Sunday, 13 October 2013

सड़क दुर्घटनाओ को बोनान्जा बनने से रोके.........

अब सड़क दुर्घटनाये में दी जाने वाली क्षतिपूर्ति मृतक आश्रितों की जगह बिचैलियो के लिए बोनान्जा बन गई है। सामाजिक सुरक्षा की यह व्यवस्था कुछ लोगों के लोभ और अनुचित कमाई का साधन बन गई है। क्षतिपूर्ति की राशि का बँटवारा होता है और आधे से भी कम घायल या मृतक आश्रित के हिस्से मे आता है। बड़े पैमाने पर गिरोहबन्दी करके पोस्टमार्टम हाऊस या थाने से मृतक के नाम पते की जानकारी करके न्यायालयों मे क्लेम पिटीशन दाखिल किये जाते है। फर्जी कथानक और बनावटी कागजात प्रस्तुत करके क्षतिपूर्ति प्राप्त की जा रही है। दिसम्बर जनवरी महीने में रात्रि 12 बजे से सुबह 4 बजे के मध्य घटित दुर्घटनाओं में भी अज्ञात वाहन के विरूद्ध दूसरे दिन प्रथम सूचना रिपार्ट दर्ज होने के बावजूद विवेचक साँठ गाँठ करके किसी न किसी वाहन के विरूद्ध आरोप पत्र प्रेषित कर देते है और यहीं से क्लेम का खेल और अनुचित कमाई का सिलसिला शुरू हो जाता है।

           अपने देश में सर्वाधिक मौतें सड़क दुर्घनाओं में होती है। वर्ष 2011 में 4,97,000 और वर्ष 2012 में 4,90,383 दुर्घटनायें घटित हुई है। जिसमें क्रमशः 142485 और 138258 लोग मृत्यु का शिकार हुये है। कैंसर जैसी असाध्य कही जाने वाली बीमारी से मरने वालों की तुलना में उससे कही ज्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु का शिकार होते है, परन्तु सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबन्ध आज भी सरकारो की प्राथमिकता सूची में नही है। यातायात प्रबन्ध के नाम पर शहरी क्षेत्रों के गली मोहल्लों में स्थानीय पुलिस दुपहिया वाहनों की नित्य प्रति तलाशी लेती है, जबकि दुपहिया वाहनों से घटित दुर्घटना में जनहानि प्रायः नही होती। शहरी क्षेत्रो में शराब पीकर वाहन चलाने वाले कार चालकों की तेजगति और ओवरटेकिंग को नियन्त्रित करने का कोई प्रयास नही किया जाता।
केन्द्रीय मन्त्री श्री आस्कर फर्नाडीज ने पिछले दिनों नेशनल रोड सेफ्टी काउन्सिल को सम्बोधित करते हुये बताया है कि नेशनल रोड सेफ्टी पालिसी 2010 के एप्रूब्ड कर दिया गया है, परन्तु पालिसी के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए उन्होंने कोई समयबद्ध रूपरेखा प्रस्तुत नही की जबकि सड़क दुर्घटनायें जनहानि के साथ साथ देश के अर्थतन्त्र को भी कुप्रभावित करती है। कुल जी.डी.पी. की तीन प्रतिशत क्षति सड़क दुर्घटनाओं के कारण होती है।

शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा सड़क दुर्घटनायें होती है। शहरी क्षेत्रों में 46.5 प्रतिशत और गा्रमीण क्षेत्रामें में 53.5 प्रतिशत दुर्घटनाये घटित होती है। ग्रामीण क्षेत्रों मे यातायात कोई समस्या नही है। चालकों की अपनी लापरवाही दुर्घटनाओं का कारण बनती है। करीब 77.5 प्रतिशत दुर्घटनायें वाहन चालकों की लापरवाही का प्रतिफल है। तेज गति और ओवर टेकिंग वाहन चालको की आदत बन गई है। केवल कानून और सजा का भय उनकी इस आदत को नियन्त्रित कर सकता है। मोटर वाहन अधिनियम और भारतीय दण्ड संहिता में इस आशय के प्रावधान है। सड़क दुर्घटनाओं के दोषियों को सजा दिलाकर उन्हें सबक सिखाना किसी की प्राथमिकता में नही है। विवेचना की औपचारिकता पूरी करके साक्ष्य संकलित की जाती है। वैज्ञानिक तरीके से साक्ष्य संकलन का कोई तरीका आज तक विकसित नही हो सका है। प्रत्येक शहर में फारेन्सिक लैब बनायी गयी है, परन्तु आपराधिक मामलों की विवेचना में उनका कोई उपयोग नही है। फर्जी प्रत्यक्षदर्शी खोजना अपने देश के विवेचको की विशेषता है। विवेचक मरे व्यक्तियों का बयान लिखकर फाइनल रिपोर्ट या अरोपपत्र प्रेषित कर देते है जिसके कारण केवल दो प्रतिशत आरोपियों को सजा मिल पाती है। दुर्घटना में घायल या मृतक के आश्रित केवल क्षतिपूर्ति की चिन्ता करते है। दोषी वाहन चालक का विचारण और उसको उसके किये की सजा दिलाने के लिये प्रयास करना उनकी प्राथमिकता सूची मे नही है। 


