दहेज में भी पोस्ट डेटेड चेक सुनकर कुछ अटपटा लगता है लेकिन सच यही है। पिछले शुक्रवार को सरकारी आवासीय परिसर अर्मापुर इस्टेट में लड़के वालों ने जयमाल के पूर्व लड़की के पिता को दहेज में नगद धनराशि देने के लिए मजबूर किया। तत्काल पैसे की व्यवस्था नही हो सकी तो अदायगी सुनिश्चित कराने के लिए दो दो लाख रूपयें के चार पोस्ट डेटेड हस्ताक्षरित चेक देने के लिए मजबूर किया है। वर वधू दोनों गाँधी नगर के प्रतिष्ठित नेशलन इन्स्टीट्यूट आफ फैशन टेक्नालाजी के स्नातक है और विद्यार्थी जीवन से उनमें प्रेम सम्बन्ध रहे है परन्तु लड़की के दरवाजे पर बारात आ जाने के बाद दहेज की माँग पूरी हुये बिना जयमाल न होने देने की पिता की जिद के सामने लड़के ने घुटने टेककर लड़की के प्यार सद्भाव और विश्वास को चुटहिल किया है। चकनाचूर इसलिए नही का जा सकता कि अपने माता पिता की इच्छा के प्रतिकूल विद्यार्थी जीवन में प्यार की पींगे बढ़ाकर घर बसाने का सपना पालने वाली फैशन डिजायनर लड़की ने अपने प्रेमी और भावी जीवन साथी के परिजनों के लालची आचरण के विरोध में शादी करने से इनकार नही किया और न अपने प्रेमी को बताया कि हमारी जैसी गुणवान बहू पाकर आपके पिता को मेरे माता पिता के प्रति सार्वजनिक रूप से कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिये।
उच्च शिक्षित परिवार की यह घटना बताती है कि समाज में दहेज का दानव आज भी जिन्दा है और पहले से ज्यादा ताकतवर और निर्भीक हो गया है। अधिकांश परिवारों में दहेज के कारण लडकियों को प्रताडि़त करने की घटनायें बढ़ी है, कम नही हुई है। एक सार्वजनिक प्रतिष्ठान में प्रबन्धक के पद पर कार्यरत इन्जिनियर बहू पर उसके श्वसुर पूरा वेतन सौंप देने का दबाव बना रहे है। बहू ने इन्कार कर दिया तो अब पूरा परिवार उसे बदनाम करने पर तुला है और उसके डाक्टर पति ने अपने माता पिता के प्रभाव में उसे परित्यक्ता जीवन जीने के लिए विवश कर रखा है। इस मामले में लड़की के पति और श्वसुर का आचरण अपराध की परिधि मे आता है, परन्तु अपने समाज में लड़कियाँ आज भी ससुराली प्रताडना को अपना भाग्य समझकर झेल लेती है और दोनों परिवारों को मान मर्यादा बनाये रखने के लिए शिकायत से परहेज करती है।
दहेज की माँग पूरी न होने की स्थिति में लड़कियों को मार देने या आत्महत्या के लिए विवश करने की बढ़ती घटनाओं को दृष्टिगत रखकर उन पर प्रभावी अंकुश के लिए दहेज प्रतिषेध अधिनियम के अस्तित्व में होने के बावजूद भारतीय दण्ड संहिता में संशोधन करके धारा 304 बी और 498 ए को जोडा गया। भारतीय साक्ष्य अधिनियम में धारा 113ए एवं 113बी जोडकर अभियुक्त के दोषी होने की उपधारणा का सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया और अपने आपको निर्दोष साबित करने का भार अभियुक्त पर डाल दिया गया है। विधि के इन प्रावधानों के तहत सम्पूर्ण देश में दहेज लोभियों को दण्डित किया गया परन्तु दहेज लोभियों पर अंकुश नही लगाया जा सका। दहेज का लेनदेन बदस्तूर जारी है जबकि दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत दहेज लेना या देना दोनों अपराध है।
आज पूरे देश में दहेज की माँग को लेकर मुकदमों की संख्या में बेतहाशा बृद्धि हुई है और इसके कारण पूरा परिवारिक ताना बाना छिन्न भिन्न होने लगा है। लोगों का कहना है कि दहेज विरोध कानून महिला समर्थक है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया यह कानून अब पुरूषों को उत्पीडि़त करने का हथियार बन गया है। इस प्रकार की शिकायतों को दृष्टिगत रखकर सर्वोच्च न्यायालय की पाँच सदस्यीय खण्ड पीठ ने ललिता कुमारी बनाम गवर्नमेन्ट आफ उत्तर प्रदेश एण्ड अदर्स (2014-1-जे.आई.सी. पेज 166-एस.सी.) में प्रतिपादित किया है कि वैवाहिक विवादों और पारिवारिक झगड़ों की शिकायत पर आपराधिक धाराओं में मुकदमा पंजीकृत करने के पूर्व प्रारम्भिक जाँच अवश्य कराई जाये। सर्वोच्च न्यायालय ने इसके पूर्व प्रीति गुप्ता बनाम स्टेट आफ झारखण्ड (2010-7-एस.सी.