Friday, 6 October 2017

पत्रकारिता को भाँड़ बताना भी एक साजिश है


पत्रकारिता को भाँड़ बताना भी एक साजिश है हम सब जानते है कि " अखबार " प्रकाशित करना साधारण काम नहीं है । इसके लिए भारी पूँजी निवेश की जरूरत होती है इसलिये अखबार के मालिक कई बार कारपोरेट घरानों के साथ कुछ समझौते करने के लिए विवश होते है परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि अखबार की सम्पादकीय टीम खुद ब खुद गुलाम हो जाती है ।
18 से 35 आयु वर्ग के मित्रो को शायद राजीव शुक्ला की स्टोरी " बेईमान राजा ईमानदार वित्त मंत्री " हवाला मामले ( जिसमे आड़वानी जी का भी नाम था ) मे रामबहादुर राय की स्टोरी की जानकारी नहीं है । यह दोनों क्रमशः कांग्रेस और भाजपा के घोषित समर्थक है और इन दोनों ने अपने अपने दलों के शीर्ष नेतृत्व का पर्दाफाश करने मे कोई कोताही नहीं की । कुछ और पीछे बताऊँ, अपने के विक्रम राव भाई ने आई पी एस की नौकरी त्याग कर टाइम्स ऑफ इंडिया ज्वाइन किया । हमारी पीढ़ी " दिनमान " सारिका" पढते हुए बड़ी हुई है । धर्म युग के विशेषांक और गणेश मंत्री के लेखआज भी पढे जाँयें तो उसमे बहुत कुछ नया मिलेगा ।
पत्रकारिता कैरियर नहीं मिशन है परन्तु गली मुहल्लो मे राजनेताओं या अचानक अमीर हो गये लोगों द्वारा खोले गये पत्रकारिता महाविद्यालयों ने इसे कैरियर बना दिया है ।रामबहादुर राय, राजीव शुक्ला, प्रवाल मैत्र , प्रशान्त मिश्र , राम कृपाल सिंह, और अंशुमान तिवारी ( सभी को मै निजी तौर पर जानता हूँ) अपने विद्यार्थी जीवन मे प्रतियोगिता दर्पण नही, गाँधी, मार्कस, सात्र, अरस्तू,एम एन राय , लोहिया, अज्ञेय , विमल मित्र, जैसे विद्वानों का साहित्य पढते थे । उनके मन मे किशोरावस्था से ही सामाजिक परिवर्तन के लिए तड़पन थी, अपनी इस तड़पन को संतुष्ट करने केलिए वे पत्रकारिता मे आये है ।पत्रकारिता इन सबका शौक था , मजबूरी नहीं।
आई आई एम सी , जामिया मिलिया जैसे संस्थानों को छोड़ दिया जाये , तो कोई ऐसा संस्थान नहीं है , जहाँ आदरणीय विष्णु त्रिपाठी जैसे अध्यापक हो। मेरा मानना है कि एक साजिश के तहत पत्रकारिता की पढाई को मँहगा किया गया है ताकि ग़रीबी बेकारी अशिक्षा बीमारी भोगने वाले सामान्य परिवारों के बच्चे इसमे आने ही न पायें। चाटुकार हर युग मे रहे है, हर युग मे रहेंगे। आजादी के पहले रामबृक्ष बेनीपुरी भी थे और कई अंग्रेज के गुलाम पत्रकार भी थे । आज रवीशकुमार की तरह बेबाक अपनी बात कहने वाले बहुत से पत्रकार जिला स्तरो पर सक्रिय है । हमारे कानपुर मे एक बार शीशामऊ बाजार मे आग लग गई, तबके केन्द्रीय मंत्री आरिफ भाई की पत्नी क्षेत्रीय विधायक थी , वे नहीं चाहते थे कि यह समाचार प्रमुखता से छपे , उनहोंने मालिकों पर दबाव भी बनाया परन्तु दूसरे दिन " जागरण " मे प्रमोद तिवारी ने सही सही वृत्तांत छाप दिया । आज वही लोग पत्रकारों को भाँड़ बता रहे है , जो रवीशकुमार, पुण्य प्रसून वाजपेयी और अंशुमान तिवारी को अपने जाल मे फँसा नहीं पा रहे है ।
16 टिप्पणियाँ
टिप्पणियाँ
Subhash Sharma कौशल जी इनमे से कई संदर्भ विश्वास नही जगाते।
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Kaushal Sharma आप अपनी शंका बताये , मै आपको विश्वास दिलाऊंगा।
