किसी न्यायिक विद्वान ने कई दशक पहले आवहन किया था आइये न्याय व्यवस्था से जुड़े हम सब लोग अपने अपने स्तर पर कुछ ऐसे कार्य करें जिससे इस व्यवस्था के सम्पर्क में आने वाले लोगों का विश्वास इस व्यवस्था के प्रति और ज्यादा सुदृढ़ हो सके। इन शब्दों को साकार देखने की अपेक्षा एक सपने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है लेकिन मेरी इस सोच को माननीय जनपद एवं सत्र न्यायाधीश चित्रकूटधाम श्री संजय कुमार पचैरी ने बदल दिया। मुझे कल दिनांक 22.10.2016 को आरबीट्रेशन के मामले में उनके समक्ष उपस्थित होने का अवसर प्राप्त हुआ। मैंने देखा कि जमानत प्रार्थनापत्रों के निस्तारण के तत्काल बाद उन्होंने मोटर एक्सीडेण्ट क्लेम से सम्बन्धित वादो की सुनवाई की। एक एक फाइल पर खुद आदेश किये और उभयपक्षों को आपसी समझौते के लिए उत्प्रेरित किया। लंच के बाद ठीक 2 बजे वे पुनः न्यायालय में आ गये और फिर रोजमर्रा की पेशी निपटाने के बाद उन्होंने आरबीट्रेशन से सम्बन्धित फाइलों का निपटारा शुरु किया। पचास से ज्यादा फाइलों पर उन्होंने आदेश पारित किये और उसके बाद उन्होंने हमारे मामलें में 3:45 बजे तक लम्बी बहस सुनी। पिछले डेढ़ दशक में मैंने सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी, जिला शासकीय अधिवक्ता दीवानी एवं स्थायी अधिवक्ता भारत सरकार के पद पर कार्य किया है परन्तु मैंने किसी न्यायाधीश को माननीय पचैरी जी की तरह कार्य करते नहीं देखा। अपने न्यायिक जगत में लम्बित मुकदमों के बढ़ते बोझ की चिन्ता सभी स्तरों पर व्यक्त की जाती है। सभी एक दूसरे पर दोषारोपण किया करते है परन्तु मुकदमों के निस्तारण में अपने स्तर पर तेजी लाने का सार्थक प्रयास करते कोई नहीं दिखता। मैं नियमित रूप से विभिन्न न्यायालयों के समक्ष उपस्थित होता रहता हूँ। मेरे संज्ञान में है कि आरबीट्रेशन एण्ड कन्सिलियेशन एक्ट 1996 की धारा 34 के तहत वर्ष 2003 से लम्बित मुकदमों का निस्तारण अभी तक नही हो सका है और अब 2017 की तिथियाँ नियत की जाने लगी है। इस परिस्थितियों में मुझे नकारा मानकर कई कारपोरेट क्लाइंट अपनी फाइलें मुझसे वापस ले गये। मुकदमोें के निस्तारण के लिए सभी स्तरों पर व्यक्तिगत प्रयास की जरूरत है। माननीय पचैरी जी संसाधनों की कमी पर दोषारोपण किये बिना लम्बित मुकदमों को कम करने का अपने स्तर पर सार्थक प्रयास कर रहे है। सभी को उनका अनुशरण करना चाहिए। मैं उन्हें सादर सलाम करता हूँ।
Sunday, 23 October 2016
जिला जज चित्रकूटधाम को सलाम
किसी न्यायिक विद्वान ने कई दशक पहले आवहन किया था आइये न्याय व्यवस्था से जुड़े हम सब लोग अपने अपने स्तर पर कुछ ऐसे कार्य करें जिससे इस व्यवस्था के सम्पर्क में आने वाले लोगों का विश्वास इस व्यवस्था के प्रति और ज्यादा सुदृढ़ हो सके। इन शब्दों को साकार देखने की अपेक्षा एक सपने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है लेकिन मेरी इस सोच को माननीय जनपद एवं सत्र न्यायाधीश चित्रकूटधाम श्री संजय कुमार पचैरी ने बदल दिया। मुझे कल दिनांक 22.10.2016 को आरबीट्रेशन के मामले में उनके समक्ष उपस्थित होने का अवसर प्राप्त हुआ। मैंने देखा कि जमानत प्रार्थनापत्रों के निस्तारण के तत्काल बाद उन्होंने मोटर एक्सीडेण्ट क्लेम से सम्बन्धित वादो की सुनवाई की। एक एक फाइल पर खुद आदेश किये और उभयपक्षों को आपसी समझौते के लिए उत्प्रेरित किया। लंच के बाद ठीक 2 बजे वे पुनः न्यायालय में आ गये और फिर रोजमर्रा की पेशी निपटाने के बाद उन्होंने आरबीट्रेशन से सम्बन्धित फाइलों का निपटारा शुरु किया। पचास से ज्यादा फाइलों पर उन्होंने आदेश पारित किये और उसके बाद उन्होंने हमारे मामलें में 3:45 बजे तक लम्बी बहस सुनी। पिछले डेढ़ दशक में मैंने सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी, जिला शासकीय अधिवक्ता दीवानी एवं स्थायी अधिवक्ता भारत सरकार के पद पर कार्य किया है परन्तु मैंने किसी न्यायाधीश को माननीय पचैरी जी की तरह कार्य करते नहीं देखा। अपने न्यायिक जगत में लम्बित मुकदमों के बढ़ते बोझ की चिन्ता सभी स्तरों पर व्यक्त की जाती है। सभी एक दूसरे पर दोषारोपण किया करते है परन्तु मुकदमों के निस्तारण में अपने स्तर पर तेजी लाने का सार्थक प्रयास करते कोई नहीं दिखता। मैं नियमित रूप से विभिन्न न्यायालयों के समक्ष उपस्थित होता रहता हूँ। मेरे संज्ञान में है कि आरबीट्रेशन एण्ड कन्सिलियेशन एक्ट 1996 की धारा 34 के तहत वर्ष 2003 से लम्बित मुकदमों का निस्तारण अभी तक नही हो सका है और अब 2017 की तिथियाँ नियत की जाने लगी है। इस परिस्थितियों में मुझे नकारा मानकर कई कारपोरेट क्लाइंट अपनी फाइलें मुझसे वापस ले गये। मुकदमोें के निस्तारण के लिए सभी स्तरों पर व्यक्तिगत प्रयास की जरूरत है। माननीय पचैरी जी संसाधनों की कमी पर दोषारोपण किये बिना लम्बित मुकदमों को कम करने का अपने स्तर पर सार्थक प्रयास कर रहे है। सभी को उनका अनुशरण करना चाहिए। मैं उन्हें सादर सलाम करता हूँ।
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