          आर.टी.ओ. कार्यालयों में फैले भ्रष्टाचार के कारण ड्राइविंग लायसेन्स आसानी से मिल जाता है। दुपहिया वाहन चलाने के लिए अकुशल चालकों को भारी वाहन ड्राइव करने का लायसेन्स मिल जाना आम बात है। ऐसे ही वाहन चालक आम राहगीर से उसका जीवन छीन लेते है। ड्राइविंग लायसेन्स निर्गत करने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना आवश्यक है। कम से कम भारी वाहनों के ड्राइविंग लायसेन्स के लिए प्रशिक्षण की अनिवार्यता लागू करना जरूरी हो गया है। किसी भी प्रकार की दुर्घटना कारित होने पर उसकी प्रविष्टि सम्बन्धित वाहन चालक के ड्राइविंग लायसेन्स पर अंकित करने की व्यवस्था भी लागू की जानी चाहियें ताकि विचारण के दौरान न्यायालय इस तथ्य को अपने संज्ञान में ले सके। दिनांक 31.05.2010 और दिनांक 18.05.2011 को सय्यद बाबा मजार कैन्ट कानपुर के पास अलग अलग घटित दुर्घटनाओं के लिए विक्रम टेम्पों पंजीकरण संख्या यू.पी. 78 बी. 3708 को दोषी बताया गया। प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज है, परन्तु टेम्पों चालक के विरूद्ध कोई कार्यवाही नही हुई है। वास्तव में एक बार लायसेन्स जारी हो जाने के बाद उसके निरस्त होने का खतरा नही रहता। दूसरी या तीसरी दुर्घटना के बाद ड्राइविंग लायसेन्स निरस्त करने का नियम बनाया जाना चाहिये।

           सड़क दुर्घटनाओं में मृतक आश्रितों को मिलने वाली क्षतिपूर्ति का बँटवारा बढ़ता जा रहा है। क्लेम पिटीशन अनुचित कमाई का साधन बन गये है, परन्तु सरकारों के स्तर पर सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबन्ध के लिए अभी तक कोई एकीकृत विधि नही बन सकी है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं पहल करके सड़क दुर्घटनाओं में घायलो का जीवन बचाने के लिए पण्डि़त परमानन्द कटारा बनाम यूनियन आफ इण्डिया (क्रिमिनल रिट पिटीशन संख्या 27 सन 1988 दिनांक 28.08.1989, ए.आई.आर. 1989 सुप्रीम कोर्ट पेज 2139) के द्वारा आदेशित किया है कि विधिक औपचारिकताओं के पूरा होने की प्रतीक्षा किये बिना घायल को तत्काल चिकित्सकीय इलाज उपलब्ध कराया जाये। भारतीय दण्ड संहिता, दण्ड प्रक्रिया संहिता और मोटर वाहन अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नही है जो प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हुये बिना किसी डाक्टर को दुर्घटना में घायल व्यक्ति का चिकित्सकीय इलाज करने से रोकता हो। किसी भी दशा में घायल का जीवन बचाना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिये। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्देश के बाद केन्द्र सरकार ने मोटर वाहन अधिनियम को संशोधित करके अधिनियम संख्या 54 सन् 1994 के द्वारा धारा 134 की प्रकृति को आदेशात्मक बना दिया है। इस धारा के तहत अब घायल को तत्काल निकटतम अस्पताल पहुँचाना ड्राइवर और मालिक के लिए आवश्यक हो गया है। चिकित्सकों के लिए भी सड़क दुर्घटना में घायलों का इलाज करना जरूरी है। वें अब एफ.आई.आर. दर्ज न होने के आधार पर किसी घायल का इलाज करने से इन्कार नही कर सकते। इलाज करने से इन्कारी अब मोटर वाहन अधिनियम की धारा 187 के तहत दण्डनीय अपराध है। 3 माह की सजा और 500/- रूपया जुर्माना या दोनों और दूसरी बार इलाज से इन्कार करने पर 6 माह की सजा और एक हजार रूपये जुर्माने का प्रावधान अधिनियम में है।

