आदरणीय प्रधानमन्त्री जी
आपराधिक विधि संशोधन अधिनियम 2013 के द्वारा महिलाओं के दैहिक अपराधों के विरूद्ध कड़े कानून बना दिये जाने के बाद आपकी अपनी दिल्ली में फिर से एक शर्मनाक हादसा घटित हो गया। इसके पहले देश के अन्य कई शहरों में भी ऐसी ही दरिन्दगी के समाचार आये थे। इन घटनाओं का विरोध कर रहीं युवतियों और वृद्व महिलाओें पर आपकी पुलिस ने हमला करने में कोई कसर नहीं बरती। गाहे-बगाहे वे हमें बताते रहते है कि वे ही शासन है और उन्हें प्रतिरोध किसी भी दशा मेें बर्दास्त नहीं है।
आदरणीय प्रधानमन्त्री जी भारतीय दण्ड संहिता मंे किसी भी अपराध के लिए कठोर सजा का प्रावधान बना देने मात्र से उस अपराध पर नियन्त्रण सम्भव नहीं है। अपराण पर नियन्त्रण के लिए आपकी पुलिस को आम लोगों के प्रति संवेदशील होना होेगा। अपने सदाचरण से अपने प्रति उनके मन में विश्वास जगाना होगा। राजनैतिक कारणों से उपके दुरूपयोग पर लगाम लगानी होगी। आप जानते है कि समाज के साथ पुलिस का तालमेल बुुरी तरह बिगड़ा हुआ है। पुलिसकर्मी एक दूसरे पर आपस में ही विश्वास नहीं करते। मैं तो कहता हूँ कि यदि पिता जी दरोगा हो जाये तो मान लेना चाहिये कि वे दरोगा पहले है पिता जी बाद में।
पुलिस फोर्स की समीक्षा के लिए वर्ष 1902 में गठित पुलिस आयेग ने माना था कि पुलिस में भारी असन्तोष है। पूरा सिस्टम फेल हो गया है और उसमे आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। परन्तु पुलिस की असंवेदनशीलता और दमनात्मक रवैया विदेशी शासकों के लिए उपयोगी था। सोचा गया था कि आजाद भारत में पुलिस की भूमिका और उसके चाल चरित्र और चेहरे को बदलने के लिए सार्थक पहल की जायेगी परन्तु आपकी पार्टी ने पुलिस में बदलाव के लिए कुछ नहीं किया। आजादी के पहले के विदेशी शासन और पुलिस के सम्बन्धों को यथावत बनाये रखा गया। आप सब ने पुलिस को उसके शासक स्वभाव और दमनात्मक रवैये को तिलांजलि देने के लिए विवश नही किया और उसी का परिणाम है कि अपराधी बेलगाम हो गये है और पुलिस निरंकुश होकर आम जनता को उत्पीडि़त करने का माध्यम बन गई है।
शायद आपको पता नहीं होगा कि प्रत्येक विधायक अपने विधान सभा क्षेत्र के सभी थानांे में अपने मनपसन्द थानेदारों की पोस्टिंग चाहता है। राज्य स्तर पर वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति पदोन्नति और स्थानान्तरण सत्तारूढ़ दल की आवश्यकता को दृष्टिगत रखकर किये जाते है। कमिटमेन्ट इन एडमिनिस्ट्रेशन का दौर जारी है। बड़े पदों पर तैनाती के लिए पदीय कर्तव्यों के प्रति निष्ठा, ईमानदारी और प्रतिबद्धता जैसे गुण अकुशलता का पर्याय हो गये है और इसी कारण जिलांे के 75 प्रतिशत थानांे में एक ही जाति के थानेदार नियुक्ति पाने में सफल हो जाते है। एक ही जाति के इन थानेदारें से कानून व्यवस्था को सुधारने की अपेक्षा करना अपने आपको धोखा देना है।
आपतो जानते है कि अपनी पुलिस फोर्स को संवेदनीशील और सर्विस ओरियन्टेड बनाने के लिए विभिन्न समयों पर कई आयोग गठित किये गये है। केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब, दिल्ली और तमिलनाडू आदि कई राज्य सरकारों ने भी अपने-अपने स्तर पर पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए आयोग गठित किये है परन्तु इन सभी आयोगों की अनुशंसायें और अब माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देश क्रियान्वयन की प्रतीक्षा में दम तोड़ रहे है।
आपकी पार्टी सहित कोई भी राजनैतिक दल पुलिस फोर्स को सर्विस ओरियन्टेड नहीं बनाना चाहता। सभी उस पर अपना एकाधिकार चाहते है। उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, जम्मूकश्मीर, कर्नाटक, तमिलनाडू और आन्ध्र प्रदेश की तत्कालीन राज्य सरकारो ने पुलिस सुधारों के लिए प्रकाश सिंह बनाम यूनियन आॅफ इण्डिया के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के तत्काल बाद उसे अपास्त कराने के लिए रिव्यूपिटीशन दाखिल किया था। हलाकि इस पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल खारिज कर दिया था परन्तु पिटीशन से सुधारों के प्रति राज्य सरकारों की अरूचि स्पष्ट रूप से दिखती है।
आदरणीय प्रधानमन्त्री जी अभी समय है। कठोर कानून बनाने शर्मनाक घटनाओं के बाद उसकी निन्दा करने और केवल भाषण में समाज को जगाने से कुछ नहीं होने वाला है। यह सच है कि पुलिस और कानून व्यवस्था राज्यों का विषय है। आप उसमें प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नही कर सकते। सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों को केन्द्र सरकार के स्तर पर आदेशात्मक प्रभाव दिलाने के लिए सार्थक पहल की आवश्यकता है।
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