वृद्ध माता पिता के गुजारे के प्रति उत्तर प्रदेश असंवेदशील
वृद्ध माता पिताओं का सम्मानजनक जीवन यापन सुनिश्चित बनाये रखने के लिए मेन्टीनेन्स एण्ड वेलफेयर आफ पैरेन्टस एण्ड सिटीजन एक्ट 2007 अपने अपने प्रदेशों में लागू न करके अखिलेश यादव और नीतिश कुमार ने इस सामाजिक समस्या के प्रति अपनी असंवेदनशीलता का परिचय दिया है। अलग अलग विचार धाराओं वाली इन दोनों के नेतृत्व वाली सरकारो ने इस विषय पर एक जैसा रवैया अपनाकर सबको चैकाया है। इस अधिनियम का सहारा लेकर माननीय उच्च न्यायालय के एक सेवा निवृत्त मुख्य न्यायाधीश ने अपने अधिवक्ता पुत्र के विरूद्ध सम्मानजनक देखभाल न करने का आरोप लगाया है। उच्च न्यायालय ने पिटीशन पर सुनवाई के बाद सेवानिवृत्त न्यायाधीश और उनकी पत्नी को समुचित पुलिस प्रोटेक्शन दिये जाने का आदेश पारित किया है।
हम सभी ने बचपन में और फिर विद्यार्थी जीवन में श्रवण कुमार की कहानी कई बार सुनी है और उस समय इस कहानी को सुनकर मन में भावना उठती थी कि हम भी श्रवण कुमार जैसे ही बनेंगे परन्तु अब समाज में अपने माता पिता के प्रति समर्पित श्रवण कुमार जैसे पुत्र दिखाई नही पड़ते। वृद्ध माता पिता की उपेक्षा एक सामान्य सी बात हो गई है। माता पिता की उपेक्षा को लेकर अब समाज उद्वेलित नही होता और न किसी को शर्मिन्दगी का सामना करना पड़ता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में भी प्रावधान है कि यदि कोई अपने पिता या माता का भरण पोषण करने में उपेक्षा करता है या भरण पोषण करने से इन्कार करता है तो पिता या माता के आवेदन पर प्रथम वर्ग मजिस्टेªट उपेक्षा करने वाले पुत्र या पुत्री को निर्देश दे सकता है कि वे अपने माता पिता को मासिक दर पर गुजारा भत्ता दें। शुरूआत मेु गुजारा भत्ता की राशि केवल पांच सौ रूपये प्रतिमाह निर्धारित की गई थी जो अब बढ़ाकर तीन हजार रूपये तक कर दी गई है। इस प्रावधान के प्रभावी होने के बावजूद जमीनी स्तर पर माता पिता की उपेक्षा के विरूद्ध कारगर उपाय नही किये जा सके और अप्रिय स्थितियाँ ज्यो की त्यों बनी रहीं।
वर्ष 2007 में भारत सरकार ने मेन्टीनेन्स एण्ड वेलफेयर आफ पैरेन्टस एण्ड सीनियर सिटीजन एक्ट पारित किया है। यह एक्ट संविधान के नीति निर्देशक तत्वों के आधार पर पारित किया गया है जिसके कारण राज्य सरकारों के लिए अपने अपने राज्यों में इस अधिनियम को लागू करने की बाध्यता नही है। संविधान के इस प्रावधान का अनुचित लाभ उठाकर उत्तर प्रदेश, बिहार, सिक्किम और मिजोरम जैसे राज्योे ने केन्द्र सरकार द्वारा कई बार अनुरोध किये जाने के बावजूद अपने अपने प्रदेशों में इस अधिनियम को लागू नही किया है। उत्तर प्रदेश बिहार जैसे बड़े राज्यों मेें इस अधिनियम को लागू न करने का कोई युक्तियुक्त आधार समझ में नही आता।
