पिछले दिनों मिडियेशन सेन्टर केे समक्ष कानपुर निवासी इन्जिनियर दम्पत्ति तलाक के प्रपत्रों पर हस्ताक्षर करने के पूर्व रोते दिखाई दिये। उस क्षण दोनो अलग हो रहे अपने जीवन साथी के साथ गुजरे पलों की मधुर स्म्रतियों में खो कर भावुक हो गये थे। हलाॅकि उनमें तलाक हो गया है और अब दोनों अपने अपने तरीके से अपना जीवन जीने के लिये स्वतंन्त्र हो गये है। तलाक के समय दोनो की आॅखो में बरबस रोके गये आॅसुओं ने वहां उपस्थित सभी को हतप्रभ किया। लग रहा था कि इन दोनों के बीच गलतफहमियों के कारण उत्पन्न संवादहीनता को यदि शुरूआत में ही किसी निकटतम सम्बन्धी ने सदभावपूर्ण हस्तक्षेप करके रोक दिया होता, बातचीत सामान्य हो जाती तो निश्चित रूप से तलाक बचाया जा सकता था। आज माता पिता खुद अपने किशोर से युवा हो रहे बच्चों के साथ नियमित संवाद के लिये समय नही निकाल पाते। बच्चों के साथ उनकी दोस्ती नही हो पाती इसलिये बच्चे खुलकर अपनी भावनात्मक जरूरते उनसे साझा नही करते। इस माहौल में पले बढे बच्चे अपने दाम्पत्य जीवन की दिन प्रतिदिन की उलझनों को अपने निकटतम सम्बन्धियो से छिपाते है। उलझनो का समाधान स्वंय खोजते है और इसी कारण पति पत्नी के बीच साधारण मन मुटाव की स्थिति में भी माता पिता या अन्य किसी निकटतम सम्बन्धी को वे अपने बीच सामान्जस्य बिठाने की पहल करने का अवसर नही देते और फिर सामन्जस्य बिठाने की चाहत के बावजूद “पहले पहल कौन करे” की कश्मकश के बीच अपने अपने अहं मे चाहते हुये भी दोनो आपस के मनमुटाव या गलतफहमियों को खुद दूर नही कर पाते और तलाक उनके दरवाजे पर दस्तक देने लगता है।
तलाक की बढती घटनाओं के लिये युवा दम्पत्तियों के साथ उनके माता पिता या अन्य निकटतम सम्बन्धियो की निरन्तर संवादहीनता एक बडा कारण है। इस सामाजिक कमी को दूर करने और परस्पर बातचीत के द्वारा आपसी सौहार्द और आत्मीयता बनाने, बढाने के लिये मिडियेशन सेन्टर का गठन किया गया है। वैवाहिक विवादो पर कोई अन्तिम निर्णय लेने के पूर्व दम्पत्तियों को सुलह समझौते के लिये मिडियेशन सेन्टर के समक्ष भेजे जाने का नियम कडाई से लागू है। आपराधिक धाराओं में मुकदमे पंजीकृत करने के लिये दी गई अर्जियों पर भी अब थाना स्तर पर कोई कार्यवाही किये जाने के पूर्व मामलो को पारस्परिक बातचीत के लिये मिडियेशन सेन्टर भेजा जाने लगा है परन्तु कोई विधिपूर्ण शक्ति न होने के कारण विवादो को सुलझाने मे मिडियेशन सेन्टर की भूमिका निर्णायक नही हो पा रही है। मिडियेशन किसी सकारात्मक परिणाम तक पहॅुचने के लिये नही बल्कि केवल औपचारिकता के लिये किया और कराया जाने लगा है। एक कम्पनी सेकेट्री पत्नी की शिकायत पर उसके चार्टड एकाउन्टेन्ट पति पर आपराधिक धाराओ में मुकदमा पंजीकृत हो जाने के बाद पति के अनुरोध पर मामला मिडियेशन सेन्टर के