Sunday, 3 March 2013

Capital Punishment

घातक होगा विधि से फाँसी को हटाना


मुम्बई पर हमले के आरोपी मोहम्मद अफजल कसाब और संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरू को फाँसी दिये जाने के बाद फाँसी की सजा समाप्त करने के लिए जारी चर्चाओं के बीच राजीव गाॅधी की हत्या के दोषियो को फाँसी की सजा की पुष्टि करने वाली सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खण्ड पीठ के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री के.टी. थामस ने राजीव गाॅधी के हत्यारो को फाँसी न देने की वकालत करके इन चर्चाओं को नई उर्जा दी है। 

 कसाब और अफजल गुरू की फाँसी को असंगत बताने वाले भूल जाते है कि अपना इतिहास बताता है कि मुहम्मद गौरी को पराजित करने के बाद पहली बार यदि प्रथ्वीराज चैहान ने भारत पर आक्रमण करने के अपराध के लिए उसे फाँसी दे दी होती तो भारत को सत्त्रह विदेशी आक्रमण और प्रथ्वीराज चैहान को पराजय का सामना नहीं करना पड़ता। 

      अपने देश में सर्वोच्च न्यायालय ने बचान सिंह बनाम स्टेट आॅफ पंजाब (ए.आइ.आर.1980 सुप्रीम कोर्ट 898) माची सिंह एण्ड अदर्स बनाम स्टेट आॅफ पंजाब (ए.आइ.आर 1983 सुप्रीम कोर्ट 957) के द्वारा जघन्य से जघन्यत्म अपराधो में ही फाँसी की सजा देने की विधि प्रतिपादित की है। एन.डी.पी.एस. एक्ट की धारा 31ए के तहत द्वितीय अपराध की दशा में मृत्यु दण्ड के प्रावधान को भी न्यायालय ने अनुच्छेद 21 का उल्लंघन बताकर अवैध घोषित कर दिया है। आजीवन कारावाश के दण्डादेश के अधीन होते हुये पुनः हत्या करने की स्थिति में फाँसी की सजा के प्रावधान को भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विधिविरूद्व घोषित कर रखा है। अर्थात अपने देश में विचारण न्यायालय सामान्य परिस्थितियों में फाँसी की सजा नहीं दे सकते ऐसी दशा में फाँसी की सजा को समाप्त करने की बहस असंगत है और उसे किसी भी दशा में न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता है। 

     फाँसी की सजा को समाप्त करने की बाते करना एक फैशन है। फाँसी की सजा समाप्त हो जाने के बाद 75 वर्षीय वृद्व महिला के साथ बालात्कार करने और फिर गला दबाकर उसकी हत्या करने वाले सिरसा के निका सिंह जैसे लोगो को किस दण्ड से दण्डित किया जायेगा। 22 लोगो की हत्या करने वाले वीरप्पन के सहयोगी साइमन, गण प्रकाश, मदेया और विलवेन्द्र को किसी आधार पर दया का पात्र माना जा सकता है। 

     अपने ही परिवार के 13 सदस्यो की हत्या करने वाले गुरमीत सिंह, दुष्कर्म के एक मामलें में जमानत पर छूटने के बाद परिवार के पाँच लोगो की हत्या करने वाले धरम पाल अपने पाँच निकटतम सम्बन्धियों की हत्या करने वाले सुरेश एवं राम जी, एक ही परिवार के चार सदस्यो की हत्या करने वाले प्रवीण कुमार, अपनी पत्नी और पाँच बेटियो की हत्या करने वाले जफर अली, आठ लोगो की हत्या करने वाले सोनिया एवं संजीव, भाई के परिवार के पाँच लोगो हत्या करने वाले सुन्दर सिंह, की दया याचिकाओं सहित 26 दया याचिकाएं राष्ट्रपति के समक्ष लम्बित है। इनमें से कुछ पर वर्ष 1992 से कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है। 

        दया याचिकाओं के निस्तारण की कोई निश्चित समयावधि न होने के कारण राजीव गाॅधी की हत्या के दोषियो एवं पंजाब के मुख्य मंत्री बेअंत सिंह की हत्या के दोषी बलवन्त सिंह राजोना को अभी तक फाँसी नही दी जा सकी है और इसी कारण राजीव गाॅधी की हत्या के दोषियो के लिए मृत्यु दण्ड की पुष्टि करने वाली सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खण्ड पीठ के अध्यक्ष न्याय मूर्ति श्री के.टी. थामस ने दोषियो को मृत्यु दण्ड न देने की वकालत करके फाँसी की सजा को समाप्त करने की चर्चाओं को नये सिरे से ताकत दी है जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ जनरल एसेम्बली में भारत सरकार ने अपने नीतिगत निर्णय के तहत दिसम्बर 2007 एवं नवम्बर 2012 में फाँसी की सजा को समाप्त करने के प्रस्तावों का विरोध किया है।

  
         फाँसी की सजा को समाप्त करने की वकालत करने वाले प्रायः आरोप लगाते है कि विचारण न्यायालयो के समक्ष आर्थिक रूप से विपन्न होने के कारण अभियुक्त अपना समुचित बचाव नहीं कर पाते और उसके कारण वे मृत्यु दण्ड से दण्डित हो जाते है। जबकि विचारण न्यायालयो के समक्ष राज्य के व्यय पर आर्थिक रूप से कमजोर अभियुक्तो को अधिवक्ता उपलब्ध कराया जाता है और कोई नहीं कह सकता कि राज्य के व्यय पर नियुक्त किये गये अधिवक्ता अपने क्लाइन्ट अभियुक्त का समुचित बचाव करने में लापरवाही बरतते है। 

        अपने देश में फाँसी की सजा केवल उन्हीं अभियुक्तो को दी जाती है जिनका अपराध जघन्य से जघन्यतम की श्रेणी में आता है और दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 366 के तहत विचारण न्यायालय द्वारा फाँसी की सजा को पुष्टि के लिए उच्च न्यायालय के समक्ष प्रेषित करने का आदेशात्मक प्रावधान है। सर्वोच्च न्यायालय के स्तर पर अभियुक्त और उसके द्वारा कारित अपराध के हर पहलू पर गहन विचार विमर्श के बाद ही फाँसी की पुष्टि की जाती है ऐसी दशा मंे फाँसी की सजा पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करना या उसे अमानवीय बताना न्यायसंगत नहीं है। वास्तव में भारतीय विधि से फाँसी की सजा के प्रावधान को हटाना आवश्यक नहीं है बल्कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 366 में संशोधन की आवश्यकता है। उच्च न्यायालय द्वारा फाँसी की सजा की पुष्टि हो जाने के बाद अभियुक्त आवेदन करे या न करे परन्तु फाँसी की सजा को पुष्टि के लिए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रेषित करना आवश्यक बना दिया जाना चाहिए। राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका के निस्तारण के लिए भी निश्चित समयावधि का प्रावधान किया जाना चाहिए परन्तु किसी भी दशा में फाँसी की सजा को समाप्त किया जाना समाज एवं राष्ट्र के हित में नहीं है। 








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