पिछले दिनों इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को अपराधियों और माफियाओं पर शिकन्जा कसने के लिए सख्त कदम उठाने के निर्देश दिये है। इसके पहले भी कई बार इस आशय के निर्देश जारी किये जा चुके है जिन्हें कोई गम्भीरता से नही लेता है। माना जाता है कि इस प्रकार की बातें प्रशासनिक औपचारिकता के लिए की जाती है। सत्तारूढ़ दल के लोग जब विपक्ष में होते है तब उन्हें मालूम रहता है कि पुलिस स्टेशन पर थानाध्यक्ष की तैनाती के लिए नीलामी होती है इसीलिए हर दरोगा अपराधियों के साथ साँठ गाँठ करके अवैध कमायी करता है। अदालत में सरकारी वकील भी मैनेज होता है। कई बार उसकी नियुक्ति किसी बड़े अपराधी की सिफारिस पर होती है। उसको इस पद पर अपने स्थायित्व के लिए किसी न किसी विधायक या सांसद की कृपा चाहिये होती है। मायावती और अखिलेश के राज में थानों पर दरोगाओं की तैनाती और सरकारी वकीलों की नियुक्ति में राजनैतिक दखलन्दाजी के आरोपों की पुष्टि उच्च न्यायालय ने भी की है परन्तु जैसे ही विपक्षी दल के नेता सरकार में मन्त्री हो जाते है, उनका यह आत्मज्ञान खुदबखुद विलुप्त हो जाता है और उन्हें पुलिसकर्मियों एवं अभियोजन की शिकायत में अपनी सरकार के विरुद्ध षड़यन्त्र की बू आने लगती है। आखिर क्यों नही सरकारें अपनी ज्ञात आय पर जीवनयापन करने वाले दरोगाओं की तैनाती थानों पर करती है ? सबको पता है कि थाने में आम आदमी की शिकायत पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नही की जाती। प्रत्येक थाने में मादक पदार्थों के नब्बे प्रतिशत मुकदमों में आम लोगों को फर्जी फँसाया जाता है। धारा 50 का अनुपालन कभी नही होता। हत्या और अपहरण जैसे मामलों में भी दबिश देने के लिए पीड़ित परिवार को ही परेशान किया जाता है। वास्तव में कानून व्यवस्था के प्रति आम लोगों का विश्वास बढ़ाने और बनाये रखने के लिए लोगों को भरोसा दिलाना होगा कि अब इस सरकार के राज में थाने मैनेज नही होंगे और न अदालत के समक्ष आरोपियों के विचारण के दौरान सरकारी वकील के स्तर पर किसी गवाह को रोज रोज बुलाकर बिना गवाही कराये वापस करके प्रताड़ित नही किया जायेगा और न किसी को पक्षद्रोेही होने के लिए मजबूर किया जायेगा।
Monday, 22 May 2017
Saturday, 13 May 2017
खादी को बढ़ावा, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार
कक्षा 6 में पढ़ाया जाता था कि अंग्रजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई के दौरान खादी का प्रचार, प्रसार और विदेशी कपड़ों का होलिका दहन आजादी के दीवानों का महत्वपूर्ण हथियार हुआ करता था। इस हथियार के माध्यम से हम लोग अंग्रेजों द्वारा देशी उद्योग धन्धों को नेस्तनाबूत करने की अर्थनीति का विरोध करते थे। पूरा यूरोप विशेषकर इग्लैण्ड अपने कपड़ों की जरूरत के लिए हम पर निर्भर था लेकिन अंग्रेजी राज में ढ़ाका की मलमल सहित हमारा सब नष्ट कर दिया गया और विदेशी उत्पादों का बोलबाला हो गया। 70 साल के अनवरत प्रयास के बाद आज हम अपनी सैन्य जरूरतों के लिए विदेशी उत्पादों के मोहताज नही है। हमारी आर्डनेन्स फैक्ट्रियाँ उच्च कोटि की राइफलें, पिस्टल, गोला बारूद, पैराशूट आदि सैन्य साजो सामान खुद निर्मित करती हैं। इन फैक्ट्रियों द्वारा भारतीय सेना को घटिया अस्त्र शस्त्र की आपूर्ति नही की जा सकती है। इतनी विशेषताओं के बावजूद न मालूम क्यों ? भारत सरकार ने इन फैक्ट्रियों में उत्पादित 142 आइटम विदेशी बाजार से खरीदने का निर्णय ले लिया और एक नये आदेश के तहत 50 साल से ज्यादा उम्र के कर्मचारियों को उनकी परफार्मेन्स का आधार बनाकर छँटनी करने का भी निर्णय लिया है अर्थात राष्ट्रीय वस्त्र निगम की मिलो की तरह इन फैक्ट्रियों को भी बन्द करने की तैयारी की जा रही है। आर्डनेन्स फैक्ट्रियाँ हमारी आत्मनिर्भरता का प्रतीक हैं। विदेशी हथियारों के लिए अपनी आत्मनिर्भरता को खत्म करना निश्चित रूप से आत्मघाती निर्णय है। अच्छी तरह समझ लिया जाना चाहिए कि किसी भी विदेशी पूँजीपति का भारत की सुरक्षा से कोई सरोकार नही है, उसका सरोकार केवल और केवल अपने फायदे से होता है और वो किसी विषम परिस्थिति में हमारी सैन्य जरूरत के समय हमारी अपेक्षानुसार अपेक्षित