कानपुर बार एसोसियेसन के चुनाव प्रचार में जेठ की दुपहरिया की तरह तपन बढ़ गई है। धन बल के सहारे सभी अपने प्रतिद्वन्दी पर बढत का भ्रम बनाये हुये है। इतनी भीषण गर्मी में लू लपट के बीच घर घर जाकर वोट माँगना अब मजबूरी बन गया है। रोज शाम को कही न कहीं कोई न कोई प्रत्याशी औसतन दो सौ लोगों को भोजन करा रहा है। इसके पहले प्रत्याशियों ने अपने समर्थक मतदाताओं का सदस्यता शुल्क भी जमा किया है। बताया जाता है कि महामन्त्री पद के एक प्रत्याशी ने करीब पन्द्रह सौ समर्थको का सदस्यता शुल्क लगभग चार लाख रूपया एक मुश्त जमा किया है। संयुक्त मन्त्री पद के प्रत्याशियों में धनबल के प्रदर्शन की जबर्दस्त होड लगी है। कोई किसी से किसी मामले में पीछे दिखना ही नही चाहता और उसके कारण चुनाव व्यय जरूरत से कही ज्यादा बढ गया है और अब कोई आम अधिवक्ता चुनाव लडने के बारे में सोच भी नही सकता।
बार एसोसियेशन अपने गठन के समय से एक आन्दोलन रही है कभी ट्रेड यूनियन नही रही है। शोषण अन्याय अत्याचार और असमानता के विरूद्ध जन संघर्षो में उसकी सहभागिता आम लोगों के लिए प्रेरणास्पद रही है। आजादी की लडाई में उसके संस्थापक सदस्यों पण्डित पृथ्वीनाथ चक, मोती लाल नेहरू, कैलाश नाथ काटजू की सक्रिय सहभागिता इतिहास का पन्ना है। आजादी के बाद देश के प्रथम विधि मन्त्री और मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री के पद को सुशोभित करके कैलाश नाथ काटजू ने कानपुर बार एसोसियेशन को गौरवान्वित किया है, परन्तु हमने अपने व्यक्तिगत विवादों के कारण उनके शताब्दी वर्ष में उनकी मूर्ति का अनावरण बार एसोसियेशन परिसर में नही होने दिया। उनके पौत्र और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू को शताब्दी समारोह का आयोजन कचहरी के बाहर करने के लिए विवश हुये। देश के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के शताब्दी वर्ष में 10 फरवरी 1957 को गुलामी का प्रतीक महारानी विक्टोरिया की मूर्ति को नेस्तनाबूद करने के कारण नेहरू सरकार के आदेश पर चार माह तक जेल में निरूद्ध रहने का गौरव भी इसी एसोसियेशन के सदस्य और बाद में महामन्त्री हुये श्री एन.के. नायर एवं उनके साथियो को प्राप्त है।
अपने गठन की शुरूआत से ही कानपुर बार एसोसियेशन जाति, धर्म, सम्प्रदाय क्षेत्र की भावनाओं से ऊपर रही है। सदस्यों के राजनैतिक मतभेद एसोसियेशन के पटल पर सदैव प्रभावहीन रहे है। सभी एसोसियेशन की गरिमा और उसके प्रोटोकाल को सर्वोपरि मानते है और इसी सबके कारण अध्यक्ष पद के चुनाव में प्रख्यात साम्यवादी विचारक सुल्तान नियाजी को अपने धुर विरोधी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बैरिस्टर नरेन्द्र जीत सिंह का समर्थन करने में कोई झिझक महसूस नही हुई। उन्होंने समर्थन देते समय कहा था कि उनके मध्य राजनैतिक मतभेद जगजाहिर है परन्तु बार एसोसियेशन के अध्यक्ष पद के लिए वे सर्वश्रेष्ठ प्रत्याशी है लेकिन अब एसोसियेशन के चुनाव में इस प्रकार की भावनायें विलुप्त हो गई है। राजनैतिक दलों की तरह जीत के लिए जाति, धर्म, सम्प्रदाय क्षेत्र के आधार पर रणनीति बनाई जाने लगी है। अब अधिकांश लोग वोट देते समय प्रत्याशी के व्यक्तिगत गुणो की तुलना में उसकी जाति को वरीयता देते है।