समक्ष संदर्भित किया गया। पति को आपाधिक धाराओं में अपनी गिरफ्तारी का भय था इसलिये उसने पुलिस स्टेशन पर बातचीत के द्वारा मामला सुलझ जाने की आशा जताई। सुनवाई के दौरान पति ने पत्नी और अपनी तीन वर्षीय बेटी को अपने साथ ले जाने की इच्छा जताई। पत्नी तैयार हो गयी। लेेकिन कभी किराये पर घर न मिल पाने और कभी कोई दूसरा बहाना बताकर पति पत्नी को अपने साथ नही ले गया। पति का आचरण शुरूआत से ही आपत्तिजनक था। पत्नी के लिये अपमानजनक भी। पति के द्वारा जानबूझ कर असहयोग किये जाने के कारण मिडियेशन असफल हुआ परन्तु भविष्य में न्यायालय के समक्ष चलने वाली किसी कार्यवाही में पति के इस आचरण पर उसके विरूद्ध किसी कार्यवाही का प्रावधान न होने के कारण लोग मिडियेशन सेन्टर को गम्भीरता से नही लेते और उसकी कार्यवाही को भी लम्बित बनाये रखने का प्रयास करते है।
24 वर्षीय बेटी के चिकित्सक पिता ने पुत्र पैदा न होने के कारण अपनी पत्नी से सम्बन्ध विच्छेद कर लिया है। पत्नी और अपनी बेटियो को भरण पोषण के लिये भगवान भरोसे छोड दिया है। न्यायालय ने खुद विवाद को सुलझाने के लिये मिडियेशन सेन्टर के समक्ष भेज दिया है। मिडियेशन सेन्टर द्वारा कई बार सूचना भेजे जाने के बावजूद पति उपस्थित नही हो रहा है। पत्नी प्रत्येक तिथि पर समझौते की आस में उपस्थित रहती है और निराश होकर वापस चली जाती है। उसके सामने दोनो बेटियो के विवाह और खुद अपने जीवन यापन की चिन्ता है लेकिन इस साझी चिन्ता के प्रति पति एकदम उदासीन है। इस मामले मे चिकित्सक पति का आचरण शुरूआत से ही आपराधिक है और पत्नी के लिये क्रूरता की परिधि में आता है। मिडियेशन सेन्टर में मिडियेटर खुद पति के आचरण से संतुष्ट नही है परन्तु शक्ति विहीन होने के कारण मिडियेटर पति को अपने दाम्पत्य कर्तव्यो का पालन करने के लिये विवश नही कर सकते। केवल रिपोर्ट भेज सकेगें कि मिडियेशन सफल नही हुआ। इसी प्रकार एक इन्जीनियर पत्नी भी आपसी सुलह समझौतेे के लिये मिडियेशन सेन्टर में अपने पति का इन्तजार करती रहती है। डाक्टर पति को मिडियेटर ने स्वंय उसके मोबाइल पर उससे बातचीत की। उसकी सहमति से अगली तिथि नियत की परन्तु अगली तिथि पर भी डाक्टर नही आया। इन दोनो के दाम्पत्य साहचर्य से एक बेटे का जन्म भी हो गया है और पति अपनी पत्नी और बेटे के भरण पोषण की कोई चिन्ता नही करता। पत्नी अकेले बेटे को पाल रही है और अकेले पन का शिकार है। उसे अपने भविष्य को लेकर निराश होने लगी है। डाक्टर पति जानबूझ कर मिडियेशन सेन्टर और अपनी पत्नी की उपेक्षा कर रहा है। मिडियेटर सबकुछ समझते हुये भी डाक्टर पति के विरूद्ध कोई कार्यवाही न कर पाने में अपने आपको असहाय पाते है।
