सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट दिशा निर्देशों के बावजूद वित्तीय संस्थानों द्वारा वित्तपोषित वाहनों को रिपजेस करने की विधिपूर्ण कार्यवाही को सम्पूर्ण देश में थाना स्तरों पर अपराध माना जाता है और वाहन पर कर्ज लेने वाले आदतन बकायेदारों की फर्जी शिकायत पर आपराधिक धाराओं मे मुकदमा पंजीकृत करके वित्तीय संस्थानो के अधिकारियों को प्रताडि़त करना आम बात हो गयी है।
सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खण्ड पीठ ने अनूप शरमाह बनाम भोलानाथ शर्मा एण्ड अदर्स (2013-1-जे.आई.सी. पेज 515-एस.सी.) में ज्यूडिशियल मजिस्टेªट गौहाटी के द्वारा आपराधिक परिवाद संख्या 608 सन् 2009 में पारित आदेश की पुष्टि करते हुये उच्च न्यायालय के आदेश को अपास्त कर दिया है और प्रतिपादित किया है कि अनुबन्ध के तहत नियत तिथि पर देय कर्ज राशि अदा न करने की दशा में वित्तपोषित वाहन को रिपजेस करना अपराध की परिधि में नही आता। वित्त पोषित वाहन बाबत सम्पूर्ण कर्ज राशि अदा न होने तक परचेजर केवल उसका बेली होता है और उसे वाहन पर कोई मालिकाना अधिकार प्राप्त नही होता। स्वामित्व सम्बन्धी सभी अधिकार वित्तपोषक में निहित होते है। ऐसी दशा में अनुबन्ध के तहत देय किश्तो की अदायगी न होने की दशा में वित्तपोषित वाहन रिपजेस करने पर फाइनेन्सर के विरूद्ध आपराधिक कार्यवाही संस्थित नही की जा सकती है। इस निर्णय के पारित होने के काफी पहले वाहन रिपजेस करने पर फाइनेन्सर के विरूद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 395, 467, 468, 471, 120 बी सपठित धारा 34 के तहत पंजीकृत प्रथम सूचना रिपोर्ट को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा खारिज करने से इन्कार कर दिये जाने के बाद फाइनेन्सर द्वारा दाखिल विशेष अनुमति याचिका त्रिलोक सिंह एण्ड अदर्स बनाम सत्यदेव त्रिपाठी (ए.आई.आर.-1979-सुप्रीम कोर्ट- पेज-850) में सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक धाराओं में मुकदमा पंजीकरण की कार्यवाही को विधिक प्रक्रिया का दुरूपयोग घोषित करके प्रथम सूचना रिपोर्ट निरस्त कर दी थी।
इसी प्रकार एक अन्य मामले के.ए. मथाई एलाइज बाबू एण्ड अदर्स बनाम कोरा बीबी कुट्टी एण्ड अदर्स (1996-7-सुप्रीम कोर्ट केसेज-पेज-212) में पुनः प्रतिपादित किया गया है कि हायर पर्चेज सिस्टम के तहत वित्तपोषित वाहनों को अनुबन्ध के तहत देय मासिक किश्ते अदा न किये जाने की दशा में फायनेन्सर को रिपजेस करने का विधिपूर्ण अधिकार प्राप्त है। चरणजीत सिंह चढ्ढ़ा बनाम सुधीर मेहरा (20017-7-एस.सी.सी.-पेज-417) में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई पूर्व निर्णयों का उल्लेख करते हुये हायर पर्चेज एग्रीमेन्ट की प्रकृति को विश्लेषित किया है। सर्वोच्च न्यायालय के विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि हायर पर्चेज सिस्टम के तहत निष्पादित संविदा एक विशेष प्रकार की संविदा होती है और संविदाजनित संव्यवहारों में उभयपक्षो को निर्धारित शर्तो का पालन करना आवश्यक होता है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वाहन रिपजेस करते समय यदि कोई अपराध घटित हो जाता है तो उसे अपराध नही माना जायेगा क्योंकि रिपजेसन की कार्यवाही विधिपूर्ण कर्तव्यों के निर्वहन में की जाती है। इस स्पष्ट विश्लेषण के बावजूद थाने के स्तर पर दरोगा जी कुछ भी नही सुनते और अपनी लाठी के संविधान से सबको हाँकते है।
