आपराधिक विधि संशोधन अधिनियम 2005 के द्वारा देश में पहली बार विचारण प्रारम्भ होने के पूर्व अभियुक्त को अभियोजन की उपस्थिति में अमेरिकी तर्ज पर पीडित के साथ बातचीत करके अपने विरूद्ध अधिरोपित आरोपों पर सजा भुगतने की जगह सम्मानजनक आपसी समाधान खोजने का नायाब तरीका उपलब्ध कराया गया है। दण्ड प्रक्रिया संहिता में चैप्टर 21 ए के तहत बारह नई धाराये 265 ए, बी, सी, डी, ई, एफ, जी, एच, आई, जे, के, एल जोडी गई है और इसके द्वारा अभियुक्त को अधिकार दिया गया है कि वह अदालत के समक्ष प्रार्थनापत्र देकर पीडि़त के साथ स्वयं बातचीत करे और अभियोजन की उपस्थिति में आपसी समझौते की शर्ते तय करके आपराधिक मुकदमों को निपटारा कराये। अमेरिका सहित अनेक यूरोपीय देशों में इस प्रक्रिया का ज्यादा से ज्यादा उपयोग किया जाता है, परन्तु व्यापक प्रचार प्रसार न हो पाने के कारण भारतीय अदालतों में प्ली आफ बारगेनिग से अभियुक्त या पीडि़त कोई लाभन्वित नही हो पा रहा है। आपसी रजामन्दी से आपराधिक मुकदमों के निस्तारण के लिए आज भी गवाहों को अपने पूर्व बयानों से मुकरने के लिए पक्षद्रोही बनाने पर ज्यादा विश्वास किया जाता है।
प्ली बारगेनिग की अवधारण ऐग्लो अमेरिकन आपराधिक न्याय प्रशासन की उपज है। अमेरिका में इस प्रक्रिया का प्रयोग 19वीं शताब्दी में शुरू हो गया था। इस प्रक्रिया ने अदालतों में लम्बित मुकदमों का बोझ काफी कम किया है। अमेरिकी अदालतों मे प्ली बारगेनिग का लाभ उठाकर प्रत्येक मिनट पर एक आपराधिक मुकदमा निस्तारित किया जाता है। इस प्रक्रिया का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किये जाने के कारण नब्बे प्रतिशत आपराधिक मामले विचारण प्रारम्भ होने के पूर्व ही निस्तारित हो जाते है। अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक न्याय प्रशासन के लिए प्ली बारगेनिग को प्रत्येक स्तर पर प्रोत्साहित करने की जरूरत बताई है। इंग्लैण्ड में इसे क्रिमिनल प्रोसीजर एण्ड इन्वेस्टिगेशन एक्ट 1996 के द्वारा स्वीकार किया गया है।
अपने देश में पहली बार विधि आयोग ने अपनी 142वीं रिपोर्ट के द्वारा अपराध स्वीकार करने की स्थिति में अभियुक्त को उसके विरूद्ध अधिरोपित आरोपों में निर्धारित सजा से कम सजा देने की अनुशंशा की थी। अपनी 154वीं रिपोर्ट में विधि आयोग ने पुनः प्ली बारगेनिग को आपराधिक विधि में शामिल करने की अनुशंशा की। इन दोनों रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 2001 में विधि आयोग की 177वीं रिपोर्ट और मलिमाथ कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर आपराधिक विधि संशोधन बिल 2003 पारित हुआ परन्तु वह विधि नही बन सका। कुछ संशोधनों के साथ सरकार ने पुनः आपराधिक विधि संशोधन अधिनियम 2005 के द्वारा उसे संसद के समक्ष प्रस्तुत किया। दिनांक 13.12.2005 को राज्य सभा और दिनांक 22.12.2005 को लोक सभा ने इसे पास कर दिया और उसके बाद केन्द्र सरकार ने अधिनियम संख्या 2 सन 2006 के द्वारा इसे लागू भी कर दिया है।
प्ली बारगेनिग का लाभ प्राप्त करने के लिए अभियुक्त को विचारण न्यायालय के समक्ष विचारण प्रारम्भ होने के पूर्व शपथपत्र के साथ प्रार्थनापत्र प्रस्तुत करना होता है। प्रार्थनापत्र प्राप्त होने के बाद अदालत सुनिश्चित करती है कि अभियुक्त ने बिना किसी दबाव के स्वेच्छा से प्रार्थनापत्र प्रस्तुत किया है या नही और यदि पाया जाता है कि अभियुक्त ने प्रार्थनापत्र स्वेच्छा से नही दिया है तो उस पर विचार नही किया जायेगा। स्वेच्छा से प्रस्तुत प्रार्थनापत्र पर अदालत लोक अभियोजक या मुकदमा वादी (इनफार्मेन्ट) को आपसी सहमति से सम्मानजनक समाधान खोजने के लिए बातचीत करने हेतु नोटिस जारी करती है। अभियोजन पीडित और अभियुक्त के बीच आपसी रजामन्दी के लिए बातचीत की प्रक्रिया मे अदालत का कोई हस्तक्षेप नही होता। तीनों पक्ष समझौते की शर्ते खुद तय करने के लिए स्वतन्त्र है। तीनों पक्ष आपसी बातचीत के द्वारा क्षतिपूर्ति के लिए जो भी राशि निर्धारित करेगे, उसे अदालत किसी भी दशा में घटा या