लोक अभियोजकों की नियुक्ति का चोर दरवाजा बन्द करना होगा.....
अपने देश के जनपद न्यायालयों में हत्या डकैती बालात्कार जैसे जघन्य अपराधों के लिए शासन की तरफ से अभियुक्तों के विरूद्ध आपराधिक मुकदमों का संचालन प्रदेश में सत्तारूढ़ दल के स्थानीय सांसदो विधायकों और उनके पदाधिकारियों की संस्तुति पर नियुक्त लोक अभियोजकों के द्वारा किया जाता है और साधारण मार पीट, लूट पाट आदि के मामलों में मजिस्ट्रेट के समक्ष मुकदमों का संचालन लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित अभियोजन अधिकारियों द्वारा किया जाता है।
सत्र न्यायालयों के समक्ष आपराधिक मुकदमों के संचालन हेतु लोक अभियोजकों की नियुक्ति के लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 में प्रावधान है कि जिला मजिस्ट्रेट सेशन न्यायाधीश के परामर्श से ऐसे व्यक्तियों के नामों का एक पैनल तैयार करेगा जो उसकी राय में उस जिले के लिए लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक नियुक्त किये जाने के योग्य है। इसमें यह भी प्रावधान है कि जहाँ किसी राज्य में अभियोजन अधिकारियों का नियमित कैडर है वहाँ राज्य सरकार ऐसा कैडर गठित करने वाले व्यक्तियों में से ही लोक अधियोजक या अपर लोक अभियोजक नियुक्त करेगी परन्तु राज्य सरकारों ने दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 के प्रभावी होने के तीस वर्ष बाद भी लोक अभियोजकों का नियमित कैडर नही बनाया जबकि इनके द्वारा संचालित आपराधिक मुकदमों में मृत्यु दण्ड या आजीवन कारावास की सजा दी जाती है।
अपनी न्यायिक व्यवस्था में किसी अभियुक्त के विरूद्ध अधिरोपित आरोपों को सिद्ध करने के लिए न्यायालय के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करना लोक अभियोजक का दायित्व है। कौन सी साक्ष्य सुसंगत है विश्वसनीय है का निर्धारण स्वयं उसे करना होता है और इसके लिए आपराधिक विधि की अद्यतन जानकारी आवश्यक होती है। अभियुक्त की तरफ से सदैव स्थानीय स्तर के विद्वान अधिवक्ता उपस्थित होते है। वे समुचित होम वर्क करके अदालत में उपस्थित रहते है और अभियोजन की प्रत्येक कमी को सलीके से चिन्हित करके संदेह पैदा करते है। इन कमियों को मौखिक साक्ष्य या अन्य उपलब्ध साक्ष्य से सुधारने के लिए कुशलता अर्जित करने का कोई प्रशिक्षण लोक अभियोजको को नही दिया जाता जिसका सीधा अनुचित लाभ अभियुक्तों को मिल जाता है।
विभिन्न राज्यों में सत्तारूढ़ दलों ने लोक अभियोजक के पद पर अपने कार्यकर्ताओं को उपकृत करने के लिए राज्य स्तर पर दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 को संशोधित कर लिया और नियुक्ति के लिए जिलाधिकारी द्वारा प्रस्तावित पैनल के नामों पर सेशन न्यायाधीश द्वारा सलाह लिये जाने की अनिवार्यता समाप्त कर दी है। इस संशोधन से नियुक्ति के लिए अपेक्षित योग्यता के सभी मापदण्ड बदल गये और राजनैतिक कारणों से अपने वकालती जीवन में एक भी सत्र परीक्षण का संचालन न करने वाले अकुशल लोगों की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया।
अकुशल लोगों की बढ़ती नियुक्ति और उसके कारण आपराधिक न्याय प्रशासन के प्रति बढ़ते अविश्वास को दृष्टिगत रखकर प्रधानमंत्री कार्यालय (पी0एम0ओ0) की सलाह पर गृह मन्त्रालय ने विधि आयोग को मामला संदर्भित किया है। संदर्भित आदेश में कहा गया था कि आपराधिक विचारणों का संचालन राज्य सरकारों द्वारा संविदा पर नियुक्त लोक अभियोजकों के द्वारा किया जा रहा है। जिसके कारण गुणवत्ता कुप्रभावित हो रही है। विधि आयोग ने लोग अभियोजकों की नियुक्ति प्रक्रिया का अध्ययन करके अपने सुझाओं सहित दिनांक 31 जुलाई 2006 को अपनी 197वीं रिपोर्ट सौप दी है। योग्यता के किसी युक्तियुक्त आधार के बिना केवल राजनैतिक सम्पर्क के बल पर नियुक्त हुये लोक अभियोजक की निष्ठा आसानी से मैनेज हो जाती है और उसका अनुचित सीधा लाभ अभियुक्तो को मिलता है। इस आशय के स्पष्ट कथन विधि आयोग की रिपोर्ट में किये गये है। उसमें यह भी कहा गया है कि लोक अभियोजकों की नियुक्ति राज्य सरकारो की स्वीट बिल पर नही छोडी जा सकती है। राज्य सरकारो की नियुक्ति प्रक्रिया सही नही है और इस प्रक्रिया से अकुशल व्यक्तियों की नियुक्ति का खतरा लगातार बना हुआ है। इस रिपोर्ट के आधार पर नियुक्ति प्रक्रिया को अभी तक संशोधित नही किया गया और राज्य सरकारो की मनमानी आज भी जारी है।