सर्वोच्च न्यायालय के उल्लिखित निर्णयों की प्रकृति आदेशात्मक है परन्तु सम्पूर्ण देश में थाना स्तरो पर पुलिस अधिकारी फाइनेन्सर द्वारा रिपजेशन की कार्यवाही करने पर डकैती जैसी गम्भीर धाराओं में मुकदमा पंजीकृत करना अपनी शान समझते है और जानबूझकर विधिक प्रक्रिया का दुरूपयोग करते है। पिछले दिनों रायबरेली जनपद में सत्तारूढ दल के एक नेता द्वारा कर्ज लेकर वाहन खरीदने के बाद एक भी पैसा अदा न करने की दशा मे वाहन रिपजेस करने की कार्यवाही के विरूद्ध थाना धधोकर में फाइनेन्सर के कर्मचारियों के विरूद्ध डकैती का मुकदमा पंजीकृत किया गया है। इसी प्रकार एक अन्य आदतन डिफाल्टर की शिकायत पर जनपद कन्नौज में एक निजी बैंक के प्रबन्ध निदेशक के विरूद्ध आपराधिक धाराओं में मुकदमा पंजीकृत किया गया जबकि मुकदमा वादी से लेकर पुलिस अधीक्षक तक सभी जानते है कि पाँच लाख रूपये की वसूली हेतु ट्रक रिपजेस करने के समय मौके पर किसी बैंक के प्रबन्ध निदेशक के उपस्थित रहने का कोई सवाल ही नही उठता परन्तु उत्तर प्रदेश पुलिस के विद्वान विवेचक ने उनके विरूद्ध विचारण के लिए आरोपत्र दाखिल किया है। हलाँकि उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने आरोपपत्र पर किसी भी प्रकार की कोई कार्यवाही करने के पर रोक लगा दी है।
व्यवसायिक वाहनो पर कर्ज देने के बाद उसकी वसूली से प्रताडि़त होकर आज सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों ने इस क्षेत्र से अपने हाथ खीच लिये है। व्यवसायिक वाहनों के फाइनेन्स में निजी वित्तीय संस्थान अग्रणी भूमिका मे है। उनका सराहनीय योगदान है जो देश की आर्थिक व्यवस्था के लिए रीड़ की हड्डी है। लाखो ड्राइवरों को ट्रक, टेक्सी खरीदने के लिए आवश्यक पूँजी उपलब्ध कराके फाइनेन्स कम्पनियों ने ड्राइवरों को अपने वाहन का खुद मालिक बनने का हौसला और सपने को हकीकत में बदलने का अवसर दिया है। इस प्रकार के मेहनतकश लोगों को वित्तीय संस्थानों से कभी कोई शिकायत नही होती और वे नियत अवधि के अन्दर ऋण राशि अदा करके एक दूसरा ट्रक खरीद लेते है। शिकायत सदैव राजनैनिक पृष्ठभूमि के लोगो को होती है जो तत्काल पूँजीपति बनने के लालच मे कर्ज लेकर ट्रक या बस खरीद लेते है और फिर अपेक्षित मेहनत न कर पाने के कारण फेल हो जाते है। फेल हो जाने पर वे ऋण अदा करने की स्थिति में नही रह जाते। इन स्थितियों में यदि फाइनेन्सर वित्तपोषित वाहन रिपजेस करता है तो वे अपने आपको अपमानित महसूस करते है और फिर बदले की भावना से स्थानीय राजनैतिक प्रभाव के बल पर वे पुलिस का सहारा लेते है। फर्जी कथानक गढ़कर रिपोर्ट दर्ज कराके फाइनेन्सर पर ऋण भूल जाने का अनुचित दबाव बनाते है। इन लोगों के कारण फाइनेन्स कम्पनियों का करोड़ो रूपया एन.पी.ए. में तब्दील हो गया है जिसके वसूल हो पाने की कोई सम्भावना नही है।
सभी को मालुम है कि किसी भी वाहन को खरीदने के लिए कर्ज देने के पूर्व उभय पक्षो के मध्य रिजर्व बैंक आफ इण्डिया द्वारा अनुमोदित अनुबन्ध निष्पादित किया जाता है और उसमें नियत तिथि पर देय राशि अदा न करने की दशा में वाहन को रिपजेस करने का प्रावधान होता है। मोटर वाहन अधिनियम के तहत वित्तपोषित वाहन के पंजीयन प्रमाणपत्र में अनुबन्ध के निष्पादन की प्रविष्टि अंकित की जाती है। इस प्रावधान के तहत वाहन रिपजेस करने के वाद सम्बन्धित परिवहन अधिकारी से वाहन का फ्रेश पंजीयन प्रमाण पत्र लेना फाइनेन्सर के लिए आवश्यक होता है। फ्रेश पंजीयन प्रमाणपत्र जारी करने के पूर्व सम्बन्धित परिवहन अधिकारी के लिए पंजीकृत स्वामी को रजिस्टर्ड डाक से नोटिस भेजना और रिपजेसन की सम्पूर्ण प्रक्रिया के गुणदोष पर सुनवाई करना अधिनियम मे आवश्यक बनाया गया है अर्थात रिपजेशन कार्यवाही में किसी भी प्रकार की अनियमितता या अनुबन्ध का उल्लंघन पाये जाने की दशा मे फ्रेश पंजीयन प्रमाण पत्र जारी नही किया जा सकता। यह एक महत्वपूर्ण