सर्वोच्च न्यायालय के मिडियेशन सेन्टर के समक्ष एम.बी.ए. दम्पत्ति के वैवाहिक विवाद मे कई दिनों की लम्बी बातचीत और मिलने जुलने के समुचित अवसर मिलने के बाद आपसी समझौता हो गया। समझौते के तहत पत्नी पति के साथ दाम्पत्य सम्बन्धो के निर्वहन के लिये कानपुर आ गयी। कई महीने पति के साथ रही परन्तु इस दौरान पति जानबूझकर पत्नी को अपमानित करने के लिये सहवास के अवसरो को नजरन्दाज करता रहा। एक भी दिन पत्नी के प्रति आत्मीय नही हुआ और सदैव उसे उत्पीडित करता रहा। मजबूरन पत्नी मायके लौट गई। पति के माता पिता दोनो की गलतफहमियों को दूर कराने के लिये तैयार नही है। पत्नी के माता पिता का पति सम्मान नही करता इसलिये वे अपने आपको असहाय पाते है। मिडियेशन सेन्टर भी इस प्रकार के विवादो में खुद को असहाय पाता है। उसके पास दोषी व्यक्ति को चिन्हित करके उसके विरूद्ध कार्यवाही करने की अनुशंशा करने का भी अधिकार नही है।
वैवाहिक विवादो को सुलझाने में बुआ, मौसी, चाची की भूमिका महत्वपूर्ण हुआ करती थी। वे एक दूसरे के स्वभाव और उसकी पारिवारिक पृष्ठिभूमि से सुपरिचित रहती थी इसलिये उन्हे विवाह के बाद दोनो परिवारो के बीच सामन्जस्य बिठाने मे आने वाली कठिनाइयो का ज्ञान होता था और वे एक दूसरे पर नैतिक दबाव बनाकर विवाद सुलझा दिया करती थी। आज युवा दम्पत्तियो पर परिवार या समाज का नैतिक प्रभाव समाप्त हो गया है। किसी को मनाने या किसी की बात मानने का माहौल नही है इसलिये मिडियेशन सेन्टर की भूमिका बढ गयी है और उसे ज्यादा प्रभावी किये जाने की जरूरत है।
मिडियेशन सेन्टर के समक्ष आपसी बातचीत के दौरान दोषी पक्षकार चिन्हित हो जाता है। स्पष्ट हो जाता है कि दोषी कौन है? इसलिये मिडियेटर को अपने समक्ष संदर्भित विवाद पर एक विस्तृत रिपोर्ट भेजने का अधिकार दिया जाना चाहिये। रिपोर्ट मे सुनवाई के लिये नियत तिथियो की संख्या, उन तिथियों पर पक्षकारों की उपस्थिति, आपसी सुलह समझौते मे पक्षकारो की व्यक्तिगत रूचि अरूचि और उनके द्वारा किये गये सहयोग या असहयोग का स्पष्ट उल्लेख किया जाना चाहिये ताकि न्यायालय को वैवाहिक विवाद का न्यायपूर्ण समाधान करने मे सहायता प्राप्त हो सके और कोई पक्षकार मिडियेशन सेन्टर का अनुचित सहारा लेकर दूसरे पक्षकार को प्रताडित करने में सफल न हो सके।
तलाक की बढती घटनाओं के लिये युवा दम्पत्तियों के साथ उनके माता पिता या अन्य निकटतम सम्बन्धियो की निरन्तर संवादहीनता एक बडा कारण है। इस सामाजिक कमी को दूर करने और परस्पर बातचीत के द्वारा आपसी सौहार्द और आत्मीयता बनाने, बढाने के लिये मिडियेशन सेन्टर का गठन किया गया है। वैवाहिक विवादो पर कोई अन्तिम निर्णय लेने के पूर्व दम्पत्तियों को सुलह समझौते के लिये मिडियेशन सेन्टर के समक्ष भेजे जाने का नियम कडाई से लागू है। आपराधिक धाराओं में मुकदमे पंजीकृत करने के लिये दी गई अर्जियों पर भी अब थाना स्तर पर कोई कार्यवाही किये