Saturday, 24 August 2019

आदरणीय जेटली जी ने हमें महत्वपूर्ण होने का अहसास कराया

वर्ष 1978 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बंगलौर अधिवेशन से वापस आते समय झाँसी तक मुझे ट्रेन में उनका सानिध्य प्राप्त हुआ था। इसके दो दिन पहले अधिवेशन में उनके एक प्रस्ताव पर मैंने कुछ संशोधन सुझाये थें जिन्हें उन्होंने स्वीकार करके, मूल प्रस्ताव मंे जोड़ लिया था। इस बीच उन्होंने मासिक पत्रिका ‘छात्र शक्ति’ का सम्पादन किया और उसके कारण पत्र व्यवहार के माध्यम से मुझे उनकी निकटता मिलती रही। सक्रिय विद्यार्थी जीवन खत्म हुआ और मुझे एक फैक्ट्री में मजदूरी करने के लिए अभिशप्त होना पड़ा और दूसरी ओर वे इण्डियन एक्सप्रेस बिल्डिंग के एक विवाद में आदरणीय राम नाथ गोयनका के वकील हो गये और फिर अपनी मेहनत, लगन और ईमानदारी के बल पर निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर होते रहें। इस
बीच मैं विधि स्नातक हो गया और वे वर्ष 2003 में भारत के विधि मन्त्री हो गये। श्री राजीव शुक्ल के साथ मुझे संसद भवन स्थित कार्यालय में मिलने का अवसर मिला, उन्होंने मुझे पहचाना और कानपुर में भारत सरकार का अपर स्थायी शासकीय अधिवक्ता नियुक्त कर दिया। मेरी मजदूर पृष्ठभूमि थी इसलिए उस समय के कई दिग्गजों को मेरी नियुक्ति अखरने लगी। इनमें से एक दिग्गज ने आदरणीय मणिशंकर अय्यर जी से सम्पर्क किया और उन्होंने आग्रहपूर्वक आदरणीय जेटली जी से मुझे हटाने के लिए कहा परन्तु जेटली जी ने उन्हें दो टूक इन्कार किया और बताया कि कौशल हमारा दशकों पुराना कार्यकर्ता है, उसे नही हटाया जा सकता। अपने प्रति जेटली जी के अनुग्रह के कारण उस दिन पहली बार हमें महत्वपूर्ण होने का अहसास हुआ था। अपने सामान्य कार्यकर्ताओं को पहचानने और आवश्यकता पड़ने पर उनके मान सम्मान की रक्षा करना जेटली जी की आदत थी। उन्होंने हमारे जैसे सैकड़ों कार्यकर्ताओं को विभिन्न जनपद न्यायालयों में शासकीय अधिवक्ता नियुक्त करके एक नई परम्परा शुरु की। उस समय तक सभी जनपदों में जिला शासकीय अधिवक्ता दीवानी ही भारत सरकार का काम देखते थें। आदरणीय जेटली जी की कृपा के बल पर आज मैं भारत सरकार का स्थायी शासकीय अधिवक्ता हूँ और न्यायालय के समक्ष उन विभागों का प्रतिनिधित्व करता हूँ, जहाँ मुझे चपरासी की नौकरी भी नही मिल सकती थी। आदरणीय जेटली जी जैसे लोग सदियों में एक बार पैदा होते है और अनन्तकाल के लिए अपनी खुशबू बिखेर जाते हैं। उनका निधन मेरी अपनी निजी क्षति है मैं उनके चरणों में अपनी अश्रुपूर्ण श्रद्धाँजली अर्पित करता हूँ और भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि उन्हें अपने चरणों में स्थान दें और उनके परिजनों को इस दारुण दुख को सहने की ताकत प्रदान करें। 

                                                    जेटली जी अमर रहें अमर रहें अमर रहें।
                                                               ऊँ शान्ति शान्ति शान्ति

