कक्षा 6 में पढ़ाया जाता था कि अंग्रजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई के दौरान खादी का प्रचार, प्रसार और विदेशी कपड़ों का होलिका दहन आजादी के दीवानों का महत्वपूर्ण हथियार हुआ करता था। इस हथियार के माध्यम से हम लोग अंग्रेजों द्वारा देशी उद्योग धन्धों को नेस्तनाबूत करने की अर्थनीति का विरोध करते थे। पूरा यूरोप विशेषकर इग्लैण्ड अपने कपड़ों की जरूरत के लिए हम पर निर्भर था लेकिन अंग्रेजी राज में ढ़ाका की मलमल सहित हमारा सब नष्ट कर दिया गया और विदेशी उत्पादों का बोलबाला हो गया। 70 साल के अनवरत प्रयास के बाद आज हम अपनी सैन्य जरूरतों के लिए विदेशी उत्पादों के मोहताज नही है। हमारी आर्डनेन्स फैक्ट्रियाँ उच्च कोटि की राइफलें, पिस्टल, गोला बारूद, पैराशूट आदि सैन्य साजो सामान खुद निर्मित करती हैं। इन फैक्ट्रियों द्वारा भारतीय सेना को घटिया अस्त्र शस्त्र की आपूर्ति नही की जा सकती है। इतनी विशेषताओं के बावजूद न मालूम क्यों ? भारत सरकार ने इन फैक्ट्रियों में उत्पादित 142 आइटम विदेशी बाजार से खरीदने का निर्णय ले लिया और एक नये आदेश के तहत 50 साल से ज्यादा उम्र के कर्मचारियों को उनकी परफार्मेन्स का आधार बनाकर छँटनी करने का भी निर्णय लिया है अर्थात राष्ट्रीय वस्त्र निगम की मिलो की तरह इन फैक्ट्रियों को भी बन्द करने की तैयारी की जा रही है। आर्डनेन्स फैक्ट्रियाँ हमारी आत्मनिर्भरता का प्रतीक हैं। विदेशी हथियारों के लिए अपनी आत्मनिर्भरता को खत्म करना निश्चित रूप से आत्मघाती निर्णय है। अच्छी तरह समझ लिया जाना चाहिए कि किसी भी विदेशी पूँजीपति का भारत की सुरक्षा से कोई सरोकार नही है, उसका सरोकार केवल और केवल अपने फायदे से होता है और वो किसी विषम परिस्थिति में हमारी सैन्य जरूरत के समय हमारी अपेक्षानुसार अपेक्षित साजो सामान की आपूर्ति रोक भी सकता है जबकि आर्डनेन्स फैक्ट्रियाँ विषय परिस्थितियों में रात दिन उत्पादन करके सेना की जरूरतें पूरी करेंगी और उससे देश के मान सम्मान की रक्षा होगी। पिछले 35 वर्षो में कोई नया कारखाना कानपुर में नही लगा है जबकि इस दौरान अनेकों कारखाने खुद सरकारी नीतियों के कारण बन्द हुये है। किसी भी कारण यदि आर्डनेन्स फैक्ट्रियों को बन्द करने में सरकार सफल हो गई तो कानपुर को मेट्रोपोलिटी सिटी की जगह एक बड़ा कस्बा बनने से भी कोई रोक नहीं पायेगा। हमारे बच्चे हमसे पूँछेंगे कि जिस आर्थिक आत्मनिर्भरता की रक्षा के लिए आजादी के दीवाने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करके चर्खे से बनी खादी को पहनने पर जोर दिया करते थे उन देशी उद्योग धन्धों की रक्षा के लिए आपने क्या किया ? हमारे पास इसका कोई उत्तर नही होगा और फिर हम सब पछतायेंगे लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होगी।
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