साजो सामान की आपूर्ति रोक भी सकता है जबकि आर्डनेन्स फैक्ट्रियाँ विषय परिस्थितियों में रात दिन उत्पादन करके सेना की जरूरतें पूरी करेंगी और उससे देश के मान सम्मान की रक्षा होगी। पिछले 35 वर्षो में कोई नया कारखाना कानपुर में नही लगा है जबकि इस दौरान अनेकों कारखाने खुद सरकारी नीतियों के कारण बन्द हुये है। किसी भी कारण यदि आर्डनेन्स फैक्ट्रियों को बन्द करने में सरकार सफल हो गई तो कानपुर को मेट्रोपोलिटी सिटी की जगह एक बड़ा कस्बा बनने से भी कोई रोक नहीं पायेगा। हमारे बच्चे हमसे पूँछेंगे कि जिस आर्थिक आत्मनिर्भरता की रक्षा के लिए आजादी के दीवाने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करके चर्खे से बनी खादी को पहनने पर जोर दिया करते थे उन देशी उद्योग धन्धों की रक्षा के लिए आपने क्या किया ? हमारे पास इसका कोई उत्तर नही होगा और फिर हम सब पछतायेंगे लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होगी।
Thursday, 11 May 2017
जागो कनपुरियो जागो
कानपुर के औद्योगिक स्वरूप को नष्ट करने का द्वितीय चरण प्रारम्भ हो चुका है। पिछले दिनों कानपुर की जान शान आयुध निर्माणियों के उत्पादों को ग्लोबल बाजार से खरीदने का नीतिगत निर्णय ले लिया गया है अर्थात अब भारतीय सेना अपने देश में बने हथियारों पर नही, विदेशी हथियारों पर निर्भर होगी और उसका लाभ केवल और केवल निजी पूँजीपतियों को मिलेगा। इसके पहले स्वदेशी काॅटन मिल, लक्ष्मी रतन काॅटन मिल, अथर्टन वेस्ट मिल, म्योर मिल और विक्टोरिया मिल में भारतीय सेना के लिए बनने वाली कैनवास (त्रिपाल) को खुले बाजार से खरीदने का निर्णय लिया गया था। भ्रष्टाचार के दावानल में निजी क्षेत्र के उद्योगपतियों के सामने सरकारी अधिकारी नही टिक सके और इन मिलो की कैनवास रिजेक्ट की जाने लगी। हलांकि इन मिलो की रिजेक्टेड कैनवास निजी क्षेत्र के मालिकों ने औने पौने दाम में खरीदी और वही कैनवास निजी क्षेत्र द्वारा की गई आपूर्ति खरीद ली गई। निजी क्षेत्र के उद्योगपतियों को केवल अपने फायदे से मतलब होता है और वे अपने उत्पादों को बेचने के लिए हर तरह के हथकण्डें अपनाते है इसलिए किसी भी देश को सैन्य जरूरतों के लिए किसी विदेशी उत्पाद पर निर्भर नही रहना चाहिए। हम सबको याद है कि कारगिल युद्ध के समय बोफोर्स तोप के गोले अपने देश को मँहगें दामों पर खरीदना पड़ा था। क्योंकि कारगिल युद्ध में केवल बोफोर्स तोप कारगर थे और उसके गोले हम नही बना पाते थे। इस घटना से हमने कुछ नही सीखा और एक बार फिर हथियारों के मामलों में विदेशी निर्माताओं पर अपनी निर्भरता बढ़ाने को लालाइत हैं। मोदी सरकार अपनी शुरुआत से मेक इन इण्डिया की बात करती रही है परन्तु न मालूम क्यों? आयुध निर्माणियों के उत्पादों को कमतर मानकर हथियारों के मामलों में विदेशो पर निर्भरता बढ़ा रही है जो किसी भी दशा में देश हित में नही है। हम सब जानते है कि गुणवत्ता के मामले में कनपुरिया आयुध निर्माणियों का पैराशूट, पिस्टल, राइफल और तोप के गोले किसी भी विदेशी उत्पाद से ज्यादा बेहतर हैं। सबको पता है कि ग्लोबल मार्केट में स्वस्थ प्रतियोगिता नही होती विदेशी उत्पादक हमारे अधिकारियों की निष्ठा खरीद लेते हैं। आये दिन किसी न किसी विदेशी खरीद में राजनेताओं को दलाली देने की शिकायतें सुनायी पड़ती है ऐसी दशा में भ्रष्टाचार के कारण विदेशी उत्पादकों के सामने आयुध निर्माणियों के अधिकारी कहीं ठहर नही पायेंगे और बेहतर होते हुए भी आयुध निर्माणियों का उत्पाद रिजेक्ट किया जायेगा। यदि केन्द्र सरकार को लगता है कि आयुध निर्माणियों का उत्पाद की गुणवत्ता सैन्य आवश्यकताओं के अनुरूप नही है तो उन्हें मेक इन इण्डिया अभियान के तहत इसकी गुणवत्ता सुधारने का युद्ध स्तर पर प्रयास करना चाहिए परन्तु किसी भी दशा में इनके उत्पादों को ग्लोबल मार्केट में विदेशी उत्पादकों से प्रतिस्पर्धा के लिए छोड़ देना न्यायसंगत नहीं है। देश की एकता, अखण्डता और सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि भारत अपनी सैन्य आवश्यकताओं के लिए किसी दूसरे देश पर निर्भर न हो। कनपुरियो जागो और समझो क्या हो रहा है ?
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