Thursday, 22 August 2019

आर्डनेन्स फैक्ट्रियों के उत्पाद किसी से कमतर नही



रक्षा उत्पादन सचिव श्री अजय कुमार ने आर्डनेन्स फैक्ट्रियों के उत्पादों को दूसरे उत्पादों से मँहगा और कमतर बताकर देश का अपमान किया है। आर्डनेन्स फैक्ट्रियों के उत्पादों को मँहगा, दूसरे उत्पादों की तुलना मे गुणवत्ता की दृष्टि से कमतर और फैक्ट्रियों में नये नये प्रयोग न किये जाने का आरोप वस्तुस्थिति के प्रतिकूल है। इन फैक्ट्रियों में सेना की जरूरत और माँग के तहत उत्पादन किया जाता है इसलिए उसकी लागत पर सवाल उत्पन्न करना देश की सुरक्षा के साथ अन्याय है। आर्डनेन्स फैक्ट्रियों के कर्मचारी पिछले तीन दिनों से हड़ताल पर हैं और आजादी के बाद कर्मचारियों की यह पहली हड़ताल है जो अपनी सुविधाओं में बढ़ोत्तरी के लिए नही, बल्कि देश की सुरक्षा जरूरतों के साथ किये जा रहे खिलवाड़ को रोकने के लिए की गयी है। हड़ताली कर्मचारियों पर अनर्गल दोषारोपण करते समय रक्षा उत्पादन सचिव खुद भूल गये हैं कि यदि उनकी बातों को सच भी मान लिया जाये, तो इन सब कमियों को दूर करने का दायित्व स्वयं उन्हीं पर है। हम सब जानते हैं कि आजाद भारत में सुरक्षा के क्षेत्र में अपनी आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए आर्डनेन्स फैक्ट्रियों का विस्तार किया गया है। इन फैक्ट्रियों के निगमीकरण से सुरक्षा के क्षेत्र में देश की आत्मनिर्भरता कुप्रभावित होगी और देशी विदेशी पूँजीपतियों का वर्चस्व बढ़ेगा, जो किसी भी दशा में देश की सुरक्षा के हित में नही है। भारतीय संचार सेवा (आई.टी.एस.) को समाप्त करके, बी.एस.एन.एल. और एम.टी.एन.एल. बनाते समय भी आई.टी.एस पर इसी प्रकार के आरोप लगाये गये थें और निगमीकरण के द्वारा इन कम्पनियों की बेहतरी के बड़े बड़े दावे किये गये थें परन्तु अनुभव बताता है कि आज खुद सरकारी नीतियों के कारण बी.एस.एन.एल. और एम.टी.एन.एल. बर्बादी की कगार पर खडे़ हैं और पूरा संचार का क्षेत्र कुछ पूँजीपतियों की निजी प्रापर्टी बनने को अभिशप्त है। इस बर्बादी के लिए कहीं से भी कर्मचारी दोषी नही है। सब कुछ सरकार का किया धरा है और उसकी नीतियाँ इसके लिए दोषी हैं। आर्डनेन्स फैक्ट्रियों को सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी के रूप में परिवर्तित करने का निर्णय उसकी बर्बादी और रक्षा क्षेत्र में देशी विदेशी पूँजीपतियों के एकाधिकार का कारण बनेगा। आर्डनेन्स फैक्ट्रियाँ लाभ कमाने के लिए नही बनायी गयी है। इन फैक्ट्रियों के द्वारा सुरक्षा क्षेत्र में हमें अपनी आत्मनिर्भरता बनाये रखनी है ताकि किसी मुसीबत के समय देश को गोला, बारूद के लिए किसी दूसरे देश का मुँह न देखना पड़े। कारगिल युद्ध के समय बोफोर्स के गोले बनाने वाली कम्पनी ने देश को गोला देने से इन्कार कर दिया था और हमें ज्यादा कीमत देकर गोले खरीदने पड़े थें। आर्डनेन्स फैक्ट्रियों ने अपनी तकनीकी क्षमता के बल पर बोफोर्स तोप में काम आने वाले गोलों का उत्पादन खुद शुरु कर लिया है और हमारे गोले बोफोर्स गोलों की तुलना में ज्यादा दूरी तक मार करते हैं। आर्डनेन्स फैक्ट्रियों के उत्पाद किसी दूसरे उत्पादों की तुलना में न तो मँहगे है और न उनकी गुणवत्ता किसी से कमतर है। देश की सुरक्षा जरूरतों को दृष्टिगत रखकर अपने उत्पादों की गुणवत्ता को ज्यादा से ज्यादा बेहतर बनाये रखना हम सबका दायित्व है और इसके लिए अपेक्षित नीतियाँ बनाना और आवश्यक पूँजी जुटाना सरकार का दायित्व है। सरकार अपने इस दायित्व का पालन नही कर रही है और उत्पादों में कमियाँ बताकर कर्मचारियों को दोषी बताने की साजिश रच रही है। कानपुर नगर में राष्ट्रीय वस्त्र निगम और हिन्दुस्तान वेजीटेबल आयल कारपोरेशन के कारखाने सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी बनने के पहले ठीक से काम कर रहे थें। निगम बनने के बाद उनकी बर्बादी के रास्ते खुलते चले गये और आज वे सभी कारखाने बन्द हो चुके है और वहाँ के कर्मचारी सामूहिक बेरोजगारी के कारण सड़क किनारे टमाटर, आलू बेचकर अपना जीवनयापन करने के लिए अभिशप्त है और दूसरी ओर राष्ट्रीय वस्त्र निगम के कारखानों के द्वारा भारतीय सेना को आपूर्ति किये जाने वाले उत्पाद अब हम निजी क्षेत्र से खरीदते हैं और आये दिन पहाड़ों पर सेना द्वारा प्रयोग किये गये टेन्ट/त्रिपाल से पानी टपकने की शिकायतें मिलती हैं। इस प्रकार की शिकायतें पहले नही मिला करती थी।