
अपने देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली खाद्यान्न वितरण के लिए विश्व में सबसे बड़ा नेटवर्क है। सम्पूर्ण देश में ग्राम पंचायतों के स्तर तक राशन की दुकानों का नेटवर्क भ्रष्टाचार के जाल में उलझा हुआ है। फेयर प्राइज शाप के दुकानदार, ट्रान्सपोटर्स ब्यूरोक्रेटस, और राजनेताओं का संघटित गिरोह इस व्यवस्था का लाभ आम लोगो तक पहुँचने नही देता और इसे अपने तरीके से प्रयोग करके अपनी अवैध कमाई का माध्यम बनाये हुये है। इस नेटवर्क के भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश के लिए राज्य सरकारों के स्तर पर कभी कोई प्रयास नही किये जाते। आम लोगों को दिखाने के लिए कार्यवाही का ढिंढोरा पीटा जाता है। उत्तर प्रदेश सरकार ने खाद्य पदार्थो के अपमिश्रण से सम्बन्धित भारतीय दण्ड संहिता की धाराओं 272, 273, 274, 275 एवं 276 में संशोधन करके 6 माह के दण्ड की अवधि को बढ़ाकर आजीवन कारावास कर दिया है। इन धाराओं में मुकदमें भी पंजीकृत होते है परन्तु उनमें अभियुक्तों को सजा दिलाने के लिए रणनीति के तहत कोई प्रयास नही किया जाता और उसके कारण विभिन्न अवसरों पर विभिन्न उद्देश्यों के लिए बनाये गये कानून आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955, प्रिवेन्शन आफ ब्लेक मार्केटिंग एण्ड मेन्टीनेन्स आफ सप्लाइस आफ इसेन्सियल कमोडिटीज एक्ट 1980, प्रिवेन्शन आफ फूड एडल्टेरेशन एक्ट 1954, पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (कन्ट्रोल) आर्डर 2001, लीगल मेट्रोलाजी एक्ट 2009, एग्रीकल्चर प्रोड्यूस (ग्रेडिंग एण्ड मार्केटिंग) एक्ट 1937 भ्रष्टाचारियो पर कोई अंकुश नही लगा सके। कमोवेश सभी कानून सस्ता और शुद्ध खाद्यान्न आम जनता तक पहुँचा पाने मंे असफल सिद्ध हुये है।
आम लोगों को सस्ता और शुद्ध खाद्यान्न उपलब्ध कराना केन्द्र और राज्य सरकारों का दायित्व है परन्तु सभी सरकारें अपने अपने कारणों से अपने इस दायित्व का ईमानदारी से निर्वहन नही कर रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन आफ इण्डिया (2013-2-एस.सी.सी.-पेज 682) के द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली को चुस्त दुरूस्त और भ्रष्टाचारमुक्त बनाये रखने के लिए आधुनिक टेक्नालाजी का प्रयोग किये जाने का ओदश पारित किया है ताकि सम्पूर्ण व्यवस्था पारदर्शी हो सके। आधुनिक टेक्नालाजी की मदद से खाद्यान्न वितरण की खामियो को दूर किया जा सकता है। पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (कन्ट्रोल) आर्डर 2001 में इस आशय का प्रावधान है। सम्पूर्ण व्यवस्था को कम्प्यूटराइज्ड करके उसकी खामियों को दूर करना आसान हो सकता है। इस व्यवस्था के तहत प्रत्येक फेयर प्राइज शाप (राशन की दुकान) के लिए एक कम्प्यूटराइज्ड कोड आवंटित किया जाना है। मूलभूत संरचना के लिए आवश्यक धनराशि केन्द्र सरकार उपलब्ध कराने को तैयार है परन्तु किसी राज्य सरकार ने इसे अपने संज्ञान में नही लिया और न अपने स्तर पर इसे लागू करने के लिए कोई रूचि ली है।
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अधीन केन्द्र सरकार ने स्वयं पहल करके वर्ष 2008 में केन्द्र शासित चण्डीगढ़ और हरियाणा को आधुनिक टेक्नालाजी का सहारा लेकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कम्प्यूटराइज्ड करने के लिए कहा और उसके व्यय के लिए अपेक्षित धनराशि रूपया 142.29 करोड रूपये स्वीकृत भी कर दिया, परन्तु कम्प्यूटराइजेशन की दिशा में कोई सार्थक काम नही किया गया। इस काम के लिए दोनों जगहों पर प्रायवेट वेन्डर्स को भी जोड़ा गया परन्तु प्रायवेट वेन्डर्स सरकारी अधिकारी और नेशलन इन्फारमेटिक सेन्टर के प्रतिनिधियों ने एक दूसरे पर दोषारोपण करके पूरी योजना को फुस्स कर दिया। सिस्टम कम्प्यूटराइज्ड न हो पाने के कारण राशन की दुकानों के स्तर पर फैले भ्रष्टाचार पर कोई अंकुश नही लग पा रहा है और आम जनता भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सहज स्वाभाविक लाभों से वंचित है।