Tuesday, 6 December 2016

माननीय मुख्य न्यायाधिपति

सेवा में,                                                                        दिनांकः 06.12.2016
           माननीय मुख्य न्यायाधिपति

           इलाहाबाद उच्च न्यायालय

           इलाहाबाद

      विषयः माननीय अधीनस्थ न्यायालयों के समक्ष परिवाद के मामलों में दण्ड                  प्रक्रिया संहिता की धारा 88, धारा 205 एवं धारा 41 ए का अनुपालन                   न किये जाने के सन्दर्भ में 
महोदय,
         
          माननीय सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न प्रदेशों के उच्च न्यायालयों और आप श्रीमान जी ने कई बार प्रतिपादित किया है कि केवल प्रथम सूचना रिपोर्ट में नामजद होने के कारण किसी को गिरफ्तार नही किया जायेगा। गिरफ्तारी के लिए सुसंगत विश्वसनीय साक्ष्य का उपलब्ध होना आवश्यक है। इन विधिक सिद्धान्तों को केवल इस आशय से प्रतिपादित किया गया है कि युक्तियुक्त कारण के बिना किसी व्यक्ति को मात्र नामजद होने के कारण जेल भेजकर उसकी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और मानवीय गरिमा का हनन नही किया जायेगा परन्तु अधीनस्थ न्यायालयों के समक्ष आपराधिक परिवाद के मामलों में कोई सुस्पष्ट विधि न होने के बावजूद तलबी आदेश पारित होने के तत्काल बाद प्रथम नियत तिथि पर गैर जमानती वारण्ट जारी करना और फिर अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष उपस्थित व्यक्ति को परिवाद में अधिरोपित आरोपों के विरुद्ध गुण दोष के आधार पर अपना पक्ष प्रस्तुत करने का कोई अवसर दिये बिना अभिरक्षा में लेकर जेल भेज देना आम बात हो गई है। अधिवक्ता होने के नाते मेरा स्पष्ट मत है कि परिवाद के मामलों में तलबी आदेश के अनुपालन में न्यायालय के समक्ष उपस्थित व्यक्ति को अभिरक्षा में लेने और फिर उसे जेल भेज देने का कोई प्रावधान विधि में नही है। इस प्रक्रम पर विधि उससे अपेक्षा करती है कि वह परिवाद की सुनवाई के दौरान अपनी नियमित उपस्थिति सुनिश्चित कराने के लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 88 के तहत प्रतिभू सहित या रहित बन्धपत्र निष्पादित करे। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 205 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि न्यायायल अभियुक्त को व्यैक्तिक हाजिरी से अभिमुक्त करके उसे  अपने अधिवक्ता द्वारा हाजिर होने की अनुज्ञा दे सकता है।
        
            श्रीमान जी आपके संज्ञान में है कि आम लोगों को अकारण गिरफ्तारी से बचाने के लिए अधिनियम संख्या 5 सन् 2009 के द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता में धारा 41 ए, बी, सी, डी प्रतिस्थापित की गई है और उसमें प्रावधान है कि पुलिस अधिकारी उन सभी मामलोें में, जहाँ धारा 41 की उपधारा (1) के प्रावधान के अधीन व्यक्ति की गिरफ्तारी अपेक्षित है, उस व्यक्ति, जिसके विरुद्ध युक्तियुक्त परिवाद किया गया है या विश्वसनीय सूचना प्राप्त की गयी है या युक्तियुक्त सन्देह विद्यमान है कि उसने संज्ञेय अपराध किया है को अपने समक्ष या ऐसे अन्य स्थान पर जैसा नोटिस में विनिर्दिष्ट किया जाये, उपसंजात होने का निर्देश देते हुये नोटिस जारी करेगा और इसमें यह भी प्रावधान है कि जहाँ ऐसा व्यक्ति नोटिस का अनुपालन करता है तब उसे नोटिस में वर्णित अपराध के सम्बन्ध में गिरफ्तार नही किया जायेगा।
           
