बदले स्कूल बदले अस्पताल
आज दिल्ली में हूँ। चारों तरफ " तीन साल में हुआ कमाल, बदले स्कूल बदले अस्पताल " के पोस्टर लगे हैं। मैने अलग अलग कई आटो वालों से इस पर बात की। सभी ने इसे सच बताया। सरकारी स्कूल और अस्पताल पर निर्भर रहने वाले हमारे जैसे लोग हर जगह है और वे अपनी सरकार से बहुत ज्यादा अपेक्षा नहीं करते। वे केवल सडक पानी बिजली दवाई और स्कूल में पढ़ाई जैसी मूलभूत सुविधाओं चाहते हैं और हमारी सरकारें भारी भरकम उदघोषणाये तो किया करती है परंतु जमीनी स्तर पर मूलभूत सुविधाओं के लिए कुछ भी सार्थक करती नही दिखती।
हम सुबह शाम कांग्रेसी सरकारों को कोसा करते है लेकिन हमारी पीढ़ी के मित्र याद करे तो उनहे याद आयेगा कि उनके बचपन में हर मुहल्ले में नगर महापालिका के कम से कम दो प्राथमिक विद्यालय, एक डिस्पेंसरी, लेबर डिपार्टमेंट की एक डिस्पेंसरी हुआ ही करती थी। हमारे कानपुर में दून स्कूल की तरज पर चुननी गंज और काकादेव में नगर महापालिका ने दो माडल स्कूल खोले थे जिनमें स्वीमिंग पूल और डिबेट रूम सहित पढाई की कई प्रयोगात्मक सुविधाये उपलब्ध थी । हमारे जैसे परिवारों के बच्चों को इन स्कूलों में पढ़ने का अवसर मिलता था। मुलायम सिंह, कल्याण सिंह, मायावती, राजनाथ सिंह, अखिलेश यादव के मुख्य मंत्रितव काल में इस तरह के सर्वसुलभ स्कूल नहीं खोले गये बल्कि पहले से चल रहे सरकारी स्कूलों और अस्पतालों को बंद कर दिया गया है। गैर कांग्रेसी मुख्य मंत्री सरकारी अस्पताल और स्कूल के मोर्चे पर कयो असफल हुए? नये स्कूल, अस्पताल कयो नही खोले गये? इस पर निष्पक्षता से विचार की जरूरत है। यदि दिल्ली में केजरीवाल सरकारी अस्पताल और स्कूलों की दशा सुधार सकते हैं तो अन्य प्रदेशों में भी इसे किया जा सकता है। हम अन्य प्रदेशों में इस तरह की शुरुआत की आशा तो कर ही सकते हैं।
आज दिल्ली में हूँ। चारों तरफ " तीन साल में हुआ कमाल, बदले स्कूल बदले अस्पताल " के पोस्टर लगे हैं। मैने अलग अलग कई आटो वालों से इस पर बात की। सभी ने इसे सच बताया। सरकारी स्कूल और अस्पताल पर निर्भर रहने वाले हमारे जैसे लोग हर जगह है और वे अपनी सरकार से बहुत ज्यादा अपेक्षा नहीं करते। वे केवल सडक पानी बिजली दवाई और स्कूल में पढ़ाई जैसी मूलभूत सुविधाओं चाहते हैं और हमारी सरकारें भारी भरकम उदघोषणाये तो किया करती है परंतु जमीनी स्तर पर मूलभूत सुविधाओं के लिए कुछ भी सार्थक करती नही दिखती।
हम सुबह शाम कांग्रेसी सरकारों को कोसा करते है लेकिन हमारी पीढ़ी के मित्र याद करे तो उनहे याद आयेगा कि उनके बचपन में हर मुहल्ले में नगर महापालिका के कम से कम दो प्राथमिक विद्यालय, एक डिस्पेंसरी, लेबर डिपार्टमेंट की एक डिस्पेंसरी हुआ ही करती थी। हमारे कानपुर में दून स्कूल की तरज पर चुननी गंज और काकादेव में नगर महापालिका ने दो माडल स्कूल खोले थे जिनमें स्वीमिंग पूल और डिबेट रूम सहित पढाई की कई प्रयोगात्मक सुविधाये उपलब्ध थी । हमारे जैसे परिवारों के बच्चों को इन स्कूलों में पढ़ने का अवसर मिलता था। मुलायम सिंह, कल्याण सिंह, मायावती, राजनाथ सिंह, अखिलेश यादव के मुख्य मंत्रितव काल में इस तरह के सर्वसुलभ स्कूल नहीं खोले गये बल्कि पहले से चल रहे सरकारी स्कूलों और अस्पतालों को बंद कर दिया गया है। गैर कांग्रेसी मुख्य मंत्री सरकारी अस्पताल और स्कूल के मोर्चे पर कयो असफल हुए? नये स्कूल, अस्पताल कयो नही खोले गये? इस पर निष्पक्षता से विचार की जरूरत है। यदि दिल्ली में केजरीवाल सरकारी अस्पताल और स्कूलों की दशा सुधार सकते हैं तो अन्य प्रदेशों में भी इसे किया जा सकता है। हम अन्य प्रदेशों में इस तरह की शुरुआत की आशा तो कर ही सकते हैं।
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