Sunday, 11 September 2016

गंगा घाटों पर तैराको की तैनाती शासन की जिम्मेदारी


गंगा स्नान धार्मिक और आध्यात्मिक आस्था से जुड़ा है। सुरक्षा के नाम पर अधिकारी इसे रोक नहीं सकते घाटों पर सुरक्षा मुहैया कराना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। जिला प्रशासन हो, पुलिस हो, नगर निगम हो या अन्य कोई विभाग सभी जनता के लिए बने है और उनकी जरूरत को पूरा करना ही इनकी अनिवार्य प्राथमिक जिम्मेदारी है। आये दिन गंगा बैराज के पास युवाओं के डूबने की दुखद घटनायें सुनने को मिलती है। इनमें आई.आई.टी., एच.बी.टी.यू. और मेडिकल कालेज के छात्र भी होते है न जाने कितनी जिन्दगियाँ गंगा की लहरों मे समा गई न जाने कितने माताओं ने अपने होनहार पुत्र गँवा दिये और कई परिवार बर्बाद हो गये परन्तु प्रशासन ने इन घटनाओं को रोकने के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किये है।
आये दिन घाटों पर लोगों के डूबने की घटनायें सभी जिम्मेदारों के संज्ञान में है परन्तु गंगा घाटो पर लोगों की सुरक्षा का कोई माकूल प्रबन्ध करने में जिला प्रशासन नाकाम रहा है। अधिकारियों से लोगों की सुरक्षा की तनिक भी चिन्ता नही है। जब भी ऐसी घटनायें घटित होती है तो कहा जाता है कि घाटों पर गोताखोर तैनात किये जायेंगे परन्तु नगर निगम अधिनियम में संशोधन करके इस आशय का प्रावधान बानने की दिशा में अभी तक कोई सार्थक प्रयत्न किये ही नहीं गये है। किसी को इसकी चिन्ता भी नहीं है । जिलाधिकारी कहते है कि सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस की है और पुलिस कहती है कि हमारे पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। गंगा में नहाते समय डूब जाना कानून व्यवस्था की समस्या नहीं है। अधिकारियों द्वारा दूसरे पर जिम्मेदारी मढ़ने की बातें सुनकर आम आदमी असहाय हो जाता है।
डूबने की घटनाओं पर ये अधिकारी आखिर अपने दायित्व मे कैसे बच सकते है ? सुरक्षा की जिम्मेदारी आखिर कौन वहन करेगा ? क्या लोग अपने लाडलो को यूँ ही गंगा में समाते देखते रहेंगे और अधिकारी दूसरों को दोष देकर बचते रहेंगे। कई बार आफ रिकार्ड अधिकारी कहते है कि खतरा है तो लोग नहाने क्यों जाते है ? गंगा स्नान आम भारतीयों की आस्था का विषय है। गंगा स्नान के पर्वो से स्थानीय लोगों की अर्थव्यवस्था भी जुड़ी है इसलिए उसे रोका नहीं जा सकता। गंगा घाटों पर लोगों को डूबने से बचाने की जिम्मेदारी अधिकारी की है इसलिए तीज त्यौहारों पर जिला प्रशासन खुद सारी व्यवस्थायें करता है। इसी तरह आम दिनों में भी हर नागरिक घाटों पर सुरक्षा पाने का अधिकारी है। भारतीय संविधान और कानून उसे यह अधिकार देता है और उसे उसके इस अधिकार के तहत सुरक्षा देना सरकार और उसके अधिकारियों की जिम्मेदारी है। हम लोकतान्त्रिक समाज में रहते है और हमारे द्वारा निर्वाचित सांसद या विधायक हम पर हमारे लिए शासन करते है और उनका दायित्व है कि वे समाज के प्रत्येक क्षेत्र में आम लोगों की सुरक्षा का पुख्ता इन्तजाम करें। 
एक पूर्व केन्द्रीय मन्त्री अपने विद्यार्थी जीवन में बिठूर के एक घाट पर नहाते समय अपने तीन भाईयों के साथ काफी दूर तक बहते चले गये थे घाट पर खड़े उनके सभी सुपरिचितों ने उनके बचने की आशा छोड़ दी थी, इसी बीच एक अनजान व्यक्ति गंगा में कूदा और उसने चारों भाईयों को डूबने से बचा लिया। इस प्रकार के व्यक्तिगत प्रयास आये दिन होते रहते है परन्तु जिला प्रशासन या नगर निगम को इस काम की कोई संस्थात्मक व्यवस्था करनी चाहिए। नदी किनारे तट रक्षकों की नियमित तैनाती, कुशल तैराको और गोताखोरों के नियमित प्रशिक्षण और उनके जीवनयापन का प्रबन्ध सरकार को करना ही चाहिए।

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