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देश में पहली बार सभी श्रमिक संगठनांे ने अपनी अपनी दलीय
प्रतिबद्वताओं से ऊपर उठकर श्रमिकों के प्रति अपने अपने दलो की सरकारो की नीतियो का
जोरदार विरोध किया है। सारे देश के श्रमिको ने भी श्रमिक संगठनो को निराश नहीं किया
है और दो दिवसीय हड़ताल को सफल बनाकर सन्देश दे दिया है कि उनकी अनदेखी सरकारो के लिए
मँहगी हो सकती है।
1974 की रेलवे हड़ताल के बाद श्रमिक संगठनो की ताकत कम हुई
है। सरकारी नीतियों और उनके क्रियान्वयन में उघोगपतियों का वर्चस्व बढा है। निहित स्वार्थवश
श्रम कानूनों को लागू कराने में सम्बन्धित अधिकारियों की रूचि खत्म हो गई है और इस
सबके कारण एक लम्बे सत्त संघर्ष के बाद सामाजिक सुरक्षा के लिए मिली अधिकांश सुविधायें
श्रमिको के हाथ से फिसलती जा रहीं है। कौन नही जानता कि निजी क्षेत्र ने अपने मुनाफे
के लिए काम के घंटे बढा लिये है जिसे सभी स्तरो पर अघोषित स्वीकृति भी मिल गयी है।
वहाँ आने का समय निर्धारित है जाने का कोई समय नहीं है। श्रमिको को उनके परिश्रम की
तुलना में काफी कम वेतन दिया जाता है। इस सबको सहने के बावजूद कल से न आने के तुगलकी
फरमान का खतरा हर क्षण नौकरी पर मंडराता रहता है।
यह सच
है कि आज देश में रोजगार के अवसर बढे है। सेवा क्षेत्र में युवक युवतियों को बड़े पैमाने
पर रोजगार मिला है। उघोग धन्धों को स्थापित करने और उन्हें सुचारू रूप से चलाये रखने
के लिए उघोगपतियों को मूलभूत सुविधायें उपलब्ध कराना और करो आदि मे विशेष रियायते देना
सरकार का दायित्व है। किसी का भी इसमें कोई विरोध नहीं है परन्तु रियायतों के नाम पर
श्रमिक हितो की अनदेखी किसी भी दशा में न्यायसंगत नहीं है। श्रमिक हितो में कटौती करके
उघोग धन्धो के विकास की बात बेमानी है। अपने श्रम प्रधान देश में उघोग धन्धो को इस
मूल्य पर विकास की अनुमति नहीं दी जा सकती।
उघोगपतियों
के प्रभाव में किसी युक्तियुक्त कारणो के बिना श्रमिक संगठनो को उत्पादन विराधी बताना
एक फैशन है। एक साजिश के तहत देश की अधिकांश पुरानी मिलों की बन्दी के लिए श्रमिक संगठनो
को दोषी मानने की हवा बना दी गई है जबकि सत्यता ठीक इसके प्रतिकूल है। कोई भी कारखाना
श्रमिको की हड़ताल या श्रमिक अशान्ति के कारण बन्द नहीं हुआ है। सभी कारखाने अपने कुप्रबन्ध
और समय के साथ नई टेक्नालाजी को न अपनाने के कारण बन्द हुये है। श्रमिको या श्रमिक
संगठनो का इसमें कोई दोष नहीं है। सभी कारखानों में मालिको ने अपने अपने कारणो से पहले
उत्पादन बन्द किया और फिर स्वेच्क्षिक सेवा निवृत्ति का झुनझुना पकड़ाकर कारखाने बन्द
किये है। एन.डी.ए. शासनकाल में सार्वजनिक क्षेत्र की कपड़ा मिलो को आधुनिक बनाकर पूरी
क्षमता से चलाने का कोई प्रयास नहीं किया गया बल्कि सरकारी निर्णय के तहत बन्द करके
