भइया मैंने सुना है कि भारत सरकार ने अपनी नई योजना में कानपुर को भी स्मार्ट सिटी बनाने का एलान किया है। सभी कनपुरियों की तरह मैं भी इस एलान से काफी खुश हूँ परन्तु मेरे मन में कई आशंकाये घुमड़ने लगी है। मैं रोज अपने परिवार के पेट पालने लायक कमाई कर लेता हूँ। स्मार्ट सिटी में न्यूनतम पचास लाख रुपये ब्यय करने पर ही आशियाना मिलेगा। हम आसान किश्तों में भी पचास लाख रुपये देने की स्थिति में नहीं होंगे। मेरी पत्नी ने जन धन योजना के तहत एक हजार रुपया देकर बैंक में अपना खाता खोल लिया है परन्तु दुबारा कुछ जमा करने की नौबत अभी नहीं आई है इसलिए प्रस्तावित स्मार्ट सिटी में अपने आस्तित्व को लेकर मैं परेशान हूँ।
भइया आप शायद भूल गये लेकिन हमें याद है कि इस शहर में कपड़ा मिलें हुआ करती थी जहाँ हमारे जैसे गरीब गुरबा लोग मेहनत मजदूरी करके अपना गुजर बसर करते थे। हम लोग मलिन बस्तियों की खपरैल की छत वाली छोटी छोटी कोठरियों में रहते थे और उसी में खाना पकाते थे। हमारे इस नारकी दशा से हमारे नेता हरिहर नाथ शास्त्री ने तब के प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू को अवगत कराया। पण्डित जी को विश्वास ही नहीं हुआ कि इस वह स्वयं प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त सहित अपने कई मंत्रियों के साथ जूही खलवा में हमें देखने आये। हमारी दशा देखकर वे दुखी हुए, नाराज हुए और फिर उन्होेंने जूही खलवा में ही औद्योगिक श्रमिकों के लिए कालोनी बनाने का निर्णय लिया। हम मजदूरों को इस कालोनी में दस रुपये महीने किराये पर घर दिये गये।
भइया स्मार्ट सिटी बनने के पहले ही अपने शहर की इन कालोनियों पर प्राॅपर्टी डीलरांे की गिद्ध दृष्टि लग गई है। एल्गिल मिल के श्रमिकों से उनकी कालोनी खाली कराने का अभियान तेजी पर है जबकि भारत सरकार ने अपने नीतिगत निर्णय के तहत इन कालोनियों का स्वामित्व उसमें रहने वाले लोग के पक्ष में हस्तांतरित कर देने का एलान कर रखा है लेकिन दुर्भाग्य देखिये कि शहर के ही एक नुमाइंदे बाल चन्द्र मिश्रा ने अपने श्रममंत्री काल में भारत सरकार के निर्णय को पलट दिया और कहा कि श्रमिकों को वर्तमान सर्किल रेट के आधार पर कालोनी बेची जाएंगी। अब समाजावादी आजम भाई उनसे आगे निकल गये है। उनका कहना है कि श्रमिकों की बस्तियाँ खाली कराई जाएंगी। बाल चन्द्र मिश्रा से आजम खाँ तक आते आते अपना शहर बदल गया। अब गरीबी, बेकारी, अशिक्षा, बीमारी की कोई बात नहीं करता। अब सभी मन्दिर, मस्जिद की बातें करते है। हम भी अब हरिहर नाथ शास्त्री, एस.एम. बनर्जी, सन्त सिंह यूसुफ, गणेश दत्त बाजपेयी, प्रभाकर त्रिपाठी को वोट नहीं देते।। हमने जाति और धर्म के आधार पर वोट देना शुरु कर दिया है। हम जानते भी है कि हमारी इसी आदत ने हमारे आस्तित्व पर गम्भीर संकट खड़ा किया है।
भइया स्मार्ट सिटी बनने की घोषणा के साथ ही मेट्रो ट्रेन चलाने का एलान किया जा चुका है। कहा जाता है कि मेट्रो से अपने शहर का यातायात सुधरेगा और सड़को पर भीड़ कम हो जाएगी। भीड़ कम करने की योजना भी मुझे डराती है। आपको शायद नहीं मालूम कि सुदूर गाॅवों से बेरोजगार युवक अपने शहर में रोजगार की तलाश में आया करते थे। अपने शहर ने उन्हें कभी निराश नहीं किया। उन्हें मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन यापन करने के अवसर और रात में सिर छुपाने के लिए छत सदा उन्हें दी है। सुबह छः बजे से रात बारह बजे तक अपने शहर की सड़को में गहमागहमी बनी रहती थी। फैक्ट्रियांे के शायरन बजते थे और मेहनतकश लोेग मजदूरी करने के लिए फैक्ट्रियों की तरफ भागते थे, अच्छा लगता था। इसी भाग दौड़ के बीच हम हँसी मजाक करके मनोरंजन करते थे परन्तु नामालूम किसकी नजर लग गई और धीरे धीरे सभी फैक्ट्रियाँ बन्द हो गई और उसके साथ ही सड़कों पर गहमागहमी भी नदारद हो गई। प्रस्तावित स्मार्ट सिटी में सड़कों की इस गहमागहमी को वापस लाने की कोई योजना अभी तक दिखाई नहीं पड़ी है। इसका मतलब है कि स्मार्ट सिटी में केवल ऊँची ऊँची अट्टालिकाएं होंगी और पूरे शहर में फायनेन्स, इन्श्योरेन्स और किश्तों की अदायगी न कर पाने वालों के घरों पर जबरन कब्जा लेने वालों का व्यापार खूब फले फूलेगा। स्मार्ट सिटी की मुट्ठी बन्द है और हम एक बार फिर जूही खलवा वाली स्थिति में वापस जाने के खतरे को लेकर परेशान है।
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