Sunday, 8 February 2015

बतकही अपने आप से


अधिकारिक रूप से आज साठ वर्ष पूरे हो गये और अब जीवन का संध्याकाल शुरू हो गया। मैनें कभी अपना जन्म दिन सेलिब्रेट नही किया और न कभी किसी ने मुझे जन्म दिन पर बधाई दी। मेरे घर वाले भी मेरा जन्म दिन भूल गये है लेकिन आज मैने मन ही मन अपने जन्म दिन को सेलिब्रेट करने के लिये अपने आपसे बातचीत की और निर्दयतापूर्वक अपने जीवन में झाॅकने की कोशिश की है। हाई स्कूल की परीक्षा पास करने  के बाद एक काटन मिल में मजदूर की नौकरी से मेरे कैरियर की शुरूआत हुई है। आज मै भारत सरकार का स्टैण्डिग काउन्सिल और टाटा, अशोक लेलैण्ड, श्रीरामग्रुप जैसे बडे कारपोरेट घरानो का वकील हॅू। मुझे कभी किसी के सामने घिघियाना नही पडा और न कभी व्यक्तिगत या सार्वजनिक स्तर पर शर्मिन्दगी का शिकार होना पडा है। अपने जीवन में पूरी तरह सुखी और संतुष्ट रहने का सौभाग्य मुझे मिला है।

आज मन ही मन मै भारतीय विद्यालय इण्टर कालेज भी चला गया। इस कालेज मे मैनें कक्षा 8 से कक्षा 12 तक की पढाई की है। मेरे जीवन का सबसे ज्यादा आत्मीयतापूर्ण समय इसी कालेज में बीता है। छात्रसंघ का महामन्त्री निर्वाचित होकर राजनीति का पहला पाठ मैनें यहीं पढा। आपात काल के विरोध मे सत्याग्रह करके पहली जेल यात्रा का सौभाग्य भी मुझे यही प्राप्त हुआ। महामन्त्री पद के लिये चुनाव प्रचार के दौरान माॅ सरस्वती जी की मूर्ति स्थापित करने का चुनावी वादा भी मैनें यही पूरा किया था। इस दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सम्पर्क ने मेरे जीवन को एक नई दिशा दी। अपने घर के लोगो के अलावा बाहरी लोग भी एक दम पारिवारिक होकर अपने दुख सुख के साथी हो सकते है इसका अहसास भी मुझे इन्ही लोगो ने कराया था। आज मुझे राम बहादुर राय, गोबिन्दाचार्य, मदन दास देवी, विनय कटियार, राजेन्द्र सिंह पुण्डीर, शिव प्रताप शुक्ल के साथ बिताये गये क्षण याद रहे है जब किसी भी मुद्दे पर उनके विचारो का प्रतिवाद करने में डर नही लगता था। संघटन के प्रति निष्ठा हमारी हैसियत का आधार हुआ करती थी। आर्थिक आधार पर हमारा मूल्यांकन नही किया जाता था। बिना कुर्सी मेज वाले मेरे घर मे जमीन पर बैढकर खाना खाने मे कभी इन लोगों ने कोई संकोच नही किया। मेरे पिता कटर समाजवादी थे परन्तु उस समय के नेताओ के निश्चल व्यवहार ने मुझे सदा सदा के लिये स्वयं सेवक बना दिया।
आपात काल के दौरान जेल मे बिताये गये दिन और उस दौरान की गई मूर्खताये भी याद आ रही है। आई.आई.टी. मे मेकेनिकल इन्जीनियरिंग विभागाध्यक्ष डा0वी.एल. धूपढ द्वारा रोज रोज पढने के लिये टोके जाने पर मैने उनसे कहा था कि पढना ही होता तो मैं जेल क्यों आता उस दिन मेरी बात सुनकर उनके चेहरे पर नाराजगी के नही चिन्ता के उभरे भाव जब कभी याद आते है तो मन भावुक हो जाता है और लगता है कि शुरूआत से ही ईश्वर की अनुकम्पा मेरे जीवन पर रही है और उसी कारण मुझे डा0 बी.एल. धूपढ जैसे सन्त पुरूषों के सानिध्य में रहने और उनके सामने मूर्खताये करने का अवसर मिला है। कक्षा 12 के विद्यार्थी को आई.आई.टी. के विभागाध्यक्ष से पढने का सौभाग्य हमारे जैसे मजदूर बाप के बेटे के लिये आपात काल की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। जेल के दौरान गाॅधी वध क्यो पढने का अवसर मिला।
सर्वोदयी नेता श्री विनय भाई ने गाॅधी पर लिखी कुछ चुनिन्दा पुस्तके भी पढने को दी और उसके कारण मेरे किशोर मन पर गाॅधी वध क्यो का कोई प्रभाव नही पडा और दिन प्रति दिन गाॅधी और उनके विचारो के प्रति मेरी श्रद्धा बढती रही। उन्ही दिनो मेरे मन मे समा गया था कि गाॅधी की हत्या एक विचार की हत्या का प्रयास था जो आधुनिक भारत का आधार है।