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पूर्व आदेशों का अनुपालन न होने पर नाराजगी जताते हुये आदेश (2010-11-एस0सी0सी0-पेज- 719) दिनांक 27.07.2010 के द्वारा केन्द्र सरकार को खाद्यान्न वितरण मे फैले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सम्पूर्ण देश मे राशन की दुकानों के स्तर पर कम्प्यूटराइज्ड करने हेतु एक साफ्टवेयर बनाने को वरीयता देने का आदेश दिया और सभी राज्य सरकारो को भी इसी साफ्टवेयर का प्रयोग करने के लिए कहा। इस आदेश के अनुपालन में केन्द्र सरकार ने नेशनल इनफारमेटिक्स सेन्टर के डाइरेक्टर जनरल की अध्यक्षता मे एक टास्क फोर्स का गठन किया है। इस टास्क फोर्स में डिपार्टमेन्ट आफ इनफार्मेशन टेक्नालाजी, यूनिक आइडेन्टिफिकेशन आफ इण्डिया डिस्ट्रीब्यूशन, फूड कारपोरशन आफ इण्डिया के प्रतिनिधि और राज्यों आन्ध्र प्रदेश, आसाम, चण्डीगढ़, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, तमिलनाडू, उत्तर प्रदेश के सचिव शामिल किये गये और इस टास्क फोर्स ने विचार विमर्श में काफी धनराशि खर्च करके अपनी रिपोर्ट दिनांक 01.11.2010 को प्रस्तुत कर दी। रिपोर्ट में कई तरह के सुझाव दिये गये थे परन्तु किसी राज्य सरकार ने टास्क फोर्स की अनुशंसाओं को लागू करने के लिए कम्प्यूटराइजेशन की दिशा मे एक कदम भी आगे नही बढ़ाया है।
सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट दिशा निर्देशों के बावजूद सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कम्प्यूटराइज्ड करने के लिए केन्द्र सरकार और राज्य सरकारो के मध्य कोई तालमेल स्थापित नही हो पा रहा है। तालमेल न हो पाने के लिए सभी एक दूसरे पर दोषारोपण करते है। दिनांक 14.09.2011 एवं दिनांक 03.02.2012 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अलग अलग आदेश (2011-14-एस.सी.सी. -पेज 331 एवं 2012-12-एस.सी.सी. -पेज 357) के द्वारा भारत सरकार के कन्ज्यूमर एफेयर्स फूड एण्ड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सचिव को कम्प्यूटरीकरण की योजना का प्रभारी बनाने का निर्देश जारी किया। वास्तव में इतना सब हो जाने के बावजूद आज तक सार्वजनिक वितरण प्रणाली कम्प्यूटराइज्ड नही की जा सकी है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को चुस्त दुरूस्त और भ्रष्टाचार मुक्त किये बिना सस्ते खाद्यान्न का लाभ आम लोगों तक नही पहुँचाया जा सकता है। पूरी व्यवस्था राज्य सरकारों के माध्यम से जिला प्रशासन द्वारा नियन्त्रित एवम संचालित की जाती है। केन्द्र सरकार सस्ता खाद्यान्न उपलब्ध कराती है और उसका वितरण स्थानीय स्तर पर राज्य सरकारों द्वारा आवंटित फेयर प्राइज शाप (राशन की दुकान) के द्वारा किया जाता है और इसी स्तर पर पूरा भ्रष्टाचार फैला हुआ है। राशन की दुकाने समय से नही खुलती। खाद्यान्न कब आया कब बँट गया, जैसी आवश्यक सूचनायें उपभोक्ता को नही मिल पाती। मास के प्रथम सप्ताह तक खाद्यान्न राशन की दुकान में पहुँच जाना और निर्धारित समयावधि मे दुकान का खुले रहना आज भी सपना है। स्टाक रजिस्टर इश्यू रजिस्टर लाभार्थियो की सूची सम्बन्धित अधिकारियों के टोल फ्री नम्बर राशन की दुकानों के स्तर पर उपलब्ध नही कराये जाते। उपभोक्ता को इन सूचनाओं से वंचित