बिटिया तुम्हारी मृत्यु पर तुम्हारे स्कूल की एक सहेली ने मुझसे पूँछा है कि क्या निश्छल प्रेम का यही अन्त होता है ? मैंने उसे इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया लेकिन मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि निश्छल प्रेम का कोई रास्ता आत्महत्या की ओर नहीं जाता। सभी रास्ते त्याग, समर्पण और अनन्त सुख शान्ति की ओर ले जाते है। बिटिया अपना जीवन अपने प्यार के लिए न्योछावर करना निश्छल प्रेम की पराकाष्ठा है। किसी के प्यार में अपना जीवन न्योछावर करना बड़े साहस की बात है और उसके लिए हमें तुम पर गर्व है। अपने विद्यार्थी जीवन के मित्र के साथ तुम्हारी दोस्ती निकटता या अन्तरंगता एकदम निजी पवित्र और स्वाभाविक थी और हम सब लोगों ने उस पर कभी कोई आपत्ति नहीं की लेकिन पिछले दिनों उसके आचरण ने तुम्हें किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में पहुँचा दिया था और किंकर्तव्यविमूढ़ता में तुमने हमें अनसुना किया। तुम्हें समझा न पाने की खीझ में मैंने तुमसे कुछ ही दिन पहले कहा था कि जिसके लिए तुम मरना चाहती हो उसे तुम्हारे मरने के बाद कोई फर्क नहीं पड़ेगा बल्कि राहत महसूस करेगा। मेरी इस बात की संवेदना तुमने समझी थी इसीलिए तुमने अपने सुसाइड नोट में इसका जवाब दिया और पूँछा है कि जब कोई साँस ही बन जाये तो क्या उसके बिना जिया जा सकता है ? हम सबके पास तुम्हारी जिज्ञासा का समाधान था, तुम्हारी सहेलियों ने तुम्हें अपने अपने तरीके से बताया भी था परन्तु तुमने सबको अनसुना किया। यह सच है कि 6 मई को तुमने अपना निर्णय हमें बता दिया था परन्तु तुम्हारी बातों में छिपे तुम्हारे निर्णय को समझ न पाना एक पिता के नाते मेरी सबसे बड़ी असफलता है। बिटिया तुम मुझमें अपना पिता खोज रहीं थी और मैं तुम्हें अपनी बिटिया की सहेली मानकर तुमसे बातें करता रहा और इसी कारण एक पिता के नाते मैं तुम्हारी असुरक्षा और अकेलेपन को समझ नही सका। नेहा कई दिनों से तुम्हें बँगलौर से कानपुर लाने के लिए कह रही थी लेकिन मुझे अपने आप पर विश्वास नही था कि तुम हमारी बात मान लोगी। दाह संस्कार के समय तुम्हारे आफिस के लोगों ने मुझे जो कुछ बताया, उसने मुझे झकझोर दिया। तुम्हारा मुझपर असीम विश्वास था लेकिन मैंने तुम्हें तुम्हारी असुरक्षा और अकेलेपन से निजात दिलाने के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किया और तुम्हें सम्मानजनक जीवन की सुरक्षा का विश्वास नहीं दिला पाया और यह पीड़ा अब मुझे जीवन भर सतायेगी।
बिटिया तुम अपने छोटे भाई बहनों और सहकर्मियों के लिए आदर्श थी और सदा रहोगी। तुमने केवल अपनी मेहनत और कुशलता के बल पर बँगलौर जैसे शहर में अपनी पहचान बनायी। अपने आपको आत्मनिर्भर बनाया। भाई भाभी से व्यथित अपनी माँ को अपने साथ बँगलौर ले आयी, वृद्धावस्था की बीमारियों के दौरान उनकी सेवा शत्रुषा की और उनकी गरिमा के अनुकूल उन्हें भरपूर सुख, सुविधायें उपलब्ध करवायी। बिटिया तुमने नौकरी के लिए कई साक्षात्कार दिये थे और कई रिजेक्शन भी झेलें थे परन्तु उन दिनों तुम्हारा विश्वास कभी कमजोर नहीं हुआ। तुमने हिम्मत के साथ अप्रिय स्थितियों का सामना किया और फिर तुम्हारा अभीष्ट तुम्हें प्राप्त भी हुआ। नौकरी में सफलता तुम्हें तुम्हारे प्रबल आत्मविश्वास और मेहनत के बल प्राप्त हुई थी इसलिए हम सब सोच भी नहीं सकते थे कि कोई एक लड़का तुम्हारे लिये जीवन का अन्तिम सत्य बन जायेगा और उसके प्रति अपने समर्पण के लिए तुम अपनी माँ को भूल जाओगी, अपनी माँ के लिए तुम्हारी चिन्तायें खत्म हो जायेंगी। अपना जीवन न्योछावर करने के पूर्व तुमने एक बार भी अपनी माँ के बारे में नहीं सोचा ? जबकि सुबह 4 बजे तुम्हारी नेहा से बात भी हुई थी और तुमने उसे कुछ भी अहसास नहीं होने दिया। बिटिया तुम्हारे पोस्ट मार्टम से दाह संस्कार के बीच और फिर बँगलौर से कानपुर के लिए चलने के दौरान बहुत कुछ ऐसा घटित हुआ जिससे पता चला कि वास्तव में तुम अकेली थी, असुरक्षा बोध से ग्रसित थी और हम सब तुम्हारी भावनात्मक परिस्थितियों और तुम्हारे मन को समझे बिना ज्ञान गंगा बहा रहे थे। कर कुछ नहीं रहे थे इसलिए अपनी परिस्थितियों, सोच और समझ में तुमने जो निर्णय लिया उसके लिए मैं तुम्हें कतई दोषी नहीं मानता। तुम निर्दोष हो। दोषी तो मैं हूँ जो 8 अप्रैल 2016 से 6 मई 2016 के बीच केवल बातें करता रहा। अपनी बिटिया और उसकी व्यथा को समझ नहीं पाया और पिता के नाते अपनी बिटिया को सर रखकर रोने के लिए अपना कन्धा भी उपलब्ध नहीं करा सका। बिटिया रानी तुम मुझे क्षमा करना, तुम्हारा शरीर जलकर राख हो गया है लेकिन तुम्हारी आत्मा, तुम्हारी भावनायें हमारे आस पास है। हम सबके लिए तुम जिन्दा हो और जिन्दा रहोगी। भगवान तुम्हारी आत्मा को सुख शान्ति प्रदान करें।
भाई साहब आल ने बिलकुल सही लिखा की एक भारतीय सामाजिक के एक व्यक्ति होते हुए एक बेटी के कस्ट और उसके लिए कुछ नहीं कर लाये एक सवाल पुरुष प्रधान समाज से रह जाता है की प्यार मर किसी प्रकार की अनबन में आखिर महिला ही क्यों अधिकतर अपना जीवन समाप्त कर लेती है यही इस्थिति विवाह के बाद सम्बन्धों पर भी है । मै अपने जीवन का अनुभव साझा करता हु ऐसे में सिर्फ ईशवर प्रेम वो भी तनाव के समय कृष्णा भक्ति को अपनाना चाहिए । वहुत दुःख हुआ बिटिया की आत्महत्या सुन कर ।
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