मोदी सरकार के कैबिनेट सचिव ने अपने अधीनस्थ सभी विभागों को विभिन्न न्यायालयों के समक्ष सरकार की ओर से या सरकार के विरूद्ध दाखिल मुकदमों में सरकार के हितो का प्रभावी तरीके से बचाव करने और विशेष परिस्थितियों में अपवाद स्वरूप ही स्थगन प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने का निर्देश जारी किया है। इन नये निर्देशों में विभागो के सचिवों को हिदायत दी गयी है कि वे खुद अदालती मामलों की निगरानी करें और एस.एम.एस आदि इलेक्ट्रानिक साधनों के द्वारा शासकीय अधिवक्ताओं के साथ नियमित सम्पर्क बनाये रखें। सरकार का मानना है कि स्थगन प्रार्थना पत्रों के कारण समय पर लिखित कथन या आपत्ति प्रस्तुत करने में सरकार की क्षमता और योग्यता पर बेवजह सवाल खडे होते है जो किसी भी दशा में हितकर नही है। महत्वपूर्ण मामलों में जहाॅ पूर्व सरकार की ओर से शपथ पत्र दिये गये है, उनकी समीक्षा करने और उनमें नई परिस्थितियों और नई सरकार के विचारों के अनुरूप आवश्यक बदलाव किये जाने का भी निर्देश जारी किया गया है।
पूर्व केन्द्रीय विधि मन्त्री श्री वीरप्पा मोइली ने अपने कार्यकाल के दौरान वर्ष 2010 में नेशनल लिटिगेशन पाॅलिसी जारी की थी और उसमें भी इसी प्रकार के निर्देश जारी किये गये थे परन्तु विभागो के स्तर पर अदालती कार्यवाही की पैरवी में किसी प्रकार का कोई बदलाव नही किया जा सका। परिस्थितियां ज्यों की त्यों बनी हुयी है। साधारण मामलों में भी अदालत के हस्ताक्षेप के बिना किसी नियम को लागू करने में सरकारी अधिकारियों के अनिर्णय के कारण सरकार अनावश्यक मुकदमें बाजी को आमन्त्रित करती है। विधि आयोग ने अपनी 145वीं रिपोर्ट में साधारण विवादों पर सरकार की ओर से की जा रही मुकदमें बाजी को रोकने की अनुसंशा की है। सुखदेव सिंह बनाम भगत राम सरदार सिंह रघुवंशी (1975-1-एस.सी.सी-421) में सर्वेच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने भी साधारण मामलों में भी सरकार द्वारा की जा रही मुकदमें बाजी पर चिन्ता जतायी थी।
न्यायालयों के समक्ष लम्बित मुकदमों के अम्बार को कम करने के लिये विभिन्न स्तरो पर स्पेसिफिक विवादो के त्वरित निस्तारणो ंके लिये न्यायाधिकरणो का गठन किया गया है और अपेक्षा की गयी थी कि सरकार न्यायाधिकरणों के फैसलो के विरूद्ध विशेष परिस्थितियों में अपवाद स्वरूप ही अपील दाखिल करेगी। नई लिटिगेशन पाॅलिसी में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि सेवा सम्बन्धी विवादों में केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेशो के विरूद्ध उन्हे अपास्त कराने के लिये सरकार अपील नही करेगी। अपील केवल उसी दशा में की जायेगी जब न्यायाधिकरण का फैसला सेवा शर्तो के प्रतिकूल हो और उससे नीतिगत विषयों पर दुष्प्रभाव की गम्भीर आशंका हो परन्तु अनुभव बताता है कि विभागीय स्तर पर प्रत्येक फैसले के विरूद्ध अपील दाखिल करना अधिकारियों का प्रिय सगल है जबकि सर्वेच्च न्यायालय ने हरियाणा डेयरी डेवलपमेंट कोआॅपरेटिव फेडेरेशन लिमिडेट बनाम जगदीश लाल (2014-1-सुप्रीम कोर्ट केसेज- एल एण्ड एस- 487) में पारित अपने निर्णय के द्वारा रूपया 8724/- के भुगतान के विवाद में सरकार की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दाखिल करने पर अप्रसन्नता व्यक्त की और मुकदमें के सम्पर्ण व्यय की कटौती प्रबन्ध निदेशक के वेतन से करने का निर्देश जारी किया है। इस सबके बावजूद सरकारी अधिकारियों के रवैये में कोई परिवर्तन नही आया है।
