भूमाफियाओं की गिद्ध दृष्टि अब श्रमिक बस्तियों पर.............
उप श्रमायुक्त श्री यू.पी. सिंह ने जूहीकलाँ श्रमिक बस्ती कानपुर के मकान नं. 57/6 से बेदखली के लिए मृतक महादेव पर दिनांक 11.02.2013 को नोटिस की तामीली बताकर बेदखली का एक पक्षीय निर्णय पारित किया है, जबकि उनकी मृत्यु दिनांक 10.11.1998 को हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश में औद्योगिक श्रमिकों को वी0आर0एस0 देकर जबरन बेरोजगार कर दिये जाने के बाद अब श्रमिक बस्तियों से उन्हें बेदखल करने की तैयारी की जा रही है। किसी युक्तियुक्त आधार के बिना एकदम मनमानें तरीके से चुन चुन कर उत्तर प्रदेश सार्वजनिक भूगृहादि (अप्राधिकृत अध्यासियों की बेदखली) अधिनियम 1972 के तहत बेदखली कार्यवाही शुरू कर दी गई है। सभी न्यायिक सिद्धान्तों को दरकिनार करके मृतक आवंटियों के आश्रितों को पक्षकार बनाये बिना मृतकों पर सम्मन की तामीली मानकर एक पक्षीय सुनवाई करके बेदखली आदेश पारित किये जा रहे है। औद्योगिक प्रतिष्ठानों के श्रमिक सरकारी नीतियों के तहत बेरोजगार हुये है। कारखानों की जमीन बेचकर बड़े पैमाने पर लाभ कमाया गया है और अब इन गिद्धो की कुदृष्टि श्रमिक बस्तियों की जमीन पर है।
सन् 1952 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू अपने सहयोगी मन्त्री बाबू जगजीवन राम के साथ कर्मचारी राज्य बीमा योजना का उद्घाटन करने कानुपर आये थे। उस समय के श्रमिक नेताओं ने नेहरू जी से मलिन बस्तियांे का निरीक्षण करने का आग्रह किया। वें लोग नेहरू जी को झकरकटी स्थित मुन्नालाल हाता दिखाने ले गये। हाते में कमरंे जमीन खोदकर गढ्ढ़े में बनाये गये थे, खपरैल की छत थी। कमरों में पानी की निकासी का कोई प्रबन्ध नही था। हाते मंे पहुँचते ही नेहरू जी ने एक बच्चे को मकान के सामने खड़ा देखा वे उसी मकान में घुस गये वहाँ चारपाई पर एक व्यक्ति लेटा था और महिला चूल्हे में खाना बना रही थी, जिसके कारण कमरे में धुआँ भरा था। कमरे में घूसते ही चिल्लाते हुये वे बाहर आये और फिर एक गली में घुस गये जहाँ नाली थी और उसमें लोग शौच करते थे जिसकी सफाई दिन में केवल एक बार होती थी। यह सब देखकर जानकर उन्हें दुख हुआ, गुस्सा आया। उन्होंने मौंके पर उपस्थित मुख्यमन्त्री सहित सभी लोगों पर नाराजगी जतायी। उनकी नाराजगी के बीच बाबू जगजीवन राम ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने मलिन बस्तियों के सुधार के लिए कभी धन नही माँगा। मुख्यमन्त्री पंत जी ने तत्काल डिमाण्ड नोट भेजने का वायदा किया और इस प्रकार इन परिस्थितियों में मुन्नालाल के हाते में भारत सरकार ने एक नई श्रमिक बस्ती बनाने के लिए धनराशि स्वीकृत करने का निर्णय लिया। उसके बाद शास्त्री नगर श्रमिक बस्ती का निर्माण कराया गया। औद्योगिक श्रमिक बस्तियों के निर्माण का सम्पूर्ण व्यय भारत सरकार द्वारा वहन किया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार का इसमें कुछ भी नही लगा है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने भी अपने शासनादेश संख्या- 515 (1)/36-चार/ 1995-16/92 दिनांक 21.02.1995 के द्वारा श्रमिक बस्तियों के सभी आवासों को उनके वर्तमान अध्यासियों के पक्ष में हस्तान्तरित करने का निर्णय लिया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने यह भी निर्णय लिया था कि मृतक या सेवानिवृत्त आवंटियों की स्थिति में उनके आश्रितों के साथ एक नया आवंटन अनुबन्ध निष्पादित कराके आवंटन उनके पक्ष में कर दिया जायेगा। एक कमरे वाले आवास का मानक किराया एक सौ पच्चीस रूपया और दो कमरे वाले आवास का दौ सौ पैतीस रूपये निर्धारित करके औद्योगिक श्रमिक की परिधि में न आने वाले अध्यासियों को भी आवास आवंटित करने का प्रावधान है, परन्तु अब अखिलेश सरकार पूर्व शासनादेशों का अनुपालन करने के लिए तैयार नही है और वर्तमान अध्यासियों को जबरन श्रमिक बस्तियों से बेदखल करने पर आमादा है।
अपने देश में विवन्ध का सिद्धान्त (प्रिन्सिपल आॅफ प्रामिसरी इस्टापेल) सुस्थापित विधि है और इस विधि के तहत प्रत्येक सरकार के लिए अपनी पूर्ववर्ती सरकार द्वारा किये गये वायदों का अनुपालन सुनिश्चित करना कराना आवश्यक होता है। विधि में वर्तमान सरकार के लिए पूर्ववर्ती सरकार के वायदों से मुकर जाने का कोई विकल्प उपलब्ध नही है, परन्तु वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार श्रमिक बस्तियों के मामले में पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा श्रमिकों से किये गये वायदों का अनुपालन करने से इन्कार कर रही है। जबकि पूर्व शासनादेशों के तहत श्रमिक बस्तियों में शिकमी की परिधि में आने वाले कई अध्यासियों के पक्ष में मानक किराये की दर पर आवंटन आदेश जारी किये गये है। अवशेष लोगों को शासनादेश का लाभ देने से इन्कार करना स्पष्ट रूप से भेदभावपूर्ण कार्यवाही है।
उत्तर प्रदेश सरकार डा0 राम मनोहर लोहिया, राजनारायण मधु लिमये को अपना आदर्श बताती है। इन लोगों ने ‘‘पिछड़े पायें सौ में साठ का अभियान किसी जाति विशेष का आगे लाने के लिए नही चलाया था। उनकी मंशा समाज के सभी पिछड़ों को आगे लोन की थी। श्रमिक बस्तियों में समाज अति पिछड़े वर्ग को लोग रहते है। आज भी यहाँ उच्च आय वर्ग के लोग नही रहते है। यह सच है कि इन बस्तियों में रहने वाले श्रमिकों के बच्चों ने सीमित साधनों के बावजूद लगन और मेहनत के बल पर अपने माता पिता के जमाने के धन्नासेठों के बच्चों को कैरियर की दुनिया में एकदम पीछे कर दिया है। गरीब घरों के बच्चे भी अब कलक्टर बनने लगे है। इन बच्चों ने ईमानदारी की कमाई से अपने माता पिता के लिए आधुनिक सुविधायें जुटा दी है। इन सुविधाओं के कारण उत्तर प्रदेश सरकार वर्तमान अध्यासियों को टाटा बिड़ला अम्बानी के समकक्ष मानने लगी है। ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश सरकार की सोच है कि पिछड़ों को पिछडा ही रहना चाहिए। श्रमिक परिवारों को आधुनिक सुविधायें जुटाने का कोई अधिकार नही है। उनके बच्चों को भी अपने माता पिता की तरह ताजिन्दगी मजदूरी करने के लिए ही अभिशप्त रहना होगा।
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