Thursday, 11 May 2017

जागो कनपुरियो जागो


कानपुर के औद्योगिक स्वरूप को नष्ट करने का द्वितीय चरण प्रारम्भ हो चुका है। पिछले दिनों कानपुर की जान शान आयुध निर्माणियों के उत्पादों को ग्लोबल बाजार से खरीदने का नीतिगत निर्णय ले लिया गया है अर्थात अब भारतीय सेना अपने देश में बने हथियारों पर नही, विदेशी हथियारों पर निर्भर होगी और उसका लाभ केवल और केवल निजी पूँजीपतियों को मिलेगा। इसके पहले स्वदेशी काॅटन मिल, लक्ष्मी रतन काॅटन मिल, अथर्टन वेस्ट मिल, म्योर मिल और विक्टोरिया मिल में भारतीय सेना के लिए बनने वाली कैनवास (त्रिपाल) को खुले बाजार से खरीदने का निर्णय लिया गया था। भ्रष्टाचार के दावानल में निजी क्षेत्र के उद्योगपतियों के सामने सरकारी अधिकारी नही टिक सके और इन मिलो की कैनवास रिजेक्ट की जाने लगी। हलांकि इन मिलो की रिजेक्टेड कैनवास निजी क्षेत्र के मालिकों ने औने पौने दाम में खरीदी और वही कैनवास निजी क्षेत्र द्वारा की गई आपूर्ति खरीद ली गई। निजी क्षेत्र के उद्योगपतियों को केवल अपने फायदे से मतलब होता है और वे अपने उत्पादों को बेचने के लिए हर तरह के हथकण्डें अपनाते है इसलिए किसी भी देश को सैन्य जरूरतों के लिए किसी विदेशी उत्पाद पर निर्भर नही रहना चाहिए। हम सबको याद है कि कारगिल युद्ध के समय बोफोर्स तोप के गोले अपने देश को मँहगें दामों पर खरीदना पड़ा था। क्योंकि कारगिल युद्ध में केवल बोफोर्स तोप कारगर थे और उसके गोले हम नही बना पाते थे। इस घटना से हमने कुछ नही सीखा और एक बार फिर हथियारों के मामलों में विदेशी निर्माताओं पर अपनी निर्भरता बढ़ाने को लालाइत हैं। मोदी सरकार अपनी शुरुआत से मेक इन इण्डिया की बात करती रही है परन्तु न मालूम क्यों? आयुध निर्माणियों के उत्पादों को कमतर मानकर हथियारों के मामलों में विदेशो पर निर्भरता बढ़ा रही है जो किसी भी दशा में देश हित में नही है। हम सब जानते है कि गुणवत्ता के मामले में कनपुरिया आयुध निर्माणियों का पैराशूट, पिस्टल, राइफल और तोप के गोले किसी भी विदेशी उत्पाद से ज्यादा बेहतर हैं। सबको पता है कि ग्लोबल मार्केट में स्वस्थ प्रतियोगिता नही होती विदेशी उत्पादक हमारे अधिकारियों की निष्ठा खरीद लेते हैं। आये दिन किसी न किसी विदेशी खरीद में राजनेताओं को दलाली देने की शिकायतें सुनायी पड़ती है ऐसी दशा में भ्रष्टाचार के कारण विदेशी उत्पादकों के सामने आयुध निर्माणियों के अधिकारी कहीं ठहर नही पायेंगे और बेहतर होते हुए भी आयुध निर्माणियों का उत्पाद रिजेक्ट किया जायेगा। यदि केन्द्र सरकार को लगता है कि आयुध निर्माणियों का उत्पाद की गुणवत्ता सैन्य आवश्यकताओं के अनुरूप नही है तो उन्हें मेक इन इण्डिया अभियान के तहत इसकी गुणवत्ता सुधारने का युद्ध स्तर पर प्रयास करना चाहिए परन्तु किसी भी दशा में इनके उत्पादों को ग्लोबल मार्केट में विदेशी उत्पादकों से प्रतिस्पर्धा के लिए छोड़ देना न्यायसंगत नहीं है। देश की एकता, अखण्डता और सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि भारत अपनी सैन्य आवश्यकताओं के लिए किसी दूसरे देश पर निर्भर न हो। कनपुरियो जागो और समझो क्या हो रहा है ?  

No comments:

Post a Comment