          यह कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 88, धारा 205 और धारा 41 ए को संयुक्त रूप से पढ़ने पर स्पष्ट होता है कि परिवाद के मामलों में समन/वारण्ट व्यक्ति विशेष को गिरफ्तार करने के लिए नही बल्कि माननीय न्यायालय के समक्ष उसकी उपस्थिति सुनिश्चित कराने के लिए जारी किये जाते है और यदि समन/वारण्ट के अनुपालन में व्यक्ति विशेष न्यायालय के समक्ष स्वयं या अपने अधिवक्ता के माध्यम से उपस्थित होता है तो न्यायालय उस व्यक्ति से अपेक्षा कर सकता है कि वह न्यायालय के समक्ष परिवाद की सुनवाई के दौरान अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए प्रतिभू सहित या रहित बन्धपत्र निष्पादित करे। इन दोनों धाराओं में या दण्ड प्रक्रिया संहिता की अन्य किसी धारा में उपस्थित व्यक्ति को अभिरक्षा में लेकर जेल भेज देने का कोई प्रावधान नहीं है।          
       यह कि अधिवक्ता के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत के समय आपराधिक परिवाद के मामलों में तलबी आदेश के अनुपालन में मैंने कई बार तलब किये गये व्यक्ति को माननीय न्यायालय के समक्ष आत्म समर्पण कराये बिना उसकी तरफ से दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 88 के तहत प्रार्थनापत्र प्रस्तुत करके प्रतिभू सहित या रहित बन्धपत्र की राशि निर्धारित करने का अनुरोध किया है जिसे माननीय पीठासीन अधिकारियों द्वारा स्वीकार किया जाता रहा है। मेरे अपने संज्ञान में ऐसा कोई मामला नही है जिसमें तलबी आदेश के अनुपालन में माननीय न्यायालय के समक्ष उपस्थित व्यक्ति को जेल भेजा गया हो परन्तु वर्तमान दौर में तलबी आदेश के तत्काल बाद प्रथत नियत तिथि पर गैर जमानती वारण्ट जारी होना और फिर कथित अभियुक्त को जेल भेज देना आम बात हो गई है जो निश्चित रूप से न्यायसंगत नही है।    
        
           यह कि आपके भी संज्ञान में है कि सिविल प्रकृति के विवादों में अनुचित दबाव बनाने के दुराशय से फर्जी घटनाओं के आधार पर आपराधिक परिवाद दाखिल करने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है और इसी कारण माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष तलबी आदेशों के विरुद्ध उसे अपास्त कराने के लिए बड़ी संख्या में याचिकायें लम्बित है। जो लोग आर्थिक आधारांे पर या अन्य किसी परिस्थिति में अपने विरुद्ध पारित तलबी आदेश के विरुद्ध उसे अपास्त कराने के लिए माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दाखिल नही कर पाते, उनको किसी युक्तियुक्त कारण के बिना जेल जाने और जेल में रहकर शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना झेलने के लिए अभिशप्त होना पड़ता है। श्रीमान जी अपने संविधान का अनुच्छेद 21 गारण्टी देता है कि किसी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन या उसकी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता से वंचित नही किया जायेगा। श्रीमान जी मेरी अपनी दृष्टि में किसी प्रार्थनापत्र (परिवाद) में अधिरोपित आरोपों के आधार पर किसी व्यक्ति को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर दिये बिना अभिरक्षा में लेकर जेल भेज देना उसे उसकी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता से वंचित करने के समान है और इस प्रकार की कार्यवाही करने का कोई प्रावधान अपनी विधि में नही है।   
     
           श्रीमान जी अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए मैं आपका ध्यान माननीय ए.सी.एम.एम. द्वितीय कानपुर नगर के समक्ष लम्बित निम्नांकित दो परिवादों की तरफ आकृष्ट करना चाहता हूँ। दोनों आपराधिक परिवाद माननीय ए.सी.एम.एम. द्वितीय कानपुर नगर के समक्ष दिनांक 26.07.2016 को दाखिल किये गये हैं और दोनों वादो में क्रमशः दिनांक 20.09.2016 एवं दिनांक  26.09.2016 को लगभग एकसमान आदेश पारित किये गये है। उनमें कहा गया है कि .................... भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध के आरोप में आहूत किया जाए, परिवादी पैरवी अविलम्ब करे, सूची गवाहान पेश हो, पत्रावली वास्ते हाजिरी अभियुक्त दिनांक      ...............को पेश हो।
         
