‘‘छोडो कल की बातें, कल की बात पुरानी नए दौर में लिखेंगे हम, मिलकर नई कहानी, हम है हिन्दुस्तानी’’ गीत के साथ स्थानीय हिन्दी दैनिक ‘‘हिन्दुस्तान’’ द्वारा सामाजिक सौहार्द बनाये रखने के लिए आयोजित संवाद कार्यक्रम में ज्योतिषाचार्य पण्डित के. ए. दुबे पद्मेश, बडी मस्जिद के पेश इमाम मोहम्मद समी उल्ला, दादा मियाँ दरगाह के नायब सज्जादानशीन अबुल बरकात नजमी गुरूद्वारा भाई बन्नों साहब के प्रधान मोकम सिंह साहित्यकार कमल कुसद्दी, डा0 कमलेश द्विवेदी समाज सेवी छोटे भाई नरोना, मस्जिद ईदगाह के इमाम मुफ्ती मामूर अहमद एल.एल.जे.एम. चर्च के पादरी सत्येन्द्र श्रीवास्तव गाँधीवादी चिन्तक जगदम्बा भाई पनकी हनुमान मन्दिर के महन्त जितेन्द्र दास ने एक स्वर में सभी से कानपुर की सामाजिक सांस्कृतिक विरासत को बचाये रखने के लिए संवेदनशील मसलों पर जज्बाती न होने की अपील की है। सभी ने कहा कि हमे समझना होगा कि चुनाव के वक्त ही ऐसे फसाद क्यों होते है ? कुछ लोग राजनैतिक कारणों से शहर की गंगा जमुनी तहजीब को नष्ट करने की साजिश रच रहे है। कानपुर की संस्कृति और सांस्कृति विरासत काफी मजबूत है ओर उसे तोडने के प्रयास कभी सफल नही होंगे।
8 अप्रैल 2014 राम नवमी के दिन चुनावी सरगर्मी के बीच शोभायात्रा के रास्ते को लेकर शुरू हुआ विवाद दो सम्प्रदाओं का विवाद बन गया। पत्थर बाजी हुई जिसमें पुलिस कर्मियों सहित कई लोग घायल हुये। पुलिस ने भीड़ को खदेड़ने के लिए जमकर लाठी चटकाई। बदले में गुस्साई भीड़ ने अपर नगर मजिस्टेªट की जीप में आग लगा दी। इस घटना के बाद सभी ने अपने अपने तरीके से एक दूसरे पर दोषारोपण किया है, परन्तु किसी ने भी घटना के मूल कारण और उसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति को चिन्हित करने की कोशिश नही की है और यही दंगों के प्रति समाज की त्रासदी है।
रावतपुर गाँव में सदियों से राम नवमी के अवसर पर शोभा यात्रा निकलती रही है। स्थानीय लोग धार्मिक कारणों से इसमें बढ चढ कर हिस्सा लेते है। जिस रास्ते से शोभा यात्रा गुजरती है वह रास्ता काफी दिनों से खराब था उसमें बडे बडे गुड्ढे थे जिसके कारण उस रास्ते से शोभा यात्रा को निकालने में कठिनाई महसूस की गई। यहाँ दो ही रास्ते है, एक खराब था तो दूसरे रास्ते से निकलना स्वाभाविक है, परन्तु शोभा यात्रा का तय मार्ग से हटकर निकलना कुछ लोगों को कभी पसन्द नही रहा। शाशन प्रशासन को इसकी बखूबी जानकारी थी, स्थानीय विधायक ने नगर आयुक्त से शोभा यात्रा के लिए तय मार्ग को ठीक कराने का अनुरोध भी किया था परन्तु सड़क ठीक नही कराई गई और न शाशन की तरफ से दोनों पक्षों को समझा बुझाकर नये रास्ते से शोभा यात्रा को ले जाने के लिए सदभाव बनाने का कोई प्रयास किया गया। अभी कुछ ही दिन पूर्व मुजफ्फर नगर के साम्प्रदायिक दंगे को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की विफलता बताया है। इसके बावजूद स्थानीय प्रशासन की आँख मूदो नीति से आशंका होती है कि राजनैतिक नेतृत्व के इशारे पर धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए शहर के अमन चैन को छीनने की कोई साजिश तो नही की गई है ?
