आज एक उद्योगपति मेरे घर आये थे। सामान्य बातचीत के दौरान कानपुर के औद्योगिक परिद्रश्य की चर्चा आने पर उन्होने बताया कि सभी कारखाने लाल झण्डे वालो विशेषकर माक्र्सवादी नेता श्रीमती सुभाषिनी अली द्वारा चलाये गये आन्दोलन के कारण बन्द हुये है। उन्होने अपने शहर से निर्दलीय लोक सभा सदस्य कम्यूनिस्ट नेता स्वर्गीय एस0एम0 बनर्जी के बारे में भी कई रहस्योदघाटन किये। उनकी बाते सुनते हुये मैने उनसे किसी ऐसे कारखाने का नाम पूॅछा जो टेªड यूनियन नेताओ विशेषकर सुभाषिनी अली के उकसाने पर श्रमिको की हड़ताल के कारण बन्द हुआ है। मेरी इस जिज्ञासा का उनके पास कोर्ट जवाब नही था परन्तु फिर भी वे कारखानो की बन्दी के लिये श्रमिक नेताओ को निर्दोष मानने के लिये तैयार नही हुये।
कानपुर के कारखानो की बन्दी से लेकर टेªड यूनियन नेताओ को दोषी बताने की चर्चायें आम हो चली है। सार्वजनिक क्षेत्र के एक बडे प्रतिष्ठान के महाप्रबन्धक ने भी मुझसे इसी प्रकार की बाते कही थी। वास्तव में कानपुर के कारखानो की बन्दी के वास्तविक कारणो का इस प्रकार के लोगो को कोई ज्ञान नही है। टेªड यूनियन अवधारणा को उद्योग विरोधी मानने वाले कुछ नव धनाड्य लोगो की सुनी सुनाई अप्रमाणित बातो को आधार बनाकर श्रमिक नेताओ के विरूद्ध अर्नगल दोषारोपण का षडयन्त्र किया जा रहा है। अपने कानपुर में एक भी कारखाना श्रमिको की हडताल के कारण बन्द नही हुआ है। सभी कारखानो को उनके मालिको ने अपने निजी कारणो से बन्द किया है और श्रमिको को बेरोजगार करके भुखमरी का शिकार बनाया है।
सिंहानिया समूह की जे0के0 जूट मिल, कैलाश मिल, जे0के0 प्लास्टिक रेयन, आयरन एण्ड स्टील मिल की बन्दी उनके प्रबन्धको के कुप्रबन्ध और पारिवारिक विवादो का प्रतिफल है। श्रमिको या श्रमिक नेताओ का इसमें कोई दोष या दायित्व नही है। राष्ट्रीय वस्त्र निगम की सभी पाॅचो इकाइयो लक्ष्मी रतन, अथर्टन वेस्ट म्योर मिल, स्वदेशी काटन मिल एवम विक्टोरिया मिल में केन्दीय सरकार के नीतिगत निर्णय के तहत श्री मनमोहन सिंह के वित्त मन्त्रित्व काल मे उत्पादन बन्द किया गया जबकि इन मिलो में प्रतिरक्षा सेनाओ की आवश्यकता के लिये उत्पादन किया जाता था और उस समय तक उसकी माॅग में कोई कमी नही आई थी। बाद मे श्री अटल विहारी बाजपेयी के प्रधान मन्त्रित्व काल मे इन सभी कारखानो की जमीन को बेचने के लिये श्रमिको को स्वेछिक सेवा निवृत्ति का झुनझुना पकडा दिया और कारखाने बन्द कर दिये गये। इन कारखानो की बन्दी के समय शहर से भारतीय जनता पार्टी के श्री जगत वीर सिंह द्रोण सांसद थे और उन्ही के दल के सभी विधायक थे। मुझे नही मालूम कि भारतीय जनता पार्टी के निर्वाचित जन प्रतिनिधियो ने कानपुर के कारखानो की अभूतपूर्व आत्मघाती बन्दी को रोकने के लिये क्या प्रयास किये थे?