           श्रीमान जी परिवाद संख्या 5215 सन् 2016 में माननीय ए.सी.एम.एम. द्वितीय कानपुर नगर द्वारा पारित आदेश दिनांक 20.09.2016 के अनुसार विपक्षीगणों पर आरोप लगाया गया है कि विपक्षीगणों ने ”प्रार्थी से आराजी नं0 585 रकबा 7 बीघा 13 बिस्वा स्थित मकसूदाबाद कानपुर नगर रमेश चन्द्र दीक्षित व प्रदीप दीक्षित ने बतौर बयाना तीन लाख रुपया एक माह पहले लिये थे और उक्त जमीन का अपने आपको मालिक बताया था तथा जमीन से सम्बन्धित कागजात भी दिखाये थे, इनके साथ राम किशोर दीक्षित व गुड्डू दीक्षित भी थे। प्रार्थी ने उक्त जमीन रमेश चन्द्र शुक्ला निवासी काशीपुर कानपुर देहात की है। प्रार्थी को धोखे में रखकर बेईमानी से फर्जी कागजात दिखाकर प्रार्थी से तीन लाख रुपया ले लिया है। प्रार्थी ने रमेशचन्द्र दीक्षित व प्रदीप दीक्षित से कहा कि यह जमीन तो रमेश चन्द्र शुक्ला की है। आप लोगों ने मुझे धोखा देकर व फर्जी कागजात दिखाकर तीन लाख रुपये ले लिये मेरे रुपये पैसे वापस करो, तो उपरोक्त लोग रुपया वापस करने के लिए हीलाहवाली करने लगे। दिनांक 15.07.2016 केा समय करीब 4 बजे दिन को उपरोक्त चारों लोग व एक व्यक्ति अज्ञात एम.आई.जी. तिराहा पनकी मे मिले सभी लोग स्कार्पियो गाड़ी बैठे थे, मैंने फिर अपने तीन लाख रुपया माँगा तो सभी लोगों ने जबरिया मुझे गाड़ी में बैठाया और भौती बाईपास ले गये और मुझे दो घण्टे तक बन्धक बनाये रखा तथा सभी लोग भद्दी भद्दी गालिया दे रहे थे तथा कह रहे थे कि यदि कभी भी रुपया वापस करने की बात की तो जान से मार डालेंगे।“
        