रखा जाता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (कन्ट्रोल) आर्डर 2001 में इस आशय का स्पष्ट प्रावधान है। रसोई गैस एजेन्सियाँ भी कन्ट्रोल आर्डर 2001 की परिधि में आती है। सभी गैस एजेन्सियाँ कम्प्यूटराइज्ड है परन्तु उनकी गतिविधियाँ पारदर्शी नही है और न आम उपभोक्ताओ की पहुँच में है। गैस एजेन्सियों के स्तर पर भी उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी करके ब्लेक मार्केट में धडल्ले से घरेलू गैस बेची जाती है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को चुस्त दुरूस्त और भ्रष्टाचार मुक्त बनाये रखना राज्य सरकारों का महत्वपूर्ण दायित्व है परन्तु राज्य सरकारे आम उपभोक्ताओं के हित मे अपने इस दायित्व का पालन नही कर रही है। पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिवर्टीज की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों को सिविल सप्लाई कारपोरेशन स्थापित करने की सलाह दी है। इस कारपोरेशन के माध्यम से सार्वजनिक वितरण प्रणाली को नियन्त्रित एवं संचालित किया जाना है। आज पूरे देश मे लगभग पाँच लाख की सस्ते राशन की दुकाने है जो राजनैतिक कारणो से सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ताओं को उपकृत करने के लिए आवंटित की गई है। सभी दुकानदार राज्य सरकारांे द्वारा दिये जाने वाले कमीशन से संतुष्ट नही होते। आम उप भोक्ताआंे के हितो के मूल्य पर फर्जी राशन कार्ड बनवाकर और अन्य कई तरीकों से सस्ता खाद्यान्न ब्लेक मार्केट मे बेचते है। इस अवैध कमाई का हिस्सा सम्बन्धित विभागीय अधिकारियों को ईमानदारी से दिया जाता है।
राज्य सरकारें अपने निहित स्वार्थवश सिविल सप्लाई कारपोरेशन स्थापित नही करना चाहती। वे पूरी व्यवस्था को अपने तरीके से नियन्त्रित एवं संचालित करना चाहती है और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर प्रस्तावित सिविल सप्लाई कारपोरेशन को अपने हितों के प्रतिकूल मानती है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के तहत स्थानीय स्तर पर राशन की दुकानो का आवंटन सिविल सप्लाई कारपोरेशन के अधीन किया जाना है। इन दुकानों को प्रायवेट इन्डीविजुअल्स द्वारा संचालित नही किया जायेगा। राशन की दुकाने पंचायती राज संस्थाओं, कोआपरेटिव्स और स्वयं सहायता प्राप्त महिला समूहों द्वारा संचालित की जायेंगी। प्रायवेट इन्डीविजुअल्स द्वारा संचालित दुकानों को कारपोरेशन अपने अधिपत्य में लेंगे। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में दो कारपोरेशन बनाये जाने और उनके मध्य की स्वस्थ प्रतिस्पर्धा पैदा करके सार्वजनिक वितरण प्रणाली की खामियो पर प्रभावी अंकुश लगाने की योजना है। वर्तमान व्यवस्था के तहत राशन की दुकानो का कमीशन सीधे दुकानदार को दिया जाता है। इस व्यवस्था को भी समाप्त किया जायेगा और राशन की दुकान का कमीशन राज्य सरकार सीधे कारपोरेशन के खाते में स्थानान्तरित करेगी और कारपोरेशन अपने नियमो परिनियमों के तहत उसका भुगतान सम्बन्धित लोगों को करेगा। ग्रामीण क्षेत्रों और अतिपिछड़े क्षेत्रों में मदर डेयरी आउटलेट ए.टी.एम. या पोस्ट आफिस की तर्ज पर राशन की दुकानें बनाई जायेंगी। इन दुकानों को वित्तीय दृष्टि से लाभप्रद बनाने के लिए रखने के लिए इन दुकानों पर अन्य उपभोक्ता सामानों को भी बेचने की अनुमति दी जायेगी। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कम्प्यूटराइज्ड किये बिना खाद्य सुरक्षा विधेयक 2013 का लाभ आम लोगों को प्राप्त नही हो सकेगा। इसलिए सरकार को इस दिशा में तत्काल सार्थक कार्यवाही करनी चाहिये।
No comments:
Post a Comment