यह सच है कि कानपुर जूझारू मजदूर आन्दोलन के लिये जाना जाता है। साम्यवादी विचारक ई.एम.एस. नंबूदिरिपाद ने अपनी पुस्तक “भारत का स्वाधीनता संग्राम” में लिखा है कि वेतन में बढोत्तरी और अपनी यूनियन को मान्यता दिये जाने की माॅग को लेकर जुलाई 1937 मे कानपुर की एक ब्रिटिश स्वामित्व वाली कपडा मिल की हडताल इस तरह के संधर्षो का शानदार उदाहरण है। कानपुर की हडताल ने देश भर में मजदूरो के संधर्ष के लिये माडल का काम किया। इसने पूरे भारत में साम्राज्य विरोधी तत्वो को इस तथ्य से भी अवगत कराया कि अगर कम्यूनिस्ट सोशलिस्ट और साधारण काग्रेज जन मिल जुल कर मजदूरो के संधर्ष में हिस्सा ले तो कितना शानदार नतीजा निकल सकता है। आजादी के पहले से आज तक श्रमिको ने उद्योग की बन्दी के मूल्य पर कभी कोई आन्दोलन नही किया और इसी कारण कोई कारखाना श्रमिको की हडताल के कारण बन्द नही हुआ है।
नारायण दत्त तिवारी के मुख्य मन्त्रित्व काल में कपडा मिलो के श्रमिको के वेतन और उनकी कार्यदशाओ में सुधार के लिये के0के0 पाण्डेय एवार्ड पारित हुआ था। शुरूआती दौर में किसी श्रमिक नेता ने इस एवार्ड का विरोध नही किया। हलाॅकि एवार्ड के गुणदोष पर सभी स्तरो पर चर्चा हो रही थी परन्तु इसी बीच स्थानीय समाचार पत्रो मे बडे बडे विज्ञापन प्रकाशित होने लगे और उसके द्वारा टेªड यूनियन नेताओ के विरूद्ध दुष्प्रचार शुरू किया गया। इन अखबारी विज्ञापनो के द्वारा के0के0 पाण्डेय एवार्ड के विरूद्ध माहौल बनाया गया। श्रमिको को उकसाया गया। सुस्पष्ट है कि किसी श्रमिक नेता या टेªड यूनियन ने इस प्रकार के मॅहगे विज्ञापन प्रकाशित नही कराये। सब कुछ मिल मालिको, एन.टी.सी और बी.आई.सी के अधिकारियो की शह पर किया गया। दुर्भाग्य से के0के0पाण्डेय एवार्ड अपास्त हो जाने की खुशी में टेªड यूनियन नेताओ ने अखबारी विज्ञापनो के स्त्रोत को जानने का प्रयास नही किया।
कारखानो की बन्दी के कारणो को जाने समझे बिना टेªड यूनियन नेताओ विशेषकर लाल झण्डे वालो को दोषी बताने का एक फैशन बन गया है। ऐसे लोगो को अहसास नही है कि टेªड यूनियन आन्दोलन कमजोर हो जाने के कारण निजी क्षेत्र मे कर्मचारियो का शोषण और उत्पीडन तेजी से बढा है। दस घंटे का कार्य दिवस सामान्य सी बात हो गयी है। काफी संघर्ष के बाद मिली सुविधायो में कटौती कर दी गई है। निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठानो में महिला कर्मचारियो के लिये प्रसव अवकास अब सपना हो गया है। नौकरी की कोई सुरक्षा नही है। कभी भी कह दिया जाता है कि कल से ना आना और इन स्थितियो मे अब कर्मचारी को सहारा देने को कोई मजबूत हाथ नही दिखाई देता।
किसी उद्योगपति ने श्रमिको के संधर्ष के बिना अपने कारखानो के मजदूरो को कभी उनका वाजिब हक नही दिया। कांग्रेस के टिकट पर लोक सभा सदस्य रहे राम रतन गुप्ता अपने कारखाने लक्ष्मी रतन काटन मिल में केवल हरिजनो को नौकरी दिया करते थे और इसके द्वारा उन्होने राष्ट्रीय स्तर पर खूब वाहवाही लूटी परन्तु अपने कारखाने में उन्होने कभी श्रम कानून लागू नही किया और श्रमिको केा सदैव उनके विधिपूर्ण अधिकारो से वंचित रखते रहे। कम्यूनिस्ट नेता सन्त सिंह यूसुफ को उन्होन बुरी तरह पिटवाया था। समाजवादी गणेश दत्त बाजपेई को भी उन्होने काफी प्रताडित किया और उस सबके कारण उनके कारखाने मे श्रमिको को संधटित करना असम्भव सा काम था परन्तु कैलाश मिल में स्पिनिंग विभाग के एक मजदूर शिव किशोर ने अपने समाजवादी साथियों श्री एन0के नायर, श्री रघुनाथ सिंह एवम बद्री नारायण तिवारी के साथ मिलकर उनकी फैक्ट्री के मजदूरो को संधटित किया। इसके लिये उन्हे सोलह आपराधिक मुकदमे झेलने पडे। कई बार जेल गये और आर्थिक अभावो का सामना किया। अनवरत संधर्ष के बाद लाला राम रतन गुप्ता को संधटित मजदूर शक्ति के सामने झुकना पडा और उसके बाद उनकी फैक्ट्री मे कई दशक से अस्थायी चले आ रहे श्रमिको को स्थायी किया गया। सेवा निवृत्ति पर गे्रच्यूटी मिली और उनके वेतन से काटे गये भविष्य निधि के अंशदान को सरकारी खजाने मे जमा कराया गया।
अभी पिछले दिनो निजी क्षेत्र की एक फाइनेन्स कम्पनी ने अपने 1200 कर्मचारियो को हटा देने का तुगलगी फरमान जारी किया है। कर्मचारियो से जबरन त्याग पत्र लिये जा रहे है इनमें से कई उच्चाधिकारी भी है। जो अपने सेवाकाल के दौरान मन वचन और कर्म से टेªड यूनियन विरोधी रहे है परन्तु अब पछता रहे है प्रतिष्ठान में केाई टेªड यूनियन न होने के कारण सब के सब असहाय हो गये है, बेबस है। कोई उनके साथ खडे होकर उनकी व्यथा को स्वर देने के लिये सामने नही आ रहा है। सभी को मानना होगा कि टेªड यूनियन की अवधारणा उद्योग विरोधी नही है। टेªड यूनियन के द्वारा कर्मचारियो को अपनी दिन प्रति दिन की समस्याओं के समाधान के लिये संधटित ताकत मिलती है और उससे उद्योग के समुचित संचालन के लिये अनुशासन का माहौल भी बनता है ।