बार काउन्सिल के हस्तक्षेप के बाद अब माडल बाई लाज के आधार पर चुनाव कराये जाते है। कार्यकाल पूरा होते ही एल्डर कमेटी एसोसियेशन का कार्यभार अपने नियन्त्रण मे ले लेती है और वही अगली कार्यकारिणी का चुनाव कराती है। एल्डर कमेटी ने चुनाव प्रचार के लिए आचार संहिता भी घोषित की है परन्तु बढ चढ कर उसका उल्लंघन सभी प्रत्याशी खुले आम करते है और उसे रोक पाना सम्भव नही हो पा रहा है।
चुनाव प्रचार में खर्च की कोई सीमा निर्धारित न होने के कारण महामन्त्री के पद के लिए किसी भी प्रत्याशी को कम से कम दस लाख रूपये व्यय करने पडते है। सैकड़ो की संख्या में डिफाल्टर सदस्यों का सदस्यता शुल्क जमा कराने से लेकर मतदान के दिन सभी के लिए लन्च पैकेट बँटवाने तक कई जायज नाजायज मदों में अनाप शनाप खर्च आज चुनावी आवश्यकता बन गई है। विजिटिंग कार्ड पर मोहर लगाकर वोट माँगने की प्रथा एकदम खत्म हो गई है। इस तरह के चुनाव प्रचार की बाते करना भी वर्जित है। अब तो पम्पलेट पोस्टर बैनर यदि विपक्षी से ज्यादा चमकीला और बडा न हो तो प्रत्याशी के समर्थक मायूस हो जाते है और कोई नही चहता कि प्रचार के दौरान उनके समर्थक मायूस हो।
बार एसोसियेशन के चुनाव में बाहरी लोगों की रूचि और सक्रियता चिन्ता का विषय है। इस प्रकार के निहित स्वार्थी तत्वों का केवल अपने स्वार्थ से मतलब होता है और वे पूँजी निवेश की तरह सभी की आर्थिक मदद करने को तत्पर रहते है। ऐसे लोगों को बेनकाब करने की जरूरत है। पिछले दिनों एक हाउसिंग सोसाइटी के सचिव ने किसी फर्जी आदमी को रमेश चन्द्र बनाकर असली रमेश चन्द्र की कई एकड़ जमीन अपने नाम ट्रान्सफर करा ली। इस संव्यवहार में प्रभावशाली पदाधिकारी के पुत्र का नाम प्रकाश में आया है। उनके विरूद्ध थाना कोतवाली में आपराधिक धाराओं में नामजद मुकदमा पंजीकृत है परन्तु एसोसियेशन की धमक के कारण पुलिस उन्हें गिरफ्तार नही कर रही है और उन्ही के सहारे हाउसिंग सोसाइटी का सचिव भी गिरफ्तारी से बचा हुआ है। ऐसे किस्से अब आम हो गये है जो कचहरी के लोकतन्त्र के लिए हितकर नही है। कचहरी के लोकतन्त्र से लोक को अप्रासांगिक होने से बचाने के लिए आवश्यक है कि चुनाव प्रचार के व्यय पर संस्थागत रोक लगाई जाये।
बेलगाम चुनाव खर्च के कारण आज कोई महिला अधिवक्ता महामन्त्री या अध्यक्ष पद का चुनाव लडने का साहस नही कर पाती। बार एसोसियेशन के 128 वर्ष के इतिहास में अभी तक कोई महिला अध्यक्ष या महामन्त्री के पद पर निर्वाचित नही हो सकी है जबकि संख्या और व्यवसायिक कुशलता की दृष्टि से उनकी उल्लेखनीय साझेदारी है और वे एक जुट होकर चुनाव परिणामों को अपने तरीके से प्रभावित करने में सक्षम है। बार काउन्सिल को इस दिशा में आगे बढकर पहल करनी चाहिये। चुनाव खर्च की सीमा निर्धारित करने के लिए