जाने के पूर्व मामलो को पारस्परिक बातचीत के लिये मिडियेशन सेन्टर भेजा जाने लगा है परन्तु कोई विधिपूर्ण शक्ति न होने के कारण विवादो को सुलझाने मे मिडियेशन सेन्टर की भूमिका निर्णायक नही हो पा रही है। मिडियेशन किसी सकारात्मक परिणाम तक पहॅुचने के लिये नही बल्कि केवल औपचारिकता के लिये किया और कराया जाने लगा है। एक कम्पनी सेकेट्री पत्नी की शिकायत पर उसके चार्टड एकाउन्टेन्ट पति पर आपराधिक धाराओ में मुकदमा पंजीकृत हो जाने के बाद पति के अनुरोध पर मामला मिडियेशन सेन्टर के समक्ष संदर्भित किया गया। पति को आपाधिक धाराओं में अपनी गिरफ्तारी का भय था इसलिये उसने पुलिस स्टेशन पर बातचीत के द्वारा मामला सुलझ जाने की आशा जताई। सुनवाई के दौरान पति ने पत्नी और अपनी तीन वर्षीय बेटी को अपने साथ ले जाने की इच्छा जताई। पत्नी तैयार हो गयी। लेेकिन कभी किराये पर घर न मिल पाने और कभी कोई दूसरा बहाना बताकर पति पत्नी को अपने साथ नही ले गया। पति का आचरण शुरूआत से ही आपत्तिजनक था। पत्नी के लिये अपमानजनक भी। पति के द्वारा जानबूझ कर असहयोग किये जाने के कारण मिडियेशन असफल हुआ परन्तु भविष्य में न्यायालय के समक्ष चलने वाली किसी कार्यवाही में पति के इस आचरण पर उसके विरूद्ध किसी कार्यवाही का प्रावधान न होने के कारण लोग मिडियेशन सेन्टर को गम्भीरता से नही लेते और उसकी कार्यवाही को भी लम्बित बनाये रखने का प्रयास करते है।
24 वर्षीय बेटी के चिकित्सक पिता ने पुत्र पैदा न होने के कारण अपनी पत्नी से सम्बन्ध विच्छेद कर लिया है। पत्नी और अपनी बेटियो को भरण पोषण के लिये भगवान भरोसे छोड दिया है। न्यायालय ने खुद विवाद को सुलझाने के लिये मिडियेशन सेन्टर के समक्ष भेज दिया है। मिडियेशन सेन्टर द्वारा कई बार सूचना भेजे जाने के बावजूद पति उपस्थित नही हो रहा है। पत्नी प्रत्येक तिथि पर समझौते की आस में उपस्थित रहती है और निराश होकर वापस चली जाती है। उसके सामने दोनो बेटियो के विवाह और खुद अपने जीवन यापन की चिन्ता है लेकिन इस साझी चिन्ता के प्रति पति एकदम उदासीन है। इस मामले मे चिकित्सक पति का आचरण शुरूआत से ही आपराधिक है और पत्नी के लिये क्रूरता की परिधि में आता है। मिडियेशन सेन्टर में मिडियेटर खुद पति के आचरण से संतुष्ट नही है परन्तु शक्ति विहीन होने के कारण मिडियेटर पति को अपने दाम्पत्य कर्तव्यो का पालन करने के लिये विवश नही कर सकते। केवल रिपोर्ट भेज सकेगें कि मिडियेशन सफल नही हुआ। इसी प्रकार एक इन्जीनियर पत्नी भी आपसी सुलह समझौतेे के लिये मिडियेशन सेन्टर में अपने पति का इन्तजार करती रहती है। डाक्टर पति को मिडियेटर ने स्वंय उसके मोबाइल पर उससे बातचीत की। उसकी सहमति से अगली तिथि नियत की परन्तु अगली तिथि पर भी डाक्टर नही आया। इन दोनो के दाम्पत्य साहचर्य से एक