जेल जीवन के प्रभाव में मजदूरी करते हुये मैने विधि की शिक्षा पूरी की और फिर भय, असुरक्षा और आशंकाओ के बीच वकालत करने का निर्णय लिया और उसके कारण मेरे जीवन में नई प्रकार की सम्भावनाओं का सूत्रपात हुआ। कभी सोचा भी नही था कि एक अधिवक्ता के रूप में कभी स्वतन्त्र पहचान बन सकेगी। अंग्रेजी भाषा से मेरी दोस्ती नही थी  इसलिये मन ही मन मै अपने आपको दूसरो से कमतर मानता था और अदालत के सामने अपनी बात कहते हुये डरता रहता था लेकिन एक दिन अपने विरोध में बडी नफासत से अंग्रेजी मे बहस कर रहे एक विद्वान अधिवक्ता से हिन्दी में बहस करने और मुझे अंग्रेजी नही आती कहने के साहस ने मेरे आत्म विश्वास को तेजी से बढाया और फिर मैने मान लिया कि वकालत मे प्रतिष्ठा पाने के लिये अंग्रेजी भाषा में निपुण होने से ज्यादा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णयो की जानकारी जरूरी है और उसके बाद फिर मुझे पीछे मुडकर देखना नही पडा। कई महत्वपूर्ण मामलो में बतौर आरबीटेªटर मैने हिन्दी में एवार्ड पारित किये है जिन्हे न्यायालय द्वारा निष्पादित कराया गया है। अंग्रेजी भाषा में निपुण न होने के कारण मुझे कभी कोई दिक्कत नही हुई। मेरे सम्पर्क में आने वालो को मेरी देशी कार्यशैली प्रभावित करती है। 
जनवरी 2000 में तत्कालीन न्यायमन्त्री श्री शिव प्रताप शुक्ल ने शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) नियुक्त करके मेरे जीवन को एक नई दिशा दी। हलाॅकि नियुक्ति के समय तक मै इस पद के कार्य की प्रकृति और उसका पूरा नाम भी नही जानता था। कार्य के दौरान मैने पहली बार चार्ज 313 के बयान और धारा 27 की रिकवरी के नाम सुने थे लेकिन जल्दी ही मैने सब कुछ सीखा। विधिक ज्ञान में मै किसी की भी बराबरी नही कर सकता था इसलिये मैने दूसरा रास्ता चुना और अपने काम को एकदम निष्पक्ष, ईमानदार और पारदर्शी तरीके से करने की शुरूआत की। जिसे सभी ने बेवकूफी माना लेकिन मै विचलित नही हुआ। प्रचलित प्रलोभनो को ठुकराने की हिम्मत की। पक्षद्रोही साथियो से अभियुक्त के अधिवक्ता की तरह तैयारी करके जिरह करने की आदत डाली जिससे कुछ मित्रों को तकलीफ हुई परन्तु बाद में जब मायावती सरकार ने मुझे हटाया और उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद अखिलेश सरकार ने मुझे कार्य पर नही लिया तो कार्यकाल के दौरान की गयी बेवकूफियो को ही मेरी विशेषता माना गया। सराहा गया और इस सबके कारण अपने आपको मैने सदा सुखी, संतुष्ट पाया।
पूरी तरह सुखी संतुष्ट होते हुये भी आज मुझे चन्टई सीख न पाने का दुख सता रहा है। श्रम न्यायालय के समक्ष श्रमिक प्रतिनिधि (अधिवक्ता)  होने के नाते मैने अथर्टन मिल, काटन मिल कानपुर के 250 से ज्यादा निष्कासित किये गये श्रमिको की पैरवी करके मैने सेवायोजको की कार्यवाही को अवैधानिक घोषित कराया। सभी श्रमिक नौकरी में वापस लिये गये परन्तु इस काम का पुरस्कार मुझे नही मिला। उनदिनो मै श्रम न्यायालय में वकालत के साथ साथ एक फैक्ट्री में मजदूरी भी करता था। श्रमिक राजनीति के निर्दयी पेंचों का मुझे कोई ज्ञान नही था इसलिये मेरे द्वारा किये गये काम के पुरस्कार स्वरूप एक मारूति कार पाने में हिन्द मजदूर सभा के नेता श्री राम किशोर त्रिपाठी सफल हुये और मुझे उस कार्यक्रम में आमन्त्रित भी नही किया गया जबकि मुकदमे की पूरी सुनवाई के दौरान श्रम न्यायालय के समक्ष वे एक बार भी उपस्थित नही हुये थे। सेवायोजक गवाहो से जिरह से लेकर लिखित बहस लिखने तक का सारा काम मैने अकेले ही किया था।