लोक अभियोजको की नियुक्ति में मनमानी और ओछापन उत्तर प्रदेश में सरकारो की विशेषता है। मायावती सरकार ने राजनैतिक कारणों से सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में एक साथ सभी लोक अभियोजको को हटा दिया और योग्यता का कोई मापदण्ड निर्धारित किये बिना मनमाने तरीके से लोक अभियोजक नियुक्त करके अपने कार्यकर्ताओं को उपकृत किया। लोक अभियोजको को एक साथ हटाने की शुरूआत मुलायम सिंह यादव ने अपने कार्यकाल में की थी। उन्होंने दण्ड प्रक्रिया संहिता में संशोधन करके लोक अभियोजकों की नियुक्ति में सेशन न्यायाधीश से सलाह होने की अनिवार्यता को समाप्त किया था। इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने एक लम्बे अन्तराल के बाद इस संशोधन को विधि विरूद्ध घोषित कर दिया है। इस सबके बावजूद कोई सुधार होता नही दिखाई देता। अखिलेश सरकार द्वारा की गई नियुक्तियों में भी निष्पक्षता एवं पारदर्शिता का अभाव है। सभी नियुक्तियाँ स्थानीय विधायकों सांसदो की संस्तुति पर की गई और की जा रही है। वास्तव में लोक अभियोजक सरकार पुलिस अभियुक्त या इनफार्मेण्ट के अधिवक्ता नही होते और न किसी भी कीमत पर अभियुक्त को सजा कराना उनका दायित्व है। उनकी भूमिका मिनिस्टर आफ जस्टिस की होती है और उस नाते वे सम्पूर्ण न्याय करने में अदालत की सहायता करते है इसलिए उन्हें प्रशासन या पुलिस के दबाव के बिना स्वतन्त्र तरीके से अपने दायित्वों का निर्वहन किये जाने की छूट दी जानी चाहिये। परन्तु यदि व्यक्तिगत योग्यता कुशलता निष्ठा ईमानदारी को दरकिनार करके केवल राजनैतिक सम्पर्क को नियुक्ति का आधार बनाये रखा जायेगा तो निश्चित रूप से आपराधिक न्याय प्रशासन के व्यापक हितों को चोट पहुँचेगी और अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा जो अन्ततः कानून व्यवस्था के लिए घातक है।
वास्तव में आज अपराधी हाई टेक हो गया है और विवेचना के तौर तरीके बैलगाडी युग के है, जिसके कारण जोक अभियोजकों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। व्यवस्था के प्रति आम लोगों का विश्वास अविश्वास स्थानीय स्तर की प्रशासनिक गतिविधियों से निर्धारित होता है। राजनैतिक अपराधियों और लोक अभियोजकों की साँठगाँठ के समाचारो से आम लोगों का दिल दहल जाता है। उनमें असहाय होने का भाव पैदा हो जाता है।
आपराधिक न्याय प्रशासन को सुचारू रूप से संचालित करने और उसके प्रति आम लोगों का विश्वास और ज्यादा सुदृढ़ बनाये रखने के लिए आवश्यक हो गया है कि केन्द्र सरकार अपने स्तर पर दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 24(6) को आदेशात्मक प्रभाव दिलाने के लिए पहल करें। अब यह कल्पना करना बेईमानी है कि कोई राज्य सरकार आपराधिक न्याय प्रशासन के व्यापक हितों को दृष्टिगत रखकर लोक अभियोजक की नियुक्ति के लिए योग्यता और कुशलता के साथ कोई खिलवाड़ नही करेगी और अपने राजनैतिक कार्यकर्ताओ को नियुक्ति देकर उपकृत नही करेगी। ऐसी दशा में धारा 24(6) का अनुपालन सुनिश्चित कराके सेशन न्यायाधीश की सलाह पर जिलाधिकारी द्वारा तैयार किये गये पैनल से नियुक्ति की प्रक्रिया को समाप्त कर देना चाहिये। मान लेना चाहिये धारा 24(4) की प्रक्रिया मनमानी के अवसर देती है और उससे संविधान के अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन होता है। यह नियुक्ति का चोर दरवाजा है जिसे बन्द करने में ही सबकी भलाई है।
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