बेटे का जन्म भी हो गया है और पति अपनी पत्नी और बेटे के भरण पोषण की कोई चिन्ता नही करता। पत्नी अकेले बेटे को पाल रही है और अकेले पन का शिकार है। उसे अपने भविष्य को लेकर निराश होने लगी है। डाक्टर पति जानबूझ कर मिडियेशन सेन्टर और अपनी पत्नी की उपेक्षा कर रहा है। मिडियेटर सबकुछ समझते हुये भी डाक्टर पति के विरूद्ध कोई कार्यवाही न कर पाने में अपने आपको असहाय पाते है।
सर्वोच्च न्यायालय के मिडियेशन सेन्टर के समक्ष एम.बी.ए. दम्पत्ति के वैवाहिक विवाद मे कई दिनों की लम्बी बातचीत और मिलने जुलने के समुचित अवसर मिलने के बाद आपसी समझौता हो गया। समझौते के तहत पत्नी पति के साथ दाम्पत्य सम्बन्धो के निर्वहन के लिये कानपुर आ गयी। कई महीने पति के साथ रही परन्तु इस दौरान पति जानबूझकर पत्नी को अपमानित करने के लिये सहवास के अवसरो को नजरन्दाज करता रहा। एक भी दिन पत्नी के प्रति आत्मीय नही हुआ और सदैव उसे उत्पीडित करता रहा। मजबूरन पत्नी मायके लौट गई। पति के माता पिता दोनो की गलतफहमियों को दूर कराने के लिये तैयार नही है। पत्नी के माता पिता का पति सम्मान नही करता इसलिये वे अपने आपको असहाय पाते है। मिडियेशन सेन्टर भी इस प्रकार के विवादो में खुद को असहाय पाता है। उसके पास दोषी व्यक्ति को चिन्हित करके उसके विरूद्ध कार्यवाही करने की अनुशंशा करने का भी अधिकार नही है।
वैवाहिक विवादो को सुलझाने में बुआ, मौसी, चाची की भूमिका महत्वपूर्ण हुआ करती थी। वे एक दूसरे के स्वभाव और उसकी पारिवारिक पृष्ठिभूमि से सुपरिचित रहती थी इसलिये उन्हे विवाह के बाद दोनो परिवारो के बीच सामन्जस्य बिठाने मे आने वाली कठिनाइयो का ज्ञान होता था और वे एक दूसरे पर नैतिक दबाव बनाकर विवाद सुलझा दिया करती थी। आज युवा दम्पत्तियो पर परिवार या समाज का नैतिक प्रभाव समाप्त हो गया है। किसी को मनाने या किसी की बात मानने का माहौल नही है इसलिये मिडियेशन सेन्टर की भूमिका बढ गयी है और उसे ज्यादा प्रभावी किये जाने की जरूरत है।
मिडियेशन सेन्टर के समक्ष आपसी बातचीत के दौरान दोषी पक्षकार चिन्हित हो जाता है। स्पष्ट हो जाता है कि दोषी कौन है? इसलिये मिडियेटर को अपने समक्ष संदर्भित विवाद पर एक विस्तृत रिपोर्ट भेजने का अधिकार दिया जाना चाहिये। रिपोर्ट मे सुनवाई के लिये नियत तिथियो की संख्या, उन तिथियों पर पक्षकारों की उपस्थिति, आपसी सुलह समझौते मे पक्षकारो की व्यक्तिगत रूचि अरूचि और उनके द्वारा किये गये सहयोग या असहयोग का स्पष्ट उल्लेख किया जाना चाहिये ताकि न्यायालय को वैवाहिक विवाद का न्यायपूर्ण समाधान करने मे सहायता प्राप्त हो सके और कोई पक्षकार मिडियेशन सेन्टर का अनुचित सहारा लेकर दूसरे पक्षकार को प्रताडित करने में सफल न हो सके।
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