लाखो श्रमिको को बेरोजगार किया गया है। मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में इन
मिलो में उत्पादन बन्द कराया था और एन.डी.ए. सरकार ने स्वेच्क्षिक सेवा निवृत्ति योजना
लागू करके मिले बन्द कराई है और उनकी जमीन को बेचकर मुनाफा कमाने का निर्णय लिया। इस
बिन्दु पर काँग्रेस या भाजपा दोनो की सोच में कोई अन्तर नहीं है। दोनो के नीतिगत निर्णय
के कारण आम श्रमिक बेरोजगारी झेलने के लिए अभिशप्त है।
सरकार
के नीतिगत निर्णय के तहत स्थायी प्रकृति के कामो को ठेका श्रमिको से नहीं कराया जा
सकता है परन्तु निजी क्षेत्र की बैंको, बीमा कम्पनियों, गैर बैकिंग फायनेन्स कम्पनियों और दूरसंचार क्षेत्र में स्थायी प्रकृति के काम ठेका श्रमिको से खुले आम
कराये जाते है। समान कार्य का समान वेतन के सिद्वान्त की अवहेलना सभी स्तरो पर जारी
है। पदनाम बदलकर श्रमिकांे को उनके विधिपूर्ण अधिकारो से वंचित किया जाता है परन्तु
श्रमिको के संगठित न होने के कारण इन क्षेत्रो में सरकारी एजेन्सियाँ अपना काम बखूबी
नहीं करती और श्रमिक प्रबन्धको का उत्पीड़न झेलने के लिए अभिशप्त है।
जो लोग
आज श्रमिक संघो को उत्पादन विरोधी उघोग विरोधी बताते नहीं थकते उन्हें क्यो नहीं दिखता
कि जिन प्रतिष्ठानो में श्रमिको के अपने संगठन नहीं है उन प्रतिष्ठानो में श्रमिको
का उत्पीड़न बढा है। उघोगो के मुनाफे में श्रमिको को उनका वाजिब हक दिलाने की चिन्ता
और उसके लिए संघर्श केवल श्रमिक संगठन करते है। कोई उघोगपति घराना या उघोगपतियो का
संगठन श्रमिको के हितो की चिन्ता नहीं करता। यह सभी श्रमिको के शोषण के लिए नये नये
तरीके ईजाद किया करते है।
आठ घंटे
की ड्यूटी, लगातार दो सौ चालीस
दिन कार्य करने के बाद स्थायीकरणः, निश्चित समयावधि के बाद अनिवार्य वेतन वृद्वि, सवेतन अवकाश, चिकित्सा और भविष्यनिधि जैसी सामाजिक सुरक्षा
की सुविधायें श्रमिको को किसी उघोगपति या सरकार की कृपा से नहीं मिली है। एक लम्बे
सतत संघर्ष के बाद श्रमिको को यह सुविधायें नसीब हुई हैं परन्तु पिछले दो दशको में
इन सुविधाओ को छीनने की प्रक्रिया तेजी से बढी है। उघोग धन्धो के लिए मूलभूत सुविधायें
करो में विशेष रियायत और श्रमिकों के लिए नौकरी सम्मानजनक जीवन जीने के लिए समुचित
वेतन की गारण्टी एक सिक्के के दो पहलू है। दोनों को अलग अलग करके नहीं देखा जा सकता।
दोनों का समान महत्व है। इसमें से किसी की भी उपेक्षा देश के दूरगामी हितो के लिए घातक
है। श्रमिक हितो की सुरक्षा और श्रम कानूनो को लागू कराना सरकार का दायित्व है परन्तु
सरकार अपने इस दायित्व का पालन नहीं करती जिसके कारण हड़ताल के सहारे सरकार और उघोगपतियो
पर दबाव बनाना श्रमिको की मजबूरी है।
दो दिवसीय
हड़ताल से श्रमिको का मनोबल मजबूत हुआ है और इससे वर्तमान श्रम कानूनों का लाभ पाने
की ललक असंगठित क्षेत्र के श्रमिको में भी बढेगी जो देश की सामाजिक समरसता और खशहाली
के लिए आवश्यक है।