राजनारायण एक राजनेता नही, खुद में एक जीता जागता आन्दोलन थे। गरीबी, बेकारी, अशिक्षा, बीमारी के विरुद्ध वे अनवरत संघर्षरत रहें। उनको निकट से देखने के मुझे कई अवसर मिलें है। कानपुर की लक्ष्मी रतन काॅटन मिल के मालिक, काँग्रेस के प्रभावशाली नेता और सांसद राम रतन गुप्ता थे। उनकी मिल में श्रमिकों की यूनियन बनाना अपराध की परिधि में आता था। उस समय के प्रभावशाली मजदूर नेता सन्त सिंह यूसुफ और गणेश दत्त बाजपेयी उनकी मिल में यूनियन नही बना सके थे। राम रतन गुप्ता के गुण्डों ने उनके साथ अभद्रता की और उनके प्रयासों को असफल कर दिया। इस चुनौती को राजनारायण के अनुयायियों श्री एन.के. नायर, रघुनाथ सिंह और शिव किशोर ने स्वीकार किया। राजनारायण जी खुद लक्ष्मी रतन काॅटन मिल के गेट पर आये, ”मिल को सरकार चलाये, राम रतन को जेल हो“ की माँग का समर्थन किया। इस मुद्दे पर राज्यसभा में किसी तकनीकी कारण से प्रश्न पूँछने की अनुमति नही मिल पा रही थी। राजनारायण जी मिल के श्रमिकों के एक प्रतिनिधि मण्डल को तब के उपराष्ट्रपति आदरणीय वी.वी. गिरि (जो प्रख्यात श्रमिक नेता भी थें) के आवास पर ले गये और उन्हें बताया कि कानपुर के श्रमिक अपने नेता से मिलने आये है। गिरि साहब श्रमिकों से मिलकर बहुत खुश हुए और फिर उन्होंने उसी दिन राज्यसभा में राजनारायण जी के प्रश्न का उत्तर देेने के लिए तत्कालीन वाणिज्य मन्त्री को मजबूर किया और यहीं से कानपुर की लक्ष्मी रतन काॅटन मिल के राष्ट्रीयकरण की शुरुआत हुई थी। आज पूरा कानपुर उद्योगविहीन हो गया है परन्तु लोकसभा या राज्यसभा में इस औद्योगिक दुर्दशा पर किसी सांसद ने चर्चा कराने का प्रयास नही किया। 1980 में जे.के. आयरन एण्ड स्टील फैक्ट्री में श्रमिकों का आन्दोलन हुआ था काँग्रेसी नेताओं के इशारे पर शिव कुमार बेरिया सहित कई मजदूर नेताओं के विरुद्ध हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज कर लिया गया था जबकि काँग्रेसी नेताओं के हमलें से बैजनाथ पाण्डे सहित कई श्रमिक घायल हुए थे। राजनारायण जी इस आन्दोलन में शिव कुमार बेरिया की हौसला आफजाई करने के लिए आये थे। तत्कालीन एस.एस.पी. यशपाल सिंह खुद उनसे मिलने आये। परिणामस्वरूप मुकदमा वापस हुआ। मैंने उन्हें अपनी किशोरावस्था में देखा था और जब मैं संसद में प्रश्न पूँछने के लिए सांसदों द्वारा पैसे माँगने की बात सुनता हूँ, तब मुझे राजनारायण बहुत याद आते है।
राजनारायण जी आज ही के दिन 23 नवम्बर 1917 को बनारस में पैदा हुये थे और उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की और 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया। आजादी के बाद डा0 राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में उन्होंने समाजवादी आन्दोलन को एक नई धार दी लगभग अस्सी बार जेल जाने वाले राजनारायण का नारा हुआ करता था ”एक पैर रेल में दूसरा पैर जेल में“। सर्वशक्तिमान कही जाने वाली इन्दिरा गाँधी को उन्होंने कानून की अदालत और जनता की अदालत दोनों जगहों पर परास्त किया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट में उनके सामने इन्दिरा गाँधी की पराजय आपातकाल का तात्कालीन कारण बनी थी। राजनारायण जी उन्नीस महीने जेल में रहें हलांकि जनता पार्टी की सरकार के दौरान वे केन्द्र में मन्त्री थे परन्तु नागरिक अधिकार के मुद्दे पर उन्होंने अपनी ही पार्टी की शान्ता कुमार सरकार के खिलाफ शिमला में छात्रों-युवाओं की रैली का नेतृत्व किया। एक बार अकाल के बिगड़ी परिस्थितियों को लेकर उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा में एक स्थगन प्रस्ताव दिया जिसको लेकर सत्तारूढ़ काँग्रेस विधानसभा अध्यक्ष के साथ उनका टकराव हुआ और अध्यक्ष जी ने उन्हें विधानसभा से बाहर जाने का आदेश दिया। उन्होंने अन्याय के खिलाफ अपने विद्रोही स्वभाव के अनुकूल अध्यक्ष का आदेश मानने से इन्कार दिया जिसके कारण अध्यक्ष जी के आदेश से उन्हें मार्शलों ने जबरन अर्धनग्नावस्था में घसीटते-खींचते विधानसभा से बाहर कर दिया। गरीबी, बेकारी, अशिक्षा, बीमारी जैसे आमजन के मुद्दों पर राज्यसभा में भी कई बार उनकी बात नही सुनी गयी और काँग्रेस के इशारे पर राजनारायण जी को जबरन सदन से घसीटते हुए बाहर किया गया था। वे कहा करते थे कि मैंने अपना शरीर भारत के आम लोगों को दे दिया है इसलिए सदन से मैं नही देश की आम जनता को फेंका जाता है। काँग्रेस को केन्द्र की सत्ता से हटाने के लिए उन्होंने अनवरत संघर्ष किया। भारतीय राजनीति में छोटे लोहिया का खिताब जनेश्वर जी को प्राप्त है परन्तु मेरी दृष्टि में लोहिया के बाद उनकी धारा को आगे बढ़ाने का काम केवल राजनारायण जी ने किया है। मैं उनकी स्मृति को श्रृद्धा सुमन अर्पित करता हूँ।
No comments:
Post a Comment