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 की तुलना में इस अधिनियम के प्रावधान ज्यादा कारगर है। इस अधिनियम में प्रावधान है कि यदि किसी माता पिता या वरिष्ठ नागरिक ने अपनी सम्पत्ति उपहार स्वरूप या अन्य किसी माध्यम से हस्तान्तरित कर दी है और इस प्रकार हस्तान्तरित सम्पत्ति प्राप्त करने वाला व्यक्ति माता पिता या वरिष्ठ नागरिक को उनके सम्मानजनक जीवन यापन के लिए मूलभूत भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति नही करेगा तो माना जायेगा कि सम्पत्ति का हस्तान्तरण धोखे दबाव या अनुचित प्रभाव में किया गया है और हस्तान्तरणकर्ता के आवेदन पर हस्तान्तरण अवैध घोषित कर दिया जायेगा।
अधिनियम के तहत गठित न्यायाधिकरण वृद्ध माता पिता या वरिष्ठ नागरिक को प्रतिमाह दस हजार रूपये तक का गुजारा भत्ता दिला सकते है और नब्वे दिन के अन्दर गुजारा भत्ता पिटीशन का निस्तारण भी आवश्यक बनाया गया है। आदेश पारित होने के तीस दिन के अन्दर गुजारा भत्ता राशि न्यायाधिकरण के समक्ष जमा करने का भी प्रावधान है। इसका पालन न करने की दशा मंे बकाया राशि पर पाँच प्रतिशत से 18 प्रतिशत तक ब्याज भी दिलाया जायेगा।
अधिनियम के तहत गठित न्यायाधिकरण के समक्ष किसी भी पक्षकार को अधिवक्ता के माध्यम से अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार नही है। पक्षकारों को स्वयं अपना पक्ष प्रस्तुत कराना होगा। सामाजिक कल्याण के लिए गठित न्यायाधिकरणों के समक्ष अधिवक्ताओं की उपस्थिति को प्रतिबन्धित करना आवश्यक है। वास्तव में अधिवक्ताओं की उपस्थिति मेें कई बार वस्तुस्थिति स्पष्ट नही हो पाती और सम्पूर्ण कार्यवाही कानूनी पेचीदगियों में उलझ जाती है और निर्धारित अवधि के अन्दर पिटीशन निर्णीत नही हो पाते।
वृद्धावस्था में किसी को भी अन्य किसी सुविधा से ज्यादा चिकित्सकीय सहायता की आवश्यकता होती है। साधन सीमित होते है और कई बार बच्चों की भी आर्थिक स्थिति अच्छी नही होती ऐसी दशा में इलाज के लिए बृद्धो को सरकारी अस्पतालो पर निर्भर रहना पड़ता है। अपने देश प्रदेश के सरकारी अस्पताल किसी के भी प्रति संवेदशील नही है। अधिनियम में राज्य सरकारो के लिए वृद्धों को समुचित चिकित्सा सुविधायें उपलब्ध कराना आवश्यक बनाया गया है। राज्य या केन्द्र सरकार द्वारा संचालित अस्पतालों में वृद्धों के लिए बेड आरक्षित रखना आवश्यक बताया गया है।
बृद्धावस्था में माता पिता अपने बच्चों को शार्मिन्दगी का शिकार होने से बचाने के लिए उनके विरूद्ध शिकायत नही करते और घुट घुट कर अपमान सहन करते रहते है। वे अपने आपको असहाय मान लेते है। ऐसी स्थितियों से वृद्धो को उबारने के लिए केवल कानून समक्ष नही है। कानून बनाकर सरकार ने अपनी पीठ थपथपा ली है परन्तु इसके कारण वृद्धो को मूलभूत भौतिक आवश्यकताओं की उपलब्धता का कोई आँकड़ा नही है। सरकार के स्तर पर कोई माँनिटरिग नही की जा रही है। जिसके कारण आम लोगों को इस अधिनियम की जानकारी भी नही है। जबकि अधिनियम में इसके प्रचार प्रसार की कार्य योजना भी बनाई गई है। इसके लिए समाज को आगे आना होगा और सकारात्मक माहौल बनाकर वृद्धो में असहाय होने की मनोदशा को खत्म कराना होगा। कानून अपनी जगह है परन्तु जमीनी स्तर पर समाज के सक्रिय सहयोग के बिना वृद्धो की समुचित देखभाल सम्भव नही है।