Sunday, 18 January 2015

पश्चिम उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट की बेन्च लोगो की जरूरत है

पिछले कई वर्षो से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट की बेन्च स्थापित करने के लिये वहाॅ के अधिवक्ता आन्दोलनरत है। उनकी माॅग को दृष्टिगत रखकर केन्द्रीय मन्त्री श्री रविशंकर प्रसाद ने विधि मन्त्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री डा0 डी.वाई.चन्द्रचूड को पत्र लिखकर बेन्च की स्थापना बाबत उच्च न्यायालय की राय माॅगी थी। इसके पूर्व मनमोहन सरकार के विधि मन्त्री कपिल सिब्बल ने भी इसी आशय का पत्र मुख्य न्यायाधीश को लिखा था परन्तु इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बेन्च की स्थापना के लिये राज्य सरकार की ओर से कोई प्रस्ताव न होने का बहाना बताकर अपनी राय देने से इन्कार कर दिया है जो किसी भी दशा में न्याय संगत नही है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट की बेन्च की स्थापना का इलाहाबाद के वकील पुरजोर विरोध कर रहे है। उनका विरोध आम जनता के व्यापक हितो और सस्ता,सहज और त्वरित न्याय पाने के अधिकार के प्रतिकूल है। उनका सम्पूर्ण विरोध निजी कारणो से आर्थिक स्वार्थ पर आधारित है। वे भूल जाते है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आम लोगो को अपने मुकदमो की पैरवी के लिये इलाहाबाद आने में कितनी असुविधाओं का सामना करना पडता है। 
यह सच है कि उत्तरी कर्नाटक के जिलो की बंगलूरू स्थित हाई कोर्ट से दूरी के आधार पर एक अन्य पीठ गठित करने के लिये दाखिल याचिका को सर्वाेच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। अपने इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि कोई वादी अपने घर के पास हाई कोर्ट होने के मौलिक अधिकार का दावा नही कर सकता। दूरी एक पहलू हो सकती है लेकिन सिर्फ दूरी के आधार पर फैसला नही किया जा सकता। यह फैसला अपनी जगह है उसके गुणदोष पर टिप्पणी किये बिना कहा जा सकता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला सुसंगत नही है और न इस आधार पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट की बेन्च बनाने से इन्कार किया जा सकता है क्योकि उत्तर प्रदेश में पहले से लखनऊ में उच्च न्यायालय की एक बेन्च है और इन दोनो बेन्चो के लिये एक ही मुख्य न्यायाधीश और एक ही महाधिवक्ता होने के कारण कामकाज की गुणवक्ता पर किसी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव नही पड रहा है। सभी काम सुचारू रूप से जारी है और कहीं कोई विवाद भी नही है।
इलाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खण्ड पीठ की स्थापना के लिये अपनी राय देने से इन्कार किये जाने पर इलाबाद के अधिवक्ताओं ने विजय जलूस निकाला और अपनी कई दिन पुरानी हडताल को भी समाप्त कर दिया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने निर्णय लिया है कि “एक प्रदेश एक हाई कोर्ट” का आन्दोलन जारी रहेगा और राजनेताओ और नागरिको से सम्पर्क बनाये रखकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिवक्ताओं की माॅग के विरोध में माहौल बनाये रखा जायेगा।
राजीव गाॅधी के कार्यकाल में केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों की संख्या को दृष्टिगत रखकर केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की बेन्च कानपुर नगर में बनाये जाने का प्रस्ताव किया गया था और नेटिफिकेशन के अतिरिक्त अन्य सभी औपचारिकतायें पूरी कर ली गयी थी परन्तु इलाहाबाद के अधिवक्ताओं के विरोध और वहाॅं के तत्कालीन सांसद श्री अमिताभ बच्चन के प्रभाव-दबाव में तत्कालीन सरकार ने केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकण की बेन्च इलाहाबाद में ही स्थापित कर दी थी जिसका कानपुर के अधिवक्ताओं ने पुरजोर विरोध किया और कई वर्षो तक लगातार विरोध स्वरूप प्रत्येक शनिवार को न्यायिक कार्य का बहिस्कार करते रहे है। सभी जानते है कि केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष सबसे ज्यादा मुकदमें कानपुर नगर में उत्पन्न विवाद से सम्बन्धित मुकदमें दाखिल होते है। कर्मचारियों को न्याय पाने के लिये अधिक धन और समय व्यय करना पडता है। आम कर्मचारियों के हित में न्यायाधिकरण को कानपुर स्थापित किया जाना जरूरी था परन्तु राजनैतिक दवाब ने कानपुर को उसके विधिपूर्ण अवसर से वंचित कर दिया।