          यह कि परिवाद संख्या 5308 सन् 2016 में माननीय ए.सी.एम.एम. द्वितीय कानपुर नगर द्वारा पारित आदेश दिनांक 26.09.2016 के अनुसार विपक्षीगणों पर आरोप लगाया है कि विपक्षी कि ”प्रार्थिनी के पति के नाम पाँच बीघा जमीन है व बाहर रहते हैं। वर्तमान समय में प्रार्थिनी अपने देवर राम आसरे के साथ ग्राम बहेड़ा पनकी कानपुर में रह रही है। विपक्षीगण 1 लगायत 9 प्रार्थिनी के जमीन पर नजर गढ़ाये हैं क्योंकि उपरोक्त लोगों का आये दिन का यही काम है गरीब आपसी की जमीन पर जबरिया कब्जा करके बेचना और रुपया कमाना। विपक्षीगण दिनांक 20.07.2015 को समय करीब 1 बजे दिन प्रार्थिनी के घर बहेड़ा आये पहले तो प्रार्थिनी को गाली देकर पूँछा राम आसरे कहा हैं तो प्रार्थिनी ने कहा शहर गये हैं सभी लोग बारी-बारी से प्रार्थिनी के साथ छेड़खानी करने लगे तब प्रार्थिनी ने विरोध किया तो सभी लोगो ने प्रार्थिनी को मारा पीटा, प्रदीप दीक्षित ने अपने जेब से सादा स्टाॅम्प व सादे कागज निकाले और कहा इसमें दस्तखत कर दे, प्रार्थिनी जब दस्तखत करने से मना किया तो हिमांशु गुप्ता ने तमंचा निकालकर कहा दस्तखत कर नही गोली मार दूँगा। बाकी लोग यह कह रहे थे, यदि यह दस्तखत न करें तो जान से मार दो, प्रार्थिनी ने डरकर दस्तखत कर दिए तब सभी लोग कहने लगे तेरी लाखों की जमीन अब हमारी हो पायेगी।। उसके बाद उनमें 3 लोगों ने प्रार्थिनी के हाथ व बाल पकड़ कर घसीटते हुए खेतों की तरफ सार्वजनिक स्थान पर ले गये और सभी ने प्रार्थिनी के गाल व नाजुक अंग पकड़कर अश्लीलता के साथ छेड़-छाड़ की तथा प्रार्थिनी के कपड़े भी फाड़ दिए जब प्रार्थिनी चिल्लाई तो बहुत से लोगों ने आकर प्रार्थिनी को बचाया उपरोक्त सभी लोग गाली गलौच व तरह-तरह की धमकी देते हुए चले गये। जब प्रार्थिनी का देवर राम आसरे आया तब प्रार्थिनी पूरी घटना बात दी, और थाना पनकी गई और पूरी घटना बताई, किन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई तब उच्चाधिकारियों को पत्र प्रेषित किया किन्तु फिर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। अतः यह परिवाद दाखिल किया गया।“
         
          यह कि उपर्युक्त दोनों परिवादों में प्रश्नगत घटनायें एक ही थाना क्षेत्र पनकी कानपुर नगर के अन्तर्गत घटित बताई गई है और एक परिवाद में खुद राम आसरे परिवादी है और दूसरे में उनकी भाभी परिवादी है। दोनों परिवादों में रमेश चन्द्र दीक्षित, प्रदीप दीक्षित और गुड्डू दीक्षित अभियुक्त बताये गये है। इन दोनों परिवादो में तलबी आदेश पारित होने के तत्काल बाद नियत प्रथम तिथि पर कथित अभियुक्तों के विरुद्ध गैर जमानती वारण्ट जारी किया गया है और उनके अनुशरण में गिरफ्तार करके माननीय न्यायालय के समक्ष उपस्थित किये गये व्यक्ति को अभिरक्षा में लेकर जेल भेज दिया गया है।
         
          श्रीमान जी फर्जी कथानक के आधार पर परिवाद दाखिल करके आम लोगों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के हनन की बढ़ती घटनाओं पर आपका ध्यान आकृष्ट कराने के लिए उपर्युक्त दोनों परिवाद पर्याप्त है और इसके द्वारा मैं आप श्रीमान जी को बताना चाहता हूँ कि परिवाद के मामलों में अधीनस्थ न्यायालयों के समक्ष जारी प्रक्रिया न्यायसंगत नहीं है और उसके द्वारा आम लोगों की मानवीय गरिमा और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का हनन किया जा रहा है इसलिए स्पष्ट किया जाना चाहिए कि ”परिवाद के मामलों में तलबी आदेश के बाद जारी समन/वारण्ट के अनुपालन में माननीय न्यायालय के समक्ष उपस्थित किसी व्यक्ति को परिवाद के विरुद्ध उसके गुण दोष पर अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर दिये बिना अभिरक्षा में लेकर जेल भेज देना क्या न्यायसंगत है?“ और यदि हाँ तो किसी व्यक्ति को जेल जाने से बचने के लिए माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दाखिल करने के अतिरिक्त क्या उपचार उपलब्ध है?
      
         अतः आप श्रीमान जी से प्रार्थना है कि उपर्युक्त सन्दर्भ में विचार करके आवश्यक निर्देश जारी करने की कृपा करें ताकि उपचार के अभाव में कोई व्यक्ति अपने आपको असहाय महसूस न करे।    
     
 आदर सहित                                                                  ( कौशल किशोर शर्मा )
                                                                                                  एडवोकेट    

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