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Subhash Sharma कौशल जी इन्ही नामों को मैने भी वर्षों तक लगातार पढ़ा है और इनके बारे में मेरे अपने विचार है।इनमे से कई बातो से आप भी सहमत न हो।मैं केवल एक छोटी सी घटना लिख रहा हूँ क्योंकि अधिक लिखने से बहस लंबी हो जाएगी।दाहिया ट्रस्ट विषयक स्टोरी जो बैंकॉक में बैठकर लिखी गयी थी उसमें कितना लेन देन हुआ था?इस विषयक तब खूब छपा भी था।आशा है आप इसे अन्यथा नही लेंगे।
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Suresh Sharma Subhash Sharma जी बिलकुल सही निशाने पर तीर चलाया है आपने दरअसल Kaushal भाई भावनाओं में बह गए वरना इनसे भी क्या छुपा है
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Suresh Yadav शायद यह बात पत्रकारों को अच्छी न लगे लेकिन यह बात बिल्कुल सच है कि आजकल के ज्यादातर पत्रकार पुरानी चारण-भाट परम्परा को ही आगे बढ़ा रहे है।

सभी पत्रकार राजीव शुक्ला, रामबहादुर राय, विक्रम राव, प्रवाल मैत्र , प्रशान्त मिश्र , राम कृपाल सिंह, अंशुमान तिवारी, रवीशकुमार या पुण्य प्रसून वाजपेयी जैसे नही हो सकते।

राजनीति के समान ही पत्रकारिता का भी पतन हुआ है। अब राजनीति और पत्रकारिता दोनों मिशन नहीं बल्कि सिर्फ धंधे है।
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Suresh Sharma भाई Suresh जी पुराने पत्रकारों में चारण-भाट परम्परा आपको कहाँ दिखी मुझे नहीं मालूम लेकिन जिन जिन को आप आदर्श मान रहे है सबका इतिहास है
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Suresh Yadav मेरी टिप्पणी को एक बार और गौर से पढ़ें। मैंने चारण-भाट परम्परा वाली बात आजकल के पत्रकारों के संबन्ध में कहा है।
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Prakash Sharma राजीव शुक्ला ने कब कांग्रेस के भृष्ट नेताओ पर कलम चलाई या शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ लिखा अब लिखवा दीजिये न कुछ
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Kaushal Sharma आदरणीय प्रकाश जी 
राजीव गांधी की सरकार के ईमानदार वित्त मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मांगा नरेश के नाते इलाहाबाद मे चन्दन के पेड़ों का करोड़ों रुपया मुआवजा लिया था । उनके वित्त मंत्री रहते उनका पर्दाफाश राजीव शुक्ला ने किया था ।उन्हे बाद मे राजा नही फकीर है ,देश की तकदीर है ,कहकर आपने भी सम्मानित किया और ईमानदार बयकति बताकर सराहा।था ।
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Prakash Sharma मैने नही देश की जनता ने और शायद आप भूल रहे हैं कि मै उस कालखण्ड में विश्व के विशालतम आंदोलन में सक्रिय था जिसको रोकने के लिए मण्डल वगैरह न जाने क्या क्या मै कभी भी vp का समर्थक नही रह शिवाय अपने एक रिश्तेदार के साथ उन्नाव की सभा मे उपस्थित रहने के
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Prakash Sharma आदरणीय Kaushal Sharmaजी उस एक लेख की कीमत मिल तो रही है आजतक उन्हें, डूबती नैया जब सब अंदरखाने काम मे लगे हो लेखलिखना आंखों का तारा बनाता है लेकिन इतनी जबरदस्त रॉयलिटी आज तक नही देखी मैने