सभी जानते है कि इलाबाद के अधिवक्ताओं की जिद के कारण बरेली, आदि जिलों के लोगों को न्याय पाने के लिये लखनऊ होकर इलाहाबाद जाना पडता है। कोई औचित्य इन लोगो को इलाहाबाद बेन्च के क्षेत्राधिकार के साथ सम्बद्ध रखने का कोई औचित्य नही है। इससे आम लोगो को परेशानी होती है और आर्थिक क्षति का शिकार होना पडता ह।
आम लोगो को सस्ता, सहज और त्वरित न्याय उपलब्ध कराना केन्द्र और राज्य दोनों सरकारो का संवैधानिक दायित्व है और इस दायित्व की पूर्ति न्याय क्षेत्र में इलाहाबाद के अधिवक्ताओं के एकाधिकार को सीमित करके ही की जा सकती है। मेरठ, गाजियाबाद, बुलन्दशहर, सहारनपुर, ललितपुर, झांसी, कुशीनगर, देवरिया, के आम वादकारियों को इलाहाबाद आने में किन कठिनाईओं और आर्थिक समस्याओं का सामना करना पडता है के मुद्दे पर कोई सरकार, इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोशियेशन या उत्तर प्रदेश बार काउन्सिल विचार करने या उस पर पारसपरिक सहमति बनाने के लिये तैयार नही है। सभी इस मुददे पर मौन हैं और उन सब को मालूम है कि अतिशीध्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक अतिरिक्त बेन्च की स्थापना को लेकर कोई सकारात्मक निर्णय नही लिया गया तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिवक्ताओं और इलाहाबाद के अधिवक्ताओ के बीच वैमनस्यता स्थायी हो जावेगी जो अन्तः सम्पूर्ण राष्ट्र और समाज के लिये हितकर नही है।
इलाहाबाद में उच्च न्यायालय, केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण और आयकर अपीलीय अधिकरण स्थापित होने के कारण जनपद न्यायालयों के कई प्रतिभाशाली युवा अधिवक्ता इन न्यायालयों में वकालत करने के अवसर से वंचित हो जाते है। केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण की स्थापना कानपुर नगर में की है और यह अदालत आम कर्मचारियों के व्यापक हितों को दृष्टिगत रखकर उनके मुकदमों की सुनवाई कानपुर से बाहर जाकर उनके जिलों में करती है। इस अदालत के लिये कानपुर से बाहर गैर जनपदों में सुनवाई करना आम बात है। सरकार की तरफ से कानपुर के अधिवक्ताओं को आश्वासन दिया गया था कि केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की सर्किट बेन्च बनायी जायेगी जो इलाहाबाद से बाहर जाकर केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों के सेवा सम्बन्धी विवादो का निर्णय करगी परन्तु आज तक इस दशा में कोई सार्थक पहल नही की गयी है। जिसके कारण कानपुर के लोग अपने को ठगा सा महसूस करते है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उच्च न्यायालय की एक अतिरिक्त बेन्च बनाने में यदि वास्तव में कोई संवैधानिक बाधा है तो उच्च न्यायालय या सरकार की ओर से सर्वजनिक स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिये और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिवक्ताओ को विश्वास में लेकर इलाहाबाद में बेन्च होने के कारण उनकी न्यायपूर्ण कठिनाईओं के समाधान का विकल्प तलाशा जाना चाहिये। उच्च न्यायालय की अतिरिक्त बेन्च की माॅग को लेकर प्रदेश के अलग अलग क्षेत्रों के अधिवक्ताओं के मध्य बढती वैमनश्यता को खतम कराया जाना केन्द्र और राज्य दोनों सरकारों  की प्राथमिकता होना चाहिये। केन्द्र और राज्य सरकार को इस म ुददे पर एक दूसरे पर दोषारोपण करने के अवसर खोजने के बजाए सर्वसम्मत राय बनाने की दिशा में सकारात्मक पहल करनी चाहिये। केन्द्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण की तर्ज पर यदि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सप्ताह में एक दिन इलाहाबाद के बाहर जाकर सुदूर क्षेत्रों मेें मुकदमों की सुनवाई करे तो आम लोगों को राहत मिलेगी और सस्ता, सहज और त्वरित न्याय पाने का सपना भी साकार हो सकेगा। 

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