Saturday, 13 July 2013

ट्रेड यूनियन खुद में ही एक आन्दोलन है..............


उत्तर प्रदेश में अब श्रमिकों को अपनी यूनियन बनाने के विधिपूर्ण अधिकार से वंचित रखने
की मुहिम शुरू हो गई है। रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन्स स्वयं कारखाना मालिको और सत्तारूढ़ दल के नेताओं के दबाव में गैर सदस्यों की फर्जी शिकायतो को आधार बनाकर पंजीकृत श्रमिक यूनियनों को पंजीयन रद्द करने का अभियान जारी किये हुये है।
श्रमिको को ट्रेड यूनियन बनाने का अधिकार किसी राजनैतिक पार्टी या उसकी सरकार की कृपा से नही मिला है। श्रमिको ने अपनी यूनियन बनाने के लिए संघर्ष किया और लाठी गोली खाकर अधिकार हासिल किया है। कानपुर में वर्ष 1918 में इलगिन मिल के श्रमिक पण्डित कामदत्त ने अपने सहयोगी लाला देवी दयाल के साथ मिलकर श्रमिको को संघटित करने की शुरूआत की और उनके प्रयास से कानपुर मजदूर सभा का जन्म हुआ और उसके आवाहन 4 नवम्बर 1919 श्रमिको ने वेतन बढ़ोत्तरी की माँग को लेकर हड़ताल की। इस हड़ताल के बाद श्रमिको के वेतन में पच्चीस प्रतिशत बढ़ोत्ती दस घण्टे का कार्य दिवस और दो आना प्रति रूपया की दर से बोनस की माँग स्वीकार की गई थी। कानपुर का यह प्रयास आगे चलकर कई मूलभूत सुविधायें पाने का कारण बना।
श्रमिक संघो के गठन और श्रमिक आन्दोलन के मजबूत होने के पहले देश में क्रुर शोषण वाली स्थितियों में श्रमिको को कठिन परिश्रम करना पड़ता था। कारखानों में श्रमिकों को चैदह घण्टे से ज्यादा काम करना पड़ता था। भडौच में साढ़े चैदह  घण्टे, आगरा में पौने चैदह घण्टे, शोलापुर में साढ़े बारह से साढ़े तेरह घण्टे, दिल्ली में चैदह घण्टे से साढ़े चैदह घण्टे और अमृतसर एवं लाहौर में तेरह से पौने चैदह घण्टे का कार्य दिवस निर्धारित था। आज के आठ घण्टे का कार्य दिवस एक लम्बे संघर्ष और कई श्रमिकों के बलिदान का प्रतिफल है।
श्रमिक संघो का गठन और उसका पंजीयन ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 के तहत किया जाता है और उसमें सम्बन्धित उद्योग के सेवायोजक की कोई भूमिका नही है और न उसमें श्रमिक संघ की गतिविधियों के विरूद्ध किसी गैर सदस्य को आपत्ति करने का कोई अधिकार दिया गया है। सदस्यों द्वारा निर्वाचित कार्यकारिणी को अपने विधान और नियमों के तहत अपनी समस्त गतिविधियों को नियन्त्रित और संचालित करने का सम्पूर्ण क्षेत्राधिकार प्राप्त हैै। बलरामपुर हिन्द मजदूर यूनियन के विरूद्ध सेवायाजको की शह पर गैर सदस्य की शिकायत पर यूनियन को अपना पक्ष रखने का अवसर दिये बिना रजिस्ट्रार ने यूनियन का पंजीयन निरस्त कर दिया। इस आदेश के विरूद्ध यूनियन द्वारा प्रस्तुत अपील में बलराम चीनी मिल के मालिको ने पक्षकर बनने के लिए आवेदन किया है और उससे सिद्व हो जाता है कि सेवायोजक नही चाहते कि श्रमिक संघ मजबूत हो और उनकी ही शह पर यूनियन का पंजीयन निरस्त किया गया है।
