राधा बिटिया,
जबसे बैंगलोर से वापस आया हूँ, तुम्हारी याद कुछ ज्यादा आती है। दिन में दो बार नेहा से और दिन में कई बार आन्टी से तुम्हारी बात करनी ही पड़ती है। तुमको बैंगलोर मे देखकर मैं बहुत खुश हुआ हूँ। गर्व होता है, तुम पर। मेरी बहादुर बिटिया ने अकेले अपने दम पर अपने कैरियर की दशा दिशा सँवार ली है। तीन दिन तुम्हारे साथ रहकर तुम्हें नये सिरे से जानने, समझने का अवसर भी मिला है। बिटिया मैंने तुम्हंे देखकर समझा है कि जीवन मे कैरियर ही सब कुछ नहीं होता। कैरियर की आपाधापी ने परिजनों का स्नेहमयी सानिध्य और माता पिता का लाड़, प्यार छीन लिया है। इसीलिए तुम अपने आपको अकेला पाती हो और उसी कारण परेशान और उद्वेलित हो। तुम्हारे इस अकेलेपन के अहसास के लिए मैं खुद भी जिम्मेदार हँू। बैंगलोर में जिस समय तुम कैरियर के लिए संघर्षरत थीं उस समय मैं तुमसे फोन पर बात तो करता था परन्तु शायद मैंने तुम्हें विश्वास नहींे दिलाया कि बिटिया जीवन के हर मोड़ पर मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम अकेली नहीं हो मेरी दो बिटिया है और उनमें से एक तुम। राधा तुम्हें अपनी बिटिया होने का अहसास मैं नही करा पाया, यह सरासर मेरी गलती है और मेरी इसी गलती के कारण तुम आज एक भावनात्मक भँवर में फँस गई गयी हो लेकिन राधा पहले जो हुआ सो हुआ अब तुम अकेली नहीं हो। दुनिया की कोई भी ताकत तुम्हारा अपमान नहीं कर सकती और न तुम्हें परेशान कर सकती है। देखो मैं तुमसे तुम्हारी शादी को लेकर बातें करता रहता था परन्तु तुम्हारे जवाब से संतुष्ट हो जाना मेरी गलती थी। बेटा मैं यहीं चूक गया और बिटिया मेरी एक भावनात्मक भँवर में घिर गई। बेटा तुम बहादुर हो, कुशाग्र हो अपनी मंजिल पहचानती हो, इसलिए उठो जागो और अपने आपको पहचानो। तुम वही राधा हो जिसके पास बैंगलोर में कोई अपना नहीं था किसी से परिचय नहीं था। उस समय तुम्हारे पास केवल बी.टेक. की डिग्री और अपनी हिम्मत के अलावा कुछ भी नहीं था। उस समय तुम वास्तव में अकेली थी परन्तु तुमने उस अकेलेपन और असहाय की स्थिति में नौकरी ढ़ँूढ़ी, उसमें प्रतिष्ठा कमाई, आज तुम्हारी कम्पनी तुम्हें पहचानती है। देखो कुछ ही दिन पहले तुम्हें प्रमोशन मिला, तुम्हारी सैलरी बढ़ी, आज तुम हमसे ज्यादा कमा रही हो। कम्पनी में सब लोग काम के प्रति तुम्हारी लगन और निष्ठा की कद्र करते है। तुमने हम सबको गौरवान्वित होने का अवसर दिया है। बेटा तुम एक सामान्य लड़की नहीं हो। याद करो बी.टेक. के अन्तिम वर्ष की परीक्षा के प्रथम दिन तुम्हें अपने पिता को खोने का दारुण दुख झेलना पड़ा था, उस दौरान घर में केवल आँसू थे, उस दौरान तुमने कुछ भी नहीं पढ़ा केवल रोते रहे लेकिन परीक्षा में शामिल हुए और पास हुए। तुम्हें याद हो या न याद हो मुझे याद है कि उन दिनों तुमने अपने आँसुओं को सुुखाकर अपनी माँ के आँसू पोछे और उन्हें विश्वास दिलाया था ” कि मम्मी पापा नही तो क्या ?, हम तो है “ राधा तुमने पूरी जिम्मेदारी के साथ बेटा बनकर अपने इस वायदे को साकार भी किया है। बेटा तुम अपनी माँ को उनकी बीमारी के कारण बैंगलोर से कानपुर हवाई जहाज से लाती हो। कभी सोचा है ? उन्हें कितना सुख मिलता है ? जो बेवकूफी तुम करने जा रही थी उसे क्या वे झेल पाती ? बेटा तुम्हारी जैसी बेटियों ने ही सिद्ध किया है कि शादी करना, घर बसाना और फिर देश की जनसंख्या में कुछ वृद्धि कर देना, जीवन का अन्तिम सनातन सत्य नहीं है। अपनी मेहनत, ईमानदारी और कुशलता के बल पर जीवन में अपनी एक अलग पहचान बनाना और उस पहचान के द्वारा अपने छोटे भाई, बहनों के लिए अनुकरणीय बनना जीवन का सही लक्ष्य है। बेटा राधा तुम अपने जीवन में इस लक्ष्य के करीब हो तुम्हारी दशा दिशा एकदम सही हैं। तुम पर मुझे गर्व है लेकिन पिछले दोे दिनों में तुमने मुझे निराश किया है। एक रूटीन जरूरत के लिए किसी के सामने रोज रोज रोना झगड़ना और फिर खुद को चोट पहुँचाना बुद्धिमानी नहीं है, एकदम बेवकूफी है। बेटा जो तुम सोच रहे हो वह सही हो सकता है लेकिन जीवन का अन्तिम सत्य नहीं है। मानकर चलो जो अपने मन का हो वह अच्छा है लेकिन जो अपने मन का न हो वो उससे ज्यादा अच्छा है क्योंकि जो अपने मन का नहीं होता वो भगवान के मन का होता है और भगवान कभी हमारे लिए बुरा नहीं करता इसलिए अपने आप पर, अपनी मेहनत पर और अपने परिजनों के आशीर्वाद पर विश्वास रखो। हम, नेहा हनी और आन्टी सदा तुम्हारे साथ है, बेटा तुम अकेले या अनाथ नही हो। हम सब तुम्हारे है, तुम हमारी हो। हम सब और तुम एक घर है, परिवार है और तुम्हारी हर समस्या हम सबकी समस्या है। हम सब मिलकर उसका साझा समाधान खोजेंगे और तुम्हें हर हालत में खुश रखेंगे। बेटा अब उठो और मन ही मन मेरे कन्धें पर अपना सर रखकर आँसू पोछ लो और तुरन्त फोन पर बात करो।
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