सी. पेज-667) के द्वारा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498 ए के तहत पूरे परिवार को दोषी बताये जाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर नाराजगी जताई है और इस पर प्रभावी अंकुश के लिए विधि में अपेक्षित संशोधन की सलाह दी थी। सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों के तहत अब प्रत्येक स्तर पर मीडिएशन सेन्टर स्थापित किये गये है और कोई भी विधिक कार्यवाही किये जाने के पूर्व पति पत्नी को आपसी विवाद मिडिएशन सेन्टर मे सुलझाने के लिए प्रोत्साहित किया जाने लगा है। सभी जानते है कि वैवाहिक विवादों में सवांदहीनता एक बडी समस्या है इस पर निजात पाने की दिशा में मीडिएशन सेन्टर ने सराहनीय प्रयास किये है। इन सेन्टर्स पर दोनों पक्षों को अपनी गल्ती सुधारने का अवसर दिया जाता है जिसके कारण कई बार आपसी मतभेद, मनभेद की परिधि में आने से बच जाते है। भावावेश और आक्रोश में की गई गल्तियों को सुधारने का अवसर हर एक को मिलना ही चाहिये।
यह सच है कि ससुराल मे अपनी प्रताड़ना के लिए कई बार बहुये अपने पति सास ससुर के साथ साथ निर्दोष विवाहित ननदो और उनके पतियों को भी दोषी बता देती है और इसके द्वारा वे ससुराल वालों पर अपना दबाव बनाती है। दहेज विरोधी कानून आज की परिस्थितियों में समाज के लिए उपयोगी है या नही ? इस पर बहस की जा सकती है। दोनों पक्षों के पास अपने अपने समर्थन में सुसंगत तर्क है परन्तु विवाह के बाद ससुराल में किसी न किसी बहाने नव वधुओं की प्रताड़ना एक कडवी सच्चाई है। प्रायः घरो मे किसी रस्म को लेकर या लडकी के किसी रिश्तेदार के व्यवहार को आधार बनाकर उलाहना देने की घटनाये नित्यप्रति होती है। कुछ लड़कियाँ नित्यप्रति के इन उलाहनों से परेशान नही होती। उसे सुना अनसुना करने की आदत डाल लेती है परन्तु कुछ लड़कियाँ ज्यादा संवेदनशील होती है और वे उलाहनों को बर्दास्त नही कर पाती है और धीरे धीरे उनकी सहन शक्ति समाप्त हो जाती है और फिर वे परिवार न्यायालय की ओर कदम बढ़ाकर दोनों परिवारों को सदा सदा के लिए एक दूसरे का दुश्मन बना देने का मार्ग प्रशस्त कर देती है।
अपने समाज में विवाह के द्वारा दो परिवारों के बीच आपसी सद्भाव विश्वास आत्मीयता और पारस्परिक सहयोग के एक नये सम्बन्धों का सूत्रपात होता है। इसलिए विवाह का असर पति पत्नी के साथ साथ सम्पूर्ण परिवार और निकटतम सम्बन्धियों पर भी पड़ता है। पहले जब विवाह बुआ मौसी चाची के माध्यम से होते थे तब वर वधू दोनों एक दूसरे के परिवारों की रीति रिवाजों से परिचित होते थे परन्तु अब जब विवाह वैवाहिक विज्ञापनों के माध्यम से होने लगे है तो अब सभी को मानना चाहिये कि बहू को नये परिवार को जानने, समझने के लिए कुछ समय दिया जाना आवश्यक है। इस दौरान वर पक्ष को भी वधू के परिजनों पर अप्रिय टिप्पणी से बचना चाहिये। प्रायः देखा जाता है कि वैवाहिक विवादों की शुरूआत सास बहू या ननद भौजाई के आपसी मन मोटाव से होती है। शुरूआत में पति पत्नी के मध्य निजी स्तर पर कोई समस्या नही होती है। पति माँ और पत्नी के बीच पिसने लगता है। दोनों के मध्य सामन्जस्य बैठा पाना उसके लिए टेढी खीर हो जाता है। पुत्र के विवाह के बाद माँ को बेटे पर अपना नैसर्गिक अधिकार बहू के साथ शेयर करने की आदत डालनी चाहिये। प्रायः माँ ऐसा नही कर पाती और फिर वे अपने बेटे के जीवन में खुद ही अशान्ति को आमन्त्रित कर देती है।
दहेज प्रताड़ना की फर्जी शिकायतों को दृष्टिगत रखने के बावजूद दहेज में पोस्ट डेटेड चेक की घटना बताती है कि दहेज विरोधी कानून आज भी पहले जैसा ही सार्थक और उपयोगी है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देश के बाद विधि आयोग ने दिनांक 30 अगस्त 2012 को प्रस्तुत अपनी 243वीं रिपोर्ट में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498ए के तहत पंजीकृत मुकदमों को आधारहीन नही पाया है और इसीलिए उसने अनुशंशा की है कि वैवाहिक विवादों में गिरफ्तारी करने के पूर्व सावधानी बरती जानी चाहिये। आज सामाजिक शक्तियाँ कमजोर हो गई है और दहेज लोभियों ने दहेज विरोधी होने का आवरण ओढ लिया है। ऐसी दशा में इन पर केवल कानून के द्वारा अंकुश लगाया जा सकता है परन्तु दूसरी ओर इसके दुरूपयोग को रोकने के लिए कारगर उपायो की भी जरूरत है।
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