रक्षा उत्पादन सचिव श्री अजय कुमार ने आर्डनेन्स फैक्ट्रियों के उत्पादों को दूसरे उत्पादों से मँहगा और कमतर बताकर देश का अपमान किया है। आर्डनेन्स फैक्ट्रियों के उत्पादों को मँहगा, दूसरे उत्पादों की तुलना मे गुणवत्ता की दृष्टि से कमतर और फैक्ट्रियों में नये नये प्रयोग न किये जाने का आरोप वस्तुस्थिति के प्रतिकूल है। इन फैक्ट्रियों में सेना की जरूरत और माँग के तहत उत्पादन किया जाता है इसलिए उसकी लागत पर सवाल उत्पन्न करना देश की सुरक्षा के साथ अन्याय है। आर्डनेन्स फैक्ट्रियों के कर्मचारी पिछले तीन दिनों से हड़ताल पर हैं और आजादी के बाद कर्मचारियों की यह पहली हड़ताल है जो अपनी सुविधाओं में बढ़ोत्तरी के लिए नही, बल्कि देश की सुरक्षा जरूरतों के साथ किये जा रहे खिलवाड़ को रोकने के लिए की गयी है। हड़ताली कर्मचारियों पर अनर्गल दोषारोपण करते समय रक्षा उत्पादन सचिव खुद भूल गये हैं कि यदि उनकी बातों को सच भी मान लिया जाये, तो इन सब कमियों को दूर करने का दायित्व स्वयं उन्हीं पर है। हम सब जानते हैं कि आजाद भारत में सुरक्षा के क्षेत्र में अपनी आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए आर्डनेन्स फैक्ट्रियों का विस्तार किया गया है। इन फैक्ट्रियों के निगमीकरण से सुरक्षा के क्षेत्र में देश की आत्मनिर्भरता कुप्रभावित होगी और देशी विदेशी पूँजीपतियों का वर्चस्व बढ़ेगा, जो किसी भी दशा में देश की सुरक्षा के हित में नही है। भारतीय संचार सेवा (आई.टी.एस.) को समाप्त करके, बी.एस.एन.एल. और एम.टी.एन.एल. बनाते समय भी आई.टी.एस पर इसी प्रकार के आरोप लगाये गये थें और निगमीकरण के द्वारा इन कम्पनियों की बेहतरी के बड़े बड़े दावे किये गये थें परन्तु अनुभव बताता है कि आज खुद सरकारी नीतियों के कारण बी.एस.एन.एल. और एम.टी.एन.एल. बर्बादी की कगार पर खडे़ हैं और पूरा संचार का क्षेत्र कुछ पूँजीपतियों की निजी प्रापर्टी बनने को अभिशप्त है। इस बर्बादी के लिए कहीं से भी कर्मचारी दोषी नही है। सब कुछ सरकार का किया धरा है और उसकी नीतियाँ इसके लिए दोषी हैं। आर्डनेन्स फैक्ट्रियों को सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी के रूप में परिवर्तित करने का निर्णय उसकी बर्बादी और रक्षा क्षेत्र में देशी विदेशी पूँजीपतियों के एकाधिकार का कारण बनेगा। आर्डनेन्स फैक्ट्रियाँ लाभ कमाने के लिए नही बनायी गयी है। इन फैक्ट्रियों के द्वारा सुरक्षा क्षेत्र में हमें अपनी आत्मनिर्भरता बनाये रखनी है ताकि किसी मुसीबत के समय देश को गोला, बारूद के लिए किसी दूसरे देश का मुँह न देखना पड़े। कारगिल युद्ध के समय बोफोर्स के गोले बनाने वाली कम्पनी ने देश को गोला देने से इन्कार कर दिया था और हमें ज्यादा कीमत देकर गोले खरीदने पड़े थें। आर्डनेन्स फैक्ट्रियों ने अपनी तकनीकी क्षमता के बल पर बोफोर्स तोप में काम आने वाले गोलों का उत्पादन खुद शुरु कर लिया है और हमारे गोले बोफोर्स गोलों की तुलना में ज्यादा दूरी तक मार करते हैं। आर्डनेन्स फैक्ट्रियों के उत्पाद किसी दूसरे उत्पादों की तुलना में न तो मँहगे है और न उनकी गुणवत्ता किसी से कमतर है। देश की सुरक्षा जरूरतों को दृष्टिगत रखकर अपने उत्पादों की गुणवत्ता को ज्यादा से ज्यादा बेहतर बनाये रखना हम सबका दायित्व है और इसके लिए अपेक्षित नीतियाँ बनाना और आवश्यक पूँजी जुटाना सरकार का दायित्व है। सरकार अपने इस दायित्व का पालन नही कर रही है और उत्पादों में कमियाँ बताकर कर्मचारियों को दोषी बताने की साजिश रच रही है। कानपुर नगर में राष्ट्रीय वस्त्र निगम और हिन्दुस्तान वेजीटेबल आयल कारपोरेशन के कारखाने सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी बनने के पहले ठीक से काम कर रहे थें। निगम बनने के बाद उनकी बर्बादी के रास्ते खुलते चले गये और आज वे सभी कारखाने बन्द हो चुके है और वहाँ के कर्मचारी सामूहिक बेरोजगारी के कारण सड़क किनारे टमाटर, आलू बेचकर अपना जीवनयापन करने के लिए अभिशप्त है और दूसरी ओर राष्ट्रीय वस्त्र निगम के कारखानों के द्वारा भारतीय सेना को आपूर्ति किये जाने वाले उत्पाद अब हम निजी क्षेत्र से खरीदते हैं और आये दिन पहाड़ों पर सेना द्वारा प्रयोग किये गये टेन्ट/त्रिपाल से पानी टपकने की शिकायतें मिलती हैं। इस प्रकार की शिकायतें पहले नही मिला करती थी।
No comments:
Post a Comment