लोहिया स्टार लिंगर कर्मचारी संघ किला मजदूर यूनियन, हार्नेस फैक्ट्री मजदूर संघ आदि कई श्रमिक संघों में सेवायोजको की शह पर निर्वाचन सम्बन्धी विवाद पैदा कराये गये है। रजिस्ट्रार ने ट्रेड यूनियन एक्ट के तहत दोनों गुटो की निर्वाचन प्रक्रिया की जाँच अपने अधीनस्थ अधिकारियों से कराई। सभी दस्तावेजों का परीक्षण किया गया। सदस्यों से शपथपत्र पर बयान लिये गये परन्तु जाँच के निष्कर्षाे के सार्वजनिक किये बिना दोनो गुटों को सलाह दे दी कि वे अपने विवाद का निपटारा सिविल कोर्ट से करायें। यह सच है कि ट्रेड यूनियन एक्ट में निर्वाचन सम्बन्धी विवादों के निस्तारण की कोई स्पष्ट प्रक्रिया निर्धारित नही की गयी है, परन्तु निर्वाचन के बाद निर्वाचित कार्यकारिणी द्वारा रजिस्ट्रार के समक्ष फार्म जे. प्रस्तुत करने का प्रावधान है। फार्म जे. के साथ निर्वाचन प्रक्रिया सम्बन्धी सम्पूर्ण कार्यवाही का विवरण प्रस्तुत किया जाता है। जिसकी जाँच ट्रेड यूनियन एक्ट के तहत की जाती है। सम्पूर्ण प्रक्रिया की जाँच होती है। सम्बद्ध पक्षों के शपथपत्र पर बयान लिये जाते है, इस स्थिति में जाँच का निष्कर्ष बताये बिना सिविल न्यायालय से विवाद का निपटारा कराने की सलाह का कोई विधिक औचित्व नही है। जाँच के निष्कर्षों के आधार पर सही गलत का निर्धारण रजिस्ट्रार की पदीय प्रतिबद्धता है ताकि स्पष्ट हो सके कि किस गुट ने अपने विधान में निर्धारित प्रक्रिया के तहत कार्यकारिणी का चुनाव किया और किस गुट ने विधान का उल्लंघन किया है। 
कई प्रदेशों ने अपने स्तर पर ट्रेड यूनियन एक्ट में संशोधन करके निर्वाचन सम्बन्धी विवादों को अभिनिर्णय के लिए श्रम न्यायालय के समक्ष संदर्भित करने के नियम बनाये है। परन्तु उत्तर प्रदेश सरकार ने इस दिशा मे कोई कार्यवाही नही की है। रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन्स इसका अनुचित लाभ उठाकर अपने दायित्व का पालन नही करते और कई बार सेवायोजकों की शह पर उत्पन्न कृत्रिम विवादों पर निर्वाचित कार्यकारिणी को उसके विधिपूर्ण अधिकारों से वंचित करते है। लोहिया स्ट्रार लिंगर कर्मचारी संघ के मामले में नियमानुसार चुनाव कराने वाली कार्यकारिणी को रजिस्ट्रार ने कृत्रिम विवाद का अनुचित सहारा लेकर पंजीकृत नही किया है और उसके बाद निर्वाचित पदाधिकारियों को सेवायोजकों ने नौकरी से भी निकाल दिया है ताकि अन्य कोई श्रमिक यूनियन बनाने का साहस न कर सके।
दुर्भाग्य से संघटित क्षेत्रों के कारखानें के बन्द हो जाने और असंघटित क्षेत्र में श्रमिकों की दयनीय दशा होने के बावजूद मजदूर आन्दोलन के मजबूत न हो पाने के कारण रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन्स सहित श्रम विभाग के अधिकारी अपनी पदीय प्रतिबद्धता भूलकर सेवायोजकों को श्रम कानूनों का उल्लंघन करने के लिए प्रोत्साहित करते है। श्रम विभाग के अधिकारियों को न्यायालय के समक्ष भी झूठ बोलने में कोई डर नही लगता। जनपद न्यायाधीश कानपुर नगर श्रीमती रंजना पाण्ड्या ने प्रकीर्ण अपील संख्या 23 सन् 2013 कानपुर टेम्पो टैक्सी कर्मचारी सभा बनाम रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन्स में अपने निर्णय दिनांक 10.07.2013 के द्वारा रजिस्ट्रार की गलत बयानी को इंगित किया है। रजिस्ट्रार ने उनके समक्ष शपथपत्र पर बताया है कि ट्रेड यूनियन सम्बन्धी विवादों को सुनने व निर्णीत करने का कोई क्षेत्राधिकार जनपद न्यायाधीश में निहित नही