Let law blind
कानून को अन्धा ही रहने दो
सर्वोच्च न्यायालय के सेवा निवृत्त न्यायाधीश ने संजय दत्त को पाँच वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाये जाने के तत्काल बाद उन्हें माफ करने की वकालत करके कानून की आँखो में बँधी पट्टी को सुविधानुसार खोलने और बन्द करने का रास्ता सुझाया है। माना जाता है कि कानून अन्धा होता है और उसके लिए सभी एकसमान होते है। उसके निर्णय केवल और केवल सबूतों और गवाहो पर आधारित होते है। अन्य कोई कारण उसे प्रभावित नहीं करता है।
अपने देश में पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 नरसिंह राव सहित कई नामचीन हस्तियों को न्यायालय के निर्णयो के तहत जेल की हवा खानी पड़ी है। पूर्व मुख्यमंत्री श्री ओम प्रकाश चैटाला, मधु कोड़ा, पूर्व संासद आनन्द मोहन सिंह पूर्व मन्त्री अमर मणि त्रिपाठी जैसे कई राजनेता कारावास की सजा भुगत रहे है।
हम सब जानते है कि महामहिम राज्यपाल प्रदेश सरकार की सलाह पर कार्य करते है। आज कई सरकारे हिस्ट्रीशीटर विधायको के समर्थन पर जिन्दा है। सेवानिवृत्त न्यायाधीश श्री मार्केण्डे काटजू और संासद श्रीमती जया बच्चन जैसी नामचीन हस्तियों ने संजय दत्त की माफी के लिए अनुच्छेद 161 का रास्ता सुझाकर राज्य सरकारो को निर्लज्जता पूर्वक ओमप्रकाश चैटाला, मधु कोड़ा, जैसे राजनेताओं की सजा माफ करने की खिड़की दिखाई है। नानावटी मामला अपवाद था और देश ने उसे नियम नहीं बनने दिया। परन्तु आज के राजनेता इसे नियम बनायेगें और फिर ओम प्रकाश चैटाला, मधु कोड़ा, आनन्द मोहन सिंह, अमरमणि त्रिपाठी जैसें महान राजनेताओं को जेल से बाहर लाने के लिए इसका निर्लज्जतापूर्वक प्रयोग करेगें।
दंण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 321 के तहत अभियोजन वापस लेने के प्रावधान का राज्य सरकारो ने भरपूर दुरूपयोग किया है। विधिवेत्ताओं ने इस धारा को सांसदो विधायको या अन्य क्षेत्र के प्रभावशाली व्यक्तियों के विरूद्व आपराधिक धाराओं में पंजीकृत मुकदमों को वापस लेने के लिए नहीं बनाया था परन्तु श्री मुलायम सिंह यादव ने अपने मुख्यमन्त्रित्व काल में इस धारा का अनुचित लाभ उठाकर फूलन देवी सहित कई आपराधिक चरित्र के लोगों के मुकदमें वापस लिये थे। उनके पुत्र अखिलेश यादव ने भी अपने एक वर्ष के कार्यकाल में आपराधिक धाराओं में पंजीकृत औसतन बीस पच्चीस मुकदमें प्रत्येक जिले में वापस लेने के लिए आदेश जारी किये है और इनमें से कई हत्या से सम्बन्धित और प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य से समर्थित हैं।
मुझे याद है कि दीवाली के अवसर पर जिला प्रशासन से अनुमति प्राप्त किये बिना सड़क किनारे पटाखो की दुकान लगाये पाँच व्यक्तियों को विस्फोटक अधिनियम 1884 के तहत तीन वर्ष के सश्रम कारावास और जुर्माने से दंण्डित किया गया था। संजय दत्त के मामले को देखने के बाद तो लगता है कि उनके विरूद्व अधिरोपित आरोप विस्फोटक अधिनियम की भावना के प्रतिकूल थे परन्तु तकनीकी दृष्टि से विधिपूर्ण अनुमति प्राप्त किये बिना किसी भी प्रकार के विस्फोटक पदार्थ को अपने कब्जे में रखना और उसे बेचना अपराध की परिधि में आता है और उसके कारण उन्हें सजा दी गई जबकि उनके पास से बरामद विस्फोटक का उपयोग केवल आतिशबाजी के लिए किया जाना था।
अपने देश में सुस्थापित परम्परा के तहत न्यायालय का निर्णय पारित हो जाने बाद सार्वजनिक मंच पर उसके गुण दोष की चर्चा नहीं की जाती। सभी उसका सम्मान करते है, पालन करते है। विधि में कारावास के दौरान सजा की अवधि कम करने की एक निश्चित प्रक्रिया है और उसका लाभ आम कैदियो को मिलता रहता है। संजय दत्त को भी इस प्रक्रिया का लाभ मिलेगा मिलना चाहिए। लेकिन अनुच्छेद 161 के तहत उन्हें या न्यायालय द्वारा दोषी घोषित किसी को भी माफ करने के रास्ते नहीं खोले जाने चाहिए। कानून अन्धा है और उसे अन्धा ही रहने देना चाहिए।
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