अपने जीवन मे नकारात्मकता का भी मैने सामना किया है। मायावती सरकार द्वारा शासकीय अधिवक्ताओ को हटाये जाने का आदेश विधि विरूद्ध घोषित हो जाने के बाद अखिलेश सराकर ने अपने विधायको की सिफारिश पर पिक एण्ड चूज की नीति अपनाकर शासकीय अधिवक्ता नियुक्त किये। प्रदेश सरकार के रेशम मन्त्री और टेªड यूनियन मे मेरे अध्यक्ष रहे श्री शिव कुमार बेरिया ने मेरे सामने मेरे नियुक्ति के लिये मुख्यमन्त्री को पत्र लिखाया और उसी दिन उसे भेज देने का वायदा किया था। अन्य विधायको द्वारा की गई सिफारिशो पर नियुक्तियाॅ हो गई परन्तु मेरी नियुक्ति नही हुई। बाद मे पता चला कि मेरी नियुक्ति के लिये लिखाया गया पत्र मुख्यमन्त्री तक पहूॅचा ही नही। एक न्यायाधीश ने मेरे विरूद्ध प्रतिकूल आख्या भेजी। उनकी पत्नी का बैग रेलवे स्टेशन से चोरी चला गया था। वे चाहते थे कि उनकी पत्नी के बैग की चोरी का मुकदमा जी.आर.पी थाने मे मै अपने नाम से पंजीकृत कराऊ। मैने इन्कार कर दिया और उनके साथ अपने कार्यकाल के दौरान मै एक बार भी  बिना बुलाये मै उनके चैम्बर मे नही गया। कभी उनके घर नही गया लेकिन विधि उनसे उनके कार्य एवम आचरण के प्रति जिस निष्पक्षता एवम पारदर्शिता  की अपेक्षा करती है मैने उनके अधीनस्थ रहकर उनके सानिध्य में अपने कार्य एवम व्यवहार में उसी स्तर की निष्पक्षता एवम पारदर्शिता बरकरार रखी और मेरा विश्वास था कि मेरे पदीय कर्तव्यो के प्रति कोई भी रिपोर्ट मेरे पेशेवर आचरण को आधार बनाकर भेजी जायेगी। परन्तु ऐसा  नही हुआ। इन घटनाओं ने मुझे निराश किया। मेरा आत्म विश्वास पूरी तरह हिल गया। मुझे पहली बार ईमानदार निष्पक्ष पारदर्शी जीवन जीने की अपनी आदत से चिढ हुई। क्रिकेट की भाषा में कहू तो पेशेवर कुशलता के अतिरिक्त पिच की नमी और हवा के रूख की जानकारी न रखने का मलाल हुआ।
प्रैक्टिकल न हो पाना और क्षणिक लाभो से दूर रहने की आदत मेरे जीवन की सबसे बडी त्रादसी है लेकिन यही मेरे जीवन की कुल जमा पूॅजी भी है। मै निरन्तर आर्थिक अभावो से ग्रस्त रहा हूॅ लेकिन प्रैक्टिकल बनकर आर्थिक संसाधन जुटाने का कभी साहस नही जुटा सका। देश में कुछ ही लोग होगे जो शासकीय अधिवक्ता होने के पहले मेरी तरह मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते रहे हो। शासकीय अधिवक्ता होने के बाद पहली बार मुझे आढ हजार रूपये मिले। इस दौरान आर्थिक सम्रद्धि बढाने के अवसर भी मिलने लगे। परन्तु इन अवसरो ने मुझे कभी आकर्षित नही किया। शासकीय अधिवक्ता की नियुक्ति के तत्काल बाद पिता जी के मित्र प्रख्यात समाजवादी एवम वरिष्ठ अधिवक्ता श्री एन.के. नायर ने मुझसे अपने एक समाजवादी मित्र के पुत्र का नाम लेकर कहा था कि उसकी तरह न बन जाना। निरन्तर अपडेट रहना पैसा अपने आप आता है शायद उनकी इस बात से उसी दिन मै जान गया था कि सार्वजनिक पद पर बैढा हुआ व्यक्ति कितना भी चतुर और छिपाने में माहिर हो लेकिन छिपता कुछ नही,सबकुछ सार्वजनिक हो ही जाता है और फिर उनके बारे मे एक ओपेनियर बन जाती है जो कभी बदलती नही। इस कारण मै सदा डरता रहा और अपने आपको प्रचलित प्रलोभनो से बचाये रखा। मै मूलतः मजदूर बाप का मजदूर बेटा हूॅ इसलिये यदि बतौर शासकीय आधिवक्ता मेरा आचरण कहीं से भी अनुचित हो जाता तो लोग केवल मुझे नही मेरे खानदान पर भी अपनी टिप्पणी करते । इस सबके कारण मैने अपनी प्राइवेट वकालत बन्द नही की कुछ ज्यादा मेहनत की और ज्ञात साधनो से सम्मानजनक जीवन जीने लायक आय अर्जित करता रहा। कभी अज्ञात साधनो से आय बढाने की जरूरत महसूस नही हुयी। इस आदत के कारण सर्वजनिक प्रतिष्ठा तो बढी है लेकिन पत्नी बेटे और बेटी को कई प्रकार की भौतिक सुख सुविधायां से वंचित होना पडा लेकिन ईश्वर की कृपा से उन सबने भी कभी हमे गलत नही कहा और न प्रैक्टिकल बनने के लिये मजबूर किया।

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