         तीस प्रतिशत से ज्यादा दुर्घटनाओं में 15 से 24 वर्ष की आयु वर्ग के युवा मृत्यु का शिकार होते है। इसमें बड़ी संख्या कक्षा 11 व 12 के  विद्यार्थियों की है। इन दुर्घटनाओं को माता पिता अपने स्तर पर नियन्त्रित कर सकते है। कक्षा ग्यारह बारह मे पढ़ने वाले बच्चों को केवल उनके शौक के लिए तेज गति की बाइक खरीद देने की बढ़ती प्रवृत्ति भी दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार है। दिल्ली के पूर्व स्वास्थ्य मन्त्री डा. हर्ष वर्धन ने एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई के अन्तिम वर्ष में मोटर साइकिल ली थी, जबकि उनके कई साथी द्वितीय वर्ष में ही मोटर साइकिल का आनन्द ले रहे थे। वास्तव में एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई मे अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों को अलग अलग विभागों में जाना पड़ता है, जहाँ पैदल पहुँच पाना मुश्किल होता  है। अर्थात मोटर साइकिल आवश्यकता के लिए खरीदना चाहियें। माता पिता को कठोरता से कक्षा 12 तक के विद्यार्थियों को साइकिल या स्कूल बस से विद्यालय जाने के लिए मजबूर करना चाहियें। इस प्रकार के प्रयासों से तीस प्रतिशत सड़क दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है। 

           मोटर वाहन अधिनियम की धारा 158 (6) में प्रावधान है कि दुर्घटना की सूचना अंकित किये जाने के तीस दिन के अन्दर थाना प्रभारी दुर्घटना से सम्बन्धित सम्पूर्ण विवरण मोटर एक्सीडेन्ट क्लेम ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रेषित करें। इस सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय ने भी कई बार दिशा निर्देश जारी किये है परन्तु थाना स्तर पर उसका अनुपालन नही किया जा रह है जबकि दिशा निर्देशों की प्रकृति आदेशात्मक है। थाना स्तर पर दुर्घटना से सम्बन्धित सुसंगत सूचनाओं को संकलित करने से क्षतिपूर्ति मामलों में फर्जीवाड़ा को काफी हद तक रोका जा सकता है। 

        दुर्घटना के तत्काल बाद पंचायत नामा से पोस्ट मार्टम की अवधि में मृतक के परिजन सम्बन्धित थाना प्रभारी के सम्पर्क मे आ जाते है। इसलिए मृतक की आयु आय और उसके आश्रितों की जानकारी उसे आसानी से हो सकती है। उसी समय यह भी स्पष्ट हो जाता है कि किस वाहन से दुर्घटना कारित हुई है अर्थात सब कुछ स्पष्ट हो जाता है और फर्जीवाड़ा की गुन्जाइस समाप्त हो जाती है। अपने पिता के नाम पंजीकृत कार को चला रहे पुत्र की दुर्घटना में मृत्यु हो जाने पर पुत्रवधू ने अपने पति को अपने ससुर का ड्राइवर कर्मचारी बताकर क्षतिपूर्ति का दावा किया है। इसी प्रकार दिनांक 20.01.2010 को रात्रि में घटित दुर्घटना में अज्ञात वाहन के विरूद्ध प्र्रथम सूचना रिपोर्ट लिखाये जाते समय किसी को वाहन का नम्बर पता नही था परन्तु बाद में नम्बर खोज लिया गया। थाना प्र्रभारी के स्तर पर एक्सीडेन्ट इनफारमेशन रिपार्ट भेजने की अनिवार्यता लागू हो जाने के बाद इस प्रकार की सोची समझी फर्जी याचिकाओं पर स्वतः रोक लग सकेगी और वास्तविक पीडि़त को कुछ भी व्यय किये बिना और अन्य किसी को हिस्सेदारी दिये बिना क्षतिपूर्ति प्राप्त हो सकेगी।

              थाना स्तर पर एक्सीडेन्ट इनफारमेशन रिपार्ट तैयार न करने कारण मोटर दुर्घटनाओं में फर्जी प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य आसानी में अदालत में प्रस्तुत हो जाती है। पोर्ट ब्लेयर (गोवा) में गोल घर चैराहे पर घटित सड़क दुर्घटना में एयरफोर्स कर्मी की मृत्यु की क्षतिपूर्ति का क्लेम पिटीशन कानपुर नगर में दाखिल है। इस दुर्घटना की अपने अपने स्तर पर अलग अलग विवेचना सिविल पुलिस और सेना पुलिस ने की है, परन्तु कानपुर में पिटीशन की सुनवाई के दौरान एक कथित प्रत्यक्षदर्शी साक्षी न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुआ और उसने बताया कि वकील साहब के बस्ते पर चर्चा हो रही थी तभी हमे याद आ गया कि दुर्घटना मेरे सामने हुई थी। इस प्रकार के साक्षी पूरी क्षतिपूर्ति प्रक्रिया में दीमक लगा रहे है। बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं को बोनान्जा मानकर ज्यादा से ज्यादा लाभ अर्जित करने वाले तत्वों का संघटित गिरोह सक्रिय हो गया है। जो दुर्घटना के बाद भोले भाले आश्रितों को सब्जबाग दिखाते है। फर्जी वाहन नम्बर ड्राइवर ड्राइविंग लायसेन्स आदि सुसंगत कागजात उपलब्ध कराते है और उसकी मुँहमाँगी कीमत वसूलते है और बाद में क्षतिपूर्ति की राशि का भी बँटवारा करते है।

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