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Kaushal Sharma राजीव शुक्ला को राज्य सभा के लिए 50 विधायकों का समर्थन कांग्रेस ने नही दिलाया था ।
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Prakash Sharma Kaushal Sharma ji इससे जो प्रश्न मैन कहे उनका उत्तर नही मिल जाता, वोट उन्होंने ही दिलवाए थे जो आजकल अपकी गाली खा रहे हैं
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Suresh Sharma Kaushal भाई जी उस एक लेख की कीमत तो उन्हें तभी उन्ही से मिल गई थी जिनके लिए उन्होंने छापा था और आपकी मित्र सूची में वो भी है जिनके सामने माल लिया गया
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Chandra Shekhar Singh आज्की पत्रकारिता को बाजार के अनुसार देखना चाहते हैँ लोग , अच्छा बोले तो बहुत ही अच्छा , खराब बोले तो बहुत ही खराब ,लेकिन एेसा करना अनुचित है व्यापार और बाजार को अलग रुप मेँ दिखना चाहिए , ज़ब तक पत्रकार सुरक्षित आर्थिक अर्थो मेँ न हो उससे एक सच्चा पत्रकारिता की उम्मीद करना बेकार है अब सुरक्षा का ईंतजामं सरकार को करना चाहिए , खुली पत्रकारिता मालिको के अनुसार ही चलेगी .गुण दोश आधार के लिये पत्रकार को अपनी आर्थिक आजादी होनी चाहिए
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Prakash Sharma Kaushal Sharmaजी यही एक घटना aur लेख आप मुझे शत बार बता चुके है राजीव शुक्ला जी का पत्रकारिता मिश्रित जीवन बहुत लंबा है बताइए कब लिखा उन्होंने कांग्रेस और उसके मालिक गांधी परिवार के विषय मे
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Geetesh Agnihotri सही कहा कौशल जी। पत्रकारिता मिशन ही होना चाहिए। तमाम दुर्गुण पत्रकारिता के अंगों में आ गए है। बिना वेतन के काम करने वाले कितनी बड़ी संख्या में हैं। मक्खनबाजी हर विभाग के हर सेक्शन में है। ग्रामीण परिवेश में काम करने वाले पत्रकारो की संख्या कितनी बड़ी है। जिनके बलबूते पत्रकारिता का हर विभाग चलता है। कभी आज तक नहीं सुना को ग्रामीण पत्रकार को कोई सम्मान मिला हो। दिल्ली लखनऊ कानपुर यानि बड़े शहर के पत्रकार ही छाये दिखाई देंगे। ग्रामीण पत्रकारो का दर्द कोई सुनता भी नहीं है।
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Chandra Shekhar Singh आखबारोंके मालिक नकद कामाने वाले पत्रकारिता को अच्छा मानते हैँ इसी लिये ग्रामीन पत्रकार ऊचित लाभ से बंचित रह ज़ाते है
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Suresh Yadav इसके लिए ग्रामीण परिवेश के पत्रकारों को शहरी पत्रकारों से कुछ तो सीखना पड़ेगा। अब वह कौन सी कला है शायद पत्रकार ही अच्छे से समझेंगे।
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Chandra Shekhar Singh जैसे खोजी पत्रकार ,सहित्य ,इतिहास , आर्थिक , आदि
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Ajay Sinha पत्रकारिता सशक्त थी इसीलिये अखबारों, न्यूज चैनलों को इतने व्यापक रूप से खरीदा गया. आपका भंडाफोड जो कर सकता है आप उसी के मालिक बन जायें....फिर विरोध तो अदृष्य हो गया न ?