साम्प्रदायिक दंगे अपने देश में राजनैतिक लाभ की गारन्टी बन गये है। राजनेता गरीबी, अशिक्षा, भूख, बीमारी, बेरोजगारी जैसी समस्याओं के समाधान की बाते बहुत ज्यादा करते है परन्तु जमीनी स्तर पर इनकी समाप्ति के लिए कोई सार्थक प्रयास नही करते इसलिए चुनाव के समय जाति सम्प्रदाय मन्दिर मस्जिद जैसे जज्बाती मुद्दो पर गोलबन्दी करके चुनावी परचम फैलाते है। पिछले दिनों मुजफ्फर नगर की घटनाओं ने स्थानीय स्तर पर सदियों पुराने सामाजिक सौहार्द के ताने बाने को बिगाड दिया है। सैकडों लोग बर्बाद हो गये अपने घर द्वार से बिछुड गये परन्तु इसमें राजनेताओं की सेहत पर कोई असर नही पडा बल्कि इन घटनाओं के कारण हुये धार्मिक धु्रवीकरण ने वोटो के रूप में उनकी राजनैतिक फसल को लहलहा दिया है।
देश की ग्रामीण संरचना में सदियों से हिन्दू मुसलमानों का साथ साथ रहना सामान्य बात है। सभी एक दूसरे के सुख दुख में शामिल होते है और धार्मिक तीज त्योहार साथ साथ मनाते थे। भारतीय विद्यालय इण्टर कालेज कानपुर में एक मुस्लिम लाइब्रेरियन हुआ करते थे। उन्होंने कई विद्यार्थियों को गाँधी की ‘‘गीतामाता’’ और तिलक की गीता पढने के लिए अभिप्रेरित किया था। मैंने उन्हीं से जाना था कि गीता के दूसरे अध्याय के अन्तिम चैदह श्लोकों में सम्पूर्ण गीता का सार निहित है। 1980 के दशक तक देश के प्रत्येक कोने में इस प्रकार के प्रयास दिखाई देते थे परन्तु धीरे धीरे ज्यादा आधुनिक होते हुये हम परम्परागत सहिष्णुता से दूर होते जा रहे है। गर्व से कहो हम हिन्दू है जैसी बातों का कोई धार्मिक या सामाजिक महत्व नही है परन्तु इस प्रकार की बातों का अभियान जारी है और इसी प्रकार की महत्वहीन बातों ने हमारी सामाजिक सहिष्णुता को कमजोर किया है। ‘‘न तो कोई हिन्दू है, और न ही मुसलमान, है तो केवल और केवल मानव’ गहन साधना के बाद बाहर आकर गुरू नानक देव महाराज ने सबसे पहले यही शब्द कहे थे। उन्होंने कुराने पाक के पवित्र शब्द ‘रब उल आलमीन’ का अर्थ बताया और कहा कि कहीं भी उसे ‘रब उल मुसलमीन’ नही कहा गया। वह न मुसलमानों का है और न हिन्दुओं का अपितु सारे आलम का है। सारे आलम के मायने है सभी का नाकि मात्र मनुष्य का, पशु, पक्षी, कीडे, मकोडे, पेड़, पौधे सभी का जैसे सूरज सबके लिए है धरती सबके लिए है उसी तरह वह सबके लिए है और एक है। गुरूनानक से निकली यह धारा कबीर रहीम रसखान के आँगन से होते हुये ‘‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान्’’ के शब्दो में गाँधी तक आई है लेकिन अब उसे सुखाने की तैयारी की जा रही है।
नानक, कबीर, रहीम, रसखान, गाँधी, लोहिया की परम्परा ‘‘कुछ है जो हस्ती मिटती नही हमारी’’ का आधार है। आजादी के बाद धर्म और जाति के नाम पर शक्तिशाली हुये कुछ लोग और संघटन भारत की इस परम्परा को नष्ट करके साम्प्रदायिक संकीर्णता पैदा करने पर आमादा है। ऐसे लोग स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य और यूरोपीय संस्कृति से कोई दो सदी मुडभेड के बार उपजी भारतीय चेतना और स्वतन्त्रता के मूलाधार को भी नेस्तनाबुद कर देना चाहते है। ऐसे लोगों और उनके परिवारों का आजादी की लडाई मे कोई योगदान नही है। उनके पुरखे उन्नीसवी सदी के आखिरी दशको में भी थे और बीसवी सदी के पहले पाँच दशको में भी थे, जब भारत ने विदेशी शासको को खदेडकर अपनी आजादी हासिल की। बंदे मातरम और भारत माता की जय का उद्घोष करके जो लोग अंग्रेजो की जेलों में गये उनकी लाठियों से पिटे, उनकी गोलियों से शहीद हुये, हँसते हँसते फाँसी के फन्दे पर झूल गये, उनके बेटे बेटियों के लिए भारत धार्मिक राष्ट्र नही बल्कि लोकतान्त्रिक धर्म निरपेक्ष समाजवादी गणराज्य है जो अपने नागरिको के बीच धर्म जाति लिंग रंग का भेद नही करता और सभी लागों को सामाजिक आर्थिक सामाजिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति आस्था धर्म उपासना की स्वतन्त्रता अवसरों की समानता और व्यक्ति के नाते उसकी गरिमा की गारन्टी देता है। इसलिए कल की बाते छोड़कर हम सबको धर्म जाति सम्प्रदाय की संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठकर अपने संविधान में विश्वास करना चाहिये। समझना चाहिये कि साम्प्रदायिक दंगे हमे कुछ नही देते और अब ‘‘मत पूछो किसी बच्चे से मजहब का नाम, उसे मजहब नही दूध रोटी की जरूरत है, भूखे बच्चे की मौत पर किसी धर्मग्रन्थ के आँसू नही आते, सिर्फ और सिर्फ माँ रोती है।
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