Saturday, 6 October 2018

लोकतंत्र की नर्सरी


लोकतंत्र की नर्सरी
छात्रसंघ
को नष्ट मत करो
इसका खामियाजा घातक होगा
टिप्पणियाँ
Dhani Ram Gupta Aj chhatra sangh loktantra ki nurasari kem thekedari banane ki neesari hai
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जवाब दें20 घंटे
Narendra Kumar Yadav कौशल जी हम सब छात्र संघो से निकले हैं लेकिन आज छात्र संघों मे जो हिंसा परिलक्षित होने लगी उसका दुष्परिणाम छात्र संघो के चुनाव प्रतिबंधित हुये डी,ए,वी कालेज और कानपुर विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष समरजीत सिंह के लडके की हत्या एस,डी,कालेज के चुनाव मे हुयी, छात्र नेता पकड और हत्या जैसे मामलों मेसमबद्ध होने लगे चुनावी जंग व्याक्तिगत झगड़े बन कर गोली कांडो मे बदल ने लगी शहरों कि माहौल अराजक होने के कारण बंद होना शैक्षणिक वातावरण बनाने मे सहायक हुये।
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जवाब दें19 घंटे
Kaushal Sharma नरेन्द्र भाई
छात्र संघ लोकतंत्र की नर्सरी है और इसे साजिशन झुलसाया गया है । यह भी सच है , छात्र राजनीति मे दबदबा बनाये रखने के लिए हत्या की कई घटनाये हुई है लेकिन यह भी उतना ही सच है , कि वैचारिक वाद विवाद कम हो जाने के कारण इस प्रकार के तत्वो को बढावा
 मिला । आप याद करे , अपने शहर मे 1980 के बाद गैर छात्र पेशेवर छात्र नेताओं का प्रभाव बढा और उसी समय डी ए वी , और बी एन एस डी इंटर कालेज के छात्रावास बन्द हुये ।साजिशन छात्र नेताओं को गुण्डा बताने का अभियान शुरू हुआ । हम सब इन साज़िशों को पहचान नहीं पाये । मेरा मानना है , छात्र संघो को वैचारिक रूप से मजबूत किया जाना चाहिए । आप देखे छात्र राजनीति से निकले राजनेता जनेशवर मिश्रा , मोहन सिंह, नीतीश कुमार , अरूण जेटली , सीताराम येचुरी , अतुल अंजान , शिव प्रताप शुक्ल, लालू यादव , सुबोध कांत सहाय , महेन्द्र नाथ पाण्डेय , पेशेवर दुनिया से आये राजनेताओं की तुलना मे ज्यादा कुशल और सक्षम है । छात्र नेता के पास अपना एक विजन होता है और इसी के सहारे उसे नौकरशाह गुमराह नही कर पाते । छात्र राजनीति की मजबूती से ही परिवार वाद पर अंकुश लग सकता है भारतीय लोकतंत्र के लिए छात्र संघो का मजबूत रहना आवश्यक है ।
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जवाब दें16 घंटेसंपादित
Narendra Kumar Yadav कौशल साहब मै आपकी बात से आंशिक तौर पर सहमत हूँ आज क्या स्थिति है कचेहरी की वही छात्र संघ वाली ढोल ताशा बाहरी लोगों की दखलंदाजी जिनको अपलीकेशन लिखने की तमीज नही अदालतों के बारे मे नही मालुम है वो नेता है ल इय्या चुररमुररिया है लौडा कपंट वाला है झंपट, चिडी का जाने क्या क्या कट्टा गोली सब हो रहा है शहर मे आतंक वसूली सब शुरू हो गयी है ये दुष्परिणाम छात्र संघो के ही हैं इस लिये मै ऐसे चुनाव का विरोध करता हूँ आज की परिस्थितियों मे छात्र संघ चुनाव अप्रासंगिक हैं।
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जवाब दें12 घंटे
Narendra Kumar Yadav कौशल जी आपही कहते हैं कि कचेहरी का चुनाव छात्र संघ की तर्ज पर होने लगे हैं क्या वो तर्ज चुभन भरी नही लगती।?
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जवाब दें11 घंटे