है। सम्पूर्ण क्षेत्राधिकार श्रम न्यायालय में निहित है जबकि इसके पूर्व स्वयं रजिस्ट्रार ने श्रम न्यायालय के समक्ष प्रकीर्ण केस संख्या 2 सन्  2012 शुगर मिल इम्प्लाइज यूनियन बरकतपुर बिजनौर के मामले में प्रस्तुत लिखित कथन में बताया था कि यूनियन के पंजीयन या पंजीयन निरस्तीकरण सम्बन्धी विवादों को सुनने का क्षेत्राधिकार केवल जनपद न्यायाधीश कानपुर नगर में निहित है। रजिस्ट्रार के इस आचरण से सिद्ध होता है कि वे अपने पदीय कर्तव्यों को ट्रेड यूनियन एक्ट के तहत नही बल्कि निजी पसन्द नापसन्द के अधार पर नियन्त्रित एवं संचालित करते है। रजिस्ट्रार ने इस यूनियन का पंजीयन समाजवादी पार्टी के नेता श्री राम गोपाल पुरी की शिकायत पर उसकी जाँच कराये बिना निरस्त किया है। श्री पुरी कानपुर टेम्पो टैक्सी कर्मचारी सभा के कभी सदस्य नही रहें और न अन्य किसी रूप में जुडे रहे है। इसी प्रकार बजाज चीनी मिल कर्मचारी यूनियन, मकसूदाबाद, शाहजहाँपुर को सेवायोजकों की शिकायत पर पंजीकृत नही किया गया जबकि यूनियन पंजीयन के लिए सभी अर्हतायें पूरी करती है और जाँच के दौरान उसके द्वारा प्रस्तुत सभी कागजात सही पायें गये है।
आद्यौगीकरण की शुरूआत से ही सेवायोजक और नौकरशाह श्रमिक संघो के विरोधी रहे है। इन लोगों ने पहले छात्र संघों को आराजकता का पर्याय बताने का अभियान चलाया और अब उनकी क ुदृष्टि श्रमिक संघों पर है। वास्तव मे कई महत्वपूर्ण राजनेता कारपोरेट घरानों के एजेण्ट के नाते संसद और विधानसभा में बैठते है और वे अपने निहित स्वार्थवश श्रमिक संघों को कमजोर करने की मुहिम चलाते रहते है। ट्रेड यूनियन एक्ट श्रमिकों और श्रमिक संघों के हितों की सुरक्षा करने के लिए पारित किया गया था, परन्तु अब कारपोरेट घरानों की शह पर विशुद्ध तकनीकि कारणों का अनुचित सहारा लेकर ट्रेड यूनियन बनाने के अधिकार को ही छीनने का षड्यन्त्र किया जा रहा है। 
साम्यवादी विचारक ई.एम.एस. नंबूदिरिपाद ने अपनी पुस्तक ‘‘भारत का स्वाधीतना संग्राम’’ मे बताया है कि वेतन में बढ़ोत्तरी और अपनी यूनियन को मान्यता दिये जाने की माँग को लेकर जुलाई 1937 में कानपुर की एक ब्रिटिश स्वामित्व वाली कपड़ा मिल की हड़ताल श्रमिक संघर्षो का शानदार उदाहरण है। हलांकि इस हड़ताल को संघटित करने और दिशा देने मे कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट सबसे आगे थे लेकिन स्थानीय काँग्रेस कमेटी ने भी इसमें सक्रिय भूमिका निभाई। कानपुर की इस हड़ताल ने देश भर में मजदूरों के संघर्ष के लिए माडल का काम किया। इसने पूरे भारत में साम्राज्यवाद विरोधी तत्वों को इस तथ्य से भी अवगत कराया कि अगर कम्युनिस्ट सोशलिस्ट और साधारण काँग्रेस जन मिलजुल कर मजदूरो के संघर्ष में हिस्सा ले तो कितना शानदार नतीजा निकल सकता है। श्रमिकों को एक बार फिर अपनी दलीय निष्ठाओं से ऊपर उठकर एक जुटता दिखानी होगी और कारपोरेट घरानों, उनके एजेण्ट राजनेताओं को बताना होगा कि हर जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है। हम लड़ेगें जीतेंगे और किसी भी श्रमिक के हितों के साथ कोई समझौता नही करेंगे।

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