दिनांक 25 मार्च 2018 को स्थानीय हिन्दी अखबार " दैनिक जागरण " के पृष्ठ 10 मे प्रकाशित समाचार की उक्त हेडिंग ने हम सभी को झकझोरा है लेकिन छोटे छोटे मुद्दों पर सारगर्भित टिप्पणी करने वाले मित्रों ने इस गम्भीर मुद्दे पर मौन अख्तियार करके बार काउंसिल के चुनाव मे वोट बेचने वाले लोगों का मनोबल बढाया है जो समस्त अधिवक्ता बिरादरी के लिए चिन्ता का विषय है ।
अपने देश का आम आदमी आज भी समाज मे दूरगामी ब्यापक परिवर्तन के लिए अधिवक्ताओं की तरफ आशा भरी नजरों से दखता है।सभी मानते है कि अधिवक्ता लोकतंत्र की रीढ़ है और केवल वही सत्ता से निरपेक्ष रहकर सत्ता को संविधान के अनुरूप काम करने के लिए विवश कर सकते है लेकिन शायद हम खुद अपने आपमे कहीं खो गये है । अब हमे अपनी श्रेष्ठ परम्पराएं आकर्षित नहीं करतीं। इसीलिए अब अपने बीच किताब की जगह कट्टे दिखने लगे है और अब हमने वोट के बदले नोट की एक नई परम्परा शुरूकर दी । मित्रो क्या आपको नहीं लगता कि वोट के बदले नोट लेने की घटना से हम सबका अपमान हुआ है ? फिर क्यों नहीं ऐसे लोगों को चिन्हित करके उनको अपनी बिरादरी से बाहर करने की प्रक्रिया शुरू की गई है ? अपनी एसोसिएशनस का मौन हमे क्या संदेश देना चाहता है ?
न्यायालय और न्यायालय परिसर को न्याय का मंदिर बनाये रखना हम सबकी निजी और सामूहिक जिम्मेदारी है । अधिवक्ता व्यापारी नहीं है , न्यायालय मे उसकी भूमिका एक योद्धा की होती है। राजनेताओं के बीच खत्म हो गया होगा लेकिन हम सब आज भी साध्य से ज्यादा साधनों की पवित्रता पर विश्वास करते है इसलिये किताबों पर हमारी निर्भरता कभी कम नहीं हुई। मित्रो वकालती जीवन की विशेषता , हमारी-आपकी निष्ठा ईमानदारी और पारदर्शिता को खरीदकर हम सबकी गरिमा को दाॅव पर लगाने वाले " गैर अधिवक्ता, पेशेवर पदाधिकारियों " को पहचानने की जरूरत आ पडी है , इन्हे पहचान कर इनका बहिष्कार करो नही तो " खोटा सिक्का सही सिक्के को चलन से बाहर कर देता है " की कहावत का वीभत्स रूप झेलने के लिए तैयार हो जाओ ।
न्यायालय और न्यायालय परिसर को न्याय का मंदिर बनाये रखना हम सबकी निजी और सामूहिक जिम्मेदारी है । अधिवक्ता व्यापारी नहीं है , न्यायालय मे उसकी भूमिका एक योद्धा की होती है। राजनेताओं के बीच खत्म हो गया होगा लेकिन हम सब आज भी साध्य से ज्यादा साधनों की पवित्रता पर विश्वास करते है इसलिये किताबों पर हमारी निर्भरता कभी कम नहीं हुई। मित्रो वकालती जीवन की विशेषता , हमारी-आपकी निष्ठा ईमानदारी और पारदर्शिता को खरीदकर हम सबकी गरिमा को दाॅव पर लगाने वाले " गैर अधिवक्ता, पेशेवर पदाधिकारियों " को पहचानने की जरूरत आ पडी है , इन्हे पहचान कर इनका बहिष्कार करो नही तो " खोटा सिक्का सही सिक्के को चलन से बाहर कर देता है " की कहावत का वीभत्स रूप झेलने के लिए तैयार हो जाओ ।