Saturday, 26 January 2019

आइये गणतन्त्र दिवस के अवसर पर सोचे, लोकतन्त्र में पानीपत की तीसरी लड़ाई का उद्घोष जरूरी है या आजादी के नायक आचार्य जे0पी0 कृपलानी के गाँधीवादी विचारों को आत्मसात् करना ?

लोकतन्त्र की सफलता के लिए एक और शर्त है। वह बहुमत और अल्पमत विचार रखने वालों के बीच एक-दूसरे के प्रति सहनशीलता दिखलाना है। यह सत्य है कि बहुमत की इच्छा मान्य होनी चाहिए। लेकिन अल्मपत को हक कि कार्य और प्रचार द्वारा वह स्वयं को बहुमत में बदले। यदि इस अधिकार को अविवेकपूर्ण तरीके से और बिना संयम के प्रयोग किया गया तो उसका परिणाम होगा अल्पमत का पेण्डुलम की तरह अनंतकाल तक बहुमत में बदलते रहने की प्रक्रिया। फिर कोइ स्थायित्व नही रहेगा। इन परिस्थितियों में सारे रचनात्मक कार्य असंभव हो जाएँगे। अतः पराजित अल्पमत का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह कुछ उचित समय तक बहुमत को नीतियों बनाने दे और उसके नतीजों से परिणाम निकालने का मौका दे। पालन करने में आवश्यकताओं द्वारा अल्पमत पर थोपे गए इस आवश्यक संयम का पालन करने में मदद करने के लिए जरूरी है कि बहुमत ग्रुप अल्पमत का सहयोग लें, उसके प्रति अधिकतम सहनशीलता दिखलाए और जहाँ उनकी कार्ययोजना एवं पार्टी और देश के पुननिर्माण में गंभीर बाधा पड़ने की संभावना हो, उसे छोड़कर प्रत्येक मामले में अल्पमत को साथ लिया जाए।“
”इन सबसे यह निष्कर्ष निकलता है कि लोकतंत्र न तो मात्र बहुमत की इच्छा है, न ही यह जनता के स्वतन्त्र मतदान द्वारा लाई गई असंयमित वाक् स्वतन्त्रता या विशेष तरह की संस्थाओं का समूह है। इन सबके ऊपर लोकतंत्र एक तरह की मानसिकता है। यह मानसिकता विभिन्न विचारधाराओं एवं कार्यों एवं विभिन्न संस्थाओं के जरिये अपने को व्यक्त कर सकती है। वास्तव में लोकतंत्र एक जीवन पद्धति है और वह भी जीवन की एक नैतिक पद्धति है। लोकतंत्र का ऐतिहासिक विकास लोगों द्वारा न्याय, बराबरी, उचित कार्य और बहुत से विचारों के स्वतन्त्र मिलन, एक दूसरे को बरदाश्त करने और विचारों के आपसी आदान-प्रदान द्वारा सत्य को खोजने की कोशिश का परिणाम है। यह सब शारीरिक और मानसिकता अहिंसा के बिना संभव नही है। इस तरह लोकतंत्र संगठित समाज में नैतिक ढ़ंग से जीने का रास्ता है।“ 

Tuesday, 1 January 2019

पौने छः बजे लगी अदालत


पौने छ:बजे लगी अदालत
आज रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी के लिये लखनऊ मे था । अदालत का समय प्रातः 10 बजे से 05 बजे तक का होता है। अवकाश के दिन मजिस्ट्रेट दो बजे के बाद ही आते है , लेकिन आज माननीय पौने छ: बजे आये , उस समय तक कोर्ट रूम के अलावा पूरे परिसर मे अन्धेरा हो गया था , सीढ़ियों से उतरते समय मै खुद गिरते-गिरते बचा । वहाँ उपस्थित सभी लोग परेशान थे लेकिन माननीय इस सबसे बेखबर थे । वहाँ उपस्थित पुलिस कर्मियों को भी माननीय के आने के समय की जानकारी नहीं थी । अपनी न्याय पालिका आये दिन देश की अन्य संस्थाओं को कोई न कोई ज्ञान दिया करती है , आदर्श की लम्बी लम्बी बातें करती है परन्तु अपनी अधीनस्थ अदालतों की संवेदनहीनता के प्रति कभी कोई चिंता प्रगट नही करती ।वास्तव मे अवकाश के दिन अदालत मे उपस्थित होकर रिमांड मजिस्ट्रेट आम जनता पर कोई अहसान नही करते , अवकाश के दिन उपस्थिति उनकी ड्यूटी का पार्ट है । वे संविधान, कानून और नियम कायदों के ऊपर नही है । निर्धारित समय पर कोर्ट रूम मे उपस्थित रहकर मुकदमें सुनने के लिए ही उनकी नियुक्ति की गई है इसलिये अवकाश के दिन भी कोर्ट रूम मे उनके बैठने के समय की सूचना नोटिस बोर्ड पर चसपा की जानी चाहिए ।
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