युवा पीढ़ी को दोष मत दो...........
आदरणीय शम्भूनाथ जी ने आज की युवा पीढ़ी के चाल चरित्र और चेहरे पर अप्रिय टिप्पणी की है। मेरी हैसियत उन्हें जवाब देने की नहीं है परन्तु मैं उनसे निवेदन करता हूँ कि आज का युवक हमारी आपकी युवावस्था के दौर से ज्यादा जोरदार संवेदनशील जुझारू और र्इमानदार है, अपनी मेहनत के बल पर सबकुछ पाना चाहता है। तिकड़मो मे नही अपने टेलेन्ट पर विश्वास करता है। हमने उसे सुविधा, स्वार्थ और लालच का माहौल दिया है। उसके आस पास राजा भर्इया, ए राजा, सुरेश कडमानी, श्रीनिवासन जैसे लोग रहते है। इसलिए अब विश्वविधालयों में रामबहादुर राय, अतुल अन्जान, अरूण जेटली, रवि शंकर प्रसाद, रंजना प्रकाश, मार्कन्डे सिंह, चंचल, अनुग्रह नारायण सिंह, ब्रजेश कुमार, भरत सिंह जैसे हर जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है, का उदघोष करने वाले छात्रनेता पैदा नही हो रहे है, पैदा हो रहे है पी.डब्ल्यू.डी. के इनिजनियरों के यहाँ हाजरी लगाकर ठेका पाने और फिर उसकी कमार्इ से चुनाव लड़ने वाले ठेकेदार। भार्इ साहब आपने मुझसे एक बार कहा था कि 45 वर्ष की आयु से ज्यादा वाले लोग दिनमान, सारिका और इलेस्टे्रटेड वीकली की बात करते है। मैं आज पुन: दोहराना चाहता हूँ कि यदि दिनमान, सारिका या वीकली मे छपने वाली सामग्री आज किसी मैग्जीन मे छपेगी तो निशिचत रूप से 18 से 25 वर्ष आयु वर्ग का युवक उसे पढ़ेगा। हमने अपने से बाद वाली पीढ़ी को कोर्इ आदर्श नही दिया, विश्वविधालयों से कोर्इ आदर्श नेतृत्व पैदा ही नही होने दिया। अब तो संसद में भी डा. लोहिया, ज्योर्तिमय बसु, मधुलिमये, ए.के. गोपालन चुनकर नही आते। अपनी पीढ़ी ने बच्चों को केवल समझौता करके आगे बढ़ने का माहौल दिया है इसलिए उसे दोषी न बताये। उसका चाल, चरित्र और चेहरा अपनी पीढ़ी से ज्यादा देदीप्यमान है। दोषी हम और आप है, अपनी पीढ़ी है, वास्तव में हमें अपना चाल चरित्र और चेहरा बदलने की जरूरत है।
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