सरकार आम लोगो को अपने आपसी विवाद सुलह समझौता के द्वारा सुलझाने की सलाह देती है परन्तु अपने मामलों में वह खुद इस नियम का पालन नही करती। सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत 90 दिन के अन्दर लिखित कथन दाखिल करने की अनिवार्यता लागू हो जाने के बावजूद सरकार किसी एक मामले में भी नियत अवधि के अन्दर लिखित कथन दाखिल नही करती और महीनों किसी न किसी बहाने सुनवायी स्थगित कराती रहती है। बताया जाता है कि मुख्यालय या उच्चाधिकारियों का अनुमोदन लिये बिना स्थानीय अधिकारी अदालतो के समक्ष विभागीय पक्ष प्रस्तुत नही कर सकते और अनुमोदन कभी समय से प्राप्त नही होता उसमें अनावश्यक देरी होती है।
सरकार ने लिखित कथन आदि दाखिल करने में विलम्ब को कम करने और निर्धारित तिथि पर नियत कार्यवाही सुनिश्चित कराने के लिये नेशनल लिटिगेशन पाॅलिसी में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान किया है। नोडल अधिकारी दिन प्रति दिन की अदालती कार्यवाही पर नजर रखेगें और सुनिश्चित करायेगे कि विभागीय स्तर पर मुकदमों की पैरवी में किसी भी प्रकार की सिथिलता न होने पाये। नोडल अधिकारी विभाग और शासकीय अधिवक्ता के मध्य सेतु का काम करेगें। उसका दायित्व है कि वह शासकीय अधिवक्ता की माॅग और अपेक्षा पर सभी सुसंगत कागजात उपलब्ध कराये और अदालत के समक्ष प्रस्तुत की जाने वाली प्लीडिंग्स को नियत तिथि के पूर्व तैयार कराये ताकि नियत तिथि की क्रत कार्यवाही में सरकार को स्थगन प्रार्थना पत्र न प्रस्तुत करना पडें। मुकदमों की सुनवाई के दौरान प्रायः सरकार के विरूद्ध न्यायालय द्वारा कास्ट अधिरोपित की जाती है। इस प्रकार के मुकदमों की नियमित समीक्षा की जाये और कास्ट के लिये जिम्मेेदारी चिन्हित करके दोषी अधिकारी या अधिवक्ता के विरूद्ध कार्यवाही सुनिश्चित करायी जाये।
सरकार ने लिटिगेशन पाॅलिसी के तहत नोडल अधिकारियों को ज्यादा जिम्मेदारी दी है। उनसे अपेक्षा की गयी है कि वे सभी पक्षो के साथ सामन्जस्य बिठा कर मुकदमों की सुनवाई में विभागीय कमियों के कारण किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न नही होने देगें। वे मुकदमोे की प्रगति को माॅनीटर करेगे और उन मुकदमों पर विशेष ध्यान देगें जिनमें प्रायः किसी न किसी पक्षकार द्वारा स्थगन प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया जाता है। नोडल अधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह विभागाध्यक्षों को स्थगन प्रार्थना पत्र के कारण से अवगत कराये और यदि कोई शासकीय अधिवक्ता विभागीय कमियों का बहाना बनाकर अपने कारणो से स्थगन प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करता है तो उसकी सूचना सम्बन्धित अधिकारियों को दे ताकि दोषी अधिवक्ता के विरूद्ध कार्यवाही सुनिश्चित की जा सके। सरकार ने स्थगन के प्रश्न को गम्भीरता से लिया है और स्पष्ट कर दिया है कि यदि कोई शासकीय अधिवक्ता नियत तिथि पर अपेक्षित कार्यवाही सुनिश्चित नही कराता तो उसे उसके पद से हटा दिया जायेगा।
