Tuesday, 13 February 2018

निरर्थक होती संसदीय बहसें


निरर्थक होती संसदीय बहसें
08 फरवरी को राज्य सभा की कार्यवाही देखने का अवसर प्राप्त हुआ। उपाध्यक्ष श्री कुरियन सभापति पीठ पर आसीन थे। उन्होंने पी चिदंबरम साहब को अपनी बात कहने के लिए कहा लेकिन इसी बीच भाजपा सदस्यों ने " राहुल गांधी सोनिया गांधी माफी मांगो माफी मांगो " " प्रधान मंत्री का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान " का उद्घोष करने लगे और टी डी पी के सदस्य सभापति पीठ के सामने तख्तियां लेकर खडे हो गये। संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार जी भी खडे हो गये और गैर सदन ( लोकसभा " की घटना को लेकर कांग्रेस से माफी मांगने की बात करने लगे। कुरियन साहब ने उनहे याद दिलाया कि आप संसदीय कार्य मंत्री हैं, आप सदन को सुचारू रूप से चलाने में मदद करें लेकिन वे नहीं माने और अपनी बात कहते रहे। इस बीच अमित शाह जी भी आ गये और उनके आते ही भाजपा सदस्यों की नारेबाजी तेज हो गई। चिदंबरम साहब खडे हो गये और बोलने लगे। सामने से नारेबाजी हो रही थी। साफ साफ दिख रहा था कि कोई किसी की सुन नहीं रहा है। दर्शक दीर्घा में मेरे साथ स्कूल ड्रेस पहने हाई स्कूल इंटर के कई छात्र भी बैठे थे। मैने उनसे पूछा क्या नया सीखा? उन्होंने कहा चिल्लाना, इस उत्तर ने मुझे निराश किया। यही बच्चे देश का भविष्य है और सदन ने उनहे जो सबक सिखाया है,वह कितना घातक है? हमारे राजनेता उसे समझने के लिए तैयार नहीं है। राजीव गाँधी के प्रधान मंत्री काल में कांग्रेसी सदस्यों के इसी तरह के ब्यवहार से बयथित होकर तबके सभापति शंकर दयाल शर्मा ने त्याग पञ देने की घोषणा कर दी थी। इसी प्रकार लोकसभा में एक बार आरिफ मोहम्मद खान आदि कथित युवा बिग्रेड ने चरण सिंह के भाषण के दौरान हो हल्ला किया था। इन दोनों घटनाओं से पता चलता है कि कांग्रेस की युवा ब्रिगेड संसद में अपने विशाल बहुमत के मद में बौरा गई थी और संसद की धीर गंभीर बहसों के स्तर में गिरावट उनही के कार्यकाल में शुरू हुई परंतु भाजपा सदस्यों को कांग्रेस की युवा ब्रिगेड का अनुकरण किसी भी दशा में नहीं करना चाहिए। कांग्रेस के विशाल बहुमत के दौर में काफी कम संख्या में होने के बावजूद केवल अपनी वाणी और विचारो के बल पर तत्कालीन विपक्षी नेता राम मनोहर लोहिया, मधु लिमये, अटल बिहारी वाजपेयी, पीलू मोदी, एस एम बनर्जी, ज्योतिर्मय बसु, वर्तमान भाजपा सांसद हुकुम देव नारायण यादव सरकार को निरूततर कर देते थे। अच्छी तरह समझ लो अगर संसद की बहसें निरर्थक होने लगीं तो लोकतंत्र के निरर्थक होने में देर नहीं लगेगी।
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
टिप्पणी करें
3 टिप्पणियाँ
टिप्पणियाँ
Jai Shankar Bajpai संसद में बहस सार्थक है या निरर्थक है यहां तो तभी होगा जब मुद्दों पर आधारित चर्चा पर बहस हो।
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें2 दिन
Prakash Sharma लोक सभा मे प्रधानमंत्री जी का भाषण भी देख लेते मान्यवर
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें2 दिन
Sanjeev Awasthi सर्वोच्च सदन मे माननीयो का आचरण व्यथित करता है । उस पर प्रति दिन का होने वाला व्यय निरर्थक जानकर और भी कष्ट होता है । चर्चा तो आवश्यक है किन्तु बीच मे होनेवाली टीका टिप्पणी किसी भी दल के द्वारा हो अनुचित /निन्दनीय है ।
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें2 दिनसंपादित

No comments:

Post a Comment