Monday, 2 October 2017

सुनो मेरे भी मन की


सुनो मेरे भी मन की
कानपुर बार एसोसियेशन के चुनाव को लेकर कई पूर्व विद्वान पदाधिकारी इन दिनों फेसबुक, व्हाट्सअप पर सक्रिय है। राजनेताओं की तरह अपने अपने तरीके से हम सबको भोलाभाला, अज्ञानी, मतदाता मानकर बता रहे है कि ” अपने बीच कुछ जातियो के ठेकेदार पैदा हो गये है........, दोस्तों आज कचहरी का चुनाव राजनीति के लोग लड़ा रहे है........, बार एसोसियेशन के चुनाव में........ माफिया, कालाधन एवं गुण्डातत्वों को नजरंदाज करें........, मताधिकार हमारा बहुमूल्य प्रजातान्त्रिक अस्त्र है जिसका प्रयोग विचारों की गहराई के पश्चात करना उचित होगा......., किसी ने कहा है कि उन्हें न चुनों जो लाखों नही, पचासों लाखों खर्च कर, हमें, आपको खरीदकर हम पर शासन करना चाह रहे है......., बार की गरिमा, पद की गरिमा से ही अधिवक्ता समाज की गरिमा स्थापित हो सकेगी। इस प्रकार के सुभाषित पढ़कर अब हममें से किसी के भी मन में कोई उत्साह नही जगता। हम सब जानते है कि वर्ष प्रतिवर्ष चुनाव प्रचार को महँगा बनाकर कानपुर बार एसोसियेशन को आम अधिवक्ताओं की सहज पहुँच से कोसो दूर कर दिया गया है। कुछ ही लोग है, जो चुनाव लड़ते और लड़ाते है। कचहरी का लोकतन्त्र प्रापर्टी डीलरों के चंगुल में है। आज एक सामान्य अधिवक्ता महँगे चुनाव खर्च के कारण चुनाव लड़ने के बारे में सोच भी नही सकता। विभिन्न पदों को सुशोभित कर चुके कई जुझारू मित्र इस चुनाव में भी प्रत्याशी है। उन्हें अपने पूर्व पदाधिकारी काल का उदाहरण देकर बताना चाहिए कि उनका पूर्व कार्यकाल उनके प्रतिद्वन्दी पदाधिकारी से क्यों कर बेहतर है। चुनाव खर्च को कम करने, सामूहिक सदस्यता शुल्क की अदायगी को हतोत्साहित करने, चुनाव में प्रापर्टी डीलरों के बढ़ते प्रभाव को खत्म करने, युवा अधिवक्ताओं के लिए शैक्षिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और लाइब्रेरी का बजट बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने पूर्व कार्यकाल में क्या प्रयास किये थे ? हम सब जानते है कि किसी ने अपने पदाधिकारी रहने के दौरान इस दिशा में कोई काम नही किया इसलिए उनसे आगामी कार्यकाल में भी सकारात्मक कामों की अपेक्षा करना खुद को धोखा देना होगा। अपने एक वरिष्ठ सम्मानीय साथी ने कानपुर बार एसोसियेशन में शैक्षिक गतिविधियों को संचालित करने के लिए अमेरिका से कुछ डालर भेजे है परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि आज तक अमेरिका से भेजे गये इन डालरों को अपने विद्वान पदाधिकारी नगदीकृत नही करा सके है और इसी कारण निराश होकर उन्होंने दुबारा पैसा नही भेजा। अच्छी तरह समझ लो, किसी भी व्यक्ति के जीवन में जब हश्र का दिन आता है, तब उससे यह नही पूँछा जाता कि आप क्या पढ़ते थे ? किस तरह की बातें किया करते थे ? बल्कि पूँछा जाता है कि जब अवसर मिला तब आपने क्या किया ?
अधिक देखें ..... advocateopinion.blogspot.in
9 टिप्पणियाँ
टिप्पणियाँ
Sanjay Kumar Singh अति सुंदर 
हमें वाकई आप पर गर्व है 
काश ! हम अपने कुंभकर्णी नींद से जागते ....फिर हर दिन के लाबो लुवाब ठंडा गर्म भोज की तरफ मुड़कर नही देखते जहां इंसानियत मर चुकी है इतने पैसे खर्च करने वाले ,अपना पाई पाई हमारे बीच से ही उगाही करेंगे ...
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Randhir Sishodiya जो सबसे कम खर्च करेगा वहीं ईमानदारी से अधिवक्ता हित के काम करेगा । लेकिन प्रबुद्ध वर्ग ऐसों की उपेक्षा करने का आदी होता जा रहा है । जो ठीक नहीं है । शुभ महानवमी
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Ambarish Mishra Adhivakta hit ka sahi chintan,sadhuvad, sir ji aap log disha dene aage aayen yuva aapke saath hoga
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DN DwivediAdvocate Bade Bhai aapka sujhav vastav me kabile tariff hai jaisa aap ne bataya ki foreign se bheja gaya bar ko paisa cash nhi karaya gaya wah re samman. Ka dhidora pitne walo swarthio kya sandesh gaya hoga us dandata ke man me aapka sadar aabhar
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Jai Shankar Bajpai अब मुद्दो की न कोई बात होती है न नजवाबदेही कचहरी में ब्याप्त भृष्टाचार, कारीगर ब्यवस्था ,क्षेत्राधिकार वापसी, उपभोक्ता फोरम , भविष्य निधि, नवागत वकीलों की समस्यायों आदि पर संघर्ष की बात नही होती है।आएदिन अधिवक्ताओं का उत्पीडन होता है ।जब इन समस्यायों के लिए चुनाव लडा ही नही जाता है तो दूर कैसे होगी ?
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Ashwani Anand chunav के समय सभी विद्वान भाई अपने विचार रखते है chunav के पूर्व व पश्चात विचारो को विश्राम दे dete हैं काबीर दास जी ने कहा है की घर की chakia कोई न पूजे ताते पीस khai संसार , बार ऐससो के MODEL BYLOZ को पढ़ने के बाद समस्त विचार बेकारहै niyam jannne ki jarurat नही है उसे समाप्त करना हमारा ,,,,,,
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