Sunday, 10 March 2013

Credible Evidence


साक्ष्य नष्ट की गई सी.बी.आइ.जाँच के बहाने


प्रतापगढ में अपने क्षेत्राधिकारी जियाउल हक को हिंसक भीड़ के बीच अकेला छोड़कर भाग जाने पुलिस कर्मियो ने उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ साथ सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश की मानवीय संवदेनाओं को भी शर्मिन्दा किया है। इसके पूर्व कानपुर में थाना शिवली के अन्दर श्रम संविदा बोर्ड के चेयरमैन सन्तोष शुक्ला को थाने में अपनी ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मी स्थानीय गुण्डो के बीच छोड़कर भाग गये थे और भरी दुपहरिया में थाने के अन्दर ही उनकी हत्या कर दी गई थी। 

अपने पदीय कर्तब्यो के प्रति आपराधिक लापरवाही करने वाले भगोड़े पुलिस कर्मियो के विरूद्व राजनैतिक जातिगत कारणो के कारण विभागीय स्तर पर कार्यवाही नहीं की जाती जिसके कारण ऐसे पुलिस कर्मी विचारण के समय अदालत के समक्ष भी कायरता दिखाते है और अभियुक्त को लाभ पहुँचाने के आशय से पक्षद्रोही हो जाते है। सन्तोष शुक्ला हत्या काण्ड में उनका सरकारी गनर, ड्राइवर और थाना शिवली में अपनी ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मियों ने अभियोजन कथानक का समर्थन नहीं किया जबकि हत्या थाने के कमरे के अन्दर हुई थी और उस कमरे में हर समय कम से कम पाँच सिपाही और एक दरोगा उपस्थित रहते है। सबने घटना देखी थी और हत्यारो को पहले से पहचानते थे। इस सब के बावजूद ऐसे कायर पुलिस कर्मियो के विरूद्व विभागीय स्तर पर नियमानुसार अनुशाशनात्मक कार्यवाही नही की गई और सभी पुलिस कर्मी आज भी नौकरी में है। 

आज कोई मुख्यमंत्री कोई राज नेता या पुलिस अधिकारी कुछ भी घोषणा करेें लेकिन अपनी न्यायिक व्यवस्था में क्षेत्राधिकारी जियाउल हक की हत्या के दोषियो को उनके किये की सजा दिलाने के लिए अदालत के समक्ष सुसंगत साक्ष्य और विश्वसनीय साक्षियो की जरूरत होगी। उनकी पत्नी श्रीमती परवीन आजाद मौके पर नहीं थी। मौके पर गाॅव वाले और भाग जाने वाले कायर पुलिस कर्मी थे। गाॅव वालो पर राजा भैया का दबाव सर्वविदित है, कोई उनकी इच्छा के प्रतिकूल कुछ भी नहीं कहेगा परन्तु पिछले अनुभवो के आधार पर यह भी विश्वास करने का मन नहीं करता कि उत्तर प्रदेश पुलिस अपने स्थानीय थानाध्यक्ष, चैकी इन्चार्ज और मृतक क्षेत्राधिकारी के हमराही सिपाहियो से अदालत के सामने राजा भैया और उनके सहयोगियो की करतूत का सच कहलवा पायेगी। विचारण के दौरान थाना कुंडा का पैरोकार और राजा भैया जैसे किसी महान राजनेता की सिफारिस पर नियुक्त विचारण न्यायालय का ए.डी.जी.सी. मृतक क्षेत्राधिकारी की पत्नी के साथ खड़े दिखायी देगें परन्तु राजा भैया के दबाव के बीच शासन की ओर से उन्हें कितनी ताकत मिल सकेगी यह कहना आज मुश्किल है।

मृतक क्षेत्राधिकारी की पत्नी के अनुरोध का बहाना लेकर अखिलेश सरकार ने अपने स्तर पर दोषियो की पहचान सुनिश्चित करने और मौके पर उपलब्ध परिस्थितिजन्य साक्ष्य को संकलित करने में कोई रूचि नहीं ली बल्कि प्रस्तावित   सी.बी.आइ. जाँच का अनुचित सहारा लेकर घटना के तत्काल बाद मौके पर उपलब्ध सुसंगत साक्ष्य को नष्ट करने का मार्ग प्रशस्त किया है। सभी जानते है कि अपने प्रदेश में विवेचको को घटना के तत्काल बाद घटनास्थल पर उपलब्ध साक्ष्य को संकलित करने का समुचित प्रशिक्षण न दिये जाने के कारण प्रायः मौके की विश्वसनीय साक्ष्य नष्ट हो जाती है और फिर विवेचक अपने तरीके से प्रत्यक्षदर्शी साक्षी ईजाद करता है जो अदालत के समक्ष ठहर नही पाते और इसी कामचलाऊ विवेचना के कारण कानपुर में अपर जिलाधिकारी नगर सी.पी. पाठक की हत्या के दोषियो को अदालत ने दोष मुक्त घोषित कर दिया था। क्षेत्राधिकारी जियाउल हक के मामले में भी यह सब न दोहराया जाये, इसकी चिन्ता अखिलेश सरकार को नहीं है। 

अपने ईमानदार अधिकारियो और आम जनता को खतरे में छोड़कर भाग जाने वाले कायर पुलिस कर्मियो के विरूद्व विभागीय स्तर पर अनुशाशनात्मक कार्यवाही करने में भी उत्तर प्रदेश पुलिस का रिकार्ड निराशाजनक है। बड़ी से बड़ी घटना पर भी अनुशाशानात्मक कार्यवाही करने के लिए समुचित तैयारी नही की जाती। विभागीय जाँच में भी आरोपो के समर्थन के लिए सुसंगत साक्ष्य और विश्वसनीय साक्षियो की आवश्यक्ता होती है जिसे उपलब्ध कराने की कोई सोची समझी रणनीति नहीं है। इन स्थितियो में कायर पुलिस कर्मियो की बर्खास्तगी का आदेश भी अदालत के सामने फुस्स हो जाता है और दोषी पुलिस कर्मी निलम्बन काल से सम्पूर्ण वेतन भत्तों सहित नौकरी में वापस आ जाते है और फिर ताजिन्दगी उन्हें अपनी कायरता पर कभी पाश्चाताप नहीं होता। 

उत्तर प्रदेश में पुलिस कर्मी कम है, ब्राह्मण, ठाकुर, यादव, हरिजन, मुसलमान ज्यादा है। इसीलिए पिछले दो दशको में राजनेताओं और पुलिस अधिकारियो में अपनी ही जाति के अंग रक्षको और हमराहियों को साथ रखने की प्रवृत्ति तेजी से बढी है। दूसरी जाति के सक्षम बहादुर ईमानदार निष्ठावान पुलिस कर्मियो की उपेक्षा आम बात हो गई है जिसके कारण पुलिस कर्मियो का मनोबल बुरी तरह गिरा हुआ है। उनमें एक अजीब तरह की निराशा ब्याप्त है और शायद इसीलिए ए.डी.जी. लाॅ एण्ड आर्डर श्री अरूण कुमार ने अपने अधीनस्थ पुलिस कर्मियो को प्रतिकूल परिस्थितियो में मजबूत सहारा देने का विश्वास दिलाया है परन्तु अधिकांश शहरो के 75 प्रतिशत थानो में एक ही जाति के थानाध्यक्षो की नियुक्ति की सच्चाई के सामने कागजी घोषणाओ पर किसे विश्वास हो सकता है।




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