सुसंगत कारगर उपचार है परन्तु नोटिस तामील हो जाने के बावजूद परिवहन अधिकारी के समक्ष पंजीकृत स्वामी उपस्थित नही होता और येनकेन प्रकारेण फर्जी कथानक बनाकर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने और उसके द्वारा जेल भिजवा देने का भय दिखाकर बकाया राशि अदा किये बिना वाहन वापस लेने पर सारा जोर लगाता है। मोटर वाहन अधिनियम के तहत रिपजेशन की कार्यवाही पर थाना पुलिस को हस्तक्षेप करने के लिए अधिकृत नही किया गया है परन्तु डिफाल्टरो पर स्थानीय पुलिस की कृपा फाइनेन्स कम्पनियों के लिए कहर बनकर आती है और उन्हें गम्भीर अर्थदण्ड का शिकार बनाती है।
सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों से कर्ज लेकर उसे निश्चित अवधि में अदा न किये जाने के कारण बढ़ते नान परफार्मिंग एसेट से चिन्तित होकर त्वरित वसूली सुनिश्चित कराने के लिए केन्द्र सरकार ने वित्तीय संस्थानों की कठिनाइयों पर विचार के लिए अलग अलग अवसरों पर नरसिंघम और अनध्यारूजिना की अध्यक्षता में कमेटियों का गठन किया और दोनों कमेटियों ने अपनी अलग अलग रिपोर्टो में वसूली के प्रचलित तरीकों को अपर्याप्त बताया और कठोर प्रावधानों की वकालत की। इन कमेटियों के आधार पर केन्द्र सरकार ने सिक्यूरिटाइजेशन एण्ड रिकन्स्ट्रक्शन आफ फाइनेन्सियल एसेटस एण्ड इनफोर्समेन्ट आफ सिक्यूरिटी इन्टेरेस्ट एक्ट 2002 पारित किया है। इस अधिनियम के कठोर प्रावधानों पर सर्वोच्च न्यायालय ने भी मेसर्स मारडिया केमिकल्स लिमिटेड बनाम यूनियन आफ इण्डिया एण्ड अदर्स (ए.आई.आर-2004-सुप्रीमकोर्ट-पेज-2371) में पारित निर्णय के द्वारा अपनी मोहर लगाई है। इस अधिनियम के तहत कर्ज वसूली की कार्यवाही से सम्बन्धित विवादो को सुनने व निर्णीत करने का कोई क्षेत्राधिकार सिविल न्यायालय को नही दिया गया। सम्पूर्ण क्षेत्राधिकार कर्ज वसूली अधिकरणों में निहित किया गया है और इन कठोर प्रावधानों के कारण कर्ज वसूली में तेजी आई है और आदतन डिफाल्टर्स पर प्रभावी अंकुश लगा है।
व्यवसायिक वाहनो के फाइनेन्स में अग्रणी भूमिका निभा रहे निजी क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों के समक्ष भी कर्ज वसूली एक गम्भीर समस्या है। स्थानीय पुलिस के हस्तक्षेप के कारण वित्तपोषित वाहन को रिपजेस करना अब जी का जंजाल बन गया है। किसी भी बैंकिग या नान बैंकिग संस्थान का अधिकारी जेल जाने के भय से वाहन रिपजेस करने में रूचि नही लेता। सभी जानते है कि सिविल न्यायालय के माध्यम से कर्ज वसूली में लम्बा समय लगता है और काफी धन व्यय होता है। रिजर्व बैंक आफ इण्डिया ने अपने स्तर पर दिशा निर्देश जारी किये है जो कारगर सिद्ध नही हो सके। कठिनाइयाँ ज्यों की त्यों बनी हुयी है।
केन्द्र सरकार ने हायर पर्चेज एक्ट 1972 पारित करके समस्या के समाधान की दिशा में एक कारगर कदम उठाया था परन्तु न मालुम क्यों संसद से पारित हो जाने के बावजूद उसे लागू करने की अधिसूचना जारी नही की गयी और एन.डी.ए. शासनकाल में उसे निरसित भी कर दिया गया है जबकि हायर पर्चेज सिस्टम के तहत वित्तपोषित वाहनो के क्षेत्र में कर्ज वसूली की समस्याऐं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। एन.पी.ए. तेजी से बढ़ा है परन्तु उनके समाधान के लिए कोई एकीकृत विधि मौजूद नही है। वर्तमान कानून डिफाल्टर्स पर प्रभावी अंकुश के लिए पर्याप्त नही है। कर्ज वसूली अधिकरण जैसे उपचारों की यहाँ भी सख्त आवश्यकता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णयो और प्रतिपादित विधिक सिद्धान्तों को आधार बनाकर कोई केन्द्रीयकृत कानून बनाया जाना समय की माँग है।
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