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Chandra Shekhar Singh सहीसही है सबको मान लेना chairman तो अपना ख्याती मेँ ड़ूबारहता है माल भी कमाता है
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Subhash Sharma कौशल जी thanks
मुझे लगता है कि आज की पत्रकारिता न तो मिशन है और न चौथा खंभा।यह एक विशुध्द व्यवसाय है बस।इसमे सभी कुछ चलता है पत्रकारिता के अलावा।अब कुछेक अपवाद तो हो ही सकते है पर उनका सर्वाइवल बाद कठिन होता है।
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Narendra Kumar Yadav आज की पत्रकारिता निशपक्ष नहीं रह गयी है यह पत्रकारिता जगत पर एक बदनुमा धब्बा है।
कुछ पत्रकारं े निहित स्वार्थ से प्रेरित होकर अग्रलेख लिखते हैं।जिसके कारण समाज उस पर उंगली उठाने लगा हैं पीतपत्रकारिता का बोल बाला बढ गया है।मै देखता हूं कि कचेहरी में ही
 पैसा लेकर संवाददाता समाचार छापते हैं मुकदमा किसी का है नाम किसी का छाप देते हैं कनिष्ठ को वरिष्ठ अधिवक्ता बना देते हैं।समाचर पत्र समाज का दर्पण होता है जब दर्पण ही दूषित हो जाय तो विश्वास किस पर किया जायेगा।
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Prakash Sharma Kaushal Sharma ji इससे जो प्रश्न मैन कहे उनका उत्तर नही मिल जाता, वोट उन्होंने ही दिलवाए थे जो आजकल अपकी गाली खा रहे हैं
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Subhash Sharma Prakash Sharma ji
आपने सबसे कमजोर नस को पकड़ लिया है।इन पर UP चुनाव में भारी रिश्वत का आरोप 👍है।ये कांग्रेस में कैसे गए इसकी भी एक अलग कथा है।और हाँ प्रभाष जोशी ने इन्हें क्यों निकाला ये भी अलग प्रकरण है और भी बहुत सारी बातें है।जो उच्च स्तर पर है सो तो है ही छोटे स्तर पर थोड़े से अपवादों को छोड़कर सीधी जबरन वसूली है नेताओ से,अधिकारियो से और जनता से।इसका अर्थ है paid news.
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Chandra Shekhar Singh paid news right
सशुल्क खबर सही
अपने आप अनुवाद किया गया
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Adv Ajay Singh Bhadauria आदरणीय प्रकाश शर्मा जी सत्य कह रहे हैं। ये अलग बात है कि सत्य कटु होता है।
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Narendra Kumar Yadav कौशल जी शायद आप को याद होगा कि कांग्रेस की सरकार के समय में आटा दूध की कीमतें आय दिन अनायास शरद पवार के बयानों पर बढने लगी थी कोई भी राजनैतिक दल विरोध नहीं कर रहा था।
उस, समय राजीवसचान ने जागरण में एक अग्रलेख छाप कर विपक्षी दलों को ललकारा था कि ये अपनी
 सार्वभौमिक भूमिका अदा नहीं कर रहे हैं क्योंकि इन लोगों ने शरद पवार से घालमेल कर रखा है।हालाकि ममता बनर्जी ने अमबिका सोनी ने भी मूल्य वृद्धि का कैबिनेट में विरोध किया था।उस लेख के बाद ठीक दूसरे दिन मां, मुलायम सिंह और मां, राजनाथसिह जो उन दिनों भारत,जा पा के राषटीय अध्यक्ष थे ने देश व्यापी महंगाई के खिलाफ आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया था।
क्या बात थी कि ठीक दूसरे दिन दाम आसमान से जमीन पर आ गये थे ये एक लेख नीहीं की ताकत थी राजीव सचान ने बिपक्षी दलो केवल आचरण पर भी चर्चा की थी।
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Rajendra Sharma Patrakarita ka shoshsd ab Sharabki botal aur Mohelle High school pass Local channel walo ne Ister itana gira Diya ki ab?
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Ankit Tiwari Patrkarita kitane Nichale istar tak ja chuki hai Ye aap ko batana mujhe chote Munh badi baat lagati hai!
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