सरकार ने अपनी तरफ से दाखिल प्लीडिंग्स और काउन्टर्स की ड्राफ्टिंग की भाषा एवम शैली में भी सुधार की जरूरत बतायी है। सरकार ने कहा है कि वाद पत्र या याचिका तैयार करते समय ध्यान रखा जाये कि कोई बिन्दु दोहराया न जाये और सभी सुसंगत तथ्यों को बिन्दु वार प्रस्तुत किया जाये। सभी सुसंगत कागजातों की प्रति वाद पत्र या लिखित कथन के साथ प्रस्तुत की जाये ताकि मुकदमों के निस्तारण में अनावश्यक विलम्ब न हो। प्रायः देखा जाता है कि अन्तिम सुनुवाई के समय अदालत की लताड के बाद किसी सुसंगत कागजात को दाखिल न किये जाने की जानकारी प्राप्त होती है और उसके कारण सरकार को अपमानित होना पडता है।
नई लिटिगेशन पाॅलिसी में बिलम्ब से दाखिल की गयी अपीलो पर भी चिन्ता जताई गयी है। सरकार ने कहा है कि बिलम्ब माॅफ न हो पाने के कारण कई बार एकदम सही मामलों में भी सरकार के विरूद्ध निर्णय पारित हो जाते है। विलम्ब से अपीलें कई बार प्रक्रियागत कमियों के कारण और कई बार जानबूझ कर किसी को अनुचित लाभ पहुंचाने के दुराशय से दाखिल की जाती हैं इसलिये विभागाध्यक्षो को स्वंय सजग रह कर सुनिश्चित कराना होगा कि शासकीय अधिवक्ता को समस्त सुसंगत कागजात नियत अवधि के पूर्व उपलब्ध करा दिये जाये और यदि फिर भी अपील दाखिल करने में बिलम्ब होता है तो उसके लिये जिम्मेदारी चिन्हित करके विधि मन्त्रालय को सूचित किया जाये।
सर्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों के बीच भी लिटिगेशन आम बात हो गयी है। कोई न कोई प्रतिष्ठान अपने किसी उच्चाधिकारी के अहम की संतुष्टि के लिये किसी दूसरे प्रतिष्ठान के साथ मुकदमें बाजी में व्यस्त है। सरकार ने इस प्रकार की मुकदमेंबाजी को तत्काल प्रभाव से रोकने का निर्णय लिया है। इस प्रकार के आन्तरिक विवादों में कोई मुकदमा दाखिल करने के पूर्व प्रबन्घ निदेशक जैसे उच्चाधिकारी की अनुमति लेना अनिवार्य बना दिया गया है। प्रयास किया जायेगा कि उच्चस्तरीय विचार विर्मश करके उत्पन्न विवाद का समाधान निकाला जाये और यदि आपसी बातचीत के द्वारा विवाद निपट नही पाता तब भी कोई प्रतिष्ठान न्यायालय की शरण नही लेगा बल्कि आरबीट्रेशन एण्ड कन्शिलियेशन एक्ट या सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 89 का सहारा लेकर विवाद का निस्तारण करायेगा।
सरकार अपने विरूद्ध या अपनी ओर से दाखिल किये गये मुकदमों की पेन्डेन्सी को कम करके 15 वर्ष से 3 वर्ष की अवधि में लाना चाहती है परन्तु उसके प्रयासो को देखकर लगता है कि उसके द्वारा घोषित नीति अभी तक सदिच्छा से आगे नही बढ सकी है। जमीनी स्तर पर विभागीय अधिकारी कर्मचारियों की कमी का उलाहना देते रहते है और इसी कारण नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की दिशा में अभी तक कोई सार्थक प्रयास नही किये जा सके है और न शासकीय अधिवक्ताओं के साथ विचार विमर्श की किसी नियमित प्रक्रिया का कोई तन्त्र विकसित किया गया है। भारतीय वायु सेना ने अपने स्तर पर शुरूआत से ही अपने मुकदमो की पैरवी के लिये लीगल पृष्ठभूमि के कर्मचारियों की नियुक्ति कर रखी है और उसका उन्हे लाभ मिलता है। भारतीय वायु सेना के मुकदमों में विभागीय कारणों से स्थगन की नौबत नही आती।
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