Tuesday, 13 February 2018

झोला छाप डाक्टर आम लोगों की जरूरत


झोला छाप डॉक्टर आम लोगों की जरूरत
उन्नाव की घटना के बाद कथित झोला छाप डॉक्टरों के खिलाफ उनकी क्लिनिक बन्द कराने का अभियान शुरू हो गया है और उसके कारण आम लोगों की स्वास्थय सेवायें बुरी तरह कुप्रभावित हो रहीं है । सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी सेवाएं कहीं उपलब्ध नहीं है इलाज के लिए इन्हीं झोला छाप डॉक्टरों पर पूरी ब्यवस्था निर्भर है।1977 मे जनता पार्टी की सरकार के दौरान तबके सेहत मंत्री राज नारायण ने कथित झोला छाप डॉक्टरों की अनिवार्यता को महसूस करके ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थय सेवकों की नियुक्ति की थी और बडे पैमाने पर उससे आमलोगो को राहत मिली थी परन्तु बाद की कांग्रेसी सरकारों ने कोई वैकल्पिक ब्यवस्था किये बिना उसे बन्द कर दिया । यह सच है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थय सेवायें उपलब्ध कराने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खोले गये है परन्तु सबको पता है , वहाँ कोई इलाज नहीं मिलता । निजी क्षेत्र के अस्पताल अपने मॅहगेपनऔर सरकारी अस्पताल अपने भ्रष्टाचार के कारण आम लोगों की पहुँच से बाहर है ।मै कई ऐसे डाक्टरों से परिचित हूँ जिनके पास मेडिकल कॉलेज की डिग्री नही है लेकिन अपने चिकित्सकीय अनुभव के बल पर वे किसी डिग्री धारक से बेहतर परिणाम देते है । हमारी सरकारें बडी बडी बातें करती रहतीं है लेकिन आम लोगों की सेहत को दुरूस्त रखना उनकी प्राथमिकता मे नही है इसलिये आम लोगों के पास इन्हीं लोगों से इलाज कराने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है । झोला छाप डॉक्टर हमारी जरूरत है । कोई वैकल्पिक ब्यवस्था किये बिना उनकी सेवाओं को बन्द कराने का निर्णय किसी भी दशा मे उचित नहीं है ।
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Suresh Yadav यही जमीनी हकीकत है। लेकिन हमारी समस्या यह है कि सरकारी व्यवस्था जब ऊपर आसमान से टपके हुए या विदेशों से इम्पोर्ट किये हुए लोगों के हाथ मे चली जाती है तो जमीनी हकीकतों से रिश्ते टूट जाते हैं।

वर्तमान हालात भी कुछ ऐसे ही हैं। कहीं राम राज्य लाने का प्रया
स तो कहीं भारत को विश्व गुरु बनाने का जोशीला अंदाज। खैर....

अब तो 10 करोड़ लोगों को 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा लागू होने के शोर शराबे में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा कहीं गुम ही न हो जाय।
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Ajay Sinha आपका कथन वास्तविकता बयान करता है । कस्बाई, ग्रामीण, चिकित्सा-व्यवस्था की बदहाली और भ्रष्टाचार के चलते ही झोलाछाप सेवा अस्तित्व में आई है ।
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जवाब दें2 दिन
Narendra Kumar Yadav कौशल भाई, झोलाछाप डॉक्टर, तो संक्रमक बीमारीयां बांट रहे हैं लेकिन ये प्राईवेट नर्सिगहोम पचासों लाख रूपये लूटने के बाद, मुर्दा वापस की रहे हैं आज चर्चा इस बात पर होनी चाहिए कि कि प्राइवेट अस्पतालों, से मेडिकल स्टोर्स हटें, जो दवाये लिखी जायें वो सर्वसुलभ हो। नर्सिग होमो में जो दवा दस हजार रुपए में मिलती हैं वही दवा बाजार मे दो हजार रुपए में मिल जाती है।
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जवाब दें2 दिन
Devpriya Awasthi झोला छाप विशेषण ही एक गहरी साजिश का हिस्सा है. बहुत से गैर डिग्री धारी चिकित्सक लाखों मरीजों को नया जीवन देते आए हैं और दे रहे हैं. दादी- नानी के नुस्खे भी बहुत कारगर हैं. उन्हें बदनाम इसलिए किया जा रहा है ताकि निजी क्षेत्र के अस्पतालों का धंधा चमकाया जा सके और ये अस्पताल इलाज के नाम पर मनमानी लूट करते रहें. आए दिन निजी अस्पतालों में बरती जानेवाली लापरवाही की खबरें भी मीडिया में आती रहती हैं, लेकिन धन बल के चलते उनके खिलाफ प्रभावी कार्रवाई नहीं होती है.
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Suresh Yadav बिलकुल सही बात। गांवों में जो on-the-spot/त्वरित प्रभाव से फर्स्ट एड और प्राइमरी हेल्थ केअर इन झोला छाप डॉक्टरों से मिल जाता है वह किसी भी मायने में ग्रामीण इलाकों के प्राइमरी हेल्थ सेंटर्स से कम नहीं होता है।
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