Kaushal Sharma नरेन्द्र भाई 
कचहरी की राजनीति एक या दो परिवारों के इर्दगिर्द घूमती थी । आदरणीय रामकृष्ण अवस्थी के नेतृत्व मे पुराने छात्र नेताओं ने परिवारो का दबदबा खत्म कर दिया । अब कोई परिवार अपने चहेते को चुनाव जिताने की गारंटी नही दे सकता । मै छात्र संघो की पैरवी
 केवल इसी कारण करता हूँ ।छात्र संघो के नेताओं मे सहज स्वाभाविक जुझारूपन होता है । यथास्थिति को केवल छात्र नेता तोड सकता है । छात्र कल का नही आज का नागरिक होता है । इन दिनों छात्र राजनीति मे अराजकता बढी है लेकिन अराजकता को नियंत्रित न कर पाने की अपनी असफलता को हम छात्रसंघो को प्रतिबंधित करने का आधार नही बना सकते । जे एन यू छात्र संघ छात्र राजनीति का आदर्श है । सरकारी प्रयासों के बावजूद कोई पूँजीपति या बाहुबली वहाँ प्रभावी नही हो पा रहा है क्योकि वहाँ के लोग विचार के बल पर राजनीति करते है । हम सब कचहरी या अन्य किसी मंच पर अब विचार के ऊपर बयकति को प्रधानता देते है । विचारवान राजनैतिक माहौल बनाना और बनाये रखना आज किसी की प्राथमिकता मे नही है । सार्वजनिक भोज , रात्रिकालीन पार्टियाँ , अनाप शनाप खर्चो मे अपनी हिस्सेदारी हमारी प्राथमिकता हो गई है इसलिये कचहरी का लोकतंत्र प्रॉपर्टी डीलरों के चंगुल मे चला गया है । आगे आइये , चुनाव के बाद पूरे एक वर्ष वैचारिक गतिविधियों को संचालित करके एक दो चुनाव केवल और केवल हारने के लिए लडा जाये , फिर प्रॉपर्टी डीलर अपने आप कचहरी छोड देंगे और फैसले नही निर्णय होने लगेंगे।
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जवाब दें11 घंटे
Narendra Kumar Yadav कचेहरी चुनाव मे अराजकता पूर्ण माहौल कानपुर विश्वविद्यालय के एक जिनका नाम आपने कोड किया है जातिवादी नेता ने खराब किया सदस्यता का पैसा जमा, कराने से लेकर सारे बुरे कामो की शुरूआत वही से शुरू हुयी।
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जवाब दें11 घंटे
Kaushal Sharma लेकिन परिवार विशेष का दबदबा भी तो खत्म हुआ । परिवार का दबदबा उनहोंने खत्म किया , अब हम सब प्रॉपर्टी डीलरों का दबदबा खत्म करने के लिए एक वैचारिक आन्दोलन की शुरूआत करें ।
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जवाब दें10 घंटे
Narendra Kumar Yadav छोटी गंदगी खत्म कर मैले की बाल्टी पलटने वाले को तो नही सराहा जा सकता
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जवाब दें10 घंटे
Rajeev Yadav बड़े भाई नरेंद्र बाबू केवल बौद्धिक बाँट सकते है व्यवहारिक रूप से उस सिद्धांत के पक्षधर है कि भगत सिंह पैदा तो हो लेकिन पड़ोसी के घर में।
आदरणीय राम किशन अवस्थी जी पर उनकी टिप्पणी उसी तरह की है जिस तरह से आज वो लोग जिनके बाप दादा आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेज
ों की मुखबरी करते थे और वे आज महात्मा गांधी के बारे मैं टिप्पणियां करते हैं।जिस राम किशन अवस्थी की बदौलत आज बार की सीढ़ियां चढ़ पा रहे हो उन पर ऐसी टिप्पणी हमें छात्र संघ के समय की बात याद आ गई कि
सबसे पहले है श्रेय उन्हें छात्रों की बरबादी का
जो बलि वेदी पर चढ़े नहीं और पहने कुर्ता खादी का
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जवाब दें39 मिनट

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