आवश्यक सुसंगत खर्चो की एक सूची बनाई जाये। कचहरी के बाहर किसी भी प्रकार से चुनाव प्रचार की अनुमति न दी जाये। प्रचार के दौरान सांय कालीन भोजो और कचहरी के अन्दर सामूहिक अल्पाहारो पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाये। इस प्रकार की व्यवस्थायें लागू हो जाने के बाद आम अधिवक्ता भी चुनाव लडने का साहस करने लगेगा। चुनाव प्रक्रिया मे आम लोगो की सक्रिय सहभागिता के अतिरिक्त अन्य कोई तन्त्र कचहरी के बाहर के निहित स्वार्थी तत्वों को बार एसोसियेशन चुनाव से बाहर रखने में सक्षम नही है।
बार एसोसियेशन का गौरवमयी इतिहास है पदाधिकारी चुने जाने के बाद बैरिस्टर नरेन्द्र जीत सिंह, एन.के. नायर, युधिष्ठिर तालवाड, ओंकार नाथ सेठ, गोपी श्याम निगम, गोपाल कृष्ण पाण्डेय, विश्वनाथ कपूर आदि ने अपने सम्पूर्ण कार्यकाल के दौरान निषेधाज्ञा या जमानत के किसी नये मामले में अपना वकालतनामा दाखिल नही किया है और न अदालत के समक्ष उपस्थित हुये। अपनी शालीनता और व्यवसायिक कुशलता के बल पर वे प्रशासनिक एवं न्यायिक अधिकारियों पर अपना दबाव बनाते रहे है। व्यवसायिक कुशलता, सहिष्णुता और सामने वाले के विचारों का आदर इस पेशे की विशिष्टता है। इस विशिष्टता को सतत् बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि बार एसोसियेशन अपने नये सदस्यों को अपने गौरवमयी इतिहास से अवगत कराने का कोई तन्त्र विकसित करे।
राजनैतिक क्षेत्र में भी कानपुर बार एसोसियेशन के सदस्यों की उल्लेखनीय सहभागिता रही है। देश के प्रथम विधि मन्त्री कैलाश नाथ काटजू विधान परिषद अध्यक्ष वीरेन्द्र स्वरूप विधान सभा अध्यक्ष हरि किशन श्रीवास्तव, सुखराम सिंह यादव, जनसंघ विधायक दल के नेता गंगा राम तालवाड, श्रम मन्त्री गणेश दत्त बाजपेई, कृषि मन्त्री चैधरी नरेन्द्र सिंह, वर्तमान केन्द्रीय संसदीय कार्य राज्य मन्त्री राजीव शुक्ल, रेशम वस्त्र मन्त्री शिव कुमार बेरिया ने अपना राजनैतिक परचम बार एसोसियेशन के सदस्य के नाते फैलाया है। इन लोगों ने बार एसोसियेशन को शोषण अन्याय अत्याचार और असमानता के विरूद्ध जन संघर्षो में अपना हथियार बनाया और आम लोगों को न्याय दिलाने और उनके मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अपनी व्यवसायिक कुशलता का प्रयोग किया है, परन्तु शनै शनै कानपुर बार एसोसियेशन अपनी गौरवमयी गाथा को भूलने लगी है। जाति धर्म के गुणा भाग और अपना मासिक सदस्यता शुल्क जमा न करने की बढ़ती प्रवृत्ति ने त्याग और संघर्ष के वातावरण को विषाक्त कर दिया है। शालीनता से होने वाले चुनाव गैर अधिवक्ता पेशेवर अधिवक्ता नेताओं के हस्तक्षेप के कारण टेम्पो हाई है के नारो और जुलूसों के बीच होने लगे है। धन बल पर चुनाव जीता जा रहा है। व्यक्तिगत स्तर पर सभी इससे व्यथित है, उसे बुरा बताते है, सुधार चाहते है परन्तु खुद अपना मासिक सदस्यता शुल्क नियमित रूप से जमा करके सुधार हेतु आगे बढकर पहल करने के लिए कोई तैयार नही है।
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