Tuesday, 27 June 2017

पिछले दिनों नई दिल्ली में एक विवाह समारोह में शामिल हुआ। अपने बाल सखाओं, निकटतम रिश्तेदारों के पारिवारिक समारोहो से पृथक अपरिचित परिवार और एकदम नये लोगों के बीच मेरे लिए एक नया अवसर था, मैं झिझक रहा था, इकोनाॅमिक टाइम्स के अमित और स्वाती को छोड़कर मुझे पहले से वहाँ कोई जानता नहीं था लेकिन सभी लोगों ने खुद ब खुद मुझसे परिचय किया, उन सबके खुले व्यवहार के कारण कुछ ही क्षणों में आत्मीयता हो गई, मुझे अहसास ही नही होने दिया कि उन सबके बीच अभी कुछ ही देर पहले तक हम एक दूसरे से अपरिचित थे। उन सबने बच्चों जैसी खिलखिलाहट और जिन्दादिली मेें अपना बचपन बरकरार रखा है। विवाह के अवसरों पर फूफा, मामा, चाचा, ताऊ को नाराज होते मैंने कई बार देखा है लेकिन इन सबके बीच कोई नाराज दिखा ही नहीं, सभी खुश थे, नाच रहे थे, गा रहे थे। मेंहदी रश्म के दौरान पूरा परिवार (पुत्रवधु ससुर सहित) एक साथ हँसी, खुशी नाचा गाया। उन सबने खुश होने के हर अवसर को भरपूर जिया। अमित के पापा ने उनकी मम्मी को जाने से रोकने के लिए ”रुक जा ओ जाने वाली रुक जा.......“ गीत गाया, गीत सुनकर सभी झूम उठे, माहौल पहले से ही खुशनुमा था, उसमें चार चाँद लग गये। मेरे लिए सब कुछ नया सा था, कुछ वर्ष पहले मैंने एक फिल्म का प्रीमियम देखा था, वहाँ अभिनेता शाहरुख खान, अनिल कपूर अभिनेत्री गौतमी आदि कई ग्लैमरस लोगों के बीच बैठकर मुझे जो खुशी मिली थी, उससे कहीं ज्यादा खुशी इस परिवार के बीच में बैठकर मुझे मिली है। मैं नही जानता कि मेरे किस कर्म के प्रतिफल में भगवान ने मुझे इस परिवार का सानिध्य सुख प्रदान किया लेकिन अब इतना तो निश्चित है कि जो बच्चे मेरी अँगुली पकड़कर चलने में खुश होते थे, उनकी अँगुली मेरे हाथ से कब छूट गई पता ही नही चला और अब वे अँगुलियाँ मेरी कलाई पर सहारा बनने को आतुर है। 

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