बढ़ा नही सकती। यदि अभियुक्त प्रथम बार आरोपी है तो अदालत अभियुक्त को प्रोवेशन पर रिहा करेगी और यदि विधि में अधिरोपित आरोप के लिए कोई न्यूनतम दण्ड निर्धारित है तो अदालत न्यूनतम दण्ड की आधी या चैथाई अवधि के दण्ड से दण्डित कर सकती है। प्ली बारगेनिग के मामलो मे अभियुक्त को धारा 428 का लाभ देकर जेल मं बिताई गई अवधि के दण्ड से भी दण्डित किया जा सकता है। इसका लाभ आदतन अपराधियों और उन अभियुक्तों को नही दिया जाता, जिनके विरूद्ध 14 वर्ष से कम आयु के बच्चो या महिलाओं के विरूद्ध अपराध करने का आरोप है। प्ली बारगेनिग के तहत आपसी सहमति न बन पाने की दशा में बातचीत की प्रक्रिया के दौरान अभियुक्त द्वारा की गई किसी संस्वीकृति का उसके विरूद्ध किसी भी दशा में कोई उपयोग नही किया जा सकेगा।
प्ली बारगेनिग के माध्यम से आपराधिक मुकदमों के निस्तारण में तेजी लायी जा सकती है और विचाराधीन बन्दियों की रिहाई का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। अदालतों पर लम्बित मुकदमों का बोझ कम किया जा सकता है। साधारण विवादों पर अदालतों का चक्कर काट रहे अभियुक्त इनफार्मेन्ट और गवाहों के आपसी मन मुटाव को भी प्ली बारगेनिग के द्वारा कम किया जा सकता है जो समाज की स्थायी सुख शान्ति के लिए आवश्यक है। इस प्रक्रिया के द्वारा मुकदमों के निस्तारण से अभियोजन को अदालत के समक्ष अभियुक्तो के विरूद्ध आरोपों को सिद्ध करने के लिए गवाह प्रस्तुत करने के खर्चो से मुक्ति मिल जाती है और उसका समय भी बचता है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323, 504, 506 के तहत साधारण अपराध हो या धारा 302, 395 के तहत गम्भीर अपराध, सभी मामलों में अभियोजन को अदालत के समक्ष न्यूनतम छः गवाह प्रस्तुत करने होते है। इसलिए यदि साधारण अपराधों में प्ली बारगेनिग के तहत आपसी समझौते के द्वारा मुकदमों का निस्तारण किया जाये तो गम्भीर अपराधों में दोषियों को उनके किये की सजा दिलाने के लिए अभियोजन को ज्यादा समय और अवसर प्राप्त हो सकते है। सम्पूर्ण देश में मजिस्ट्रेट के न्यायालयों का अधिकांश समय साधारण मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए धारा 156 (3) के तहत प्रस्तुत प्रार्थनापत्रों और इसी प्रकार के अन्य प्रकीर्ण प्रार्थनापत्रों के निस्तारण्ण मे व्यय होता है जिसके कारण साक्ष्य अंकित किये बिना गवाहों को वापस करना पड़ता है और उससे पक्षद्रोहिता को बढ़ावा मिलता है, जो आपराधिक न्याय प्रशासन के लिए हितकर नही है।
भारतीय जेलों में पचहत्तर प्रतिशत से ज्यादा विचाराधीन बन्दी है और उनमें से लगभग नौ प्रतिशत बन्दी पिछले कई वर्षों से विचारण शुरू होने की प्रतीक्षा में जेल और अदालत के बीच भटक रहे है। ऐसे अभियुक्तों को सरकार के स्तर पर प्ली बारगेनिग के तहत प्राप्त उनके विधिपूर्ण अधिकार से अवगत कराया जाना चाहिये। उन्हें बताया जाये कि यदि उन्होंने पहली बार कोई अपराध किया है और प्ली बारगेनिग के तहत पीडि़त के साथ बातचीत करके यदि वे क्षतिपूर्ति देने के लिए कोई सुलह समझौता कर लेते है तो उन्हें सजा नही होगी और प्रोबेशन का लाभ देकर उन्हें तत्काल रिहा कर दिया जायेगा। सरकार के स्तर पर प्ली बारगेनिग को प्रचारित करने का कोई प्रयास नही किया गया है। अन्य किसी से इस प्रकार के प्रयास की अपेक्षा नही की जा सकती है।
भारतीय कारागारों मे विचाराधीन बन्दियो और अदालतों को आपराधिक मुकदमों के बोझ से प्ली बारगेनिग का अधिकाधिक प्रयोग करके निजात दिलाई जा सकती है। इसके लिए आवश्यक है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 320 के तहत समझौता योग्य अपराधों की सूची में कुछ नये अपराधो को भी जोड़ा जाये। यह सच है कि अपराध व्यक्ति के विरूद्ध नही बल्कि समाज के विरूद्ध होते है, परन्तु समाज की स्थायी सुख शान्ति के लिए व्यक्तिगत प्रकृति वाले अपराधें में समझौते की अनुमति जरूरी है। प्ली बारगेनिग इस सामाजिक आवश्यकता की पूर्ति का एक सशक्त माध्यम हो सकता है।
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