो निर्विकार भाव से कबीर की भाँति मेहनत का खाते हैं और कुरीतियों तथा रूढ़ियों के खिलाफ बेबाकी से अपना पक्ष रखते हैं।आपका हिंदुत्व आपको मुबारक।
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    • Vashita Sharma Mohan Tiwari, Uncle Ji ऐसा लगता है कि आपने स्वयं हिन्दू ग्रंथों का अध्ययन नही किया है।लेकिन वेदों में 'कन्यादान' जैसा कोई शब्द नहीं है। उनमें कन्या, पाणिग्रहण, प्रतिग्रहण और दान जैसे शब्दों का अलग-अलग संदर्भों में प्रयोग हुआ है। दान के महत्व का वर्णन करते हुए ऋग्वेद में कहा गया है कि गौ, अश्व तथा वस्त्रों का दान करने वाले सौभाग्यशाली होते हैं और उनके घरों में अनेक प्रकार के धन सदा उपलब्ध रहते हैं। (ऋग्वेद 5-42-8)। अथर्ववेद में दान दी जाने योग्य वस्तुओं के नाम गिनाए गए हैं। इनमें जनने वाली गौ, बोझा ढोने वाले बैल, वस्त्र, सुवर्ण आदि वस्तुओं को दान करने से दाता को उत्तम गति प्राप्त होने का उल्लेख मिलता है। (अथर्ववेद : 9-5-29)। पर वहां किसी भी उद्धरण में दान के लिए बताई गई वस्तुओं में कन्या के दान का विचार प्राप्त नहीं होता। Attaching the linkhttps://m.navbharattimes.indiatimes.com/.../7788278.cms
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    • Kaushal Sharma मोहन भाई
      वसिता ने कन्या दान का वस्तुपरक विशलेषण किया है । वास्तव मे कन्यादान कोई धार्मिक परम्परा नही है और न सामाजिक जीवन मे इसका कोई तर्कसंगत औचित्य है । आपको वसिता के तर्को के परिप्रेक्ष्य मे पुनर्विचार करना चाहिए ।
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  • महेश शर्मा शत प्रतिशत सहमत हूँ सर आपसे
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  • Govind Narayan Dwivedi बहुत ही यथार्थ सन्देश है आपका ।।
    हम पूरी तरह से सहमत है ।।
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  • Janardan Dwivedi Pl. Send the draft of the poem composed by Urvashi.
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